28 अक्तूबर, 2018

परख तेईस


पृथ्वी में छह सौ फुट भीतर बन रही कविता रोज़!

गणेश गनी



कवि अनवर सुहैल ने अपने काव्य संग्रह में एक जगह साफ़ कहा है कि कुछ भी नहीं बदला है। यह किताब अनवर जी ने अपने फेसबुक मित्रों को समर्पित की है । कवितायेँ आमजन से जुड़ी होने के साथ साथ वर्तमान की विसंगतियों को भी बेबाकी से उजागर करती हैं । कवि कहता है -

अनवर सुहैल


कि वह थकता नहीं
वह बेवजह हंसता नहीं
अकारण रोता नहीं
भरपेट कभी होता नहीं ।

आमजन के बारे कवि कहता है कि उसकी चमड़ी मर चुकी है या मर चुकी है हमारी सम्वेदना । यह अनवर सुहैल जैसा कवि ही लिख सकता है । अंतिम आदमी की पीड़ा समझने के लिए सम्वेदनशील हृदय चाहिए ।
राजनीति का खेल अब सब समझ रहे हैं मगर फिर भी धूर्त लोगों ने शरीफों का दिल गिरवी रख लिया है और उसे झूठे वादों से बहलाते रहते हैं ।
कवि अंतिम आदमी की ही पीड़ा को ऐसे व्यक्त करता है -

मैं जहाँ था भाई
वहां नहीं था वसंत ।

आगे देखें क्या कमाल की बात लिखी है -

थोड़ी सी धूप
थोड़ी सी चांदनी
थोड़ी सी नींद
थोड़ा सा ख्वाब
थोड़ा सा चैन
थोड़ा सुकून ।

इतना कम चाहा था मैंने
और तुमने कहा
कि रुको -
हम बना रहे हैं घोषणा - पत्र!

अनवर ने बहुत कवितायेँ ऐसी लिखी हैं जो साधारण भाषा और शिल्प में अंतिम आदमी की पीड़ा से सराबोर हैं । कवि को गाली और गोली से डर नहीं लगता क्योंकि उसके पास एक कलम , एक सोच , एक स्वप्न और एक उम्मीद है । कवि को दोस्तों से बहुत उम्मीद है -

क्या तुम उन
लिखकर मिटा दी गई पंक्तियों को
बांचोगे दोस्त ।

कवि का दोस्त पर अटूट विश्वास है जो वो जताना नहीं भूलता और यह जरुरी भी है । हमें यह बताना ही चाहिए कि एक मित्र की मित्रता का हमारे जीवन में कितना महत्व है -

हम नहीं हंडिया के दाने
और कच्चे भी नहीं हैं हंडिया में
हम पके हुए हैं पूरे
जितना कि तुम हो दोस्त ।



इस मुश्किल समय में एक संवेदनशील व्यक्ति का अपने मित्र पर यकीन करना बनता है । कवि धरती के अंदर गहरे जा कर भी अँधेरे में प्रेम की लौ जला लेता है -

तुम सारा सारा दिन
अपने हिस्से के
फटे - चीथड़े आकाश में
तुरपाई - सिलाई कर कर के
तैयार करना चाहती हो
मेरे वास्ते एक अदद कमीज।

और मैं कोयला खदान की
काली - अँधेरी सुरंगों में
तलाशता रहता हूँ
तुम्हारी याद के जुगनू ।

आज जहाँ बड़े कवि अपनी अपनी कविताओं को लेकर सीना ताने खड़े हैं वहां अनवर सुहैल जैसा सरल हृदय वाला कवि अपनी लेखनी से सबका ध्यान खींचता है । कवि बड़े सादगी से संकेत सबको दे रहा है कि कविता इधर भी है जो बोलेगी और दूर तलक अपनी टँकार से सबके कानों पर दस्तक देगी ।
कवि की कुछ कविताएं दरअसल प्रश्नों और विद्रोही स्वरों का भी दस्तावेज हैं। यहाँ औरत को भी  कमजोर नही दिखाया गया है -

स्त्री ने अपने लिए
रच लिए हैं नए ग्रन्थ
तराश लिए हैं नए खुदा

अब स्त्री सिरज रही है
एक नई पृथ्वी ।

यहां अनवर स्त्री के लिए पूरी पृथ्वी की बात कर रहे हैं । यह अनवर जैसा कवि ही कह सकता है ।  यहाँ यह बात भी गलत सिद्ध हो जाती है कि साहित्य आम आदमी के लिए नहीं लिखा जाता । बल्कि यही सिद्ध होता है कि साहित्य आम आदमी के लिए ही लिखा जाता है ।
००

गणेश गनी


परख बाइस नीचे लिंक पर पढ़िए
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