16 दिसंबर, 2018


सतीश छिम्पा की कविताएँ
सतीश छिम्पा 



तुम्हारे लिए..

तुम्हें धरती नहीं होना
या मैं नहीं लिखूंगा कि तुम धरती हो
या मैं उड़ता हुआ बादल
ये प्रतीक कितने बासी है न
जैसे प्रेम को जीवन बता देना या जीवन को तुम्हारा नाम दे देना
नहीं
मैं तुम्हारे लिए किसी चले आ रहे शब्द को नहीं लूंगा
जब भी हम मिलेंगे
मैं तुम्हारी कमर के सितार को सहलाकर कन्धों की झनझनाहट को उल्लास का नाम दूंगा
या जब तुम बैठी होगी मैं तुम्हारी गर्दन पर अंगुली से फूल बनाऊंगा
और भीतर उठ रहे भावों के ज्वालामुखी को उत्सव का नाम दूंगा
नहीं प्रिये
मैं तुम्हारे या प्यार के लिए किसी पुराने घिसट चुके बिम्ब का प्रयोग नहीं करूँगा
मैं लिखूंगा
जब तुम नहीं होती या रात का लम्बा सफर मुझ अकेले को काटना होता है तब तुम्हारी बगलों की बर्फ बहुत याद आती है
या रात के अंतिम पहर में जब शहर आधा जगा हुआ होता है
मुझे तुम्हारी पगथलियों में उमड़ आये समूची देह के भँवर को चूम लेना अच्छा लगता है
तुम जब दरख्तो की टहनियां सहलाती हो
तुम्हारी अधखुली मुट्ठियाँ मुझे खुम्बियों की तरह लगती है
जिनकी बुनघट इतनी कोमल होती है जैसे अंगुली छुआई और एक परत छड़ गयी
सच तुम इस मौजूदा दुनियां का पहला और अंतिम अनछुआ शब्द हो
जिसे मैं अपनी ज़बान से गा लेना चाहता हूँ



मैं नहीं लिख सकता.....


मैं नहीं लिख सकता कभी भी कुछ तिलिस्मी सा
या रहस्यमयी
या कुछ ऐसा घुमावदार जिसके हर मोड़ पर कुछ अलग घट रहा हो
या चीजों के भीतर की चीजें या परतें मैं नहीं लिख सकता
भूख लगने पर जैसे जाया जाता है चूल्हे के पास
या अकेले होने पर उदासी की अंगुली पकड़ी जाती है
मैं ऐसा सपाट सीधा लिख सकता हूँ
काव्यशास्त्र की दृष्टि से अज्ञानी मैं
भूखा होने पर रोटी लिख देता हूँ
या मुझे उस सांवली सी लड़की से प्यार है
जो बालों का बहुत सुंदर फूल बनाती है सर पर
या एक जोड़ी आँखों में मैं डूब जाना चाहता हूँ
या जब कान की लवें गर्म होकर लाल हो जाती है या देह के भीतर कहीं भावनाओं के भूकम्प आते हैं तब मुझे एक जोड़ी कोमल,गदराई बाहों की जरूरत होती है
दिल जब धड़क धड़क कर
आँख की पुतलियों तक पहुँच जाता है तो उस सांवली सी लड़की के माथे से थोड़ी तक अपनी अंगुली से एक सीधी रेखा बना देना चाहता हूँ
ये कुछ ऐसी साधारण सी चीजें हैं
जिन्हें मैं साधारण शब्दों में ढाल साधारण तरीके से लिख देता हूँ
जैसे भूखा होना
या प्यार में होना कोई विशेष बात नहीं है
विशेष बात है प्यार पर कायम रहते हुए प्यार की परिभाषित रीत को पुख़्ता करना और भर देना जीवन की ऊष्मा से
मगर
मुझमे या मेरे शब्दों में कुछ भी विशेष नहीं है
जो शर्ट मैं पहनता हूँ उसकी बाजू अपने निर्धारित आकार से छोटी है
या मेरी पेंट टखनों को ढक नहीं पाती
या जब मैं दाढ़ी करता हूँ,मेरे गाल छिल जाते हैं
दो मुलायम होंट जब कट के निशान को सहलाते हैं
तब मैं लिख देता हूँ सीधी सपाट सी कोई कविता
ऐसी कविता जो शायद किसी को प्रभावित करने का कोई उपकरण नहीं रखती या जिसके भीतर वो सब नहीं होता है जो उसे विशेष बनाकर मानक रूप में स्थापित कर दे
मुझे लिखना होता है
और मैं लिख देता हूँ कि आकाश नीला है
हवाएं शांत है जिसके भीतर अकेलापन तारी है
आओ प्यार करें और लिख दें अगली पीढ़ी के लिए कुछ सीधी सपाट कविताएँ










कभी कभी

कभी बिना मतलब हंस देना या बिना किसी ख़ास कारण बेतरह खुश हो जाना
या कभी उदासी में गहरे डूब जाना
या प्यार के जादुई जहाज पर सवार हो अनन्त ऊंचाइयों पर चले जाना
भूखा होना या पेट भर के खा लेना
अभी अभी हथाई करते हुए मखोल करना और अभी अभी ही मर जाना
जीवन कितना कम है और प्यार करना कितना बाकी है अभी
क्या भरोसा कब खत्म हो जाए सांस
या नब्ज़ का थम जाना
जैसे काम से घर लौटना
खाने बैठना और प्यार करते हुए सौ जाना
और लेटे का लेटे ही रह जाना इस सपने के साथ कि अगली रात फिर से करेंगे प्यार
और बस सब खत्म
सब कुछ का खत्म हो जाना बहुत खतरनाक है
उदासी
पीड़ाओं और शून्यता से भरा हुआ खतरनाक शब्द
'खत्म हो जाना'
मर जाने से पहले हमे कर लेना होगा जी भर के प्यार
ताकि मरते हुए हम कह सकें
हाँ हमने किया था प्यार
हम थे प्रेम में......




इन दिनों मैं भरा हूँ कविताओं से
इन कुछ दिनों में
मैंने थोड़ी नफ़रत
और बहुत सा प्यार किया है





कभी लिखूंगा.....



कभी लिखूंगा ऐसी कविता भी जो भरी होगी जीवन से, जिसमे शब्द नहीं इच्छाओं का बारूद होगा
एक ऐसी कविता लिखेंगे मेरे हाथ जो विद्रोह का दावानल होगा
तब जलाये जायेंगे सत्ता, संस्थान और मठों को, सम्मान, पुरस्कार और मनुष्य से कम्पनियों और सेठों के दलाल बने मनुष्यों के भेष में छिपे अकादमिक भेड़ियों को
मेरी कविता परिवर्तन की आंधी पर सवार हो कुंद कर देगी प्रगतिशीलता की आड़ में छिप धन पशुओं की वहशी इच्छाओं को पूरी करती उस कुलुक तीखी धार को जिसके जबड़ों से रिसता है मानवीय लहू
जो इनसान की खाल में छिपे कलाओं के सौदागरनुमा दरिंदे है, मिटा दिए जाएंगे

एक दिन लिखूंगा मैं एक ऐसी कविता जो प्यार और सम्मान और न्याय और प्रतिबद्धता और गुस्से से भरी होगी
एक ऐसी कविता जिसकी पोरों में रवां होंगे आत्मसम्मान के लोहतत्व
ज्वालामुखी के लावा सी दहकती आँखें जब कविता के चश्मे में उतरेगी जलाकर भस्म कर देगी संस्कृति के मैदानों में पैठी कलाओं की काली इबारतों को
मनुष्य जब दलाल बनकर दलाली की कथाओं को स्थापित करता है
मनुष्य, जीवन, आत्मसम्मान, सौंदर्य और मनुष्यता को जब हराम की नैतिकताओं, मूल्यों की भेंट चढ़ाता है
मेरी कविता तब विद्रोह के सुर पर सवार होकर निचोड़ देगी थोथी मुक्ति की थोथी कामनाओं को
प्रीत की कपटी कमेरियां धान की इच्छाओं में किसे हीले नहीं लगेगी
उनके पंख न्याय युद्ध में नोच लिए जाएंगे
ताकि लिखी जा सके
मनुष्य और संघर्ष और भूख के भरम को तोड़ती एक फड़कती सी कविता






प्यार, रात और एक मुलायम सी लड़की


एक रात चाँद उतरा था हजारों रौशनाइयों के साथ
एक रात
रात ने चांदनी की बरी पहनकर मेरे आँगन को ख़्वाबों के हाथों और पलों के गारे से लीप दिया था
उस रात कंवळी/मुलायम सी एक लड़की ने
मेरी हथेली की लकीरों के बीच जीवन का उजास भर दिया था
वो एक रात मेरी पहली सुबह बन गयी थी जब हमने यादों के कप में
भविष्य की कॉफ़ी पी थी
इन दिनों मेरी बांथ में नीले फूल महकते हैं









रात, कलाएं और कुछ कविताएँ

आज सारी रात मैं जागता रहा
आज सारी रात मैं तुम्हारे बिना था
सारी रात तुम्हारी अँगुलियों का संगीत मेरे बालों में महसूस करता हुआ मैं
क्लासिक हो जाने की पूरी कोशिश करता रहा
मैंने एक कविता लिखनी चाही जो 'प्यार और भटकती रातों के अँधेरे' पर आकर रुक गयी
आज रात लियोनार्दो की एक फ़िल्म देखनी चाही जो दोस्तोएव्स्की के पात्रों की तरह अधबीच मेरे हाथों से फिसल गयी
आज रात मैंने कल रात की खुरचनो को सहेजना चाहा
दो बातें जो हमारे बीच अनकही रह गयी थी, उन्हें जोड़ना चाहा
मायकोवस्की की कोई कविता पढ़नी चाही
आज सारी रात मैं कलाओं में तुम्हे तलाशता रहा
और आज सारी रात नींद मेरी आँखों को धोखा देकर उस किताब की जिल्द पर चिकपी रही
जिसे कल रात पढ़ लेने के बाद एक पन्ना मोड़ते हुए तुमने कहा था,"ये किताब रातों से भी प्यारी है।"
आज जब सारी रात मैं जागता रहा, उस किताब पर लाल अक्षरों से लिखे हुए 'प्रेम कहानियों' के बीच तुम्हारे चुम्बन के निशान देखता रहा.........





मैं और तुम

मुझे नदियों से प्यार है
जैसे होता है थार में रहने वाले ज्यादातर लोगों को
हर रोज़ सोचता हूँ पहाड़ पर जाने के लिए
हर रोज़ मेरी जेब खाली ही होती है
भरे हुए सपनो के बावजूद
सपने दिल को भर देते हैं
तमाम खालीपन को रीताकर
रीत जाना या भर जाना मेरे बस में नहीं है
मगर
तुम्हे कुछ और ही चीजें पसंद है
मसलन अकेले बैठकर बातें करना
थार
मैदान या पहाड़
बिना किसी फर्क के तुम हर जगह पसन्द करती हो
और मैं भागने की नियति के साथ हर वक्त टोहता हूँ कोई बीच की गली
जैसे नदियां या पहाड़ सिर्फ मरीचिका है सुख की
थार के बनिस्बत कुछ ज्यादा पा लेने की
मगर
तुम्हे जैसे कुछ फर्क नहीं पड़ता
सन्तुष्ट सी तुम कलाओं पर बात करती हो
संगीत या प्यार या किसी पुरानी फ़िल्म के किसी दृश्य की तारीफ में ढुल ढुल पड़ती सी
मैं संवाद में घुसने के लिए भूख और प्यार और समानता और न्याय पर तुम्हे लाता हूँ
मगर फिर एक नदी मुझे बहा ले जाती है और ख़ामोश हुआ मैं
ऊब डूब होता निकल जाता हूँ पीड़ाओं के थार से दूर
फिर से आ जाने के लिए






तुम्हारे हाथ

(१)

तुम्हारे हाथ
मुझे धरती की तरह लगते हैं
जिन पर
हल की कलम में श्रम की स्याही डालकर
प्यार की कविता का लिखा जाना अभी बाकि है

(२)

अपनी दोनों हथेलियों को मिलाकर दिखाया था तुमने
"देखो, मेरी हथेली में चाँद नहीं बनता"

मैंने देखा
तुम्हारी आँखों में झिलमिला रहे थे
इस धरती के असंख्य चाँद

(३)

तुम्हारे हाथ बहुत मुलायम और साफ़ है
जैसे कुदरत ने लगा दिया हो
समूची दुनिया के कपास को चमड़ी बनाकर
वे महकते हैं
और आकर्षित करते हैं छुअन के लिए

मेरे हाथों में श्रम के आयठण है
वे प्रतिबिम्ब है तीसरी दुनिया के अँधेरे इतिहास के
बहुत बार खून की धार निकलती है बिवाइयों से

मेरे हाथ कलम को जिंदरे की तरह थामते हैं और तुम्हारे हाथ मुझे थामते है किसी अलौकिक ऊर्जा की तरह
सुनो-
तुम्हारे हाथ में एक रेखा है जो भाग्य की नहीं, हंसी की है
अंगुली फिराने पर
दुनिया भर की हंसी तुम्हारे होटों पर आएगी
आँखों में सपने चमकेंगे
आओ, मैं अपनी खुरदुरी छुअन से उसमे जीवन का उजास भर दूँ

(४)

चूल्हे की बासते की तरह
दहकती, लाल दिखती है तुम्हारी हथेली

तुम्हारे हाथों से ही निर्मित हुई होगी कुदरत की रंगों भरी कहानियां








एक बदचलन लड़की


उसकी सबसे बड़ी गलती थी सपने देखना
यह अपराध उसने तब शुरू किया था जब वह सोलह साल की थी

वह फूलों,पेड़ और पर्वतों और नदियों के सपने देखती है
दुनिया को बदलने और प्यार के सपने देखती है

वह सुनहरी मछलियों को छूने
तारों तक उड़ने और हवाओं पर सवार होने के सपने देखती है

वह नहीं चाहती लड़की सिर्फ देह हो वह देह से आगे मनुष्यता की गरिमा को स्थापित करने के सपने देखती है
उसे महज एक योनी और उसके साथी को लिंग भर ही न समझा जाए

लड़की सिगरेट नहीं पीती
उसे धुंए से एलर्जी है मगर छल्ले उड़ाना चाहती है

वह शराब नहीं पीती मगर शराब खरीदती लड़कियों को वह बुरा नहीं समझती
लड़की परम्पराओं को तोड़कर अमृता शेरगिल या फरीदा काहलो या सिमोन द बोउवार हो जाना चाहती है
नहीं
शायद वह स्वयं के मानकों को थापित करना चाहती है

वह रात के अंधेरे में सोए हुए शहर के भीतर मुक्ति के गीत गाते हुए
सीटी बजाते हुए निकल जाना चाहती है

लड़की दहेज के साथ किसी भोग्या की तरह नहीं जाना चाहती
फेरों की फांसी नहीं लेना चाहती
वह भाग जाना चाहती है विद्रोह के घोड़ों पर सवार होकर

नहीं-
वह अच्छी लड़की नहीं है
बदचलन है
क्योंकि वह दुनिया की चाल को सीधा करना चाहती है
वह लक्ष्मण रेखाओं को लांघ कर सीता,सावित्री या सरस्वती या शिव या राम की सृष्टि को विध्वंस करके रच देना चाहती है
मुक्ति की नई मुक्त दुनिया

एक लड़की बदचलन है क्योंकि वह प्रश्नों और लांछनों के घेरे को लांघ कर
जी लेना चाहती है जीवन को




आधी रात की प्रार्थना

अभी कोई संगीत नहीं उठ रहा है
कामायचा या वायलिन या रावण हत्था कुछ भी तो नहीं है
झींगुर चुप हैं और आधी रात का गहरा सन्नाटा पसरा है
गहरा अँधेरा है
किशनगढ़ आ गया है और किशनगढ़ की मोनालिसा बणी ठणी की आँखें चमकने लगी है

अरावली की बूढ़ी मगर सख़्त काया से उठ रहे हैं गीत
आधी रात को सुन रहा हूँ मैं जबकि गहरी नींद में है सहयात्री
सिरोही के ढोला और मारू की दास्तान-ए-मोहब्बत चल रही है और लोद्रवा की राजकुमारी मूमल को लेने आ पहुंचा है महेंद्र

मेरे पास कोई ऊंट नहीं है ना ही सन्तूर या खड़ताल या कोई लीलण घोड़ी
किरड़ काबरा कब्र में सोया है
निश्चिन्त
आधीरात के बाद के इस समय जब मैं थार को लांघ कर अरावली में घुस चुका हूँ
हरियल हो चुकी हो मेरे भीतर तुम हाड़ी की फसल की तरह और थार की मुळक और अरावली की हंसी से उठ कर
घेर रहे हैं मुझे
गीत
गीत जिनमे चल रही हो तुम,जिक्र है जिसमे तुम्हारी देह के नमक का और बातों के तिलिस्म का भी

अँधेरा बहुत गाढ़ा है जैसे डूंगरपुर की अरावली हो और मैं थका हुआ
इस सफर के कभी न खत्म होने की प्रार्थना कर रहा हूँ

लोग सो रहे हैं और मेरे भीतर जाग रही हो तुम
अतृप्त कामना की तरह

   



एक दिन


हज़ार ख्वाहिशें थी
रात के भीतर पल रही सुबह की
चटख रंगों में डूबी
महकती
गुलकन्दी सी
हज़ारों गीत थे
समय की सरगम पे जिन्हें गाना था
या सूरज के घोड़ों पर बैठ
निकल जाना था
दूर
बहुत दूर
उम्मीदें
अंधेरों की काराओं में बन्धी थी
या
उजास से पहले
अधमरी इच्छाएं
अंधेरों में कैद दमित इच्छाएं फड़फड़ाती,दम नहीं तोड़तीं, वे अधमरी हैं

एक दिन
लौटेंगे शब्द
एक दिन
लौटेंगे रंग
एक दिन गीत फिर लौटेंगे
एक दिन
हम रचेंगे समय के पंखों पर
युग का महाकाव्य
एक दिन
हम रचेंगे धरती की छाती पर आज़ादी की नई पौध
एक दिन
हम भरेंगे
मौन विश्व में असंख्य चिड़ियाओं के गीत
एक दिन ये विश्व भरा होगा
हमारे होने से
एक दिन हम रचेंगे नए महामानव की कहानियां
एक दिन
जब दिन हमारे होंगे

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नाम- सतीश छिम्पा
जन्म- 14 नवम्बर 1986
शिक्षा- एम. ए., बी.एड
प्रकाशन- हिंदी और राजस्थानी पत्र- पत्रिकाओं में कविता और कहानियां प्रकाशित ( 'वान्या अर दूजी कहाणियां ' नाम से राजस्थानी कहानी संग्रह और ' लिखूंगा तुम्हारी कथा' हिंदी कविता संग्रह प्रकाशित )

सम्प्रति- अध्ययन

पता- वार्ड नम्बर 11, त्रिमूर्ति मंदिर के पीछे, सूरतगढ़ (राजस्थान ) पिन- 335804
मोबाइल 8290008275

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