16 अगस्त, 2016

लघुकथाएं : हेमा चांदनी 'अंजुली'

साथियो आइये आज पढ़ते हैं लेखिका हेमा चंदानी 'अंजुलि' जी की दो लघुकथाएँ ।

पढ़कर सभी साथी अपने विचार एवं प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएँ ।

लघुकथा- “अमीर आदमी”

आज अमीर आदमी का जन्मदिन था, हर साल की तरह इस साल भी वो मंदिर के बाहर पहुँच गया,भिखारियों में खाना और कपड़े बाँट कर पुण्य कमाने के लिए, मगर आज तो कमाल ही हो गया आज मंदिर के बाहर उसे एक भी भिखारी नही मिला अमीर आदमी परेशान हो गया कि अब वो पुण्य कैसे कमाएगा ?, फिर उसने फूल वाले से पूछा कि सारे भिखारी कहाँ चले गये ? तो फूल वाले ने बताया कि “कल रात सारे भिखारी अमीर हो गये और यहाँ से चले गये” ये सुनकर अमीर आदमी उस फूल वाले पे भड़क गया "पगला गये हो क्या तुम" ऐसे कोई रातों-रात अमीर बनता है क्या ?,ज़रूर पुलिस वालों ने भगा दिया होगा” और फिर अमीर आदमी ने अपनी कार ग़रीबों की कच्ची बस्ती की तरफ मोड़ ली और जब वो ग़रीबों की कच्ची बस्ती में पहुँचा तो हैरान रह गया, क्योंकि कल तक जहाँ कच्ची बस्ती हुआ करती थी आज वहाँ पक्के घर थे, गंदे-फटे कपड़े में घूमने वाले लोग आज सॉफ-सुथरे कपड़े पहन कर घूम रहे थे पूछने पर वहाँ भी उसे यही जवाब मिला कि “कल रात सारे ग़रीब अमीर हो गये”. अब अमीर आदमी और भी परेशान हो गया,.इस तरह से अमीर आदमी शहर की हर उस जगह पर गया जहाँ-जहाँ ग़रीब और भिखारी लोग रहते थे, पर हर जगह उसे निराशा ही हाथ लगी...पंडित जी ने कहा था कि राहु की दशा है दान करो पुण्य मिलेगा..पर अब किसे दान करे वो? कैसे पुण्य कमाए ?...परेशान हो के उसने अपने मंत्री मित्र को फोन करके पूछा कि “शहर के सारे ग़रीब- भिखारी कहाँ चले गये ? उसकी बात सुन के मंत्री जी भी परेशान हो गये कि अगर शहर में कोई ग़रीब नही रहा तो उनके चुनाव का क्या होगा किससे झूठे वादे करके चुनाव जीतेंगे वो ? इधर अमीर आदमी की बीवी भी परेशान थी क्योंकि आज उसकी काम वाली बाई ने काम छोड़ दिया था अब वो भी अमीर हो गयी थी इसलिए नौकरानी का काम नही करेगी वो,आज से मालकिन को खुद झाड़ू-बर्तन करना होगा आज अमीर आदमी का दफ़्तर का चपरासी भी नही आया था, उसका ड्राईवर भी गायब था. आज तो कार भी उसे खुद ही ड्राइव करनी पड़ी और फिर अचानक उसने देखा कि सड़क पर जैसे कारों का हुज़ूम निकल आया है,शहर का हर ग़रीब आदमी कार में सफ़र कर रहा है,.उसका चपरासी, उसके घर की काम वाली,बाई, होटल का वो वेटर जिसे वो दस रुपए की टिप देकर एहसान जताने वाली नज़रों से देखा करता था,आज वो सब उसकी बराबरी करते हुए उसकी ही कार के साथ रेस लगाते दिख रहे थे, उसे समझ ही नही आ रहा था कि अचानक से ये सब क्या हो गया.? उसे ऐसा लगा कि उसका अस्तित्व महत्वहीन होने लगा है..अमीर आदमी चिल्ला उठा ..”नही ये नही हो सकता”..कितनी मेहनत की थी उसने बड़ा आदमी बनने के लिए और पर आज सारी मेहनत मिट्टी में मिल गयी थी.शहर का वो तबका जो उसे झुक कर सलाम किया करता था अगर उसके बराबर में आ के खड़ा हो गया तो फिर उसे बड़ा आदमी कौन मानेगा ? जो काम वेटर, चपरासी, नौकर, ड्राइवर किया करते थे वो सब काम अगर अमीर आदमी खुद करेगा..तो फिर उनमें और उसमे क्या फ़र्क रह जाएगा ? माना की वो खुद भी ग़रीबों का उद्दार चाहता है..लेकिन ऐसे नही कि उसका अपना अस्तित्व ही महत्वहीन हो जाए और फिर वो रोने लगा-चिल्लाने लगा “नही ये नही हो सकता, ये कभी नही हो सकता..”हे प्रभु ये तूने क्या कर दिया ?,सब ख़त्म हो गया-सब ख़त्म हो गया….,..”. और फिर अचानक उसकी नींद खुल गयी.. उसने देखा कि..उसकी पत्नी घबराई हुई सी उसके पास खड़ी उस से पूछ रही थी ”क्या हुआ ?क्यों चिल्ला रहे हो ? कोई बुरा सपना देखा क्या ? अमीर आदमी बोला " हां बहुत बुरा सपना था....." पत्नी बोली.. “घबराओ मत ..सपने कभी सच थोड़े ही ना होते है” तब अमीर आदमी की जान में जान आयी और वो बोला “शुक्र है ख़ुदा का कि सपने सच नही होते वरना पता नही क्या होता” पत्नी बोली “ सपने को भूल जाइए और जल्दी से तैयार हो जाइए आज आपका जनमदिन है आपको मंदिर जाना हैं ग़रीबों और भिखारियों को खाना बाँटने”…. ये सुनकर अमीर आदमी के चेहरे पे पसीना उभर आया सपने का भय अब तक उसके चेहरे पे सॉफ नज़र आ रहा था…..

लघुकथा- "वादा"

“आह… लग गयी....अरे कोई बचाओ मुझे.”. आज फिर प्रहार किया था उसने मेरे खोल की दीवार यानी कि माँ का पेट पर….. लेकिन देख लेना एक बार बाहर आ गया ना पेट से… तो फिर छोड़ूँगा नही उसे... पता नही कौन दुष्ट है जो रोज-रोज माँ को लात-मुक्के और धक्के मारता रहता है ..ये भी नही सोचता कि माँ को कितना दर्द होता होगा...और माँ के साथ-साथ मुझे भी तो चोट लग जाती है ना.. क्योंकि मैं माँ के पेट में जो हूँ....इसलिए तो कुछ कर नही पाता अभी..बस एक बार बाहर आ जाऊं ..फिर नही मारने दूँगा उसे माँ को...पर पता नही मैं कब बाहर आऊंगा ..? और बाहर तो तब आऊंगा ना जब ज़िंदा बचूँगा.. पता नही कौन था वो आदमी.. जो हर रोज माँ पे चिल्लाता ..उनसे मार-पीट करता और कहता कि” तुझे डॉक्टर से जाँच करानी ही होगी कि तेरे पेट में लड़का है या लड़की”.. फिर माँ के हर बार के इन्कार पर वो और भी ज़्यादा भड़क जाता ..और माँ को दो-चार लात लगा देता.और उसकी इस मार-पीट से मुझे भी चोट लग जाती थी ..लेकिन मेरा दर्द कौन सुनता क्योंकि तो मैं तो माँ के गर्भ में था ना... लेकिन मुझे ये समझ नही आता था कि ये लड़का-लड़की का क्या चक्कर है..? .क्योंकि माँ को हमेशा यही कहते सुनता था कि वो जाँच नही कराएँगी क्योंकि अगर जाँच में लड़की निकली तो फिर से वो आदमी उसे उसे पेट में ही मरवा देगा जैसे कि पिछली बार मरवा दिया था.. माँ की ये बात सुन के मैं और भी सहम जाता कि कहीं वो आदमी मुझे भी ना मार दे...क्योंकि अभी तक तो मुझे भी नही पता था ना कि मैं लड़का हूँ या लड़की ...मैं तो अभी अविकसित भ्रूण था ना.. पर समय बीतने के साथ-साथ मैं विकसित होता जा रहा था अब बाहर की सारी बातें सुनाई देने लगी थीं मुझे और समझ भी आने लगी थीं ..और डर भी लगने लगा था... और फिर एक दिन उस आदमी ने माँ को ये धमकी दे डाली कि अगर माँ जाँच नही करायगी तो वो माँ को सीढ़ी से धक्का दे देगा फिर माँ अपने आप ही अस्पताल पहुँच जाएगी और फिर जो भी डॉक्टर उसका इलाज़ कर रहा होगा उस डॉक्टर को हरे- हरे नोट दिखा के सब पता कर लेगा वो.. .अब माँ और भी डर गयी थी ..लेकिन फिर भी हिम्मत नही हारी थी माँ ने… अब माँ ने भी उसे धमका दिया था “कि सोच लो अगर पेट में लड़का हुआ तो ?.और वो तुम्हारी इस मार-पीट से पेट में ही मर गया तो ?” उसके बाद से फिर उस आदमी ने माँ को मारना छोड़ दिया …...उसके बाद माँ का और मेरा कुछ समय शांति से बीता और फिर एक दिन मेरे पेट से बाहर निकलने का टाइम आ गया, माँ को अचानक से बहुत दर्द हुआ और उन्हे हॉस्पिटल ले जाया गया..जहाँ डॉक्टर ने बताया कि” माँ की हालत बहुत नाज़ुक है और ऑपरेशन करना पड़ेगा.....और माँ और बच्चे में से सिर्फ़ एक को ही बचाया जा सकता है”.तब उस आदमी जो मेरी माँ का पति था उसने डॉक्टर से पूछा की पेट में लड़का है या लड़की.....तो डॉक्टर ने उसे डाँट दिया था कि “यहाँ आपकी पत्नी और बच्चे की जान पे बन आई है और आप ऐसे बेवकूफी भरे सवाल कर रहें है”....तब माँ के पति ने कहा कि आप बच्चे को ही बचा लीजिए... क्योंकि हो सकता है कि पेट में लड़का हो.....उसके ऐसे जवाब पर डॉक्टर झल्ला कर बोला कि ना जाने क्यों ईश्वर आप जैसे गँवार लोगों को पिता बनने का मौका दे देता है अरे पत्नी की तो ठीक से देखभाल करते नही हो बच्चे को क्या ख़ाक संभालोगे? आप जैसे लोगों से ये सवाल पूछने का मतलब है अपना समय बर्बाद करना “ मैं दोनो को बचाने की कोशिश करूँगा ऐसा कह कर डॉक्टर वहाँ से चला गया….और फिर डॉक्टर ने अपने कोशिशों से हम दोनो को बचा लिया … अब मैं खोल से बाहर आ गया था .बाहर आते ही मुझे पता चल गया कि मैं लड़का हूँ...क्योंकि मेरी माँ के पति ने मेरे पैदा होते ही खुशी के मारे मुझे अपनी गोद में लपक लिया. मैं जब से माँ के गर्भ में आया था तब से आज पहली बार उस आदमी की प्यार भरी बातें सुनी थी...माँ भी बहुत खुश थी कि चलो अब उन्हे भी घर में मान-सम्मान मिलेगा क्योंकि उन्होने एक लड़के को जनम दिया है ..पर माँ के नसीब में शायद ये खुशी और मान-सम्मान नही था क्योंकि पहले के दो गर्भपात की वज़ह से माँ इतनी कमज़ोर हो गयी थी कि वो अस्पताल में ही चल बसी... लेकिन मेरे पिता को मेरी माँ की मौत का कोई अफ़सोस ही नही था वो जल्दी ही घर में मेरी नयी माँ ले आये कैसा पुरुष था वो एक पत्नी का तो सम्मान कर नही सका और दूसरी ले आया... सिर्फ़ मुझे इस दुनिया में लाने के लिए माँ ने कितने कष्ट सहे थे.....पर बदले में उन्हे क्या मिला ..? "लेकिन माँ आज मैं,आपका बेटा आपसे ये वादा करता हूँ कि जब मैं शादी करूँगा तो मैं अपनी पत्नी को पूरा सम्मान दूँगा...मेरी औलाद चाहे वो लड़का हो या लड़की उसे पूरे मन से अपनाऊंगा जो ग़लती मेरे पिता ने कि वो ग़लती मैं कभी नही दोहराऊंगा आज आपके बेटे का ये वादा है आपसे…. .
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प्रस्तुति-बिजूका समूह

पल्लवी प्रसाद:-
Mujhe pehli kahani uski sookshmta k liye behtar lagi. Dusri ki prasangikta p koi do mat nahi.

प्रह्लाद श्रीमाली:-
हेमा चंदानी जी को  अच्छी लघुकथाओं के लिए बधाई शुभकामनायें
अमीर  आदमी -बीमार मानसिकता के धनाढ्य वर्ग पर करारा व्यंग्य है ।

वादा - बेटा चाहने की सनक का मार्मिक शब्दांकन है ।वादा महत्वपूर्ण है,  इसे निभाने में ही देश समाज का भला है ।

सुषमा सिन्हा:-
दोनों कहानियाँ अच्छी हैं पर ये मुझे लघुकथाएँ नहीं छोटी कहानियाँ लगीं क्योंकि इन कहानियों में लघुकथाओं में आने वाले आवश्यक पंच नहीं मिले।

मज़कूर आलम:-
सच बात है- दोनों कहानियां हैं। पहली कहानी अच्छी है, दूसरी संभावनाशील है, कसावट की मांग करती है।

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