05 सितंबर, 2024

कंचन जयसवाल की कहानी

  

कीड़ा

कंचन जयसवाल 



मूर्खता एक प्रकार का कीड़ा है।

 कीड़ा जब एक बार रेंगना शुरू करता है तब वह बस रेंगता ही जाता है , रेंगता ही जाता है, रुकता नहीं है।

     यह रुक भी सकता है मगर तभी जब इस कीड़े ने कुतरना बंद कर दिया हो मगर स्टॉप करना आसान थोड़े ना होता है।

   आदमी के दिमाग में जब एक बार यह कीड़ा घुस जाता है तब वह उसी तरफ बढ़ता है जिस तरफ वह कीड़ा बढ़ता है।

 मशहूर लेखक कॉलिन हेनरी विल्सन कहते हैं कि अपने भीतर की मूर्खता से बचे बगैर आप काबिल इंसान किसी कीमत पर नहीं हो सकते। आपकी मूर्खता सोच पर जल्दी हावी हो जाती है और आपके भीतर की बुद्धिमानी को जड़ से उखाड़ फेंकती है।

हुआ यूं की एक प्रोफेसर,अनिल साहब जो इसी कीड़े का शिकार हो गए और लगभग 52 बरस की उम्र में वह करने चले जो 25 की उम्र में किया जाता है। यूं भी हर आसानी से मिलने वाली चीज में कितने कॉम्प्लिकेशंस हो सकते हैं आसानी से कहां पता चलता है। हालिया उन्हें रोमांस हो चला था ,हमेशा की तरह और वे डेट पर जाने वाले थे अपनी लगभग युवा अधेड़ प्रेमिका के साथ ।गए भी वह डेट पर मगर ट्यूनिंग जमी नहीं और प्रेमिका ने अपनी भरपूर स्मार्टनेस का परिचय देते हुए उन्हें ओवरडेटेड करार दिया। प्रोफेसर साहब ने यद्यपि अपनी ओर से काफी कोशिश की थी और डेट का प्रोग्राम आसानी से तैयार भी नहीं हुआ था मगर प्लेटफार्म मेकिंग और परफेक्ट परफॉर्मेंस के बीच में जी क्लेरिटी का अभाव होता है वही सामने आ गया और एक डेट शानदार डेट बनते-बनते रह गई ।

  यह यकीनन नर्वसनेस का असर होगा ना कि उनकी उम्र का मगर मजाक किरकिरा होना था सो हो गया। उन्होंने बड़े प्यार से प्रेमिका को पिक किया, खूबसूरत मौसम था ,खूब बारिश हो रही थी, गोल घुमावदार सड़क पर गाड़ी गोल- गोल देर तक घूमती रही ।बैठने के 10 मिनट बाद ही प्रेमिका के पति का फोन आ गया। उसने अपने अधे़ड़ प्रेमी को उंगली से चुप रहने का इशारा किया और पति से प्यार भरी बातें की।

   बस इसी पल प्रेमिका को अपने स्त्री धर्म का भान हो गया ।

यद्यपि  अधेड़ प्रेमी का भी फोन बजा, उसने अपनी पत्नी से बातें की और उसे एक फोन किस देकर संतुष्ट किया ।

  पर सब कुछ मैकेनिकल था ।

पर क्या सब कुछ सिर्फ मैकेनिकल होता है।

 औरत के लिए वक्त वहीं रुक जाता है जहां वह प्यार पाती है ,क्षण
भर के लिए ही झूठा ही सही ।पुरुष के लिए कोई वक्त एक जैसा नहीं होता, वह कभी नहीं रुकता, बहुत ज्यादा प्यार पाने के बाद और भी ज्यादा प्यार पाने की तलब पुरुष के भीतर लगातार बनी रहती है। इस तरह बाहर बारिश होती रही भीतर दोनों ही के दिल में सीलन बढ़ती गई।कारवां चलता रहा।

  चित्र:-गूगल से साभार 

तय किए गए जगह पर पहुंचने के बाद भी सब कुछ उन दोनों के बीच बड़ा फॉर्मल सा रहा ।कुछ खाना, कॉफी पीना और उस दौरान बातें करना ,एक दूसरे के सामने बैठकर अपने दिल को थोड़ा खोलना। कभी-कभी या फिर एक उम्र के बाद चीज इतनी क्लियर हो चुकी होती हैं कि सामने आईने में दिखती शक्ल के पार का भी सब कुछ साफ-साफ दिखता है। उम्र के तजुर्बे से और हासिल भी क्या होता है।

 चीजों के सूत्र सही से पकड़ में नहीं आ रहे थे ।बारिश थोड़ी देर के लिए थमी थी। रेस्टोरेंट के बाहर की भीगी घास पर हंस का एक जोड़ा टहल रहा था ,अपने भीगी परों को सुखाने के लिए। पास ही एक छोटी नदी  बहती दिख रही थी ।रेस्त्रां के भीतर समय बीत रहा था ।लगभग सारी टेबल खाली पड़ी थी। मगर सन्नाटा नहीं था। पंकज उधास की गजल हवा में तैर रही थी। वैसे भी सन्नाटे ठीक नहीं होते अक्सर ।आसपास चहल कदमी होती रहनी चाहिए और कुछ नहीं तो आपके स्मार्टफोन की मैसेज रिंगटोन बजती रहनी चाहिए ।आवाज  अपने किस्म से एक अलग तरह का माहौल बनाती है।

 प्रोफेसर साहब ने काफी जोर आजमाइश की अपनी अधेड़ युवा प्रेमिका को इंप्रेस करने की ,उन्होंने अपने युवावस्था के जोश की कहानी बताई, असफल प्रेमी होने का सच भी उजागर किया ,यह भी बताया कि कैसे उस दौर के युवा लड़कियों के सामने नर्वस हो जाया करते थे, वह आज के युवाओं की तरह स्मार्ट और दिल फरेब नहीं हो सकते थे, यह भी बता कर इंप्रेस करना चाहा कि इस समय के सबसे प्रभावशाली साहित्यकार के साथ वह काम कर चुके हैं, यह भी बतलाया कि इस समय का सबसे सफल फिल्मकार किसी जमाने में उसका दोस्त था जिसकी बनाई सुपरहिट फिल्में आज 200 करोड़ की कमाई कर रही है ,उसने अपने ढीले वैवाहिक जीवन के बारे में भी बताया, यह भी कहा कि वह संतुष्ट नहीं है अपनी पत्नी से ।

    असंतुष्टि की हरूफबयानी एक विशेष प्रकार का डिलेमा पैदा करती है जो अक्सर अब तो यकीनन चीजों को स्पॉइल कर देती है, जैसे कि प्रोफेसर साहब का रोमांस छितर- बितर गया। युवा प्रेमिका कहीं से भी प्रोफेसर साहब से मुतस्सिर नहीं हो रही थी ।एक्चुअली उसका मेंटल लेवल काफी हाई था और मजे की बात यह भी थी कि अपने वैवाहिक जीवन से वह पूरी तरह सेटिस्फाई थी।जिस तरह वह यह जानती थी कि नरीमन प्वाइंट मुंबई में है इसी तरह वह यह भी भली भांति जानती थी कि जी पॉइंट कहां है। जबकि लंबे वैवाहिक जीवन के बाद भी प्रोफेसर साहब को चरम सुख के लिए अपने जी पॉइंट की तलाश थी।

  दूसरी मगर सबसे मजेदार बात यह भी थी की प्रेमिका एक औरत थी और स्त्रियों का सेटिस्फाइंग लेवल एक वाजिब समय के बाद जी पॉइंट से थोड़ा इधर-उधर हो जाता है। उसके चरम सुख के अनेकों नए और एक्सप्लोरिंग विंडो ओपन हो जाते हैं ।वह कभी-कभी अपनी हथेलियों में खिलते सूरजमुखी के हिलने- झूमने से भी असीम सुख प्राप्त कर लेती है ।यह कतई  जरूरी नहीं होता है कि सारा सुख बस दो टांगों के बीच ही मिल जाए।

  फिर हुआ यूं कि बारिश फिर से होने लगी, हरी घास पर पंखों को सूखाते हंस के जोड़े फिर भीगने लगे और एक दूसरे के पीछे इधर-उधर भागने लगे ,पीछे बहती नदी में बारिश की गिरती बूंदों ने हलचल पैदा कर दी।  दोनों प्रेमी  फिर से गाड़ी में बैठ गए और वापस अपने घोसले की तरफ भागने लगे ।स्वादिष्ट काफी ,मजेदार बारिश, हल्की-फुल्की बातों से बात बनती ना देखकर प्रोफेसर साहब ने मूर्खता की कुछ और हरकतें की परंतु वह भी नाकामयाब रही, जैसे कि प्रेमिका की हथेली को अपने हाथों में लेना, बिना मतलब उसे चूमना, उसकी तारीफ करना, उसे खूब लाड से निहारना ।

  मगर असल में इन हरकतों से ज्यादा प्रेमिका का ध्यान बस बारिश पर था जो प्रोफेसर साहब के हिसाब से रोमांस का परफेक्ट माहौल बना रही थी जबकि बारिश प्रेमिका के भीतर एक नामालूम सी सीलन पैदा कर रही थी ।

  दोनों की एल्टीट्यूड दो अलग-अलग पोल पर बेस्ड थे, उनमें अट्रैक्शन तो था मगर एक डिस्टेंस लेवल पर। पास तो वे हो भी नहीं सकते थे ।यह एक बेकार और नाकामयाब कोशिश ही होती।

  प्रेमिका का ध्यान शीशे से बाहर गिर रही बारिश और रास्ते में पढ़ने वाली सजीव चीजों पर थी जो की मोहब्बत से ज्यादा असरदार थी, हाईवे,ओवरब्रिज ,कतार से चल रही ट्रकें बाइक पर चलने वाले बेफिक्र युवा,   एक युवा जोड़ा जो बाइक पर भीगती बारिश में एक दूसरे से चिपके हुए थे, अपने परिवार को सावधानीपूर्वक ले जाता हुआ एक गृहस्थ और बारिश से भीगी धरती पर लौटता हुआ नग्न विक्षिप्त। धुला हुआ आसमान, शांत खड़े पेड़। इन दृश्यों को देखने के बाद इश्क का रस बेमतलब लगने लगता है। जीवन निरंतर है, चलता रहता है ,लोग दृश्य और मौसम की तरह बस आते जाते रहते हैं ।

 आप किसी फ्रेम में कितने समय तक टिकते हैं यह यकीनन आपके हार्डकोर पर डिपेंड करता है। शादीशुदा जोड़ों के ऊपर आप शर्त नहीं लगा सकते कि वह कब तक एक दूसरे के साथ रहने वाले हैं। सबसे ज्यादा असंतोष के साथ खुश रहने का दिखावा बस इन्हीं वैवाहिक संबंधों में ही होता है।

 यद्यपि पसंदीदा हीरो पूछने पर जब प्रेमिका ने सलमान खान का नाम लिया तो प्रोफ़ेसर साहब बुझ से गए। इमरान हाशमी की प्रासंगिकता क्यों नहीं है जबकि वह सीरियल किसर है वे यही सोचते रह गए। प्रेमिका की बेफिक्र खुशनुमा हंसी भी उनके बुझते दिल को रोशन नहीं कर पाई ।

   प्यार ताकत में है प्रोफेसर साहब बस यही समझ सके, ताकत संभलने में है यह प्रेमिका की समझ थी। किसी रिश्ते में खुद को शामिल करने से बेहतर वापस लौट आना होता है ।मिलना, मिलकर एक दूसरे को समझना और इस मुलाकात को खूबसूरत शाम का नाम देकर अपने घोंसले में वापस आ जाना। यूं तो कुछ अजीब सा लगता है पर प्रोफेसर साहब की प्रेमिका ने यही उचित समझा ।रिश्ते समय मांगते हैं, समय खुद को ऑब्जर्व करने के लिए और बदलाव को समझने के लिए भी काफी जरूरी होता है। ज्यादा समय नहीं हुआ था अनिल और आराधना को एक दूसरे को जाने हुए जबकि आराधना एक जीवन अपने पति के साथ भी जी रही थी।

  हेनरी विल्सन आइंस्टीन की तरह बनना चाहते थे लेकिन आर्थिक जरूरतों के लिए उन्हें एक कपड़े की फैक्ट्री में काम करना पड़ा ।एक दिन निराश होकर हेनरी हाइड्रोसाइनिक एसिड पीने ही जा रहे थे कि उनके मन में कुछ कौंध सा गया। उन्हें अपने भीतर दो हेनरी दिखा, एक मूर्ख और ग्रंथियां का शिकार हेनरी और दूसरा विचारक और वास्तविक हेनरी ।उन्होंने अपनी आत्मकथा में बाद में लिखा उस दिन मूर्ख हेनरी ने दोनों को मार दिया होता। अब यहां इस मुलाकात में मूर्ख कौन है आखिरकार यह तय करना थोड़ा कठिन हो गया       

    प्रोफेसर साहब ने सुरक्षित मोड़ आने पर युवा प्रेमिका को ड्रॉप किया ,उसे असफल मुस्कुराहट के साथ हाथ हिला कर विदा किया।

युवा प्रेमिका हंसिनी की भांति अपने भीगे परों को सुखाते हुए अल्हड़ मदमस्त  चाल से, हरी भीगी नर्म घास को पार करते हुए अपने घोसले की ओर बढ़ चली, जहां दो सूरजमुखी के फूल खिले हुए थे और जिनकी नरम मुस्कान प्रेमिका ने अपने आने वाले दिनों के सुख के लिए सहेज कर रख ली थी। 

कंचन जयसवाल 


12 टिप्‍पणियां:

  1. कंचन जायसवाल की कहानी आद्योपांत पढ़ गया जिस मकसद से यह कहानी लिखी है कंचन ने। वह उसमें कामयाब है। एक कामातुर अधेड़ उम्र के प्रोफेसर की कहानी जो वास्तव में ठीक से वह युवा औरत उसकी प्रेमिका भी नहीं बन पाती है, उस लेकर डेट में निकल पड़ते हैं। जब तक मन और हृदय प्यार से भरे न हों मोर्चा फतह नहीं किया जा सकता। मूर्ख तो वह औरत भी है जो अधूरी ख्वाहिशें पाल लेती है। और उस भी भी मात खानी पड़ती है।

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    1. शुक्रिया। कहानी आप तक पहुंची है।

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  2. अच्छी कहानी
    है

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  3. कंचनजी की एक यौनकुंठित प्रोफेसर की कहानी ‘कीड़ा’ को पढ़ना एक बेहद दिलचस्प पाठकीय अनुभव है। इस कहानी को पढ़ते हुए बरबस दूधनाथ सिंह व उदय प्रकाश की कहानीकला की याद आयी जिसमें वे ऐसे मनोरुग्ण चरित्रों को बड़ी ही जीवंतता के साथ पूरी समग्रता में एक आलोचकीय बेधक दृष्टि के साथ सामने रख देते हैं। दूधनाथजी की कहानियों में जो ‘लोकेल’ है, पात्र की जो जातीय स्थिति है और जो सूक्ष्म सघन विवरण हैं, वे चरित्रों को समझने और सामाजिक पदानुक्रम के वर्चस्व को समझने की दृष्टि से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। देशकाल या स्थानीयता की स्पष्टता के बावजूद वह अपनी कहानियों में इन सच्चाइयों को, वह वैयक्तिक हो या सामाजिक, अपनी व्यंजनात्मकता से एक बड़ा आयाम दे देते हैं। कंचनजी यदि इस ‘लोकेल’ को चरित्र की बुनावट के साथ कुछ और अधिक स्पष्टता के साथ उभार पातीं तो निश्चित रूप से यह समकालीन हिन्दी कथा लेखन की एक बड़ी उपलब्धि होती। बावजूद इसके उन्होंने अपनी कहानी में एक प्रोफेसर की यौनरुग्ण मनःस्थिति को जिस तरह से उभारा है, वह चरित्र को विकसित करने के उनके लेखकीय कौशल को बखूबी सामने रखता है। अपनी संश्लिष्टता में यह कहानी कुछ और अर्थ-दिशाओं की ओर भी बढ़ती है। यह जितना प्रोफेसर के भीतर की दमित कुंठाओं को खोलती है, उतना ही उसकी युवा विवाहित प्रेमिका की उद्दाम यौन-आकांक्षा की प्रवृत्ति को भी। प्रोफेसर की शारीरिक यौन-अक्षमता की ओर भी इस कहानी में संकेत है, जब कुछ निर्णायक तौर पर न कर पाने की लाचारी में वह बेतरह उसके हाथों को चूमता है और हसरत भरी नज़रों से देखता रहता है - ‘गो हाथ में जुम्बिश नहीं’ की तर्ज़ पर। इस बिंदु पर यह कहानी उसकी युवा प्रेमिका की खीझ और हताशा में बदल गयी है जो अपनी विवरणात्मकता में आराधना के दाम्पत्य जीवन के भ्रमपूर्ण दावों और अधेड़ प्रोफ़ेसर की यौन-अक्षमता की बेबसी के अंतर्विरोधों में उलझी हुई है।
    प्रोफेसर अनिल कुमार और आराधना हिन्दी कहानी के अमर चरित्र सिद्ध होंगे, इसमें संशय नहीं। कंचनजी को बधाई। वह ऐसे ही शानदार कहानियाँ लिखती रहें।

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  4. कंचनजी की इस कहानी को पढ़ते हुए मनोहरश्याम जोशी के उपन्यास ‘हमज़ाद’ की याद आयी जिसमें टी के नारकियानी नाम का चरित्र जब अपने शरीर से लाचार हो जाता है तो वह अपनी जवान प्रेमिका का जबान-ए-मुबाशरत करके अपनी कुंठा को शांत करता है। एक दिन उसकी प्रेमिका अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए जबान-ए-मुबाशरत के दौरान उसे अपनी दोनों जाँघों के बीच दबाकर मार देती है। अपनी पत्नी से असंतुष्ट सामाजिक रूप से मरे हुए जिस प्रोफेसर का चित्रण इस कहानी में है, वह कम मार्मिक नहीं।
    बेहद प्रभावशाली कहानी!!

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    1. यह शायद संयोग ही है कि कंचन जायसवाल ने 5 सितंबर यानी शिक्षक दिवस को यह कहानी यहाँ प्रकाशित की है। एक प्रोफेसर को सम्मानित करने के लिए इससे मक़बूल दिन भला और क्या हो सकता था? हमज़ाद के टोपनदास खिल्लूराम नारकियानी और तखतराम तो अद्भुत चरित्र हैं। जोशीजी ने जब हमज़ाद लिखा था तो कई आलोचकों ने जोशीजी से कहा था कि उन्हें यह नहीं लिखना चाहिए था। इतना असहनीय यथार्थ था वह! इसी तर्ज पर कोई कंचन जायसवाल से भी यह सिंहगर्जना कर सकता है कि उन्हें एक प्रोफेसर को केंद्र में रखकर यह नहीं लिखना चाहिए था। जोशीजी ने साबित किया कि वह यथार्थ की पहचान में सही थे।समय ही कंचन को भी सही साबित करेगा।साहित्य की दुनिया सच को पहचानने और उसे बेबाक़ी से सामने रखने में पहले से ज़्यादा हुनरमंद हुई है। कंचन ने अद्भुत लिखा है!!

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  5. यह कहानी बड़ी बेबाकी से शिक्षा जैसे पवित्र पेशे में घुसे भेड़िए की बहुत ऑथेंटिक तरीके से पहचान की गई और उन्हें बेनकाब किया गया है।कहानी पढ़े लिखे लोगों खासतौर से मनुष्यता के पक्ष में गवाही देने के लिए उतारू लोगों की बहुत जिम्मेदारी बखिया उधेड़ती है और इस बात को रेखांकित करती है कि लंबी चौड़ी फेंकने से कोई मनुष्य नहीं होता उसके लिए हमें अपने शब्दों के साथ खड़ा रहना होगा। अनिल जैसे लोग हर तरफ भरे पड़े हैं।यह कहानी प्रच्छन्न रूप से यह संदेश भी देती है कि महिलाओं और लड़कियों को स्मार्ट रहना होगा तभी वे ऐसे बहेलियों से खुद को बचा सकती हैं। लेखिका को बहुत बहुत बधाई ।

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  6. उम्दा कहानी। एक अधेड़ हो चुका साहित्य का प्रोफेसर कैसे नवयुवती को अपने जाल में फँसाने के लिए जाल फेंकता है, शातिर रणनीतियाँ बनाता है और शतरंज की चालें चलता है, इसका कहानी में दिलचस्प चित्रण है। यह आजकल की सभ्यता के नए सुसंस्कृत बलात्कारी समूह हैं जो रोज शिकार के लिए बाहर घूमते रहते हैं। यह संगठन बनाते हैं, नयी लेखिकाओं व उनकी किताबों को लांच करते हैं, उन पर समीक्षाएँ लिखते हैं, उनकी कविताओं का परिमार्जन करते हैं और फिर एक दिन अपनी वैवाहिक असंतुष्टि का हवाला देकर यौनप्रस्ताव सामने रख देते हैं। यह कहानी ऐसे ही सफेदपोश लोगों की पहचान करती है और हमारे आज के समय को उघाड़ कर रख देती है। कितना जीवंत चरित्र लेखिका ने खड़ा किया है!

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  7. Esee logon ka mental r physical checkup kerakar hospitalised ker dena chahiye

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  8. जवानी की अतृप्त इच्छाओं को बुढ़ापे में पाने अदम्य चाह एैसे प्रोफ़ेसरों से इसी तरह के निर्लज्ज और अनैतिक कृत्य करवाती ही रहती है। आपने बढ़िया उकेरा है । बधाई।

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