07 मई, 2018

यह  एक  दुनिया 'के लिए डॉ सत्यनारायण को बिहारी पुरस्कार 

प्रस्तुति :-माधव राठौड़

तकलीफदेह दुनिया में कुछ लोग अपने तरीके से इस दुनिया की चूलें ठीक करने में लगे हों यह पुरस्कार उनको समर्पित -डॉ. सत्यनारायण


वक्तव्य देते हुए डॉ सत्यनारायण

के. के. बिड़ला फाउंडेशन की ओर से राजस्थान के हिंदी और राजस्थानी भाषा के लेखकों को प्रतिवर्ष दिए जाने वाला बिहारी पुरस्कार, वर्ष 2016 का 'यह एक दुनिया' के लिए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सत्यनारायण को पद्मश्री डॉ विजयशंकर व्यास, उपाध्यक्ष राजस्थान राज्य योजना बोर्ड के द्वारा दिया गया,जिसमें पुरस्कार के साथ प्रशस्ति पत्र और  पुरस्कार राशि स्वरूप दो लाख का चेक भेंट किया ।
26वाँ बिहारी पुरस्कार अर्पण समारोह ओ.टी. एस. के भगवत सिंह मेहता सभागार में 4 मई 2018 को  आयोजित हुआ।के.के.बिरला फाउंडेशन के निदेशक सुरेश ऋतुपर्ण ने अतिथियों का स्वागत करते हुए  बिहारी पुरस्कार की विशेषताओं पर बात की ।उन्होंने कहा कि हर वर्ष की तरह निर्णायक समिति ने निष्पक्ष रूप से ऐसे साहित्यकार की कृति का चयन किया जिससे इस अवार्ड की महत्ता बरकरार रही।
निर्णायक समिति के अध्यक्ष नन्द भारद्वाज ने 'यह एक दुनिया 'पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि इस किताब के रिपोर्ताज़ जिंदगी के प्रति नजदीकी से गहराई लिए हुए यथार्थ भरे हुए हैं।
यह मात्र विचार से नहीं उपजे बल्कि हमारे आसपास के समाज के कटु सत्य है ।
 उन्होंने कहा कि डॉ सत्यनारायण का मनुष्यता  से गहरा  जुड़ाव है इसलिए उस जुड़ाव के साथ मानवीय सरोकार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं।
वे मूलतः कवि की तरह भीतरी तरल संवेदना रखते हुए मानवता के  प्रति अगाध  श्रद्धा रखते हैं। वे जितने स्वभाव में विनम्र है उतने ही  लेखन में विनम्र है।
डॉ सत्यनारायण ने अपने व्यक्तव्य से पहले कृति के कुछ अंश भी सुनाये। व्यक्तव्य में बिरला फाउंडेशन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह सम्मान
 मेरे अकेले का नहीं बल्कि समस्त उन लोगों का जो इन रिपोर्ताज़ से गुजरें है।
उन्होंने कहा जब भी वे अकेले पड़ते हैं दुखी होते तब यह शब्द ही उन्हें सहारा देते हैं । यह नहीं होते तो पता नहीं जीवन कैसा होता।आज भी रेणु ,प्रेमचंद ,दोस्तोवस्की, काफ्का, ज्ञानरंजन और विजयदान देथा का साहित्य उनको संबल देता है ।इस रिपोर्ताज़ के लोग ही है जो उनके भीतर टहलते है जो उन्हें अकेला नहीं रहने देते।अपनी रचना प्रकिया पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि उनके पात्र हमारे आसपास रहने वाले लोग ही है चाहे वह बूढ़ी बामणी हो,केसर क्यारी हो या सांगानेरी गेट पर सब्जी बेचती वृद्धा हो।
उन्होंने संवेदनहीन होते हमारे मूल्यों पर चिंता जताते हुए कहा कि आज का हमारे आसपास का समय ऐसा है जो सचमुच डरावना है।आज हिंदी अधिकांश संख्या में बोली जाने वाली भाषा है मगर इसके लेखक हमेशा उपेक्षित रहे
उन्होंने बृजेश मदान,भुवेनश्वर, स्वदेश दीपक ,शायर सौदाई,और    लेखकों के गुमनामी भरे जीवन के प्रति साहित्यिक बिरादरी की उपेक्षा को घातक बताया।यह सब हमारे चिंता में शामिल नहीं होना  चिंता का विषय है।आज के समय में भाषा और शिक्षा के प्रति कम सम्मान है ,लेखक को पोषण और सम्बल देने वाला पाठक समुदाय नहीं रह गया इसलिए सभी अपने अपने तरीके से हताश और निराश है।ऐसी तकलीफदेह दुनिया में कुछ लोग अपने तरीके से इस दुनिया की चूलें ठीक करने में लगे हों यह पुरस्कार उनको समर्पित है।

सम्मान लेते डॉ सत्यनारायण

पद्मभूषण डॉ.विजय शंकर व्यास ने अपने उद्बोधन में कहा कि  इनके  रिपोर्ताज़  लोक संवेदना का विस्तार लिए हुए हैं  जो हम सबके  लिए समान सार्थक नजर आते है।
कार्यक्रम के अंत मे निदेशक  सुरेश ऋतुपर्ण ने धन्यवाद ज्ञापित किया ।कार्यक्रम संचालन पूनम श्रीवास्तव ने किया।
कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार ऋतुराज,ओम थानवी , कृष्ण कल्पित डॉ. आईदान सिंह भाटी, हेमन्त शेष ,गोविंद भारद्वाज, डॉ .अर्जुनदेव चारण, सी पी देवल,विनोद पदरज,अजन्ता देव ,ईश मधु तलवार ,कैलाश मनहर,सवाई सिंह शेखावत ,प्रीता भार्गव ,मीठेश निर्मोही,राजाराम भादू  और
चरण सिंह पथिक सहित प्रदेश भर के साहित्यकार ,साहित्य प्रेमी और मीडिया के लोग उपस्थित थे।

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