रेणु त्रिवेदी मिश्रा |
(1)
बड़ी शोखी है आँखों में, बडी बदनाम तस्वीरें
शरारत करती रहती हैं, सहर ता शाम तस्वीरे
फलक पर चाँद चमका है, धरा पर रोशनी आई
सितारे भरके दामन में, करे आराम तस्वीरें
फसाना इश्क का है ये मोहब्बत का ही
जादू है
के नगमें गाते रहते हैं, यूँ ही हम थाम
तस्वीरें
खड़े चुप हो जो बुत बनकर, कहो तुम मेरे कातिल
हो
के सारे राज कह देंगी, कई गुमनाम तस्वीरें
बहुत मुश्किल हुआ रेणु इन्हें अब छोड़ के जाना
सदाएँ देती रहती है,मुझे हर गाम
तस्वीरें
(2)
आंसुओ की नमी समझते हो
खल रही क्यों कमी समझते हो
मेरे अश्कों का अक्स है पगले
तुम जिसे चाँदनी समझते हो
तुमको देखा ,खिला मेंरा चेहरा
तुम हो मेरी ख़ुशी समझते हो
आके मुझको छुपा लो बांहों में
गर मुझे कीमती समझते हो
दिल में तुम को बसा के रब की तरह
करती हूँ बंदगी समझते हो
प्यार इतना बताओ क्यों है तुम्हे
क्यों मुझे ज़िन्दगी समझते हो
(3)
अंदाज़े गुफ़्तगू हमें आया नहीं कभी
मुश्ताक दिल था यार बुलाया नहीं कभी
साहिल की लहरों शुक्रिया,मेरे सनम का नाम'
चूमा,किया था प्यार मिटाया नहीं कभी
वो बेनज़ीर दिल में बसी जब से क्या
कहूँ
नज़रों को कोई दूसरा भाया कभी नहीं
रातें विरह की देखके दिल छेड़ता मुझे
कैसा है चाँद मिलने को आया नहीं कभी
झूठा था वो गवाह है उजड़ा मजार ये
तुरबत पै मेरी दीप जलाया नहीं कभी
(4)
क्यों थे खामोश ये लब जानते थे
हम उदासी का सबब जानते थे
लाख दुनिया से छुपाया हमने
प्यार हम दोनों का, सब जानते थे
ये ग़मे हिज्र सताता है बहुत
ये रवायत भी अज़ब जानते थे
जान जाते तो मनाते उसको
हमसे रूठा है ये कब जानते थे
उम्र बीती यूँ ही दर दर भटके
हम कहाँ ऐशो-तरब जानते थे
मस्लिहत थी जो मैं ख़ामोश रही
आप तो नाम, नसब जानते थे
(5)
वफा कर मेरा दिल ये टूटा बहुत है
मुहब्बत की राहों में धोखा बहुत है
तेरा बुत बनाकर के खाबों में पूज़ा
खुली आँख तो दिल ये रोता बहुत है
हमें है शिकायत न मानेंगे हमदम
किया तुमने महफ़िल में रुसवा बहुत है
ये चूड़ी,ये पायल, ये कंगन ये बाली
खनक इनकी सुन लो,इशारा बहुत है
चकोरी बनी मैं निहारा करूँ बस
बड़ी दूर चंदा सताता बहुत है
(6)
इश्क में दे दी जिंदगानी भी
याद लैला की है कहानी भी
तुम जो आये खिले गुलाब कंवल
खूब महके है रात रानी भी
प्यार तो आँख से छलकता है
कुछ तो कहिए ज़रा ज़ुबानी भी
मुद्दतों बाद मिल रहे हो सनम
बातें कर लो ज़रा पुरानी भी
साथ मेरे फ़रिश्ते रहते हैं
और ख़ुदा की है पासबानी भी
दर्द हद से ज़ियादा जब भी हो
सूख जाए नयन का पानी भी
ग़मज़दा हो के मुस्कराती है
खूब रेनू की है कहानी भी
(7)
खंजर या तलवार नहीं हूँ
साथी मैं गद्दार नहीं हूँ
मेज पे मुझको छोड़ के मत जा
मैं कल का अखबार नहीं हूँ
कहती है माथे की बिंदिया
मैं केवल सिंगार नहीं हूँ
जिस गुलशन को मैंने सींचा
उसका अब हक़दार नहीं हूँ
पायल हूं मीरा के पग की
घुंघरू की झनकार नहीं हूँ
लिख डाले कुछ शेर फ़कत ही
गालिब या गुलजार नहीं हूँ
(8)
इश्क का रोग रवायत के सिवा कुछ भी
नहीं
दर्द है,धोखा है बदले में
मिला कुछ भी नहीं
तेरी आंखों से जो उठकर मेरे दिल पर
बरसे
उसके आगे तो ये सावन की घटा कुछ भी
नहीं
कत्ल मेरा हुआ और यार मेरा कातिल है
मुस्कराता है खुदा देता सज़ा कुछ भी
नहीं
चाँद तो छुप गया शरमा के मेरी बाँहों
में
आसमां खाली है तारों से गिला कुछ भी
नहीं
आँखों से पढ़ लो सनम मुँह से न हम
बोलेंगे
फिर न तुम करना गिला हममे कहा कुछ भी
नहीं
भूलकर दुनिया के सब रंज ओ अलम रब से
जुडो
माहे रमजान,इबादत के सिवा कुछ
भी नहीं
(9)
निगाहों ने निगाहों से कभी तो कुछ कहा
होगा
चमक चहरे पे आई तो ज़माना भी हँसा होगा
अभी वीरानी गुलशन में कि रूठा है मेरा
हमदम
कभी तो फूल महकेंगे कभी तो राबिता
होगा
मेरी दुनिया तेरा आँगन,मेरी खुशियाँ मेरा
साजन
मेरे सपने,मेरी हसरत सभी वो
जानता होगा
कसक बनकर चुभी यादें,तड़पता दिल है
सुब्हो-शाम'
मेरी तो नींद ही रूठी सनम भी जागता
होगा
निगाहें दीप मंदिर का,तेरा चहरा बड़ा
पावन
ये कहते हैं जहांवाले,खुदा तुझ सा रहा
होगा
(10)
चाँद यूँ आसमान से निकला
जैसे कोई मकान से निकला
अशकबारी हुई मुसलसल जब
दर्द दिल के मकान से निकला
पेशवाई करेंगे जन्नत में
कहके मुझसे जहान से निकला
नाम अपना लगा शहद जैसा
जब वो तेरी जबान से निकला
इक दिया है मुंडेर पर अब भी
क्यों ये रेनू के ध्यान से निकला
रेणु त्रिवेदी मिश्रा
राँची(झारखंड)
वाह!
जवाब देंहटाएं