19 सितंबर, 2024

बुद्धिलाल पाल की कविताएं

 

 चमगादड़

बुद्धि लाल पाल

राजा नंगा ही नहीं होता

जनता के सिर पर

पेशाब करता हुआ भी होता है


नंगा अभद्र कूद कूदकर

अपना लिंग दिखाता 

उसी की पूजा करवाता हुआ


जनता पर शासन करता 

जनता के दिल में रहता

जनता की दहशत में होता


सिर पर चमगादड़ ताज 

जनता का रक्षक दाता  

खुदा ईश्वर हो पुजवाता


कभी किसी गुफा में

कभी किसी,समुद्र,मठ

मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा में 

ध्यान लगाकर  बैठता

०००



चित्र निज़ार अल बद्र 







कब्जा


स्त्री बहुत सदियों से

मनुष्य श्रेणी में होना चाही 

उसे नहीं होने दिया गया

नहीं माना गया मनुष्य 


कि उसमें भी 

होती है स्वतंत्र चेता 

कि उसके भी होते हैं सपने 

उसकी भी होती है इच्छाएं 

उसकी चेता को सपनों को

नकारा गया,की गई अनदेखी


न न विध से पालतू बनाया गया 

कब्जा किया गया उसकी सांसों पर 

पिछलग्गू बनाया गया पुरुषों के 

आश्रित बनाया गया पशु की तरह 


इतिहास में, वर्तमान में 

युद्ध का खेत ही बनाई गई

वपरा गया उसे पशु की ही तरह 

रखी गई मर्दों की संपत्ति जागीर के रूप में

०००


 कविता के लिए


कविता क्यों 

लिखते हैं लोग। 

खुद के लिए।

खुद को महान 

बताने के लिए। 

दुनियां को भक्त 

बनाने के लिए। 

कुर्सी के लिए। 

सम्मान के लिए। 

लाभ में व्यवस्था में 

हिस्सेदारी के लिए। 

किसी को पढ़वाकर 

यही करने के लिए।

कविता के लिए

कितने लोग कविता लिखते हैं ?

०००

कवि 










बुद्धिलाल पाल , MIG -562 , न्यू बोरसी , दुर्ग ( छ.ग.)

पिन 491001 माेबा 78695 02334 ,9425568322

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