अनुपस्थित रहने वाला लड़का
पढ़ाते-पढ़ाते मैं क्लास के
अक्सर अनुपस्थित रहने वाले लड़के की
आकस्मिक उपस्थिति को
संवाद के ब्रैकेट में रखती हूँ
उसके मद्धम स्वर की अल्हड़ता में लगे प्रत्यय पर किसी तितली की तरह बैठ जाती हूँ
चोर घड़ी की टिक-टिक उसकी अनुपस्थिति के कारणों पर
विशद चर्चा के लिए स्थान ढूँढ रही है
और व्यवस्था श्यामपट्ट की तरह
चॉक और डस्टर उठाने वाली उँगलियों की मोहताज है
लड़का इन सभी से अनभिज्ञ
अपनी लापरवाही को नोट्बुक के अंतिम पृष्ठ पर उडेल रहा है....
अभी मैंने उसकी उदास आँखों में
देवदास के दिलीप कुमार को देखा है।
०००
आओ भाई!
फुदकने की उम्र से हम साथ थे
सीढ़ियों पर बैठकर चिपचिपाते दिनों में भी
आँखें चमकीली थी हमारी
साँझ के धुंधलके भी
हमारी चप्पलों में कभी नहीं अटके
हमने नींद में भी सपनों पर ढेला कभी नहीं फेंका
हमारे कंधों पर जो टिके
वह हथेलियों के पर्वत ही थे
हमारे रिश्ते में नमक था भाई
अब हमारे बीच धुँध की एक लंबी सड़क है
आओ भाई!
थोड़ी-सी धूप रखते हैं धुँध की इस सड़क पर
हिला देतें हैं हृदय की मोटी भीत को
अभी इतनी भी लाचार नहीं हुईं है मेरी उँगलियाँ
और ना तुम्हारी कलाई कि
एक धागे के वज़न से मुड़ जाएँ।
०००
औरत को भय
एक औरत को भय है
उन तमाम औरतों से
जो अपने रिक्त स्थानों में रख रही हैं
एक दूसरे को
मंच पर खड़े होने के लिए
वह बटोर रही है पुरुषों को
उसकी पीठ और कंधों पर पितृसत्ता की कुंडली है और भाषा का ढर्रा सामाजिक
वह अडंगों की टेक पर छेड़ती है आलाप
सत्ता पर विराजमान पुरुष फैलाता है
पाश सा अपना कंधा
वह औरत दृढ़ता से भरोसा रखती है अपनी भंगिमाओं पर,
कुचक्र में दक्षता का प्रमाणपत्र बटोरती यह औरत
तमाम नारीवादी विमर्श को धकेलकर
त्रिया चरित्र को बार बार टटोलती है
गाढ़े.अँधेरे में।
गप्पें लड़ाती बेखबर लड़कियाँ
गप्पें लड़ाती बेखबर लड़कियाँ
घर की रसोई को अपने बस्ते में डाल कर ले आई हैं
नोटबुक के पीले चिकने पृष्ठों पर
उन पर उभर आई स्याही पर फैले
गड़बड़ शब्दों से नाता तोड़कर
होंठों पर बरसती शब्दों की रिमझिम बारिश में भी पढ़ लेंगी पानी की विशिष्ट ऊष्मा का मान
घर्र..घर्राती..बदहवास घंटी
पर किसी जोगन की तरह हिलेंगी
और
पीठ सीधी कर बैठ जायेगी साथी लड़कियों के पास..
अभी भी घर लौटने तक का समय है उनके पास
जो छुट्टी के समय गली के अंतिम छोर पर गुलाबी से भूरा हो जाएगा।
बरसों की मशक़्क़त के बाद
वे बरसों की मशक़्क़त के बाद
एक दिन मुँह अँधेरे निकले
खोजने ख़ुद को
कंधे पर एक झोला
झोले में थी
ख़ुर्दबीन,स्मृतियों की पंजिका,
डगमगाता विश्वास,सुरक्षा चक्र से मुक्ति की कामना,चौकस दृष्टि
और
बोनस में बेचारगी
झोले को संभाल,अपने कंधों को झाड़
वे बढ़ गये आगे
एक जगह
ज़हीनों के समूह को सुस्ताते देख
प्रविष्ट हो गये उसमें
झोले से चमत्कार की तरह निकाला अपना सामान
ज़हीन चमत्कृत थे
चूँकि वे सभी कंधें थे
आगे बढ़कर भर दिया
प्रशंसा से उनका झोला
मीठे शब्दों का जादू
प्रशंसा का जादू
ज़हीनों के घुटनों के कोटर में सुरक्षित थे अब वो
और उधर
रचनात्मक संसार के उस्तादों के बीच
एक नई गर्वीली प्रतिभा के विस्फोट की
सुगबुगाहटें होने लगी थी।
०००
उन्हें अपने शरीर पर ध्यान देना होगा
वो तीसरी मंज़िल के फ्लैट पर थे
अपनी बाल्कनी में अक्सर खड़े मिलते
वो वहाँ बैठते कम थे
अक्सर घंटों खड़े ही रहते
मैं ऐसी किसी संभावना पर सोचती
कि वह बाल्कनी से छलांग मार गए तो
क्योंकि वो प्रति इंच के हिसाब से
सड़क से बाल्कनी की दूरी को माप रहे होते
यह मेरा वहम भी हो सकता है
मैं खिड़की के पल्लू को सरका कर
कभी-कभी उन्हें सड़क पर चलते हुए लोगों के सिरों की
गिनती करते हुए पकड़ लेती
तब मेरा वहम और पुख़्ता हो जाता
वो शायद एक दिन छलांग लगा ही देंगे
पर उसके लिए
उन्हें अपने शरीर पर ध्यान देना होगा।
०००
एक खेल चल रहा है
एक खेल चल रहा है
जिसमें मदारी डुगडुगी पर खड़ा नृत्यरत है
दर्शक भावविह्वल
कमाल...!
अद्भुत कलाकार.....
अहा!
प्रशंसनीय शब्दों का रेला मदारी की तरफ बढ़ता जा रहा है...
मदारी अब एक टाँग पर आ गया है
उसकी गति तीव्र हो रही है.....
और जोश आकाश के कंधों पर चढ़ने की तैयारी में
दर्शकों का शोर
दिशाओं की कनपटियों को गर्म कर रहा है...कि
अचानक डुगडुगी टूटकर बिखरती है...
मदारी दर्शकों के पैरों में
भीड़ का मनोविज्ञान
मदारी बख़ूबी जानता है।
०००
सभी चित्र फेसबुक से साभार
०००
परिचय
जन्म-1 फरवरी।सम्प्रति-पी.जी.टी हिंदी केंद्रीय विद्यालय आद्रा ।रचनाएँ-विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ तथा कहानियाँ प्रकाशित.
पता-45,ग्रेटर गंगा, गंगानगर, मेरठ
मो.9411904088
अच्छी कविताएं
जवाब देंहटाएंदीपक जी शुक्रिया
हटाएंबहुत उम्दा कवितायें
जवाब देंहटाएंकैलाश जी शुक्रिया
हटाएंबहुत सुन्दर, संतुलित एवं सारगर्भित कविताएँ!
जवाब देंहटाएंडॉ ऋतु त्यागी को पढ़ते हुए लगता है.. मानो चन्दन वन से होकर लौटा हूँ।
हार्दिक बधाई सहित अशेष अमृतकामनाएँ।
बहुत शुक्रिया
हटाएंमुझे 'आओ भाई !' कविता अच्छी लगी। मुझे बहुत ख़ुशी है की आप हमारी कक्षा अध्यापक रही।
जवाब देंहटाएंअपना नाम बताओ ताकि मुझे याद आ जाए
हटाएंMohd Ovesh. मैंने कंप्यूटर साइंस ली थी तो शायाद आपको नाम न याद आये, लेकिन ग्यारवी कक्षा में आप हमारी हिंदी की टीचर थी।
हटाएंयाद है 2022 की 11 क्लास😊
हटाएंबहुत अच्छी और सहज जीवन की कविताएँ। धन्यवाद बिजूका
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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