SABHAR
(बीती 22 जुलाई को बनारस
हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रीडर और देवीशंकर अवस्थी सम्मान से पुरस्कृत
आलोचक डॉ. कृष्णमोहन सिंह ने अपनी पत्नी की सरेराह सबके सामने अपने बेटे के साथ मिलकर
बर्बर पिटाई की और अपने घर से धक्केे मारकर उन्हें बाहर निकाल दिया। सिंह और उनकी
पत्नी के बीच लंबे समय से पारिवारिक विवाद चल रहा है और तलाक का मामला न्यायाधीन
है। इस विवाद के अतीत और कानूनी जटिलताओं को अगर एक तरफ रखें, तब भी एक पुरुष का एक
स्त्री को इस तरह मारना अपने आप में बेहद शर्मनाक और निंदनीय है। हिंदी के कुछ नौजवान
चेहरों ने अपने-अपने स्तर पर प्रतिक्रिया दी है और कथाकार समूह ने एक अनौपचारिक निंदा
बयान भी जारी किया है, लेकिन अब तक लेखक संगठनों या स्थापित लेखकों अथवा विश्वविद्यालय
के शिक्षक समुदाय की ओर से इस मामले पर कोई बयान नहीं आया है। - मॉडरेटर)
हम हिंसा का प्रतिरोध करते हैं
हम इक्कीसवीं सदी के तकनीकि युक्त अत्याधुनिक समय में जी रहे हैं लेकिन लगता
है जैसे सदियों पूर्व की तरह आज भी, स्त्री को सामाजिक रूप से इंसान समझने या इंसानी बराबरी में देखना तक गवारा
नहीं है । स्त्री के लिए समानाधिकार और न्याय आज भी किसी अनसुलझी पहेली की तरह है
तब आधुनिकीकरण की बातें सुनना या कहना ठीक "दिल बहलाने को ग़ालिब ख़याल अच्छा
है" की तरह ही लगता है। स्त्रियों के मानसिक, शारीरिक,और
दैहिक उत्पीड़न की ख़बरें सुनने या पढ़ने से शायद ही कोई व्यक्ति या वक्त अछूता रहता
हो।
तभी आलोचक कृष्ण मोहन द्वारा अपनी पत्नी के रूप में एक स्त्री के साथ किये गए
अमानवीय और हिंसा की घटना को भी इससे इतर नहीं देखा जा सकता। पति-पत्नी या
स्त्री-पुरुष के बीच वैचारिक मतभेद, आंशिक विवाद या बहस एक सहज
स्वाभाविक इंसानी प्रक्रिया है लेकिन उसकी परिणति का स्त्री हिंसा तक पहुंचना बेहद
निंदनीय और शर्मनाक है। यहाँ हमारा काम किरण जी और कृष्ण मोहन के बीच हुए विवाद पर
चर्चा करके किसी भी व्यक्ति के निजी और व्यक्तिगत जीवन में दखल देने का नहीं है और
न ही यह जांचने और फैसला करने का कि किसकी कितनी और क्या ग़लती थी । यह जानने, जांचने और फैसला सुनाने का काम क़ानून का है, हमारा नहीं।
यहाँ हमारा मकसद उस क्रूरतम अमानवीय प्रवृति की भर्त्सना करना है जो पुरुष द्वारा की जाने वाली स्त्री हिंसा के रूप में समाज में देखने को मिलती रही है। देखने के लिए भले ही यह महज़ शारीरिक हिंसा हो किन्तु गहरे और बड़े संदर्भों में ऐसे सभी कृत्य, डरा धमका कर, स्त्री को सामाजिक समानाधिकार और न्याय से वंचित रखने की परोक्ष कोशिश हैं। इसलिए भी न केवल हमें बल्कि दुनिया के हर जिम्मेदार व संवेदनशील व्यक्ति को ऐसी प्रवृत्तियों और अमानवीय कृत्यों की न केवल निंदा करनी चाहिए बल्कि इनके खिलाफ आवाज़ उठाकर खुद के जिन्दा होने का सुबूत भी देना चाहिए।
किरण जी के साथ हुई यह समाज की पहली घटना नहीं है। ऐसी घटनाएं लगभग हर रोज ही
असंख्य शिक्षित-अशिक्षित स्त्रियों के साथ घरों में या सार्वजनिक जगहों पर घटित
होती हैं किन्तु कतिपय कारणों से प्रकाश में नहीं आ पातीं। हालिया घटना के वस्तुगत
यह वक्तव्य उन तमाम पीड़ित महिलाओं के पक्ष में हमारी आवाज़ है। तब ज़ाहिर है यहाँ
हमारा उद्देश्य कृष्ण मोहन को सार्वजनिक रूप से अपमानित करना या व्यक्तिगत रूप से
विरोध करना नहीं है । यह विरोध उस प्रवृति से है जो कृष्ण मोहन जी ने पत्नी किरण
जी के लिए अपनाई जो सामाजिक रूप से अशोभनीय है।
जबकि हर विवाद और समस्या का समाधान आपसी संवाद और न्यायायिक रूप से भारतीय
संविधान में अंतर्निहित है। बावजूद इसके महिलाओं के प्रति होने वाले ऐसे घिनौने और
अमानवीय कृत्यों का हम सामूहिक रूप से एक स्वर में विरोध करते हैं तथा किरण जी और
अनेक ऐसी पीड़ित स्त्रियों के लिए न्यायिक इन्साफ़ और सामाजिक सम्मान की मांग करते
हैं।
वेदना के साथ
कथाकार समूह
सत्यनारायण पटेल, अमिताभ राय, एम.हनीफ. मदार, सूरज प्रकाश, गीता श्री, तेजेन्दर शर्मा,कविता, सुभाष चन्द कुशवाह, आकांक्षा पारे काशिव, जयश्री राय, विभा रानी, मनोज कुलकर्णी,बहादुर पटेल, चरण सिंह पथिक, भागचन्द गुर्जर, संदीप मील, कैलाश वानखेड़े, आशीष मेहता, संजय वर्मा, प्रेरणा पांडे, विपिन चौधरी, योगेन्द्र आहुजा, कात्यायनी, सत्यम, जीवेश चौबे, तरुण भटनागर, यामिनि सोनवने, अनिता चौधरी, ममता सिंह, युनूस ख़ान, हिमांशु पंड्या, रोहिणी जी, राकेश बिहारी, प्रज्ञा पांडेय, vaibhav singh, Hare Prakash upadhyay
http://www.junputh.com/2014/07/blog-post_28.html
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें