07 फ़रवरी, 2017

मार्गुस लतीक की कुछ कविताएँ अनुवाद - गौतम वसिष्ठ

मित्रो आज पढ़ते हैं - मार्गुस लतीक की कुछ कविताएँ                                 वसंत आ रहा है 
मार्गुस लतीक 

अनुवाद - गौतम वसिष्ठ

फर्क नहीं पड़ता...
मेरे कहने से, तुम्हें जाना ही होगा...
अपने लिए देखने और महसूसने को
कि शहरों की चोटी पर पर्वतों के साए
और नन्हीं सी जानों के बीच बहती नदी
तमन्नाएँ दिलों के घर में रहती हैं
और रह रह रूप बदलते हैं...

हाँ सच है की बसंत आने को है...
मेघ, सरगोशी और गमगीन खामोशी में...
इस से पहले की बहती हवा पेड़ों से सरसराती निकले
और पुरानी धूसर छतों पे जाके मचले...
तुम्हारे लब्जों में रंग और रवानी
दोनों खिल उठेंगे...
और रंग चढ़ेगा हाथों पर मरहम का, इनायत का...
लेकिन सोच करवट लेगी
शायद जिंदगी के माने बदल जाएँ
कुछ ऐसे कि जिंदगी झाँकेगी आँखों से
और निर्ममता से धो देगी
दिल के सारे मेल पुराने...
और रह रह कर खोलेगी
नए सिरों से मुहाने...

क्या मिल सकेगी राह तुम्हें?
क्या पहुँच पाओगे लक्ष्य तक
जो कि तुम खुद हो

ग्रीष्म की उपस्थिति 
मार्गुस लतीक 

अनुवाद - गौतम वसिष्ठ

ग्रीष्म ने आते ही,
चुरा लिए
हमारे सारे कवच...

एक लंबे अंतराल तक,
हम घिरे रहे इक
गहरी,श्वेत खामोशी में...

आहें गुथती गईं
कभी चोटियों में,
कभी जहाज के पालों में!

जो समंदर पर
लाती हैं हवाएँ
जो जुदा नहीं होती हमसे

एकटक निगाह के अलावा
हर कुछ
अनंत है हरियाली में

चाँद के टीले पर 
मार्गुस लतीक 

अनुवाद - गौतम वसिष्ठ

चाँद के टीले पर
और अखरोटों की फुनगियों पर...
गिरते हैं तारे...
और गुदते हैं संदेशे...
ठंड के सलवटों पे

देखो...
खुले हैं तुम्हारे हाथ
जीवन के गुजरते
लम्हों को रंगते...
और निर्धारित राहों के
मुड़े हुए कदम को !

जवानी को पहाड़...
रवानी को नदियाँ
और
हौसले को चीटियाँ...

जिसे भी हो चाहत
लेकर दुनिया चलने की
जरूरी है की अपना दिल
भी वो साथ में ले ले

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