शहंशाह आलम की कविताएं
शहंशाह आलम: मूलत: हिंदी के कवि हैं। मुंगेर, बिहार में बिलकुल मामूली परिवार में जन्म। 'गर दादी की कोई ख़बर आए', 'अभी शेष है पृथ्वी-राग', 'अच्छे दिनों में ऊँटनियों का कोरस', 'वितान', 'इस समय की पटकथा' कविता-संग्रह प्रकाशित।
'थिरक रहा देह का पानी' प्रेम कविताओं का संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। आलोचना की पहली किताब 'कवि का आलोचक' प्रकाशन की प्रतीक्षा में। देश की सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ छपीं और सराही गईं। कई भाषाओं में कविता के अनुवाद हुए और छपे। ई-पत्रिकाओं के अलावा आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी कविताएँ, बातचीत, विमर्श का प्रसारण। वामपंथी साहित्यिक संगठनों से गहरा जुड़ाव। फ़िलहाल पटना में रहकर कवितारत।
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कविताएं
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एक भाषा जो मुझसे निकली
एक भाषा जो मुझसे निकली
तुम्हारे दिल से होती हुई
कितनों तक जा पहुँची
जिस तरह एक नदी निकलकर
कितने-कितने सफ़र चलकर
पहुँचती रही है मुझ तक
एक भाषा की यात्रा कभी ख़त्म नहीं होती
उसी तरह एक नदी की यात्रा भी ख़त्म नहीं होती
जानते हो ऐसा क्यों है मेरी भाषा के साथ
ऐसा इसलिए है कि भाषा तुम्हारी ज़बाँ पर चढ़कर
तुम्हारे प्रेम की तरह फैल जाती है अनंत तक
नदी का रास्ता पकड़े-पकड़े।
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कश्तीवान ने कश्ती दरिया में उतार दी है
कश्तीवान ने अपनी कश्ती
दरिया में उतार दी है
नाल ठोकने वाले ने
मेरे घोड़े की नाल ठोक दी है
कश्ती पर अनाज लदे हैं
मेरे घोड़े की पीठ पर बीज
कश्तीवान दरिया की लहरें
काटता आगे बढ़ चुका है
मेरे घोड़े ने रफ़्तार पकड़ ली है
हवाओं को चीरते हुए
लड़की के घर खाना पक चुका है
अब लड़की पानी और नमक मिलाकर
समुंदर समुंदर खेल रही है
एक लड़का टूटे हुए चाँद को जोड़ने की
अनथक कोशिश में लगा है
एक रोज़ चाँद वह लड़की को दे देगा
फिर बड़ी अदा से 'मैं तुमसे मुहब्बत करता हूँ' कहेगा
बदले में लड़की शर्म से लाल हो जाएगी
ख़ुशी में आसमान झमाझम बारिश बरसाएगा
मेरे मुल्क में अपनी पसंद का
खाने-पीने पर पाबंदियाँ हैं
जिस तरह लड़की के मुल्क में
अपनी पसंद का पहनने पर पाबंदियाँ हैं
सच यही है
पाबंदियाँ लगाने वाले
सबकुछ खाते रहे हैं
सबकुछ पहनते रहे हैं
सबकुछ पीते भी रहे हैं
मेरे घोड़े पर लदे बीज में से
अंकुर निकलने लगे हैं
कश्ती पर लदे अनाज में से
भूख की ख़ुशबू फैलने लगी है
और वज़ीरे आज़म की नाक तक जा पहुँची है
वज़ीरे आज़म का गृह मंत्रालय
दूसरे मुल्क की कश्ती कहकर
सारे अनाज अपने क़ब्ज़े में करवा चुका है
और कश्तीवान को सज़ाए मौत का हुक्म हो चुका है
मेरे बीज मेरे सफ़ेद घोड़े ने
किसी निगराँ की नज़र में आने से पहले
अस्तबल में छिपा दिए हैं
निगराँ अब भी मेरी टोह में है
मेरे मुल्क का वज़ीरे आज़म
इन दिनों दिल से यही चाहता है
अवाम जो कुछ भी ख़रीदे
उसी के आदमी से ख़रीदे
पानी पीने की बोतल से लेकर
पेशाब पीने की बोतल तक।
०००
जिन्हें मैंने देखा था चेन्नई की यात्रा में
जिन्हें मैंने देखा था चेन्नई की यात्रा में
अब मैं उन्हें खोज रहा था कलकत्ते की यात्रा में
जिनसे मैं मिला
जिनसे मैंने बाते की
जिनके साथ यात्रा की थकान मिटाई
जिनके चेहरे में
ढूंढ लिया किसी अपने का चेहरा
तलाश लिया जिनमें
अपने दिन अपनी रातों की खुशियाँ
उसे मैं कैसे भूल सकता हूँ
जय काली कलकत्ते वाली
कलकत्ते की यात्रा पर निकलने से पहले
पूछ लिया था अपने सेवानिवृत्त चालक पिता से
कि आपने तो ढेरों यात्राएँ की हैं
कइयों बार यहाँ-वहाँ गए-आए हैं
किसी अन्य नगर-महानगर में दिखे चेहरे
किसी अन्य नगर-महानगर में मिले चेहरे
किसी अन्य नगर-महानगर में
अक्समात पुनः मिल जाते
तो आप कैसा अनुभव करते
उन पर क्या बीतता
पिता ने कुछ कहने से पूर्व एक जोरदार मुस्कान ली थी
उनकी मृत आँखें जीवित-सी हो उठी थी फिर से
उत्तर में उन्होंने कहा था :
अल्लाहताला की बड़ी मेहरबानी रही मुझ पर
जो दिल्ली या मुंबई में मिले थे कभी
अगर लखनऊ या पटना में मिल जाते
तो बेहद खुश होते थे
कहते थे :
ड्राइवर साहब, आपसे यहाँ भी मिलकर
आश्चर्य नहीं हो रहा प्रसन्नता हो रही है
जबकि मैं तो बस हैरतज़दा उन्हें देखता
और मुँह हिलाता...
मेरी भी बड़ी इच्छा है
किसी ऐसे व्यक्ति से मिलने की
जो कभी चेन्नई की यात्रा में मिला था
और अब वह मुझे कलकत्ते की यात्रा में मिल जाता
और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता
जैसे मेरे पिता से मिलने वाले करते
ताकि मैं भी अनुभव करता
कि मेरे ऊपर क्या बीतता है
किसी के पुनः मिल जाने पर।
●●●
एक बीज मेरे पास है एक तुम्हारे पास
एक बीज मेरे पास है
एक तुम्हारे पास
मेरे बीज से दरख़्त निकले
तुम्हारे वाले से कुछ भी नहीं
नाराज़ होकर तुमने मेरे दरख़्त
अपने नाम कर लिए
अपनी ताक़त की ज़ोर पर
मेरे नाम दीमकज़दा पेड़ लिख दिया
मेरा बाप एक होशियार बढ़ई है
यह तुमको मालूम नहीं था
मेरा भाई एक बाकमाल नाव चलाने वाला है
यह भी तुमको मालूम नहीं था
मेरे बाप ने तुम्हारे दीमकज़दा पेड़ को
एक घोड़े की रफ़्तार वाली नाव में ढाल दिया
मेरे भाई ने उस नाव से मुसाफ़िरों को
और सामानों को ढोना शुरू कर दिया
जबकि तुमने मेरे हरे दरख़्त को छूकर सूखा दिया
फिर उसे काटकर दरिया में बहा दिया बेदर्दी से
यह सोचकर कि एक दिन मेरे सारे बीज
इसी तरह आग में जलाकर ख़ाक कर दोगे
तुम आग से घर जलाते आए हो खेत-खलिहान भी
मैं बीज से पेड़ उगाता आया हूँ गेहूँ-चावल भी
यह कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं है कि तुम आग को पसंद करते हो
मेरा बाप लकड़ियाँ पसंद करता है मेरा भाई दरिया
यह भी महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं कि मैं
अपनी महबूबा की मुहब्बत पसंद करता हूँ
मेरी महबूबा मुझे पसंद करती है तुमसे बिना डरे।
०००
अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
उन्होंने अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
पहले मेरी पहचान को छीना फिर मेरी बोली छिनी
इस छीना-झपटी के बीच उन्होंने मेरा मज़हब छीना
उन्होंने अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
मुझे भीड़ से अलग चौराहे पर खड़ा किया
जैसे मैं शहर में ज़बरदस्ती घुस आया तेंदुआ होऊँ
फिर मुझे पिंजड़े में रखा गया माँसाहारी जानकर
उन्होंने अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
मेरे तंदूर को अपना तंदूर कहा मेरी रोटी को अपनी रोटी
मेरे रेशम के लिबास को अपना लिबास कहा मूँछों को ऐंठते
उनके ऐंठन की यह क्रिया यह अदा उनकी क्रूरता से
बहुत ज़्यादा पुरानी है बहुत ज़्यादा सड़ांध से भरी हुई
उन्होंने अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
मेरी शायरी की किताबों को आग के हवाले किया
मेरी क़लम को अपने बूटों से कुचला बेरहमी से
उन्होंने अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
मेरे इबादतख़ाने को अपना इबादतख़ाना कहा
मेरे घर को अपना घर मेरे आँगन को अपना आँगन
मेरे माल-असबाब को अपना माल-असबाब बताया
उन्होंने अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
पहले मेरे जिस्म के पानी को फिर नमक को मारा
किसी बेहद ज़िद्दी हत्यारे की तरह हमेशा की तरह।
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शहर-शहर घूमते तुम क्या बेचते हो
शहर-शहर घूमते तुम क्या बेचते हो
अपने बेदाग़ सफ़ेद घोड़े पर सवार
मेरी कमर से बँधे थैले में ऐसा कुछ कहाँ है
जिसे बेचूँगा घूम-घूमकर अपने लम्बे सफ़र में
थैले में बीज हैं जिन्हें मैं रस्ते-रस्ते बोता हूँ
थैले में आराम कर रहीं कुछ अदद गिलहरियाँ हैं
जो राह भटकने पर नई राह तलाशती हैं मेरे लिए
हुक्काम को बेचैन करनेवाली नज़्मों की किताबें हैं
कारख़ाने के मज़दूरों को शायरी सुनाने के लिए
छोटी मश्क भी है प्यासे की प्यास बुझाने के लिए
भेस से तुम सामान बेचनेवाले मुझे लगे अजनबी
इसीलिए मैंने तुम्हें आवाज़ें दीं कुछ ख़रीदने के वास्ते
क्या मैं तुम्हारे लिए रोटी पकाऊँ तुम भूखे लगते हो
चटनी बनाऊँ तुम्हारे मुँह का ज़ायका बदलने के लिए
क्या मैं तुम्हारे लिए पानी लाऊँ तुम प्यासे लगते हो
क्या मैं तुम्हारे लिए चाय बनाऊँ तुम थके लगते हो
तुम चटनी काहे से बनाओगी मेरे लिए
टमाटर से और काहे से मेरे अजनबी
टमाटर तो काफ़ी महँगा हो गया है बाज़ार में
आटा भी चाय की पत्ती भी और नमक भी
फिर तुम कहो तो तुम्हारे घोड़े के लिए खाना दूँ
तुम्हारी गिलहरियों के लिए भी मेरे अजनबी
तुम मेरे घोड़े को क्या खिलाओगी
हर घोड़े की ख़ुराक ज़्यादा होती है
तुम्हारे घोड़े को चना खिलाऊँगी गुड़ डालकर
तुम्हारी गिलहरियों को बादाम दे दूँगी अजनबी
चना कम क़ीमत में थोड़े ही न सरकार देती है
गुड़ भी बादाम भी आदमी के पहनने का कपड़ा भी
गुड़ के शीरे में पकाया गुड़ंबा दूँ लाकर
यह तुम्हारे सफ़र में काम आएगा अजनबी
गुड़ंबा मुझे बेहद पसंद है तब भी
आम सस्ता थोड़े ही न मिला होगा तुम्हें
तुम बोलते तो सब सही हो अजनबी
सच यही है मेरे घर न आटा है न चना
चीनी चायपत्ती तक नहीं है और न पानी
फिर गुड़ंबा तुमने कैसे बना लिया इस महँगाई में
आम पड़ोस से आ गया था कच्चा वाला
चीनी मेरे बाप को राशनवाले ने धोखे से दे दिया था
सो घर में गुड़ंबा है मेरे हाथों से बना अजनबी
गुड़ंबा में घी भी तो डालना होता है
खाना बनाने की गैस तो सरकार ने तुमको
मुफ़्त में दिया होगा घर पहुँचाकर
तुम्हारे घर के बाहर ही सरकार का
विज्ञापन लगा है हर घर ईंधन का
सुनो मेरे अजनबी
हर धोखेबाज़ हुक्काम की तरह
अब तुम भी मेरा जी जलाने लगे
जले पर नमक डालने लगे
मेरे घर सरकार मुफ़्त गैस काहे पहुँचाएगी
मेरी माँ अब भी लकड़ियाँ चुनकर लाती है
तब हमारे घर चूल्हा जलता है धुएँदार
तुमको दुआँया मेरा चेहरा नहीं दिखता है अजनबी
लड़की, तुम मुझ पर ख़ाली-पीली काहे बिगड़ती हो
तुम हुक्काम के जुमलों पर काहे नहीं ग़ुस्सा करती हो
जिनके जुमलों ने तुम सबको और ग़रीब बना दिया
एक सच यह भी है मेरे सफ़ेद घोड़ेवाले अजनबी
मैंने वोट कहाँ डाला था न मेरी माँ ने न मेरे बाप ने
तब भी हमारा वोट उन्हीं के खाते में गिरा हुआ दिखाया गया
लड़की, अब तुम काहे से इस जुमलेबाज़ हुक्काम को
उखाड़ फेंकोगी किसी गहरे समुंदर में
किसी बेहद अँधेरी गहरी खाई में
मेरे सच बोलनेवाले अजनबी, अबकि बार वोट के लिए
घर से निकलकर मुल्क का निज़ाम बदल दूँगी सच कहती हूँ
लड़की, तुम सच कहती हो तो सबसे पहले तुम्हारे घर की
दीवार पर चिपकाए इस झूठे सरकारी विज्ञापन को हटाओ
तुम्हारे इस काम में मैं मदद करूँगा और मेरा घोड़ा भी।
०००
मैं क्या-क्या चुरा सकता हूँ
तुम मिट्टी चुरा लाओगे
हाँ, मैं चुरा लाऊँगा
तुम पानी चुरा लाओगे
हाँ, मैं चुरा लाऊँगा
तुम रोटी चुरा लाओगे
हाँ, मैं चुरा लाऊँगा
तुम क्या-क्या चुरा ला सकते हो
मैं तुम्हारे लिए नमक चुरा सकता हूँ
बीज शहद कपड़ा बर्तन चुरा सकता हूँ
उसकी नींद चुरा ला सकते हो मेरे लिए
जिसने मेरी रातों की नींद हराम कर रक्खी है
हाँ, मैं उसके दिल की धड़कनें तक चुरा सकता हूँ
मिट्टी तुम किस वास्ते चुरा लाओगे
तुम्हारे लिए एक महफ़ूज़ घर बनाने की ख़ातिर
पानी तुम किस वास्ते चुरा लाओगे
तुम्हारे होंठों की प्यास बुझाने की ख़ातिर
रोटी तुम किस वास्ते चुरा लाओगे
तुम्हारे पेट की भूख मिटाने की ख़ातिर
तुम नमक क्यों चुरा लाओगे
उन शैतानी आँखों में भर देने के लिए
जो तुम्हें तुम्हारे बचपन से डराती रही हैं
और बीज शहद कपड़ा बर्तन तुम क्यों चुराओगे
बीज डालकर तुम मरी हुई ज़मीन को ज़िंदा करोगी
शहद डालकर दरख़्त में आने वाले फल को मीठा
कपड़ों से तुम अपनी देह की हिफ़ाज़त करोगी
और बर्तन में मेरे लिए खाना डालोगी
आईना तो तुम भूल ही गए चिराग़ भी
चाँद तारे अंतरिक्ष भी चिड़ियाँ भी
नहीं जानेमन, जैसे आईना तुम मेरे लिए हो
वैसे ही मैं तुम्हारे लिए भी तो होऊँगा
चिराग़ तो फ़रिश्ते हमें लाकर ख़ुद देंगे
चाँद तारे सबके लिए रहने देंगे अंतरिक्ष में
जब घर बन जाएगा तुम्हारे लिए
जब दरख़्त उग आएँगे तुम्हारे गिर्दो-पेश
चिड़ियाँ ख़ुद-ब-ख़ुद तुम्हारे कंधे आ बैठेंगी
अच्छा बताओ, तुम ये सबकुछ चुराकर ही क्यों लाओगे
जानेमन, मुल्क के बादशाह ने हमारे हिस्से की सारी चीज़ें
अपने हिस्से की कर रक्खी हैं ढिठाई से ज़ोर-ज़बरदस्ती से
बादशाह से लड़ने के लिए तुम्हारे पास
न घोड़े के न हाथी के चार पाँव हैं
न दरिया में कश्ती है तेज़ भागने वाली
जानेमन, बादशाह से डरकर भागना कौन चाहता है
मैंने आग बादशाह को हराने के लिए ही तो
छिपा रक्खी है उसकी नज़रों से बचाकर
आग तुमने कहाँ छिपाकर रक्खी है मुद्दतों से
आग मैंने बादशाह के खलिहान में छिपाकर रखी है
और खलिहान में मैंने नौकरी कर ली है तुम्हारे वास्ते।
०००
मैं कड़ी धूप में निकलता हूँ शहर में
मैं कड़ी धूप में निकलता हूँ शहर में
तुम्हारे लिए नज़्म लिख चुकने के बाद
जो तुम्हारे होंठों से लगकर मोम बन जाएगी
और पिघलेगी तुम्हारी रूह से मेरी रूह तक
मेरी जान, मुझे मालूम है शहद से
मेरे लिए नज़्म लिखते रहे हो हमेशा
फिर मेरे लिए छाँव ढूँढ़ने निकलते हो
कड़ी धूप में शहर-दर-शहर धूल छानते
तुम आटे से रोटी पकाती हो मेरे लिए
मैं शहद से नज़्म लिखता हूँ तुम्हारे लिए
मेरी जान, तुम नज़्म काहे के लिए लिखते हो
उसे कोई नया साज़ मिल जाए इसके लिए
मेरी जान, तुम नगर-नगर धूल काहे के लिए छानते हो
तुम्हें कोई नया आशियाना मिल जाए इसके लिए
मेरी जान, रास्ते में तुम्हें दुश्मन भी मिलते होंगे
पहाड़ भी जंगल भी समुंदर की लहरें भी
जानेमन, किसी दुश्मन से मैं कहाँ डरा हूँ कभी
लहरें काटने के लिए कश्ती है मेरे पास
मेरी जान, लहरों पर कश्ती चलाते हुए कैसा लगता है
वैसा ही जैसा यह कठिन जीवन जीते हुए लगता है
मेरी जान, पहाड़ को लाँघते हुए कैसा लगता है
वैसा ही जैसे कोई नया शहर तलाशते हुए लगता है
तुम कश्ती काहे से बाँधते हो
हिम्मत से और काहे से जानेमन
तुम गीत काहे से गाते हो
तुम्हारी आवाज़ से और काहे से जानेमन
तुम साज़ काहे से पकड़ते हो
तुम्हारी देह से और काहे से जानेमन
मेरी जान, मैं तुमसे चाँद माँगूँगी
मैं तुमसे तारे माँगूँगी आसमान माँगूँगी
तुम लाकर दोगे मेरी रातों को
सबकुछ तो तुम्हारा ही है जानेमन
मेरे दुश्मन मेरा चाँद तोड़ देते हैं
टूटे चाँद को तो मैं रोज़ ही जोड़ता हूँ
जिस तरह मेरे फटे कुरते तुम सीती हो
मेरे दुश्मन मेरे तारे लूट ले जाते हैं
मैं नए तारे तुम्हारे सिरहाने रखता हूँ
मेरी जान, एक रोज़ मैं और तुम बिछड़ जाएँगे
तब मेरा टूटा चाँद कौन जोड़ा करेगा
मेरे चोरी गए तारे कौन लाया करेगा
समुंदर की लहरें कौन तोड़ा करेगा
जो तुम शहर-दर-शहर धूल छानते फिरते हो
जितनी देर में मैं तुम्हारे लिए छाँव ढूँढूँगा
उतनी देर में मेरे घोड़े की नाल ठुक जाएगी
उतनी देर में लोहार हथियार बना चुकेगा
उतनी देर में समुंदर शांत हो चुकेगा
तुम मुझे मेरे दुश्मनों से काहे से बचा लोगे
लोहार के दिए हथियार से और काहे से
तुम मुझे काहे से भगा ले जाओगे दूर कहीं
अपने तेज़रफ़्तार घोड़े से और काहे से।
०००
जब तक मैं अपने
मुल्क के नाम एक नज़्म पूरी करूँगा
जब तक मैं अपने मुल्क के नाम एक नज़्म पूरी करूँगा
थके-हारे मुसाफ़िर के लिए मेरे घर खाना बन चुकेगा
उसकी मर्ज़ी से बिस्तर ठीक किया जा चुकेगा
अजनबी मुसाफ़िर से मेरी बीवी सवाल शुरू कर चुकेगी
अजनबी, तुम काहे के लिए सफ़र पर निकलते हो
वीरान हो चुकीं मस्जिदों में अज़ान देने के लिए
तुम हर सफ़र में हमारे ही घर की कुंडी काहे खटखटाते हो
इस वास्ते कि इस नगर में आप ही का दरवाज़ा खुला मिलता है
अजनबी, तुम वीरान मस्जिदों में अज़ान क्यों देते है
मैं मंदिर की गुरुद्वारे की साफ़-सफ़ाई कर चुका होता हूँ
तुम काम क्या करते हो जो इस नगर में बार-बार चले आते हो
मैं आपके शौहर की तरह शायरी करने का काम नहीं करता हूँ
आपके नगर में मंदिर-मस्जिद का रगड़ा सदियों-सदियों पुराना है
इसीलिए मैं किसी अच्छे आदमी की तरह अज़ान देने चला आता हूँ
लेकिन औरों की तो अज़ान की आवाज़ से नींदें ख़राब हो जाती हैं
जब मंदिर की अनवरत बजती घंटियों से आपकी नींदें ख़राब नहीं होतीं
तो मस्जिदों से आने वाली अज़ान की आवाज़ें उन्हें क्योंकर बुरी लगेंगी
जब तक मैं अपने मुल्क के नाम एक नज़्म पूरी करूँगा
अजनबी अपना काम ख़त्म करके अपने शहर लौट चुकेगा
मेरी बीवी रास्ते के लिए उसे कुछ रोटियाँ दे चुकेगी
फिर मेरी बीवी मुझसे सवाल शुरू कर चुकेगी
आप काहे से अपनी नज़्में लिखते हैं
क़लम से मेरी जान और काहे से
अजनबी मुसाफ़िर काहे से अज़ान देता है
मुँह से मेरी जान और काहे से
अजनबी मुसाफ़िर काहे से मंदिर को साफ़ करता है
पानी से मेरी जान और काहे से
अजनबी मुसाफ़िर अज़ान ही काहे देता है
अजनबी मुसाफ़िर मंदिर ही काहे साफ़ करता है
और आप शायरी ही काहे करते हैं
मुल्क के हालात ठीक नहीं चल रहे
इस वास्ते मुसाफ़िर अज़ान देता है
कि देखो, तुम्हारा ख़ुदा तुमसे क्या कहता है
मंदिर इस वास्ते साफ़ करता है
कि उसका ख़ुदा हर जगह पाया जाता है
और मैं शायरी इसलिए करता हूँ
कि हमारे घर से कोई अजनबी नाउम्मीद होकर नहीं लौटे
फिर कोई काहे ऐसा-वैसा कहता फिरता है
कि हर मुसलमान ग़द्दार होता है हर हिंदू देशभक्त
यह सब तुमसे किसने कह दिया मेरी जान
सारे न्यूज़ चैनल वाले तो यही समझा रहे हैं लोगों को
अपने मुल्क के वज़ीरे-आज़म भी उनके चेले-चटिये भी
ऐसा इसलिए बार-बार कहा जा रहा है मेरी जान
क्योंकि अब कोई मुल्क का वज़ीरे-आज़म नहीं होता
किसी ख़ास क़ौम का वज़ीरे-आज़म होता है
किसी ख़ास तबक़े का मंत्री-संतरी और अधिकारी
फिर आपकी शायरी इतने सारे लोगों क्यों पसंद करते हैं
ये लोग मुल्क के भोले और सच्चे लोग हैं मेरी जान
जो मेरी शायरी पसंद करते हैं और मेरी तरह मुल्क से मुहब्बत भी
जब तक आप अपने मुल्क के नाम नज़्म पूरी करेंगे
अजनबी मुसाफ़िर क्या-क्या कर चुकेगा मेरे सरताज
जब तक मैं अपने मुल्क के लोगों के नाम नज़्म लिख चुकूँगा
अजनबी मुसाफ़िर दिलों-से-दिलों को जोड़ चुकेगा मेरी जान।
०००
मैंने किसी का इंतज़ार किया
मैंने किसी का इंतज़ार किया
मुझे हाथी की ज़ंजीरों के साथ
जकड़ दिया गया यह सोचकर कि मैं
किसी की याद में पागल हुआ जा रहा हूँ
और जो आदमी किसी से मुहब्बत करता है
वह पागल हाथी सरीखा हो जाता है
मैंने किसी का इंतज़ार किया
मुझसे मेरी कश्ती छीन ली गई
फिर मुझे रोटी-पानी के लिए
कतार में लगा दिया गया
मैं अपनी मुहब्बत पाना चाहता था
मेरे दुश्मन मुझसे रोटी-पानी चाहते थे
मैंने उनके ज़ुल्म के ख़िलाफ़
अपनी उँगलियों से छेड़कर
अपना एकतारा बजाना शुरू किया
एक तेज़ रफ़्तार चलने वाला रथ
काले ख़ूबसूरत घोड़े से बँधा भागा आया
ताकि मैं अपनी मुहब्बत को लेकर
किसी बयाबाँ की तरफ़ निकल जाऊँ
दुश्मन ने घोड़े की टाप में लगाया जाने वाला नाल
अपने क़ब्ज़े में यह जानकर कर लिया कि
इस तरह घोड़े में तेज़ भागने की ताक़त नहीं बचेगी
और वे मुझे पकड़कर सलाख़ों के पीछे डाल देंगे
मगर मेरे घोड़े को मेरी शायरी बेहद पसंद थी
शायरी की वजह से घोड़ा बहुत तेज़ भाग सका
और मुझे रेशम बनाने वालों के यहाँ छिपा दिया
यहाँ रहकर मैं फिर उसका इंतज़ार करने लगा
रेशम बनाने वालों ने रेशम के कीड़े को भेजकर
मेरे वहाँ छिपे होने की ख़बर उस तक पहुँचाई
जासूसों ने शहतूत के पेड़ में आग लगा दी यह सोचकर
कि इस तरह रेशम के सारे कीड़े जलकर मारे जाएँगे
और दो मुहब्बत करने वाले फिर कभी मिल न सकेंगे
लेकिन मैंने फिर से किसी का इंतज़ार किया
उस वक़्त लड़की अपने लम्बे बाल सँवार रही थी
बच गए रेशम के कीड़े उसके घर की तरफ़ बढ़ चुके थे
मैंने घोड़े के नाल समुन्दर का पानी चीरकर हासिल कर लिया था
समुन्दर ने मेरी ऐसी ज़िद देखकर मेरी कश्ती वापस लौटा दी थी
कश्ती में वह लड़की भी थी जो मेरा इंतज़ार करती रही थी।
●●●
मैं बारिश की दुआ करता हूँ
मैं बारिश की दुआ करता हूँ
बारिश होने लगती है सूखी ज़मीन पर
मैं सैलाब के चले जाने की दुआ करता
सैलाब चला जाता है दरिया को छोड़कर
मैं शहद की दुआ करता हूँ
शहद के छत्ते भर जाते हैं शहद से
जिस तरह मैंने दरख़्त के लिए दुआ की
मेरा आँगन भर गया हरे पत्तों से
मैं धूप की दुआ करता हूँ
धूप निकल आती है जाड़े की सुबह
मैं बोसे की दुआ करता हूँ
जा चुकी लड़की वापस लौट आती है
मेरे घर के बग़ल में रहने के लिए
यह दुआओं के पूरा होने का वक़्त है
मैं जो भी दुआएँ माँगता हूँ
एक हत्यारा मेरी दुआओं से उलट
मेरे लिए बद्दुआएँ माँगता है जी-जान लगाकर।
०००
मैंने दरख़्त बनना चाहा
मैंने दरख़्त बनना चाहा
उन्होंने मुझे पेड़ की तरह
आरी से काट डाला
मैंने समुंदर बनना चाहा
मुझे नमक बनाने वालों के हाथों
बेरहमी से बेच डाला गया
जिस तरह वे औरतों को बेचते रहे
जिस तरह वे बाग़ीचों को बेचते रहे
जिस तरह वे नदियों को बेचते रहे
जिस तरह वे मुल्कों को बेचते रहे
वैसे ही वे मुझे भी बेचते रहे हैं
रियायतें दिलाने के नाम पर
मैंने नाव बनना चाहा
मुझ में छेद-दर-छेद किए गए
ताकि मैं हुए भटके मुसाफ़िर के
किसी काम न आ सकूँ
इसमें ग़लती मेरी थी
मुझे बहुत पहले जान लेना चाहिए था
कि बेचना उनकी फ़ितरत रही है
इस वास्ते कि उनके जिस्म में
किसी रहमदिल शायर का नहीं
सख़्तदिल कुत्ते का दिल धड़क रहा है
यही वजह है कि उन्हें आरामगाहें नहीं
क़त्लगाहें ज़्यादा पसंद आती रही हैं
यही वजह है कि उन्हें मुद्दतों से
जीते हुओं का जुलूस नहीं
हारे हुओं की भीड़ बेहद पसंद है
मैंने घोड़ा बनना चाहा मज़बूत काठी का
उन्होंने मुझ पर चाबुक बरसाए अनथक
आख़िर में मैं लोहार का घन बना
और उन पर इस क़दर गिरा
कि वे टूटकर यहाँ-वहाँ बिखर गए
०००
क़ब्र बहुत गहरी खोदी गई है
क़ब्र बहुत गहरी खोदी गई है
उनकी देख-रेख में बड़ी सफ़ाई से
ताकि वे ज़िंदा रह सकें ज़िंदों को मारकर
मेरी जान, हम मुहब्बत ईजाद करते हैं
वे नफ़रत के बीज कारख़ाने में बनवाते हैं
हम शहतूत के पेड़ लगाते हैं
वे अपने जानवरों को भेजकर
सारे पौधे ख़राब करवा देते हैं
जानेमन, वे तुमसे शहतूत का पेड़ छीन लेते हैं
मुझसे मेरा रेशम का कीड़ा ले भागते हैं
वे तुमसे तुम्हारा दरिया ले लेते हैं
मुझसे मेरा मछली पकड़ने का जाल
वे तुमसे तुम्हारी कश्ती हथिया लेते हैं
मुझसे मेरे घोड़े लेकर अपने रथ में बाँध लेते हैं
मेरी जान, हर लगनेवाली कतार में हमें लगाया जाता है
फिर कतार से ख़ाली हाथ वापस लौटा दिया जाता
यह कहकर कि मुल्क में सामानों की क़िल्लत है
जानेमन, वे हर भूखे आदमी को हमारे भारत में
शरणार्थी मानते हैं और ख़ुद को भारत का भाग्यविधाता
मगर मेरी जान, ये कैसे भाग्यविधाता हैं
जीते तो वे हमारे ही कमाए पैसों पर हैं
हाँ मेरी जान, उन्हें जितनी ज़्यादा भूख लगती है
वे मुल्क में उतनी ही ज़्यादा महँगाई ला देते हैं
जानेमन, वे इसीलिए क़ब्रें ज़्यादा गहरी खुदवा रहे हैं
ताकि भूख से मरनेवालों को दफ़नाए जाने में
किसी दिक़्क़त का सामना ना हो मारा-मारी ना हो
मेरी जान, हम सहिष्णु जनता हैं दुनिया भर की
आओ, 'जन-गण-मन' गा लेते हैं अपने ग़मों को भुलाते।
०००
पत्राचार संपर्क :
शहंशाह आलम
हुसैन कॉलोनी
नोहसा बाग़ीचा
नोहसा रोड, पेट्रोल पाइप लेन के नज़दीक
फुलवारीशरीफ़, पटना-801505, बिहार
09835417537
शहंशाह आलम |
'थिरक रहा देह का पानी' प्रेम कविताओं का संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। आलोचना की पहली किताब 'कवि का आलोचक' प्रकाशन की प्रतीक्षा में। देश की सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ छपीं और सराही गईं। कई भाषाओं में कविता के अनुवाद हुए और छपे। ई-पत्रिकाओं के अलावा आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी कविताएँ, बातचीत, विमर्श का प्रसारण। वामपंथी साहित्यिक संगठनों से गहरा जुड़ाव। फ़िलहाल पटना में रहकर कवितारत।
००
कविताएं
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एक भाषा जो मुझसे निकली
एक भाषा जो मुझसे निकली
तुम्हारे दिल से होती हुई
कितनों तक जा पहुँची
जिस तरह एक नदी निकलकर
कितने-कितने सफ़र चलकर
पहुँचती रही है मुझ तक
एक भाषा की यात्रा कभी ख़त्म नहीं होती
उसी तरह एक नदी की यात्रा भी ख़त्म नहीं होती
जानते हो ऐसा क्यों है मेरी भाषा के साथ
ऐसा इसलिए है कि भाषा तुम्हारी ज़बाँ पर चढ़कर
तुम्हारे प्रेम की तरह फैल जाती है अनंत तक
नदी का रास्ता पकड़े-पकड़े।
●●●
कश्तीवान ने कश्ती दरिया में उतार दी है
कश्तीवान ने अपनी कश्ती
दरिया में उतार दी है
नाल ठोकने वाले ने
मेरे घोड़े की नाल ठोक दी है
कश्ती पर अनाज लदे हैं
मेरे घोड़े की पीठ पर बीज
कश्तीवान दरिया की लहरें
काटता आगे बढ़ चुका है
मेरे घोड़े ने रफ़्तार पकड़ ली है
हवाओं को चीरते हुए
लड़की के घर खाना पक चुका है
अब लड़की पानी और नमक मिलाकर
समुंदर समुंदर खेल रही है
एक लड़का टूटे हुए चाँद को जोड़ने की
अनथक कोशिश में लगा है
एक रोज़ चाँद वह लड़की को दे देगा
फिर बड़ी अदा से 'मैं तुमसे मुहब्बत करता हूँ' कहेगा
बदले में लड़की शर्म से लाल हो जाएगी
ख़ुशी में आसमान झमाझम बारिश बरसाएगा
मेरे मुल्क में अपनी पसंद का
खाने-पीने पर पाबंदियाँ हैं
जिस तरह लड़की के मुल्क में
अपनी पसंद का पहनने पर पाबंदियाँ हैं
सच यही है
पाबंदियाँ लगाने वाले
सबकुछ खाते रहे हैं
सबकुछ पहनते रहे हैं
सबकुछ पीते भी रहे हैं
मेरे घोड़े पर लदे बीज में से
अंकुर निकलने लगे हैं
कश्ती पर लदे अनाज में से
भूख की ख़ुशबू फैलने लगी है
और वज़ीरे आज़म की नाक तक जा पहुँची है
वज़ीरे आज़म का गृह मंत्रालय
दूसरे मुल्क की कश्ती कहकर
सारे अनाज अपने क़ब्ज़े में करवा चुका है
और कश्तीवान को सज़ाए मौत का हुक्म हो चुका है
मेरे बीज मेरे सफ़ेद घोड़े ने
किसी निगराँ की नज़र में आने से पहले
अस्तबल में छिपा दिए हैं
निगराँ अब भी मेरी टोह में है
मेरे मुल्क का वज़ीरे आज़म
इन दिनों दिल से यही चाहता है
अवाम जो कुछ भी ख़रीदे
उसी के आदमी से ख़रीदे
पानी पीने की बोतल से लेकर
पेशाब पीने की बोतल तक।
०००
चित्र: शहंशाह आलम |
जिन्हें मैंने देखा था चेन्नई की यात्रा में
जिन्हें मैंने देखा था चेन्नई की यात्रा में
अब मैं उन्हें खोज रहा था कलकत्ते की यात्रा में
जिनसे मैं मिला
जिनसे मैंने बाते की
जिनके साथ यात्रा की थकान मिटाई
जिनके चेहरे में
ढूंढ लिया किसी अपने का चेहरा
तलाश लिया जिनमें
अपने दिन अपनी रातों की खुशियाँ
उसे मैं कैसे भूल सकता हूँ
जय काली कलकत्ते वाली
कलकत्ते की यात्रा पर निकलने से पहले
पूछ लिया था अपने सेवानिवृत्त चालक पिता से
कि आपने तो ढेरों यात्राएँ की हैं
कइयों बार यहाँ-वहाँ गए-आए हैं
किसी अन्य नगर-महानगर में दिखे चेहरे
किसी अन्य नगर-महानगर में मिले चेहरे
किसी अन्य नगर-महानगर में
अक्समात पुनः मिल जाते
तो आप कैसा अनुभव करते
उन पर क्या बीतता
पिता ने कुछ कहने से पूर्व एक जोरदार मुस्कान ली थी
उनकी मृत आँखें जीवित-सी हो उठी थी फिर से
उत्तर में उन्होंने कहा था :
अल्लाहताला की बड़ी मेहरबानी रही मुझ पर
जो दिल्ली या मुंबई में मिले थे कभी
अगर लखनऊ या पटना में मिल जाते
तो बेहद खुश होते थे
कहते थे :
ड्राइवर साहब, आपसे यहाँ भी मिलकर
आश्चर्य नहीं हो रहा प्रसन्नता हो रही है
जबकि मैं तो बस हैरतज़दा उन्हें देखता
और मुँह हिलाता...
मेरी भी बड़ी इच्छा है
किसी ऐसे व्यक्ति से मिलने की
जो कभी चेन्नई की यात्रा में मिला था
और अब वह मुझे कलकत्ते की यात्रा में मिल जाता
और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता
जैसे मेरे पिता से मिलने वाले करते
ताकि मैं भी अनुभव करता
कि मेरे ऊपर क्या बीतता है
किसी के पुनः मिल जाने पर।
●●●
एक बीज मेरे पास है एक तुम्हारे पास
एक बीज मेरे पास है
एक तुम्हारे पास
मेरे बीज से दरख़्त निकले
तुम्हारे वाले से कुछ भी नहीं
नाराज़ होकर तुमने मेरे दरख़्त
अपने नाम कर लिए
अपनी ताक़त की ज़ोर पर
मेरे नाम दीमकज़दा पेड़ लिख दिया
मेरा बाप एक होशियार बढ़ई है
यह तुमको मालूम नहीं था
मेरा भाई एक बाकमाल नाव चलाने वाला है
यह भी तुमको मालूम नहीं था
मेरे बाप ने तुम्हारे दीमकज़दा पेड़ को
एक घोड़े की रफ़्तार वाली नाव में ढाल दिया
मेरे भाई ने उस नाव से मुसाफ़िरों को
और सामानों को ढोना शुरू कर दिया
जबकि तुमने मेरे हरे दरख़्त को छूकर सूखा दिया
फिर उसे काटकर दरिया में बहा दिया बेदर्दी से
यह सोचकर कि एक दिन मेरे सारे बीज
इसी तरह आग में जलाकर ख़ाक कर दोगे
तुम आग से घर जलाते आए हो खेत-खलिहान भी
मैं बीज से पेड़ उगाता आया हूँ गेहूँ-चावल भी
यह कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं है कि तुम आग को पसंद करते हो
मेरा बाप लकड़ियाँ पसंद करता है मेरा भाई दरिया
यह भी महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं कि मैं
अपनी महबूबा की मुहब्बत पसंद करता हूँ
मेरी महबूबा मुझे पसंद करती है तुमसे बिना डरे।
०००
अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
उन्होंने अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
पहले मेरी पहचान को छीना फिर मेरी बोली छिनी
इस छीना-झपटी के बीच उन्होंने मेरा मज़हब छीना
उन्होंने अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
मुझे भीड़ से अलग चौराहे पर खड़ा किया
जैसे मैं शहर में ज़बरदस्ती घुस आया तेंदुआ होऊँ
फिर मुझे पिंजड़े में रखा गया माँसाहारी जानकर
उन्होंने अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
मेरे तंदूर को अपना तंदूर कहा मेरी रोटी को अपनी रोटी
मेरे रेशम के लिबास को अपना लिबास कहा मूँछों को ऐंठते
उनके ऐंठन की यह क्रिया यह अदा उनकी क्रूरता से
बहुत ज़्यादा पुरानी है बहुत ज़्यादा सड़ांध से भरी हुई
उन्होंने अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
मेरी शायरी की किताबों को आग के हवाले किया
मेरी क़लम को अपने बूटों से कुचला बेरहमी से
उन्होंने अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
मेरे इबादतख़ाने को अपना इबादतख़ाना कहा
मेरे घर को अपना घर मेरे आँगन को अपना आँगन
मेरे माल-असबाब को अपना माल-असबाब बताया
उन्होंने अपनी क्रूरता को बचाए रखने के लिए
पहले मेरे जिस्म के पानी को फिर नमक को मारा
किसी बेहद ज़िद्दी हत्यारे की तरह हमेशा की तरह।
●●●
शहर-शहर घूमते तुम क्या बेचते हो
शहर-शहर घूमते तुम क्या बेचते हो
अपने बेदाग़ सफ़ेद घोड़े पर सवार
मेरी कमर से बँधे थैले में ऐसा कुछ कहाँ है
जिसे बेचूँगा घूम-घूमकर अपने लम्बे सफ़र में
थैले में बीज हैं जिन्हें मैं रस्ते-रस्ते बोता हूँ
थैले में आराम कर रहीं कुछ अदद गिलहरियाँ हैं
जो राह भटकने पर नई राह तलाशती हैं मेरे लिए
हुक्काम को बेचैन करनेवाली नज़्मों की किताबें हैं
कारख़ाने के मज़दूरों को शायरी सुनाने के लिए
छोटी मश्क भी है प्यासे की प्यास बुझाने के लिए
भेस से तुम सामान बेचनेवाले मुझे लगे अजनबी
इसीलिए मैंने तुम्हें आवाज़ें दीं कुछ ख़रीदने के वास्ते
क्या मैं तुम्हारे लिए रोटी पकाऊँ तुम भूखे लगते हो
चटनी बनाऊँ तुम्हारे मुँह का ज़ायका बदलने के लिए
क्या मैं तुम्हारे लिए पानी लाऊँ तुम प्यासे लगते हो
क्या मैं तुम्हारे लिए चाय बनाऊँ तुम थके लगते हो
तुम चटनी काहे से बनाओगी मेरे लिए
टमाटर से और काहे से मेरे अजनबी
टमाटर तो काफ़ी महँगा हो गया है बाज़ार में
आटा भी चाय की पत्ती भी और नमक भी
फिर तुम कहो तो तुम्हारे घोड़े के लिए खाना दूँ
तुम्हारी गिलहरियों के लिए भी मेरे अजनबी
तुम मेरे घोड़े को क्या खिलाओगी
हर घोड़े की ख़ुराक ज़्यादा होती है
तुम्हारे घोड़े को चना खिलाऊँगी गुड़ डालकर
तुम्हारी गिलहरियों को बादाम दे दूँगी अजनबी
चना कम क़ीमत में थोड़े ही न सरकार देती है
गुड़ भी बादाम भी आदमी के पहनने का कपड़ा भी
गुड़ के शीरे में पकाया गुड़ंबा दूँ लाकर
यह तुम्हारे सफ़र में काम आएगा अजनबी
गुड़ंबा मुझे बेहद पसंद है तब भी
आम सस्ता थोड़े ही न मिला होगा तुम्हें
तुम बोलते तो सब सही हो अजनबी
सच यही है मेरे घर न आटा है न चना
चीनी चायपत्ती तक नहीं है और न पानी
फिर गुड़ंबा तुमने कैसे बना लिया इस महँगाई में
आम पड़ोस से आ गया था कच्चा वाला
चीनी मेरे बाप को राशनवाले ने धोखे से दे दिया था
सो घर में गुड़ंबा है मेरे हाथों से बना अजनबी
गुड़ंबा में घी भी तो डालना होता है
खाना बनाने की गैस तो सरकार ने तुमको
मुफ़्त में दिया होगा घर पहुँचाकर
तुम्हारे घर के बाहर ही सरकार का
विज्ञापन लगा है हर घर ईंधन का
सुनो मेरे अजनबी
हर धोखेबाज़ हुक्काम की तरह
अब तुम भी मेरा जी जलाने लगे
जले पर नमक डालने लगे
मेरे घर सरकार मुफ़्त गैस काहे पहुँचाएगी
मेरी माँ अब भी लकड़ियाँ चुनकर लाती है
तब हमारे घर चूल्हा जलता है धुएँदार
तुमको दुआँया मेरा चेहरा नहीं दिखता है अजनबी
लड़की, तुम मुझ पर ख़ाली-पीली काहे बिगड़ती हो
तुम हुक्काम के जुमलों पर काहे नहीं ग़ुस्सा करती हो
जिनके जुमलों ने तुम सबको और ग़रीब बना दिया
एक सच यह भी है मेरे सफ़ेद घोड़ेवाले अजनबी
मैंने वोट कहाँ डाला था न मेरी माँ ने न मेरे बाप ने
तब भी हमारा वोट उन्हीं के खाते में गिरा हुआ दिखाया गया
लड़की, अब तुम काहे से इस जुमलेबाज़ हुक्काम को
उखाड़ फेंकोगी किसी गहरे समुंदर में
किसी बेहद अँधेरी गहरी खाई में
मेरे सच बोलनेवाले अजनबी, अबकि बार वोट के लिए
घर से निकलकर मुल्क का निज़ाम बदल दूँगी सच कहती हूँ
लड़की, तुम सच कहती हो तो सबसे पहले तुम्हारे घर की
दीवार पर चिपकाए इस झूठे सरकारी विज्ञापन को हटाओ
तुम्हारे इस काम में मैं मदद करूँगा और मेरा घोड़ा भी।
०००
मैं क्या-क्या चुरा सकता हूँ
तुम मिट्टी चुरा लाओगे
हाँ, मैं चुरा लाऊँगा
तुम पानी चुरा लाओगे
हाँ, मैं चुरा लाऊँगा
तुम रोटी चुरा लाओगे
हाँ, मैं चुरा लाऊँगा
तुम क्या-क्या चुरा ला सकते हो
मैं तुम्हारे लिए नमक चुरा सकता हूँ
बीज शहद कपड़ा बर्तन चुरा सकता हूँ
उसकी नींद चुरा ला सकते हो मेरे लिए
जिसने मेरी रातों की नींद हराम कर रक्खी है
हाँ, मैं उसके दिल की धड़कनें तक चुरा सकता हूँ
मिट्टी तुम किस वास्ते चुरा लाओगे
तुम्हारे लिए एक महफ़ूज़ घर बनाने की ख़ातिर
पानी तुम किस वास्ते चुरा लाओगे
तुम्हारे होंठों की प्यास बुझाने की ख़ातिर
रोटी तुम किस वास्ते चुरा लाओगे
तुम्हारे पेट की भूख मिटाने की ख़ातिर
तुम नमक क्यों चुरा लाओगे
उन शैतानी आँखों में भर देने के लिए
जो तुम्हें तुम्हारे बचपन से डराती रही हैं
और बीज शहद कपड़ा बर्तन तुम क्यों चुराओगे
बीज डालकर तुम मरी हुई ज़मीन को ज़िंदा करोगी
शहद डालकर दरख़्त में आने वाले फल को मीठा
कपड़ों से तुम अपनी देह की हिफ़ाज़त करोगी
और बर्तन में मेरे लिए खाना डालोगी
आईना तो तुम भूल ही गए चिराग़ भी
चाँद तारे अंतरिक्ष भी चिड़ियाँ भी
नहीं जानेमन, जैसे आईना तुम मेरे लिए हो
वैसे ही मैं तुम्हारे लिए भी तो होऊँगा
चिराग़ तो फ़रिश्ते हमें लाकर ख़ुद देंगे
चाँद तारे सबके लिए रहने देंगे अंतरिक्ष में
जब घर बन जाएगा तुम्हारे लिए
जब दरख़्त उग आएँगे तुम्हारे गिर्दो-पेश
चिड़ियाँ ख़ुद-ब-ख़ुद तुम्हारे कंधे आ बैठेंगी
अच्छा बताओ, तुम ये सबकुछ चुराकर ही क्यों लाओगे
जानेमन, मुल्क के बादशाह ने हमारे हिस्से की सारी चीज़ें
अपने हिस्से की कर रक्खी हैं ढिठाई से ज़ोर-ज़बरदस्ती से
बादशाह से लड़ने के लिए तुम्हारे पास
न घोड़े के न हाथी के चार पाँव हैं
न दरिया में कश्ती है तेज़ भागने वाली
जानेमन, बादशाह से डरकर भागना कौन चाहता है
मैंने आग बादशाह को हराने के लिए ही तो
छिपा रक्खी है उसकी नज़रों से बचाकर
आग तुमने कहाँ छिपाकर रक्खी है मुद्दतों से
आग मैंने बादशाह के खलिहान में छिपाकर रखी है
और खलिहान में मैंने नौकरी कर ली है तुम्हारे वास्ते।
०००
मैं कड़ी धूप में निकलता हूँ शहर में
मैं कड़ी धूप में निकलता हूँ शहर में
तुम्हारे लिए नज़्म लिख चुकने के बाद
जो तुम्हारे होंठों से लगकर मोम बन जाएगी
और पिघलेगी तुम्हारी रूह से मेरी रूह तक
मेरी जान, मुझे मालूम है शहद से
मेरे लिए नज़्म लिखते रहे हो हमेशा
फिर मेरे लिए छाँव ढूँढ़ने निकलते हो
कड़ी धूप में शहर-दर-शहर धूल छानते
तुम आटे से रोटी पकाती हो मेरे लिए
मैं शहद से नज़्म लिखता हूँ तुम्हारे लिए
मेरी जान, तुम नज़्म काहे के लिए लिखते हो
उसे कोई नया साज़ मिल जाए इसके लिए
मेरी जान, तुम नगर-नगर धूल काहे के लिए छानते हो
तुम्हें कोई नया आशियाना मिल जाए इसके लिए
मेरी जान, रास्ते में तुम्हें दुश्मन भी मिलते होंगे
पहाड़ भी जंगल भी समुंदर की लहरें भी
जानेमन, किसी दुश्मन से मैं कहाँ डरा हूँ कभी
लहरें काटने के लिए कश्ती है मेरे पास
मेरी जान, लहरों पर कश्ती चलाते हुए कैसा लगता है
वैसा ही जैसा यह कठिन जीवन जीते हुए लगता है
मेरी जान, पहाड़ को लाँघते हुए कैसा लगता है
वैसा ही जैसे कोई नया शहर तलाशते हुए लगता है
तुम कश्ती काहे से बाँधते हो
हिम्मत से और काहे से जानेमन
तुम गीत काहे से गाते हो
तुम्हारी आवाज़ से और काहे से जानेमन
तुम साज़ काहे से पकड़ते हो
तुम्हारी देह से और काहे से जानेमन
मेरी जान, मैं तुमसे चाँद माँगूँगी
मैं तुमसे तारे माँगूँगी आसमान माँगूँगी
तुम लाकर दोगे मेरी रातों को
सबकुछ तो तुम्हारा ही है जानेमन
मेरे दुश्मन मेरा चाँद तोड़ देते हैं
टूटे चाँद को तो मैं रोज़ ही जोड़ता हूँ
जिस तरह मेरे फटे कुरते तुम सीती हो
मेरे दुश्मन मेरे तारे लूट ले जाते हैं
मैं नए तारे तुम्हारे सिरहाने रखता हूँ
मेरी जान, एक रोज़ मैं और तुम बिछड़ जाएँगे
तब मेरा टूटा चाँद कौन जोड़ा करेगा
मेरे चोरी गए तारे कौन लाया करेगा
समुंदर की लहरें कौन तोड़ा करेगा
जो तुम शहर-दर-शहर धूल छानते फिरते हो
जितनी देर में मैं तुम्हारे लिए छाँव ढूँढूँगा
उतनी देर में मेरे घोड़े की नाल ठुक जाएगी
उतनी देर में लोहार हथियार बना चुकेगा
उतनी देर में समुंदर शांत हो चुकेगा
तुम मुझे मेरे दुश्मनों से काहे से बचा लोगे
लोहार के दिए हथियार से और काहे से
तुम मुझे काहे से भगा ले जाओगे दूर कहीं
अपने तेज़रफ़्तार घोड़े से और काहे से।
०००
जब तक मैं अपने
मुल्क के नाम एक नज़्म पूरी करूँगा
जब तक मैं अपने मुल्क के नाम एक नज़्म पूरी करूँगा
थके-हारे मुसाफ़िर के लिए मेरे घर खाना बन चुकेगा
उसकी मर्ज़ी से बिस्तर ठीक किया जा चुकेगा
अजनबी मुसाफ़िर से मेरी बीवी सवाल शुरू कर चुकेगी
अजनबी, तुम काहे के लिए सफ़र पर निकलते हो
वीरान हो चुकीं मस्जिदों में अज़ान देने के लिए
तुम हर सफ़र में हमारे ही घर की कुंडी काहे खटखटाते हो
इस वास्ते कि इस नगर में आप ही का दरवाज़ा खुला मिलता है
अजनबी, तुम वीरान मस्जिदों में अज़ान क्यों देते है
मैं मंदिर की गुरुद्वारे की साफ़-सफ़ाई कर चुका होता हूँ
तुम काम क्या करते हो जो इस नगर में बार-बार चले आते हो
मैं आपके शौहर की तरह शायरी करने का काम नहीं करता हूँ
आपके नगर में मंदिर-मस्जिद का रगड़ा सदियों-सदियों पुराना है
इसीलिए मैं किसी अच्छे आदमी की तरह अज़ान देने चला आता हूँ
लेकिन औरों की तो अज़ान की आवाज़ से नींदें ख़राब हो जाती हैं
जब मंदिर की अनवरत बजती घंटियों से आपकी नींदें ख़राब नहीं होतीं
तो मस्जिदों से आने वाली अज़ान की आवाज़ें उन्हें क्योंकर बुरी लगेंगी
जब तक मैं अपने मुल्क के नाम एक नज़्म पूरी करूँगा
अजनबी अपना काम ख़त्म करके अपने शहर लौट चुकेगा
मेरी बीवी रास्ते के लिए उसे कुछ रोटियाँ दे चुकेगी
फिर मेरी बीवी मुझसे सवाल शुरू कर चुकेगी
आप काहे से अपनी नज़्में लिखते हैं
क़लम से मेरी जान और काहे से
अजनबी मुसाफ़िर काहे से अज़ान देता है
मुँह से मेरी जान और काहे से
अजनबी मुसाफ़िर काहे से मंदिर को साफ़ करता है
पानी से मेरी जान और काहे से
अजनबी मुसाफ़िर अज़ान ही काहे देता है
अजनबी मुसाफ़िर मंदिर ही काहे साफ़ करता है
और आप शायरी ही काहे करते हैं
मुल्क के हालात ठीक नहीं चल रहे
इस वास्ते मुसाफ़िर अज़ान देता है
कि देखो, तुम्हारा ख़ुदा तुमसे क्या कहता है
मंदिर इस वास्ते साफ़ करता है
कि उसका ख़ुदा हर जगह पाया जाता है
और मैं शायरी इसलिए करता हूँ
कि हमारे घर से कोई अजनबी नाउम्मीद होकर नहीं लौटे
फिर कोई काहे ऐसा-वैसा कहता फिरता है
कि हर मुसलमान ग़द्दार होता है हर हिंदू देशभक्त
यह सब तुमसे किसने कह दिया मेरी जान
सारे न्यूज़ चैनल वाले तो यही समझा रहे हैं लोगों को
अपने मुल्क के वज़ीरे-आज़म भी उनके चेले-चटिये भी
ऐसा इसलिए बार-बार कहा जा रहा है मेरी जान
क्योंकि अब कोई मुल्क का वज़ीरे-आज़म नहीं होता
किसी ख़ास क़ौम का वज़ीरे-आज़म होता है
किसी ख़ास तबक़े का मंत्री-संतरी और अधिकारी
फिर आपकी शायरी इतने सारे लोगों क्यों पसंद करते हैं
ये लोग मुल्क के भोले और सच्चे लोग हैं मेरी जान
जो मेरी शायरी पसंद करते हैं और मेरी तरह मुल्क से मुहब्बत भी
जब तक आप अपने मुल्क के नाम नज़्म पूरी करेंगे
अजनबी मुसाफ़िर क्या-क्या कर चुकेगा मेरे सरताज
जब तक मैं अपने मुल्क के लोगों के नाम नज़्म लिख चुकूँगा
अजनबी मुसाफ़िर दिलों-से-दिलों को जोड़ चुकेगा मेरी जान।
०००
मैंने किसी का इंतज़ार किया
मैंने किसी का इंतज़ार किया
मुझे हाथी की ज़ंजीरों के साथ
जकड़ दिया गया यह सोचकर कि मैं
किसी की याद में पागल हुआ जा रहा हूँ
और जो आदमी किसी से मुहब्बत करता है
वह पागल हाथी सरीखा हो जाता है
मैंने किसी का इंतज़ार किया
मुझसे मेरी कश्ती छीन ली गई
फिर मुझे रोटी-पानी के लिए
कतार में लगा दिया गया
मैं अपनी मुहब्बत पाना चाहता था
मेरे दुश्मन मुझसे रोटी-पानी चाहते थे
मैंने उनके ज़ुल्म के ख़िलाफ़
अपनी उँगलियों से छेड़कर
अपना एकतारा बजाना शुरू किया
एक तेज़ रफ़्तार चलने वाला रथ
काले ख़ूबसूरत घोड़े से बँधा भागा आया
ताकि मैं अपनी मुहब्बत को लेकर
किसी बयाबाँ की तरफ़ निकल जाऊँ
दुश्मन ने घोड़े की टाप में लगाया जाने वाला नाल
अपने क़ब्ज़े में यह जानकर कर लिया कि
इस तरह घोड़े में तेज़ भागने की ताक़त नहीं बचेगी
और वे मुझे पकड़कर सलाख़ों के पीछे डाल देंगे
मगर मेरे घोड़े को मेरी शायरी बेहद पसंद थी
शायरी की वजह से घोड़ा बहुत तेज़ भाग सका
और मुझे रेशम बनाने वालों के यहाँ छिपा दिया
यहाँ रहकर मैं फिर उसका इंतज़ार करने लगा
रेशम बनाने वालों ने रेशम के कीड़े को भेजकर
मेरे वहाँ छिपे होने की ख़बर उस तक पहुँचाई
जासूसों ने शहतूत के पेड़ में आग लगा दी यह सोचकर
कि इस तरह रेशम के सारे कीड़े जलकर मारे जाएँगे
और दो मुहब्बत करने वाले फिर कभी मिल न सकेंगे
लेकिन मैंने फिर से किसी का इंतज़ार किया
उस वक़्त लड़की अपने लम्बे बाल सँवार रही थी
बच गए रेशम के कीड़े उसके घर की तरफ़ बढ़ चुके थे
मैंने घोड़े के नाल समुन्दर का पानी चीरकर हासिल कर लिया था
समुन्दर ने मेरी ऐसी ज़िद देखकर मेरी कश्ती वापस लौटा दी थी
कश्ती में वह लड़की भी थी जो मेरा इंतज़ार करती रही थी।
●●●
मैं बारिश की दुआ करता हूँ
मैं बारिश की दुआ करता हूँ
बारिश होने लगती है सूखी ज़मीन पर
मैं सैलाब के चले जाने की दुआ करता
सैलाब चला जाता है दरिया को छोड़कर
मैं शहद की दुआ करता हूँ
शहद के छत्ते भर जाते हैं शहद से
जिस तरह मैंने दरख़्त के लिए दुआ की
मेरा आँगन भर गया हरे पत्तों से
मैं धूप की दुआ करता हूँ
धूप निकल आती है जाड़े की सुबह
मैं बोसे की दुआ करता हूँ
जा चुकी लड़की वापस लौट आती है
मेरे घर के बग़ल में रहने के लिए
यह दुआओं के पूरा होने का वक़्त है
मैं जो भी दुआएँ माँगता हूँ
एक हत्यारा मेरी दुआओं से उलट
मेरे लिए बद्दुआएँ माँगता है जी-जान लगाकर।
०००
मैंने दरख़्त बनना चाहा
मैंने दरख़्त बनना चाहा
उन्होंने मुझे पेड़ की तरह
आरी से काट डाला
मैंने समुंदर बनना चाहा
मुझे नमक बनाने वालों के हाथों
बेरहमी से बेच डाला गया
जिस तरह वे औरतों को बेचते रहे
जिस तरह वे बाग़ीचों को बेचते रहे
जिस तरह वे नदियों को बेचते रहे
जिस तरह वे मुल्कों को बेचते रहे
वैसे ही वे मुझे भी बेचते रहे हैं
रियायतें दिलाने के नाम पर
मैंने नाव बनना चाहा
मुझ में छेद-दर-छेद किए गए
ताकि मैं हुए भटके मुसाफ़िर के
किसी काम न आ सकूँ
इसमें ग़लती मेरी थी
मुझे बहुत पहले जान लेना चाहिए था
कि बेचना उनकी फ़ितरत रही है
इस वास्ते कि उनके जिस्म में
किसी रहमदिल शायर का नहीं
सख़्तदिल कुत्ते का दिल धड़क रहा है
यही वजह है कि उन्हें आरामगाहें नहीं
क़त्लगाहें ज़्यादा पसंद आती रही हैं
यही वजह है कि उन्हें मुद्दतों से
जीते हुओं का जुलूस नहीं
हारे हुओं की भीड़ बेहद पसंद है
मैंने घोड़ा बनना चाहा मज़बूत काठी का
उन्होंने मुझ पर चाबुक बरसाए अनथक
आख़िर में मैं लोहार का घन बना
और उन पर इस क़दर गिरा
कि वे टूटकर यहाँ-वहाँ बिखर गए
०००
क़ब्र बहुत गहरी खोदी गई है
क़ब्र बहुत गहरी खोदी गई है
उनकी देख-रेख में बड़ी सफ़ाई से
ताकि वे ज़िंदा रह सकें ज़िंदों को मारकर
मेरी जान, हम मुहब्बत ईजाद करते हैं
वे नफ़रत के बीज कारख़ाने में बनवाते हैं
हम शहतूत के पेड़ लगाते हैं
वे अपने जानवरों को भेजकर
सारे पौधे ख़राब करवा देते हैं
जानेमन, वे तुमसे शहतूत का पेड़ छीन लेते हैं
मुझसे मेरा रेशम का कीड़ा ले भागते हैं
वे तुमसे तुम्हारा दरिया ले लेते हैं
मुझसे मेरा मछली पकड़ने का जाल
वे तुमसे तुम्हारी कश्ती हथिया लेते हैं
मुझसे मेरे घोड़े लेकर अपने रथ में बाँध लेते हैं
मेरी जान, हर लगनेवाली कतार में हमें लगाया जाता है
फिर कतार से ख़ाली हाथ वापस लौटा दिया जाता
यह कहकर कि मुल्क में सामानों की क़िल्लत है
जानेमन, वे हर भूखे आदमी को हमारे भारत में
शरणार्थी मानते हैं और ख़ुद को भारत का भाग्यविधाता
मगर मेरी जान, ये कैसे भाग्यविधाता हैं
जीते तो वे हमारे ही कमाए पैसों पर हैं
हाँ मेरी जान, उन्हें जितनी ज़्यादा भूख लगती है
वे मुल्क में उतनी ही ज़्यादा महँगाई ला देते हैं
जानेमन, वे इसीलिए क़ब्रें ज़्यादा गहरी खुदवा रहे हैं
ताकि भूख से मरनेवालों को दफ़नाए जाने में
किसी दिक़्क़त का सामना ना हो मारा-मारी ना हो
मेरी जान, हम सहिष्णु जनता हैं दुनिया भर की
आओ, 'जन-गण-मन' गा लेते हैं अपने ग़मों को भुलाते।
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शहंशाह आलम
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वाह्ह्ह्हह्ह्ह्हह खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई