28 फ़रवरी, 2018

पूनम पाण्डेय की कविताएं



एक 
हवाओं की संगत

आज हवाएं
मुझे फुसफुसा कर
कुछ कह रहीं हैं
आज मेरे पास
बहुत प्यारी सखी हैं
आज हवाएं
मेरे
चेहरे पर
बार बार
खुशबू
लेप जाती है
आज सारी
झुर्रियां
मिट जायेंगी

आज
हवाएं
आसमान में
मेरा नाम
लिख रहीं हैं
आज बादल
उमड़ कर
बरस जायेंगे

आज हवाएं
मेरी आंखों से
धूल मिटा
रही है
आज
मेरी दुनिया में
शिकायतें
नहीं रहेंगी

आज हवाएं
शरारती
हो रही है
आज
हंसते-हंसते
मेरा चेहरा
गुलाबी हो जायेगा

आज हवाएं
जंगल में
कहीं
गुम नहीं
होगी
मैंने

बाहें फैलाए
उन्हें रोक लिया है

आज हवाएं
खुशी की
गुल्लक फोड़ रहीं हैं
मैं
बटोरने में
मगन हूं



दो 
कभी कभी

भूल जानी चाहिए
एक दूसरे की
गलतियां
कमियां
कभी कभी
शिकायतें नहीं
गप्पे होनी चाहिए
चर्चा में
कभी कभी
खामोशियों में
खुद की
रौनक
खोजनी चाहिए
कभी कभी
अपनी हैसियत
भूल कर
कुछ और भी
हो जाना चाहिए
कभी कभी
खुलकर
अपनी
सारी कमजोरियों के
साथ
बेझिझक गर्व से
जी लेना चाहिए
कभी कभी
निष्कपट भाव
के लिए
औरों से
उम्मीद की जगह
खुद को
पहले तैयार
कर लेना चाहिए
कभी कभी
निरुददेश्य भी
जी लेंना चाहिए







तीन 
सचमुच किसी साहसिक फैसले से

कम नहीं है
निर्लिप्त भाव से
जीना
अपना रोना नहीं रोना
गलतियों को याद नहीं करना
सचमुच एक साहसिक कदम है
पीड़ा के बोझ को
लादकर नहीं रखना
असहाय नहीं बनना
लालसा में नहीं डूबना
दुःख और उदासी में
पत्थर न बनना
सचमुच हिम्मत
का काम है
प्रेम के लिए
पहल करना
शांति के लिए
पहल करना
सरलता को जीवन शैली
बना लेना
सचमुच
बड़े जिगर
का काम है



चार 
आसमान को सब कुछ

पता है
आसमान
जानता है कि
धरती के सीने मे
कुछ धुंआ  धुंआ है
इसीलिए बड़े लगाव से
वो फुहार भेज दिया करता है
प्रकृति के निशुल्क और निश्छल प्रेम
के साथ तुरंत जुड जाना चाहिए ।
हम भूल जाते है कि
समंदर के आंसू  सहेजकर
शीतल रिमझिम बनाकर
आसमान ने कोई  मजाक नही किया है
उसकी साधना के साथ जुड़ने से ही हमे
उसका अपनापन  समझ मे आयेगा।




पांच 
केवल कोमलांगी होने के कारण

मत देना मुझ पर जान
कमनीय देह वाली सी हू
केवल इसीलिए
प्यार मत लुटाना
मुझे भी इक
आत्मा मान लेना
ध्यान  मत देना
इन मूंगे से अधरो पर
मत चुम्बन करना
गुलाबी कपोलो का
मत उलझते फिरना इन रेशमी ,
खुशबूदार केशो के झाड मे
मत स्पर्श करना
कलाई को
कमल की
डंडी जानकर
मुझे
धडकनो समेत
मानव स्वीकार करना ।
ताकि अपनी जरावस्था के
एकाकी, लम्बे दिनो मे
तुम्हारे पावन प्रेम् के
अमृत को
जी भर कर
छकती रहू ।






छः 
एकाकीपन
हरने वाले
जज्बे मे रंग
भरने वाले
तुम्ही हार
और जीत
मेरे सच्चे मीत

चिंता के पल
गिनने वाले
मेरे सुख मे
खिलने वाले
मन के सुरमयी गीत
मेरे सच्चे मीत

डग मे
हाथ पकडने वाले
मंजिल दिखा
चहकने वाले
तुम जीवन
की रीत
मेरे सच्चे  मीत

हर खामोशी
पढने वाले
मेरी महफिल
बनने वाले
जन्मो की
यह प्रीत
मेरे सच्चे मीत



सात 
ऐसे अटपटे
मौसम में कैसे
बरसे बादल
जब किसी की
प्यास को महसूस
करना ही बडा
कठिन हो गया हो ।

पोखर से कोई
मेढक वो उस तरह
से
बैचेन
होकर वैसे
मचलता  नही

कोई  टिटहरी
अब अंडे  सहेजती
भी
वैसी आतुर
नही दिखती ।

न चीटियां
कतार लगाकर
किसी
सुरक्षित जगह
ले जाती है
अपना अपना
भोजन ।

किसान भी तो
कोई यत्न कहाँ
करते है
मेरी तरफ
बेकरारी के साथ
टकटकी लगाए
यो ही
हल बैल लेकर
जमीन से
साक्षात्कार
नही करते ।

सबसे ज्यादा
अखरने वाली बात यह है
कि कोई
नही दिखाता
अपनी
कागज की कश्ती
और मुझे
आवाज
भी नही देता
कि
मै उमड कर
घुमड कर
बरस जाऊ



आठ 

मन के बिस्तर पर
खिन्नता पसरी हुई थी
मित्र तुमने
उस बदल दिया
खुशी के
रंग मे

हदय के
आकाश पर
भारी पडती थी
जमाने की
फब्तिया।
मित्र तुमने
उसे बदल दिया
हंसी की
तरंग मे

उदास मन
किसी चट्टान सा
धंसा था
धरा पर
मित्र तुमने
उसे बदल दिया
किसी
विहंग मे

धडकने
किसी
औपचारिकता सी
मौजूद तन मे थी
मित्र तुमने उसे
बदल दिया
मस्ती की
चंग मे ।

दिनचर्या किसी
खामोश
पगडंडी
सी बेढंगी थी
मित्र तुमने उसे
बदल दिया
चुस्की के
ढंग मे








नौ 

बडे रेशमी थे 
 मेरी जिंदगी थे।
 महकते हुए  खत कहाँ
 गुम हुए
 उनहे
 याद करके
 नयन नम हुए ।

 दरवाजे पर
 डाकिये का
 आना ।
 गुलाबी लिफाफा
 सरकाते  जाना ।
 हथेली पर
 रखकर
 हदय से लगाना
 पलको से
 धीरे से
 सब पढते जाना

 लिफाफे सहित
 खत तिजोरी मे
 रखना।

 वो दिन  थे। सपन थे
 कि    मतिभ्रम हुए ।
 जिनहे
 याद करके
 नयन नम हुए ।

 कभी कभी
 चार पन्नो
 से ज्यादा ।
 मगर मन
न भरता
 अधिक ही
 लिखाता ।
 टिकट
चस्पा करने
 के बाद
बताता
ये मन बावरा
 टोकता  छेड जाता ।
जो लिखना
जरूरी था
 फिर फिर
 चिढाता।
 वो क्षण
 कितने
 दिलकश
 मधुरतम हुए
 जिन्हे
 याद करके
नयन नम हुए ।




दस 

कभी कभी
एक गौरैया
आती जाती रहती है
गौरैया को बहुत लगाव है
उस
इकलौते तरूवर से
जो जीवनशक्ति के
सच को स्वीकार करते हुए
लगातार जमा रहा
इस नितान्त
मरूस्थल मे
बीचोबीच
जीवित
यह वृक्ष
गौरैया को
बहुत पसंद है
वो अक्सर
इससे मिलने आती है
क्योंकि उसने
जीवन जीने की कला
सीखी है
इसी विटप से
मगर ताली दोनो हाथो से
बजती है ।
यह वृक्ष भी
इसी भरोसे के साथ
डटकर खडा है
क्योंकि इसे भी
गौरैया के लगाव से
लगाव हो चला है
दोनो एक दूजे के
शक्ति पुंज
फिर भी एक दूसरे के लिए
आभारी ।



ग्यारह 

संगीत के सुर 
मध्यम
कोमल और
तीव्र
हो सकते है
लेकिन
कानो के
रास्ते
हदय तक जाने के बाद
तेरे
और मेरे
सुकून
एक जैसे ही
होते है
क्योंकि
जरूरत और
पूर्ति के लिए
एक जरूरी माध्यम है
आवाज
या संकेत
कभी कभी
इसी सिलसिले मे
आनंद भी
कदमताल
कर लेता है
और
सार्थक  हो जाता है
अभिव्यक्ति का
प्रयास
फिर
चाहे
कोमल   सुर   हो
या शुद्ध ।
यो तो
कुछ लोग ऐसा
भी कहते हैं कि

सन्नाटा भी एक सुर ही है


परिचय 
डॉ पूनम पाण्डेय
शिक्षा पी एच डी
तीन पुस्तकें प्रकाशित
एक बाल कहानी संग्रह
एक लघुकथा संग्रह
कविता संग्रह

राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित तीन
रचनात्मक कार्यशाला  कविता
कहानी
नाट्य में समन्वयक की भूमिका रही
कुछ समय से केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की
मानवाधिकार शाखा में सहभागिता
विगत चौबीस वर्ष से निरंतर लेखन


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