28 नवंबर, 2010
अमेय कान्त की कविताएँ
नयी पहल
परिचय:
अमेय कान्त
जन्म: १० मार्च १९८३
शिक्षा: एम. ई. (इलेक्ट्रानिक्स )
प्रकाशन: ज्ञानोदय, साक्षात्कार, परिकथा, कथाचक्र आदि पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित.
अन्य: किताबें पढना, संगीत आदि में रूचि
सम्प्रति: इंजीनियरिंग कॉलेज में व्याख्याता
सम्पर्क: 155- एल. आई. जी., मुखर्जी नगर ,देवास-455001, (म प्र)
मोबाईल : +919827785868
ई मेल: amey.kant@gmail.com
प्रदीप मिश्र
जीवन दृष्टि से समृद्ध कविताएँ
इन कविताओं को पढ़ते हुए कवि के रियाज और जीवन दृष्टि की समृद्धि स्पष्ट दिखाई देती है। जब बह खिलौने के माध्यम से पिता के बचपन को संरक्षित घोषित करता है, तो साथ ही एक घोषणा और होती है कि जीवन में जुड़ने और प्रसन्न रहने के लिए बहुत सारी चीजें हमारे आस-पास होती हैं, बस जरूरत है अपने आप के संवेदनात्मक ज्ञान को चौकन्ना रखने की। 'पृथ्वी की अंतहीन वेदना' तो बहुत ही सुन्दर कविता है। जहाँ पर अपेक्षा और उपलब्धता के माध्यम से जीवन के यथार्थ तक पहुँचने में कवि सफल है। जब वह लिखता है - अँधेरे में लथपथ सूरज / मैं खुले में आकर लेना चाहता हूँ एक भरपूर साँस/लेकिन भर जाता हूँ ज़हरीले धुएँ से/और पृथ्वी के किसी बहुत अपने - से एकांत में/ठहरने की कोशिश करता हूँ/तब महसूस करता हूँ/ठीक अपने पांवों के नीचे /पृथ्वी की अंतहीन वेदना। पृथ्वी की इस अंतहीन संवेदना को पूरी शिद्दत के साथ कविता अभिव्यक्त करती है और कवि की समर्थता ने जीवन के यथार्थ को खूबसूरती से पकड़ा है। 'पन्नों के बीच' कविता को पढ़ते हुए पुनः एक अच्छी कविता का आस्वाद मिलता है। यह कविता स्मृतियों और संवेदना को अंतर्संबन्धों की पड़ताल करते हुए, स्थापित करती है कि मनुष्य का वर्तमान भूत और भविष्य की छवियों से भरा होता है। इन छवियों में तात्कालिक समय के सुख और दुःख भी उसी प्रवणता के साथ उपस्थित होते हैं। 'सड़क के किनारे पर' कविता कामगारों की समर्थता को उदघाटित करती है। श्रम के मूल्य और महत्ता को रेखांकित करती हुई, यह एक अच्छी कविता है। इस कविता की स्थापना हमें जीवन के वैज्ञानिक विवेक से परिचित करवाती है। 'सन्नाटा और अँधेरा' कविता बहुत बड़े फलक की कविता है। यहाँ पर तीन शब्द सन्नाटा, नश्वरता और अँधेरा हैं। इन तीनों शब्दों के माध्यम से एक सभ्यता के विकास और पतन पर बहुत गहन टिप्पणी करती हुई इस कविता के कई पाठ पल्लवित होते हैं। इन शब्दों में छिपे प्रगतिशील अध्यात्मिकता के मूल्यों को संरक्षित करते हुए कवि ने जो कलात्मक ऊर्जा संग्रहित की है, वह उसकी काव्य प्रवीणता का प्रमाण है। इस कविता के माध्यम से हर सकारात्मक संराचना और उसके विघटन की प्रक्रिया को समझा जा सकता है। 'चहचहाहट'कविता को पढ़ते हुए मन भी चह चहाने लगता है। लड़की और चिड़िया के माध्यम से कवि ने मन को अभिव्यक्त किया है। हारमोनियम हमारा जीवन है, जिसका सुर, साधना हमारी नियति है।
समग्ररूप से इन कविताओं के कई पाठ हैं और उतनी ही अर्थ ध्वनियाँ। यह उपलब्धि अर्जित करना कठिन है। यहाँ पर कवि की समर्थता, उसकी रियाज़, उसका विवेक और पक्षधारता काम करते हैं। इन कविताओं का कवि उन सारी कसौटियों पर खरा उतरता है, जो एक अच्छे कवि में जरूरी है। हिन्दी कविता को और समृद्ध करने में कवि सक्षम है। इतनी अच्छी कविताएं पढ़वाने के लिए सत्यनारायण को बधाई।
अमेय कान्त की कविताएँ
खिलौना
पिता जब छोटे थे
उनके पास एक खिलौना था
छोटा - सा
चीनी मिटटी का बना हुआ
पिता बड़े हुए
खिलौना वैसा ही रहा
मौन, गंभीर
पिता ने की नौकरी
फिर शादी , घर - गृहस्थी
इस बीच खिलौना बना और बचा रहा
पिता ने सम्हाल कर रखा उसे
और खिलौने ने
अपने भीतर
पिता का बचपन
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पृथ्वी की अंतहीन वेदना
मैं पेड़ पर चिड़िया ढूंढता हूँ
और मुझे मिलती है
एक कुल्हाड़ी
मैं ढूंढता हूँ आकाश में बादल , इन्द्रधनुष
और वहाँ मिलता है मुझे
अँधेरे में लथपथ सूरज
मैं खुले में आकर लेना चाहता हूँ एक भरपूर साँस
लेकिन भर जाता हूँ ज़हरीले धुएँ से
और पृथ्वी के किसी बहुत अपने - से एकांत में
ठहरने की कोशिश करता हूँ
तब महसूस करता हूँ
ठीक अपने पांवों के नीचे
पृथ्वी की अंतहीन वेदना
0000
पन्नों के बीच
पुरानी डायरी खोलता हूँ
और ढेर सारे पीले पत्ते उड़ निकलते हैं
एक गंध आती है हल्की सी
शायद तब पन्नों में दबी रह गयी थी
एक पूरा संसार ज़िन्दा है वहाँ
पन्नों के बीच
कैद से आज़ाद होकर
हवा के साथ फड़फड़ाकर
फैल जाता है सामने
कुछ रिश्ते फिर हरे हो जाते हैं
ठण्ड, गर्मी, बारिश;
सब छुपा दिए थे मैंने
पन्नों के बीच कहीं कहीं पर
फिर नहा लेता हूँ गुनगुनी धूप से
और मिल आता हूँ उस बच्चे से
जो अभी भी खेल रहा है
अपने दोस्तों के साथ
हरे मैदान में
नंगे पाँव
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सड़क के किनारे पर
सड़क के किनारे पर
कल मैंने उन लोगों को देखा
जिनके लिए बदलते मौसम और बदलती खबरें
कुछ ख़ास मायने नहीं रखते
सड़क के किनारे पर
कल मैंने उन लोगों को देखा
जो ठिठुरती सर्दी को खुलेआम
चूल्हे पर बनी रोटी पर लगाकर
खा चुके थे
सड़क के किनारे पर
कल मैंने उन लोगों को देखा
जो कड़ी धूप को भरी दोपहर
टेलीफ़ोन लाइनों के साथ दफना चुके थे
सड़क के किनारे पर
कल मैंने उन लोगों को देखा
जो बारिश को तकरीबन रोज़
पी जाते हैं घूँट-घूँट
दिन भर की थकान के बाद
एक पव्वे के साथ
सड़क के किनारे पर
कल मैंने उन लोगों को देखा
जो पता नहीं कब से
और पता नहीं कब तक के लिए हैं
सड़क के किनारे पर
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सन्नाटा और अँधेरा
सन्नाटा और अँधेरा
अक्सर बतियाते हैं एक दूसरे से
और हँसते हैं नश्वरता पर
अँधेरे को ओढ़कर सन्नाटा कई बार
खंडहरों के भीतर गहरी खोहों में
सोता है उल्टा लटककर
और जब एक सभ्यता नष्ट हो जाती है
करता है अट्टहास
जिसकी गूँज को सुनने के लिए
दूर - दूर तक कोई नहीं होता
सिवाए अँधेरे के
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चहचहाहट
( हारमोनियम बजाती हुई एक बच्ची के लिए )
उसके नन्हे हाथ ऐसे चलते हैं हारमोनियम पर
जैसे चिड़िया फुदकती है डाल पर
स्वरों के बीच के लम्बे अंतर को
पाट नहीं पाती उसकी छोटी उँगलियाँ
और गुम हो जाती हैं बीच में ही कहीं
धम्मन देती है अपनी पूरी ताकत से
और करीब उतनी ही ताकत
वह गाने में भी लगा देती है
हर बार गा और बजा लेना चाहती है वह
सब कुछ , जो उसने अभी तक सीखा है
हवा भी है कि रुकती ही नहीं
टूटे दांतों के बीच !
अपने और हारमोनियम के स्वरों को
साधे रखने की कोशिश में
उसका चहचहाना जारी है…
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अपने और हारमोनियम के स्वरों को
जवाब देंहटाएंसाधे रखने की कोशिश में
उसका चहचहाना जारी है…
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युवतम पीढी के कवि होने के बावजूद अमेय की कविताओं जीवन के प्रति सजग दृष्टि का एक बेहतरीन आस्वाद मिलता है ...
amey ko bahut-bahut badhai.
जवाब देंहटाएंbahut achchhi kavitayen.