30 सितंबर, 2018

ज़िया ज़मीर की कविताएँ








 गांधी 

कभी मिलो तो यह बतलाना राष्ट्रपिता
 जिनके लिए खाए थे डंडे
जिनकी खातिर जेल गए थे
जिनके कारण जान गंवाई
उनके मुख  से
अपने ऊपर बने लतीफे
सुनकर तुम को
कैसा लगता है





 बिटिया


नन्ही सी गुनगुनी हंसी से
घर आंगन महकाने वाली
भोली सी दो आंखों में सब
सपने सिमटा जाने वाली
बादल की गर्जन सुन सुनकर
गोद को गोद बनाने वाली
हल्की सी इक चोट के कारण
घर भर को घबराने वाली
जीतने वाली हर कक्षा में
अव्वल अव्वल आने वाली
जल्दी-जल्दी खेल कूद कर
मां का हाथ बंटाने वाली
पापा के गंदे जूतों को
पाॅलिश से चमकाने वाली
अम्मा के घुटनों पर मरहम
आधी रात लगाने वाली
बाबा के टूटे चश्मे को
बारिश में जुड़वाने वाली
भाई को अपने से बेहतर
मानने और मनवाने वाली
अपने प्यार की ख़ाक उड़ा कर
घर की लाज बचाने वाली
रिश्तों को सहलाने वाली
रंगों को बिखराने वाली
ख़ुशबू को फैलाने वाली
रौशनियां चमकाने वाली
बिटिया को, मम्मी-पापा ने
एक नए भइया की ख़ातिर
कोख में ही बर्बाद किया है
और ख़ुद को आज़ाद किया है





अपने धर्म के नेता वाला


बटन दबाकर
मैंने फिर मतदान किया है

चेहरे पर, आंखों में खुशी है
वह मेरी ही बात सुनेगा
मेरा ही कल्याण करेगा

मेरे दोस्त ने
अपने धर्म के नेता वाला
बटन दबाकर
ऐसी ही कुछ आस रखी है

दोनों खुश हैं
दोनों को मतदान में अपनी
जीत दिखी है

धरती मां अपने बेटों की
सोच पे थोड़ी देर हंसी है
इसके बाद वह रोने लगी है






गलियां


इमली टॉफी चूरन वाली
ठंडी कुल्फी वाली गलियां

ऊंच-नीच पोशमपा वाली
छुपन-छुपाई वाली गलियां
रंग बिरंगी चुस्की वाली
नानखटाई वाली गलियां

कंचे टायर गुल्ली डंडे
रोज़ मिठाई वाली गलियां
डांट डपटने वाले आंगन
और पिटाई वाली गलियां

एक खंडर में धूप भरे दिन
सांझ से सोने वाली गलियां
नाली में चप्पल गिरने पर
रोने धोने वाली गलियां

चौबारों पर बूढ़े हुक्के
उनमें पानी भरती गलियां
रात में पीपल के साए को
देख देख के डरती गलियां

कड़वे तेल में चुपड़ी चोटी
काजल में शर्माती गलियां
क़लम दवात और तख्ती लेकर
आंगनबाड़ी जाती गलियां

इन पक्की आंखों में आकर
कहती हैं ऐ बूढ़े बच्चे!
फोरलेन की सड़कों पर जब
चलते-चलते थक जाए तो
दो दिन की छुट्टी लिखवाकर
मेरी गोद में रहने आना




 बेटी नाम का पौधा... 


नर्सिंग होम के इक कोने में
छोटा सा एक लॉन पड़ा था
जिसमें थोड़ी घास उगी थी
पास में ही इक बोर्ड टंगा था
बोर्ड पर इक जुमला लिक्खा था
जुमले पर कुछ धूल जमी थी
फोटोग्राफर आ पहुंचा था
मैडम को संदेश गया था
मैडम जल्दी-जल्दी आईं
बेटी नाम का पौधा रक्खा
उस गड्ढे में जो पहले से
नौकर ने तैयार किया था
पौधा लगाया पानी दिया फिर
वी फाॅर विक्ट्री साइन बना कर
अच्छा सा फोटो खिंचवाया
हाथ झाड़ते वापस भागीं
फोटोग्राफर ने नौकर से
पूछा-मैडम जल्दी में हैं
बोला इक इक पल भारी है
ओ टी में सब तैयारी है
एबॉर्शन के चार केस हैं
००
ज़िया ज़मीर की कहानी: एक जोड़ी पान, नीचे लिंक पर पढ़िए

https://bizooka2009.blogspot.com/2018/08/blog-post.html?m=1




परिचय 

नाम : ज़िया ज़मीर 
पिताजी का नाम: श्री ज़मीर दरवेश ( प्रसिद्ध शायर)
जन्मतिथि: 07.07.1977 
जन्म स्थान: सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) 
शिक्षा: एम. एस-सी (मैथ्स), एल. एल. बी.,  एम. ए. (उर्दू)
व्यवसाय: कर अधिवक्ता
साहित्यिक साधना: वर्ष 2001 से। 
साहित्य की विधाएं: ग़ज़ल, नज़्म, नात, आलोचनात्मक आलेख, समीक्षाएं, कथा, लघुकथा, विश्लेषणात्मक लेख। 
प्रकाशित पुस्तकें: 1. ख़्वाब ख़्वाब लम्हे(ग़ज़ल संग्रह) 2010 
2. दिल मदीने में है  (नात संग्रह) 2014 
पुरस्कार: 1. ग़ज़ल संग्रह  बिहार उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कृत। 
2. नात संग्रह उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कृत। 
3. नात संग्रह हम्द ओ नात फाउंडेशन मुरादाबाद द्वारा पुरस्कृत। 
विशेष: 1. सेमिनार, कवि सम्मेलनों,  मुशायरों में प्रतिभाग। 
2. आकाशवाणी और दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण। 
3. हिंदी उर्दू के राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन। 
सम्पर्क: निकट ज़ैड बुक डिपो, चौकी हसन ख़ां, मुरादाबाद। 
मो.  08755681225
email: ziazameer2012@gmal.com

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