tag:blogger.com,1999:blog-9176111020869779708.post1050032390386431535..comments2024-03-01T14:11:09.785+05:30Comments on बिजूका: बिजूका http://www.blogger.com/profile/10014371426239901036noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-9176111020869779708.post-58494163176780168042018-08-02T17:38:26.174+05:302018-08-02T17:38:26.174+05:30जी प्रज्ञा जी जो भी करते हैं या करना चाहते हैं वह ...जी प्रज्ञा जी जो भी करते हैं या करना चाहते हैं वह पहले हमारे भीतर घटता है। चाहे वह प्रेम हो, नफ़रत हो या कोई रचना। इसलिए उसके होने का कारण भी हमारे भीतर ही छुपा या दबा रहता है।विवेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/01374326210817003172noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9176111020869779708.post-20177064233877253632018-08-02T17:36:21.767+05:302018-08-02T17:36:21.767+05:30जी बिलकुल चितरंजन जी।जी बिलकुल चितरंजन जी।विवेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/01374326210817003172noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9176111020869779708.post-14367067950819049202018-08-01T22:09:41.316+05:302018-08-01T22:09:41.316+05:30Sabhi Kahanikaron kee kahani hai Vivek ka kathya. ...Sabhi Kahanikaron kee kahani hai Vivek ka kathya. Riktta ko bharne ki kozish hai - kahani.6Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06742554462607398456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9176111020869779708.post-58889383543797745792018-08-01T20:39:40.284+05:302018-08-01T20:39:40.284+05:30 विवेक मिश्र मेरे प्रिय कथाकार हैं इसका मजबूत कारण... विवेक मिश्र मेरे प्रिय कथाकार हैं इसका मजबूत कारण है,इनकी संवेदना की तीव्रता अनुभूत लगती है यही बात किसी को भी किसी रचना या यहां तक कि रचनाकार से जोड़ती है।जिस रिक्तता की बात विवेक जी ने की है वह हर व्यक्ति के भीतर मौजूद है तभी तो खाया अघाया भी बेचैन है। कथाकार उस रिक्ति को शब्द देकर उसे प्रत्यक्ष कर देता है और पाठक उसे अनुभूत मानकर जीता है। प्रज्ञा पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/03650185899194059577noreply@blogger.com