21 जून, 2018

मानस भारद्वाज की कविताएँ

मानस भारद्वाज 


कविताएँ 

एक

मैंने जैसे जैसे
दुनिया को ज़्यादा जानना शुरू किया
मेरा चुप रहना बढ़ता गया
मुझे भाषा एक फरेब करने वाला
ठगों का गिरोह लगने लगी

मेरे पास जैसे जैसे कहने को
ज़्यादा कहानियाँ आने लगी
मेरी खामोशी बढती गयी

मैंने जैसे जैसे प्रेम को जाना
प्रेम कविताओं से नफरत होने लगी
मैं कवियों को पत्थर से मारना चाहता हूँ

मुझे अपना लिखा हुआ सब कुछ
बकवास लगता है
मैं ज़िन्दगी को
आदिवासी की तरह बिताना चाहता हूँ
मेरे आसपास जंगल हो
और मेरे अंदर जंगल हो
जंगल खामोशी सिखाता है
खामोशी इश्क की ज़ुबान है

शहर एक ऐसी जगह है
जहाँ रहा नहीं जा सकता
शहर में शोर के सिवा कुछ भी नहीं
शहर में मेरी औकात
मिक्सचर ग्राइंडर के अंदर फसे
चने के दाने से ज़्यादा नहीं

शहर खाने सोने हगने
और सेक्स के लिए बने हुए
बड़े सुरक्षित कबीले को कहते हैं
जिसमे जंगल के नियम चलते हैं
ये वो किला होता है जिसमे
अब ऊँची दीवारे नहीं होती

मैं चाहता हूँ एक ताड़ी का जंगल
मेरे अंदर पनपे , बड़ा हो , फैले
मैं ज़िन्दगी भर ताड़ी पिला सकूँ
और मक्के की रोटी खिला सकूँ

दुनिया में रोटी और ताड़ी सत्य है
बाकि सब प्रधानसेवक का जाल है




दो

कभी कभी सोचता हूँ
तुमको मेरी महबूबा नहीं
मेरी बेटी होना था

काश मैं तुमको
बचपन से बड़ा होते हुए देख सकता
तुमको पहली बार रोते हुए
हँसते हुए देख सकता
तुम्हारे मुँह से निकला पहला शब्द
काश मैं सुन पाता
तुम अपना पहला कदम बढ़ाती
लडखडाती गिर जाती
मैं तुम्हे थाम लेता , चलना सिखाता

तुम्हे दुनिया भर से महफूज़ रखता
तुम्हारे लिए चिंता करता  और
पहली पहली बार तुम्हे
स्कूल छोड़ने भी जाता

रात तुम्हे लकडबग्घे की कहानी सुनाता
एक ही शब्द को बार बार दोहराता
तुम सो जाती और मैं  तुम्हे यू ही देखा करता
तुम नींद में ख्वाब में होती
और मैं जागते हुए ख्वाब में होता

कभी कभी सोचता हूँ ....

तुम्हे मालूम है मैं तुम्हे कहता था
तुम मेरे लिए सबकुछ हो
नहीं तुम मेरे लिए सबकुछ नहीं हो
पर  तुम रोशनी हो
तुम ख़ामोशी हो
तुम ज़िंदगी हो
तुम ही मौत भी हो

मैं तुम्हारे बिना रहने की सोच सकता हूँ
मगर मैं तुम्हारे बिना रह नहीं सकता
कभी कभी सोचता हूँ
तुमको मेरी महबूबा नहीं
मेरी बेटी होना था




तीन

बिस्कुट खायेगा ?
नमकीन खायेगा ?
दाल खायेगा ?
सब्जी खायेगा ?
रोटी खायेगा ?
मिठाई खायेगा ?
पानी पिएगा ?
दारु पिएगा ?
जिंदा रहेगा ?
साँसे लेगा ?
वोट देगा ?
अपनी राय रखेगा ?
तू सोचेगा  ?
प्रार्थना करेगा ?
सपने पालेगा ?
इलाज करायेगा ?
बच्चे पढ़ायेगा ?
बाजा बजाएगा ?
गाना गायेगा ?
ऑफिस जाएगा ?
नौकरी करेगा ?
घूमने जाएगा  ?
लड़की घुमायेगा ?
प्यार जताएगा ?

कोई आएगा
तुझे रोकेगा
तू रुक जाएगा ?
हिम्मत दिखाएगा ?
जान से जाएगा !

बिस्कुट खायेगा







चार 

पिता का मरना
एक वक्त का  ठहरना होता है
छोटी-छोटी ख्वाहिशों का  बड़ा हो जाना
जैसे पुराने कपड़ों में
नए बदन का  समाना होता है

पिता का मरना
सिर्फ  जिम्मेदारियों का निर्वाहन नहीं है
ये महसूस करना है  के
अब जो करना है  अकेले करना है

पिता का मरना
घर पे रखे shaving kit का
outdated हो जाना है
cigarettes के कुछ packets का
फेक दिया जाना है
अलमारी से कुछ
किताबों को  हटा देना है
कुछ पुराने किस्सों पे  मुस्कराना है
और  कभी - कभी अकेले में
आँसू बहाना है

पिता का मरना
एक बिस्तर का खाली रह जाना है
और कुछ कपड़ों से
एक perfume की महक आना है

पिता का मरना
एक कार का
आपको मिल जाना है
एक चाबी और एक
बैंक एकाउंट  को चलाना है

पिता का मरना
बहुत कम रोना
और  बहुत सारी बातों का
एक साथ हो जाना है

पिता का मरना
एक समय है , एक छण है
एक छण में ज़िंदा रहना है
और एक छण के साथ
ज़िंदा रहते जाना है

पिता का मरना
और कुछ भी नहीं है
सिर्फ आपका  मरने से पहले
एक बार  मर जाना है




पांच 

मुझे प्यार हमेशा बुरी लड़कियों से हुआ
उनकी आवाज़ में बादल थे पहाड़ों के
उनकी आँखें ऊँची थी और गर्दन भी
उनकी आँखों में मेक्सिकन फिल्मे
और गर्दन में एफिल टावर था

उन्हीने कभी पल्लू का ध्यान नही रखा
उनकी छातीयो पे पसीने की बूंदे ओस सी थी
ओस की बूंदे मिलके भारतीय रेल बनाती थी
जो समय की पाबंदी की बिना परवाह किये
उनकी ब्रा के स्टेशन में समा जाती थी
सूरज उनकी छातियों के बीच से उगता था
और चाँद इनमे डूब जाता था मेरे साथ ....
मैंने उनकी धड़कन में मौजूद गालियां सुनी
उन्होंने खूब गालियां दी
अक्सर गालियो का शिकार तो मैं ही हुआ

उनकी गालियों में दुनिया थी
दुनिया उनकी गालियों में रहती है
पृथ्वी सूरज के नहीं
उनकी गालियों के इर्द गिर्द चक्कर काट रही है

वो खुलकर हंसती थी
उनकी हंसी की लहरों से चंद्रग्रहण पड़ते थे
उन्होंने किनारे पड़े आदर्शों की चिंता नही की
वे समंदर थीं खुलकर इठलाती रहीं
उन्होंने चौराहो पे खड़े हो के सिगरेट पी
और उसके धुंए के छल्ले बनाये
छल्लो के ब्रश से सपनो के चित्र उकेरे
और उनमें वक़्त के रंग भरे

उन्होंने होटल के बंद कमरों में
मुझे खूब - खूब - खूब प्यार दिया
और इसकी कभी परवाह नहीं की
वेटर कमरे में शराब के साथ पीने के लिए
कोल्ड ड्रिंक लाते हुए क्या सोच रहा था

मुझे प्यार हुआ उन लड़कियो से
जिन्होंने पहाड़ चढ़े अपने नाखूनों से
नेलपॉलिश से रास्ते बनाये अपने लिए
अपने हक़ के लिए पोलिस की लाठियां खाई
उन्होंने लाठियो पे अपनी चुडियो के
निशान उकेर दिए
और पहाड़ो पे अपने चुम्बनों के

उन्होंने तेज़ आवाज़ में गाने बजाये
तेज़ रफ्तार में गाडीया दौड़ाई
सड़क उनकी गाडी के टायरों के
ब्रेक के निशान से काली हो गयी
उन्होंने सड़को पे डिस्को में कमरो में
छतो पे जंगलो में डांस किया
उन्होंने क्रिकेट के स्टेडियम में शर्ट उतारकर
हवा में लहराए और सचिन सचिन के नारे लगाये
उन्होंने विराट कोहली को शादी के प्रपोजल दिए
उन्होंने गणित की थ्योरम और फिजिक्स के सूत्रों में
अपने बालों के क्लिप से बुकमार्क बनाये
उन्होंने अपनी खुशी कभी नहीं दबाई
दुनिया उनकी खुशी से जलती थी
उन्होंने दुनिया में आग लगाई

मुझे प्यार हमेशा बुरी लड़कियों से हुआ
उन्होंने अपने जिस्म को अपने
खानदान की इज़्ज़त नहीं माना








छ:

बच्चों के आँसू की एक बूंद एक झील होती है
जिसमे हर रात चाँद अपने आप को डूबने से बचाता है
बच्चे जब ज़्यादा रोते हैं तो ग्लेशियर पर बर्फ पिघलने लगती है
समंदर का वाटर लेवल बढ़ने लगता है
पृथ्वी के डूबने का खतरा पैदा हो जाता है
मुझे डर है कि हम ग्रीन हाउस इफ़ेक्ट से पहले
बच्चों के रोने की वजह से न डूब जायें
बच्चों का हँसते रहना दुनिया के बचे रहने के लिए ज़रूरी है
काश ये सब समझ पाते ....

युद्ध हमेशा बच्चो की चित्कारों पे लडे जाते हैं
तानाशाहों ने बच्चो की चित्कारों पे सत्ता की नींव रखी है
तानाशाह हमेशा आत्महत्या करते हैं
आत्महत्या करते वक़्त
तानाशाहों की फाँसी के फंदे की रस्सी
बच्चो की चित्कारों से गुंथी होती है
तानाशाहों को अंतिम समय में बच्चे डराते हैं
बच्चे हमेशा सच बताते हैं
तानाशाहों को झूट से प्यार होता है....

.....वो बच्ची भेडो को घास खिलाती थी
उसकी जंगल से और भेड़ो से दोस्ती थी
भेड़ो और जंगल ने दोस्ती निभाई
मंदिर और पुजारियो ने इंसानियत भी नही
इस दुनिया को खतरा मंदिर और पुजारियों से है
भगवान अगर कहीं है तो वो
मंदिर की घंटियों में नहीं
बच्चो की आँखों में रह सकता है

एक बार
भेडों ने बच्ची से कहा था
उसकी आँखे भेड जैसी हैं
बच्ची हँस दी थी
जंगल ने उसे कहा था
उसकी हँसी जंगल जैसी है
बच्ची हँस दी थी
चाँद ने उसे कहा था
रास्ता मैं दिखाता हूं
बच्ची नही मानी थी
बच्ची हँस दी थी
बच्ची को हँसना आता था

भेड़ो ने दुनिया देखी थी
चाँद ने राते , जंगल ने वक़्त
पर वो बच्ची जो जंगल भेड चाँद की बातें माने !
वो क्या बच्ची ?

फिर ....
फिर ....
चाँद ने हंड्रेड नम्बर डायल किया
पर पुलिस बिजी थी
पुलिस ने चाँद को माँ की गाली दी
और फोन काट दिया
चाँद गिड़गिड़ाता रहा ...

भेड़ो ने भेडियो से गुज़ारिश की
पर भेड़िये अगले चुनाव की तैयारी कर रहे थे
भेडे  गिड़गिडाती रहीं

जंगल ने बहुत शोर मचाया
पर जंगल को काटा जाता रहा
जंगल गिड़गिड़ाता रहा

और भगवान ?
भगवान को बेहोशी की गोली दी जा चुकी थी
और ये लिखते हुए मैं फूट फूट के रो दिया
खैर ....

डिस्क्लेमर :
ये असल में एक काल्पनिक कथा है
हम कल्पनालोक में जीने वाले काल्पनिक प्राणी हैं
हमारा यथार्थ कुछ भी नही है , हम नारे हैं हम वादें हैं
हम जाति धर्म वर्ग के नाम पे
वीडियो गेम के अंदर लड़ रहे हैं
हमे काटने के लिए slaugter हाउस की ज़रूरत नही
सड़के काफी हैं
हम दंगो ने जल जाते हैं और वोटो में बदल जाते हैं
हम सिर्फ काल्पनिक हैं
तो बोलो काल्पनिक लोक की जय
काल्पनिक माता की जय




सात

हम कठिन वक़्त में हैं
जहाँ बाते करना और प्यार करना मुश्किल है
हम पार्क में प्यार नहीं कर सकते
न ही रेस्तरॉ में
न सड़क पे न मंदिर में
हम सिर्फ दोस्त के कमरे पे
दोस्त को भगा के प्यार कर सकते हैं
दोस्त मन में रखी हुई गाली दे देता है
हम वो गाली बिस्तर पे बिछा के प्यार कर लेते हैं

हम घर वालो से छुप के प्यार करते हैं
और बाहर वालो से छुप के भी
हम अपने वक़्त और अपनी दुनिया से
छुप के प्यार करते हैं
हम खुलेआम रिश्वत दे सकते हैं
हत्या कर सकते हैं
पर प्यार नहीं

प्यार के खेत से निकली हुई कविता के पहाड़ के
नीचे दब के हम प्यार करते हैं
हम जब प्यार करते हैं तो हमारे ऊपर एक कब्रिस्तान होता है
हम मुर्दों के वक़्त में और
उनकी रजिस्ट्री वाली ज़मीन पे प्यार करते हैं
मुर्दे चाहते हैं हम मुर्दे हो जाएं

हम चाहते हैं मुर्दे फिर से जिंदा हो जाएं
हम मुर्दों से प्यार करते हैं
बदले में मुर्दे हमें लाठी डंडे और नारे से पीटते हैं
मुर्दे कहते हैं प्यार नहीं करना चाहिये
मुर्दे हमें पीटने के बाद में
मंदिर में जा के पूजा करने लगते हैं
मुर्दे आरती करते हैं और तलवारे चमकाते हैं
मुर्दे दीप जलाते हैं और अगरबत्ती लगाते हैं
मुर्दे डंडे और तलवारें लहराते हैं
हम तलवारो की धार से निकलती चमक
और चमक से कटी हुई रौशनी
अपने चेहरे पे लेते हुए प्यार करते हैं

मुर्दे रैली निकालते हैं और हम kiss करते हैं
मुर्दे हमें जीन्स पहनने से रोकते हैं और हम
टाइट जीन्स में अपनी सुडौल जाँघे डाल के
वोडका के सिप लगाते हुये प्यार करते हैं
हम सफेद टी शर्ट पे लव यू लिख के घूमते हैं
समंदर को अपनी छाती पे टहलने देते हैं

हम प्यार करते हैं
क्योंकि प्यार से दुनिया ज़िंदा होती है
मुर्दे प्यार से डरते हैं
क्योंकि प्यार से दुनिया ज़िंदा होती है
मुर्दे ज़िंदा दुनिया में नहीं रह सकते
वो अपने अस्तित्व के लिये
झूट के खूट को लगाते हैं
और हम खूट पे बैठ के प्यार करते हैं

हम ऐसे वक़्त में हैं जब कविता लिखने से
कविता न लिखना मुश्किल होता है
हमने अपने आप को कविता के पहाड़ मे
दब के मरने से बचाने के लिए
तरह तरह के जुगत करने के बाद फैसला लिया
कविता के पहाड़ पे माउंटेन क्लाइम्बिंग की जाए
हम पहाड़ की चोटी से गिर के मरना पसंद करेंगे
हम मरने से पहले kiss करेंगे
और kiss करते हुए कोई मरता नहीं है
हम ज़िंदा बच जाएंगे
हम बच जाएंगे क्योंकि हम
प्यार करते हैं



आठ 

मैं अच्छी कवितायें लिखना चाहता
फिर मैं आप लोगों को देखता हूँ
और नहीं लिखता

मुझे पता है आप लोग अच्छी चीज़
deserve नहीं करते ...

आप जब पैदा हुए थे तो
आपकी माँ का इलाज एक घटिया डॉक्टर
एक घटिया अस्पताल में कर रहा था
आप को घटिया बिस्तर में पहली बार सुलाया गया
आपकी माँ ने जब आपको पहली बार दूध पिलाया
तब उसके शरीर में पोषक तत्वों की कमी थी

आप जिस स्कूल में गये वो एक घटिया स्कूल था
जिसमे एक घटिया मास्टर पाठ रटा रहा था
उस मास्टर को पगार कम मिलती थी
उसके शरीर में पोषक तत्वों और भेजे की कमी थी
उसको सैकड़ो चिंताएं थीं
वो ऊब चुका था अपनी ज़िन्दगी से

आप जब खेलने निकले तो आपके पैरों में मिटटी थी
आपने इसको अपने लिए गर्व का विषय माना जिंदगीभर
कि आप बिना ढंग के जूतों के कपड़ो के खेले हो बचपन में

आपने अपनी गरीबी को अपने लिए गर्व की वस्तु बनाई
बिना ये सोचे की अमीर होने में कोई बुराई नहीं
आपने ये नहीं सोचा कि आप अमीर क्यों नहीं
आपको क्यों अमीर नहीं होने दिया जा रहा
क्यों आपको मौके नहीं मिल रहे ...
आप ये सोच ही नहीं सकते थे ...
क्यूंकि आपके भेजे में अंध धार्मिकता भर दी गयी
आपको पूजा करने से वक़्त मिलता तो आप सोचते भी
पर आपसे पूजा कराई गई , पूजा कराई गई , पूजा कराई गई
आप जब पूजा कर रहे थे तब आप भूखे थे
और आप ये भी नहीं समझ पा रहे थे कि क्यों पूजा कर रहे
आप बस डर रहे थे और पूजा कर रहे थे
आपके दिमाग में एक डर बैठाया गया
और आप कभी ये सोच ही नहीं पाए कि
आप डर क्यों रहे हैं ...
क्योंकि आपके शरीर में
कभी इतने पोषक तत्व ही नहीं गये कि
आप ज़्यादा सोच सकें ... आप हमेशा से भूखे रहे
आपने अपने भूखे रहने को गर्व का विषय बनाया
बधाई हो !

आप जिस नौकरी में लगे वहां पर आपसे कमतर आदमी
आपके ऊपर था ...
आपने उसके चेहरे पर मन में थूका
और उसके नीचे नौकरी करते रहे ...
आपकी नौकरी आपकी बेरोजगारी से कमतर थी

आपने जिस लड़की से प्यार किया
उसको बताने से कतराते रहे ..
क्यूंकि आपको सिखाया गया था
प्यार बुरा होता है ... और दूसरी जाती में तो महापाप है
प्यार करना ...
पर आप ढंग से नफरत भी नहीं कर पाए
क्यूंकि आप जिससे नफरत करते थे
उसी से कहीं गहरे में जानते थे कि
आपको प्यार भी है
इस कारण आप पिस गये चक्की में ...
चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोये
दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोये

आप बिस्तर में अपनी (आपकी नज़रों में)कम सुंदर बीवी के साथ भी
खुश नहीं थे क्यूंकि आपको शीघ्र पतन हो जाता था
क्यूंकि आपके शरीर में ....
इसकी झुंझलाहट आपने ...ज़्यादा नैतिक हो के निकाली
और जो लोग प्यार कर रहे थे (आपकी नज़रों में)सुंदर लड़कियों के साथ
आपने उनको गाली देना शुरू किया ...उनको रोकने के लिए
आप झुण्ड में सड़कों पे निकल गये ...
क्यूंकि आप बिस्तर में बुरे थे

आपने बड़े सपने नहीं देखें
क्यूंकि आपके सपने देखने पे
टैक्स लगा हुआ था 
और आप शुरू से वो थे
जो बिजली के मीटर पे चुम्बक लगाता था
फिर एक दिन आपसे बिजली का मीटर भी
छीन लिया गया ...उसकी जगह लगा दिया इलेक्ट्रोनिक मीटर
अब आप अपने चुम्बक को देख के ..
नदी में गिरे सिक्के उठाने के बारे में सोचते हैं ..
पर वो काम भी
आप सही दक्षता से नहीं कर पाते

आप अपने आप को भावुक मानते रहे
और आप भावुक सच में हैं ..
क्यूंकि सोचने समझने और
संवेदनशील होने की छमता तो आपमें
विकसित ही नहीं होने दी गयी ...

आप भावुक हैं .. आप भूखें हैं
आप अंध धार्मिक हैं
आप कम पढ़ें लिखे हैं
आपके शरीर में बीमारियाँ हैं
आपमें तार्किक क्षमता की कमी है

मैं आपको अच्छी कविता कैसे सुना सकता हूँ
आप बुरी कविता ही deserve करते हैं


‌पोषक तत्वों की कमी वाला phenomenon मेरे भेजे में गौरव सोलंकी साहब के मार्फ़त आया  ....









नौ 

मुझे जब cm हाउस में
जाने से रोका जा रहा है
सिक्योरिटी द्वारा
तब मैं तुम्हे कह रहा हूँ
तुम कितनी सुंदर हो

तब मैं उन लड़को के बारे में सोच रहा हूँ
जिन्होंने अपने हाथ की नस काटी होगी
तुम्हारे कारण
तुमपे मरके वो मर गए होंगे
पर ये तुमको पता नहीं होगा  .....
मरने के बाद उनके सूख चुके खून के
कत्थई बनते धब्बो से तुम्हारी
यादों की गंध आती होगी ?

क्या पंखे से बंधी रस्सी ने
उनकी गर्दन पे अपने जूट के या
सिंथेटिक रबर के निशान बनाते हुए
तुम्हारे नाम को उनकी गर्दन पे
छुपाया होगा ? या उभारा होगा ?

उनके गर्दन की हड्डी टूटते वक़्त
जो हल्की सी आवाज़ हुई होगी
उस आवाज़ का wave-form
तुम्हारे नाम से मिलता होगा ?
टूटती हुई हड्डी के पास का साउंड कॉर्ड
क्या तुम्हें आखरी बार पुकारता होगा ?

नदियों ने अपनी लहरों में
उनको डुबाते हुये क्या
तुम्हारा नाम सुना होगा ?
क्या मरते हुए ने मरने के बाद
नदी के तल पे रेत पे मर चुकी ऊँगली के
पहले से मरे नाख़ून से तुम्हारा नाम लिखा होगा

कितनी ट्रेनों के गर्म इंजन पे
तुम्हारा नाम छप गया होगा
और कितनी पटरियों पे फूटे
उनके खून के फौवारे से
तुम्हारे नाम का विस्फोट हुआ होगा
तुम्हे पता नहीं होगा !

जब मुझे अफसर
चैक कर रहा है
मैं तुमको कह रहा हूँ
मेरे पास बम नहीं है
सपने हैं , सपने फूटते हैं तो
बहुत बड़ा धमाका होता है
इतना बड़ा कि कोई सुन नहीं पाता
कानों की सुनने की रेंज के ऊपर होता है

मैं तुमको कह रहा हूँ कि
मेरे कानों में जो म्यूसिक चल रहा है
उसके ताल पे तुम्हारी
मृग की तरह की आँखों की
पुतलियां चल रही हैं
और मेरे कानों में चल रहे
गाने के बोल हैं
everybody hates me !

तुम्हारी आँखों में जो दिख रहा है
उसका प्रतिबिम्ब इस पूरी धरती पे
सिर्फ मैं देख पा रहा हूँ
ये scanners जो मेरी बॉडी पे चल रहे हैं
ये कुछ भी न देख पा रहे
दुनिया में कोई भीscanner
प्रेम को scan नहीं कर सकता
दुनिया में कोई भी सिक्योरिटी
कहीं भी किसी भी जगह पे
किसी भी सिचुएशन में प्रेम को
महसूस होने से नहीं रोक सकती

अब मैं अंदर हूँ , आ गया हूँ
security वालो को नहीं पता
मैं कितना बड़ा प्रेम का बारूद लिए
उनकी दुनिया के अंदर घुस गया हूँ




दस 


जवान लड़के रात को घर लेट आते हैं
उनकी अपनी मसरूफियत होती है
जिसे घर के बड़े समझ नहीं सकते .

उनको पान वाले की दूकान
हर रात बंद करानी होती है
इस धरती पर अगर जवान लड़के नहीं करेंगे
पान वाले से रात की आखरी बातें
तो दूकान बंद नहीं होगी ...
और पान की दूकान का shape
धीरे - धीरे बढ़ता जाएगा
जो इस धरती को लील लेगा ...
जवान लड़के हर रात बचाते हैं
इस धरती को
पान की दूकानों के द्वारा लील लिए जाने से

वो हर रोज बनाते हैं पान की पीक से पेंटिंग
और सिगरेट के धुए से बादल
इस धरती पे मौजूद बादल का कुछ प्रतिशत
जवान लडको की सिगरेट का धुआ है
विज्ञान सिद्ध नहीं कर पायेगा

जवान लडको को  चाय वाले की दूकान की
आखिरी चाय भी पीनी होती है
क्यूंकि चाय के गिलास में रात को बहते हैं समंदर
और ये समंदर न पिए जाएँ तो सुनामी आएगी
और तख़्त पलटे जायेंगे ....
जवान लड़के तख़्त को बनाए रखने के लिए
हर रात पीते हैं समंदर

उनको देखना होता है कि चौकीदार रात को
सीटी बजा रहा है तो उस वक़्त उसके हाथ में
थमें डंडे से किस ताल में संगीत निकलता है
जवान लडको को संगीत से प्यार है

जवान लडको को बस स्टैंड की
आखिरी बस को विदा करना होता है
और रेलवे स्टेशन की आखरी ट्रेन को भी
कंडक्टर को ये भ्रम होता है कि  बस को वो चलाता है
ट्रेन के गाइड को नहीं पता
ट्रेन उसके झंडे से नहीं
जवान लडको के कहने पे शहर छोडती है

जवान लडको की आँखों में होती हैं
अनगिनत मुहब्बतें , जिसकी गिनती  रात को
चाँद करता है
चाँद असल में एक मुंशी है
जिसके बहीखाते में दर्ज है
जवान लडको की आँखों की मुहब्बत

घर वालों को लगता है
जवान लड़के  कुछ नहीं करते
घर वालों को नहीं पता
जवान लड़के बूढ़े हो के नहीं मरते




ग्यारह 

बहन जब बड़ी हो जाती है
बहन जब दूसरे शहर चली जाती है
तो फिर वो उस तरह नहीं लड़ती
जैसे लडती थी बचपन में....

( बहन जब बड़ी हो जाती है
तो उसके नाख़ून छोटे हो जाते हैं
वो उनको गढ़ाती खारोचती नहीं....
बहन के नाख़ूनों के निशान
भाई के जिस्म पे कैद
वक़्त के दस्तावेज हैं ...
जिनको पढ़ के
बचपन में लौटा जा सकता है )

बहन जब बड़ी हो जाती है
तो फिर वो ज़िद नहीं करती
छोटे छोटे सामान के लिए
कोशिश करती है कि
अपनी कमाई में से भी
कुछ दे सके .....

(अपने नकारा और असफल भाई को )

बहन जब बड़ी हो जाती है
तो नसीहत कम देती है
भरोसा ज़्यादा देने लगती है

(बहन भरोसे की खदान में
काम करती है
बहन की आँखों में हीरों की चमक है
बहन की आँखें दुनिया में
सबसे गहरे समंदर में
Mariana Trench की
अँधेरी गुफाओं में
रौशनी का जज़ीरा हैं .
मैं जब डूबता हूँ तो
यहाँ ऑक्सीजन मास्क रखा हुआ है
मेरी बहन ने मेरे लिए ...)

((मैं ....मैं हूँ ... डूबूँगा तो ...
सबसे गहरी जगह ही डूबूँगा ....
बचूंगा तो मुश्किल से ही बचूंगा))

बहन जब बड़ी हो जाती है
तो वो कुछ कुछ
माँ की तरह दिखने लगती
बूढी होती हुई माँ
जवान बहन का
58 वर्षीय अक्स है

बहन जब बड़ी हो जाती है
तो उम्र में उससे बड़ा भाई
उससे छोटा हो जाता है

बहन जब बड़ी हो जाती है
तो वो अपने माँ की पिता
पिता की माँ हो जाती है

बहन जब बड़ी हो जाती है



बाहर

लड़कियो के दिलो में वो मुहब्बत है
जिसको उन्होंने स्वीकार नहीं किया
उन्होंने मना किया था उन लड़कों को
जिनको वो अपने लायक नहीं समझती थी
वही लड़के उन्हें याद आते हैं सबसे ज़्यादा
अपनी ढलती उम्र में

उनको याद आता है कैसे एक लड़का
उनको देखता था चोरी चोरी स्कूल में
अपनी बेंच से चुपके से
कैसे प्रार्थना की लाइन में देखता था
और नज़रे छुपा लेता था
जब वो पलट के देख लेती थी उसकी आँख में
उनको याद है एक एक लड़का
जो कभी उनको कह नहीं पाया
मै तुमसे प्यार करता हूँ

उनको याद आता है वो लड़का
जो उनके घर के आसपास चक्कर लगाता था
उनको पता था कि वो चक्कर लगा रहा है
पर उन्हीने कभी उसकी परवाह नहीं की
उस लड़के ने उन्हें कभी तंग नहीं किया
और उन्होंने कभी उसको किसी लायक नहीं समझा
प्यार के लायक तो कतई नहीं
वो चाहती थीं समंदर किनारे घर ....
उन्हीने वसी शाह को नहीं पढ़ा था
समंदर किनारे घर बना के कुछ नहीं मिलता

लड़कियो के दिलो में वो मुहब्बत है
जिसके अंकुर को उनने ज़मीन से उगने न दिया था
वो अब उस पेड़ को तलाशती हैं अपने जीवन में
जिसका बीज उन्होंने कभी रौंदा था
उनको याद आता है हर एक किस्सा
जो नहीं हुआ पर हो सकता था
वो हर उस न हो चुके किस्से में
अपना अस्तित्व तलाशती हैं
लड़कियों को याद आता है हर वो लड़का
जिसके प्यार को उन्होंने कहा था
ये प्यार नही है

लड़कियां अपनी ढलती उम्र में
उसके लिए बहाती हैं आँसू
जिसके आँसू को उन्होंने जवानी में
पानी भी न माना था
अब उसी पानी की याद में गोते लगाती हैं
वो बहती हैं अब उस कसक में
जो कसक उनको कभी कसक न लगी
हालाँकि लड़कियों के अपने जीवन में
अपने पति हैं अपने बच्चे हैं
फिर भी उनके अंदर एक teenager लड़की है
जो एक टीनएजर लड़के को नकारती है
और वो लड़की अब इस उम्र में आ के
उस  नकारने को याद कर के
दुखी हो जाती है
इस दुःख का कारण उन्हें नहीं पता है

अब जब उनके पीरियड्स आना बंद हो चुके हैं
अब जब उनके चेहरे पे लकीरें हैं अपने अनुभवो को समेटे
अब जब उनकी मासूमियत को समय ने ख़त्म कर दिया है
अब जब उन्हीने देख लिया है हर रिश्ते को आज़मा के
अब जब उनको अपने पति से भी प्यार नहीं बचा
न आस्था बची उनको किसी में भी उतनी
जितनी थी कभी किसी किसी में ...
अब जब उनके बच्चे बड़े हो के तलाश रहे हैं
अपने लिए मुहब्बत के नए फलसफे
और उनका बेटा किसी लड़की के लिए वैसा ही
महसूस कर रहा है , जैसा उनके लिए किसी ने किया था कभी
अब जब उनका बेटा किसी लड़की से बोल नहीं पा रहा
कि वो प्यार करता है उससे
और ये बात वो अपने बेटे की आंखों में पढ़ पा रही हैं
वो एक बार कहना चाहती हैं अपनी कहानी अपने बेटे को
पर कह नही पाती न जाने क्यों .... तब ... बिलकुल तब
उनको याद आती है एक मासूम मुहब्बत
और वो अब उसको मुहब्बत मानने लगी हैं
जिसको उन्होंने मुहब्बत नहीं माना था कभी

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मानस भारद्वाज का 30 जुलाई 1986 को मध्यप्रदेश के खंडवा में जन्म । पिताजी सरकारी नौकरी में थे इस कारण हर दो साल में एक नए शहर में ठिकाना रहा । 2001 से कविता लेखन में सक्रिय । 2008 से रंगमंच में सक्रिय । कविताओं का नाट्य प्रदर्शन 2008 से हो रहा है । वर्तमान में भोपाल ठिकाना है । 


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