कभी-कभार पांच
अश्वेत कवयित्रियाँ और उनकी चेतनासंपन्न अभिव्यक्तिर्याँ
अनुवाद: विपिन चौधरी
मैरी वेस्टन फोर्डम
(1844-1905)
मैरी वेस्टन फोर्डम का जन्म साउथ कैरोलिना, अमेरिका में हुआ. उनके जीवन के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती. सिविल वार के समय निडरता से आपने अपना स्कूल चलाया और रिकंस्ट्रक्शन के समय भी उन्होंने साउथ कैरोलिना में शिक्षिका की नौकरी की. उनकी कविताओं में पारिवारिक ढांचा और अकाल-मृत्यु ग्रस्त बच्चों का बखूबी वर्णन मिलता है. उनका एकमात्र कविता-संग्रह ‘मैगनोलिया लीव्स’ 1897 में प्रकाशित हुआ. 1904 में चार्ल्सटन में उनका देहावसान हुआ.
भावी स्त्री
केवल देखो , यह है 'पिछले सवा छह का प्रेम
और यहां तक कि वह आंच भी नहीं पकड़ पाया
खैर, आप जानते हैं कि मुझे होना चाहिए दफ्तर में
लेकिन, हमेशा की तरह देर हो जाएगी मुझे नाश्ते में
अब जल्दी करो और जगाओ बच्चों को
और उन्हें तैयार करों तुरंत
'बेचारे मेरे लाड़ले ' मुझे पता है कि वे पड़ जाएंगे सुस्त
मेरे प्यारे, कितना सुस्त हो व्यर्थ समय गंवाने वाले इंसान
लेना, मुंह की छोटी पसलियों के नीचे से गोमांस, बढ़िया और रसेवाला
टोस्ट भूरे और मक्खन भी लेना दुरुस्त
और सुनिश्चित करों कि आप कॉफी को भी कर सको व्यवस्थित
देखना कि चांदी का बर्तन भी हो स्वच्छ
जब सब तैयार हो जाए, तेज़ी से बड़ों और आवाज़ दो मुझे
आठ बजे, जाती हूँ मैं दफ्तर
कदाचित गरीबी या निर्दयता से बढ़ जाते हैं हम आगे
जानते हो तुम
''इस उपजीविका के लिए
स्टॉक नीचे गिर सकता है,
मेरे बॉन्ड अंकित मूल्य से गिर सकते हैं नीचे
तो निश्चित रूप से, मैं शायद ही कभी छोड़ सकती हूँ तुम्हें
एक गिल्ट या सिंगार के लिए
सब तैयार है ? अब, जबकि मैं बैठ गयी हूँ खाने
बस मेरी कार को ले आओ मेरे दरवाजे पर
फिर सफा करो बर्तन और ध्यान दो अब
चार बजे तुरंत कर लो भोजन
हमारा महिला सम्मेलन है,आज रात
और मालूम है तुम्हें
मैं पहली वक्ता हूँ
पुरुष ने हमें एकांत के अधिकृत कर दिया है
दुनिया के सामने मगर चिल्लाते हैं वे ,
'ऐसा ही है।'
तो 'खुदा हाफ़िज़' - द्वार पर दस्तक होने पर, मेरे प्रिय
देखो तुम दरवाजा खोलने से पहले
अजी ! किसी पुरुष बावर्ची के बिना
एक सभ्य महिला का अस्तित्व कैसा
ओलिविया वार्ड बुश-बैंक
(1869-1944)
ओलिविया वार्ड बुश-बैंक का जन्म 23 मई, 1869 को साग हार्बर, लॉन्ग आइलैंड, न्यूयॉर्क में हुआ.वार्ड ने लेखन के तौर पर कविता और गद्य लेखन को अपनाया। वह कलर्ड अमेरिकी मैगज़ीन में नियमित तौर पर लिखती रही, इसके साथ ही उन्होंने 'न्यू रोशेल;, 'न्यूयॉर्क पब्लिकेशन', 'वेस्टचेस्टर रिकॉर्ड-कूरियर' के लिए भी नियमित तौर पर स्तंभ लिखे। 1930 के दशक में उन्होंने एक कला स्तंभ लिखा और वेस्टचेस्टर रिकॉर्ड-कूरियर के लिए कला संपादक के रूप में कार्य किया।
वार्ड ने कई नाटक और लघु कथाएं लिखीं, जिनमें से अधिकांश कभी प्रकाशित नहीं हुईं, क्योंकि उन्होंने इनमें अंतरजातीय संस्कृति के मुद्दों को व्यक्त किया था. 1944 में ओलिविया वार्ड बुश बैंक की मृत्यु हुई।
खेद
कहा मैंने एक दिन एक बेपरवाह शब्द
एक प्रियजन ने सुना और पधार गया दूर
रोई मैं "कर दो मुझे माफ़, हो गई थी मैं विवेकशून्य
नहीं पहुँचाऊँगी कभी चोट मैं या नहीं होऊंगी कभी निर्दयी"
लंबे समय से कर रही थी मैं इंतजार
अपने प्रियजन को दोबारा मोह लेना व्यर्थ हुआ
देर हो चुकी है बहुत
आह ! रोने और करने के लिए विनती
मौत का हुआ आगमन; आयी वह लेने मेरे प्रियजन को
उस दशा में, कैसा है मेरा पीड़ादायक भाग्य
कोई भी भाषा नहीं कर सकती मेरा दु:ख परिभाषित
गहरे अफसोस के आँसू बात को नहीं सकते बदल
बोलै था उस दिन मैंने जो एक विचारशून्य शब्द
आवाज
तिरोहित होते दिन और वर्ष में
खड़ी हूँ मैं भूतिया प्रेतों से घिरे मैदान पर
और कदापि इसकी उदासीन बर्बादी के ऊपर
कुछ अजीब, उदास आवाज सुनती हूँ मैं
छायादार अतीत से बाहर की कुछ ;
और एक पुकार पर पछताती हूँ मैं
और जानती हूँ मैं हैं ये गलत खर्च किया हुआ समय
किसकी याददाश्त अभी तक है ठहरी हुई
फिर शिकस्त बोलती है कडवे स्वर और दुःख में
और इसकी सभी संतापों, ग्लानि के साथ बोलती है
जिसके हैं गहरे और बेरहम डंक
मेरे दुखदाई विचार होते हैं उद्घाटित
इस ढब से करती हैं ये आवाजें मुझसे बातें
और उड़ जाती हैं अतीत की छाया सी
मेरी आत्मा लड़ती है निराशा में
और बहते हैं मोटे और घने आँसू
लेकिन जब, मैं खड़ी हूँ
भविष्य के दिनों और सालों के व्यापक इलाके में
और सूर्य के प्रकाश से भरी समतल भूमि पर
सुनती हूँ मैं एक मीठी आवाज़
अंधेरे अतीत से मुक्ति पाने
और वह याददाश्त कुचलने का देती हैं आदेश
खुश हो सुनूंगी मैं
और मानूंगी आज्ञा
सही समय की पुकार की
क्लारा एन थॉम्पसन
(1869-1949)
क्लारा एन थॉम्पसन ऑहियो में एक गुलाम परिवार में हुआ. अपने खाली समय में क्लारा कविताएं लिखती थी. 1908 में उनका पहला कविता-संग्रह "सांग्स बाय द वेस्टसाइड' प्रकाशित हुआ. दूसरा कविता-संग्रह ए गारलैंड ऑफ़ पोयम्स( 1926) में प्रकाशित हुआ. कुछ संचयन में शामिल होकर वे हेर्लम पुनर्जागरण का हिस्सा बन गयी थी.
उम्मीद
हमारे पास है विषादपूर्ण दिन की पूर्व संध्या
सबसे अन्धकारमय रात, एक सुबह;
सोचिए मत, जब हों बादल घने और काले ,
तुम्हारा रास्ता भी है बहुत सूना
सारे बादल जो उगे थे कभी ,
जीवन के उजले रास्ते को चमकाने के लिए,
और दर्द की बेचैन रात
और सभी थकाऊ दिन
लाएंगे तुम्हारे लिए उपहार, होगा जिनका मूल्य अधिक
होंगे क्योंकि तुम्हारे नज़दीक उनका मूल्य अधिक
आत्मा जो मूर्छित नहीं होती तूफान में
उभरती हैं हो उज्ज्वल और स्पष्ट
विभक्त
कहा उसने कर दिया है माफ़
मुझे
देखा आँखों में उसकी
और था परिचित कि सच थी उसकी बातें
एक आनंदित क्षण वास्ते
लगा मुझे बढ़ गयी हैं मेरी उम्मीदें
और सोचा मैंने
अपनी सौगंध को बदलने बारे
लेकिन, कुछ कमी महसूस की मैंने
उसकी शांत, स्थिर, टकटकी में,
पहुंचा दिया प्रेमिल शब्दों को मृत्यु के पास, वे आए;
हालांकि, था उनका अनुरागी हृदय
इसलिए माफ़ किया मुक्त हृदय से ,
फिर भी, जानती थी मैं
वह नहीं था पहले सा
एक ज़माने में, वह निर्मल हृदय
सब कुछ था, लेकिन था मेरा अपना
वैसे मालूम था मुझे कि कैसे तेज़ होती थी इसकी धड़कन
कैसे वो प्यारी, सौम्य, आँखें,
एक नरम आभा के साथ, चमचमाती थी ,
मेरे पदचाप की थाप पर
०००
कभी-कभार चार नीचे लिंक पर पढ़िए
https://bizooka2009.blogspot.com/2019/01/30-1852-1916-1849.html?m=1
अश्वेत कवयित्रियाँ और उनकी चेतनासंपन्न अभिव्यक्तिर्याँ
अनुवाद: विपिन चौधरी
मैरी वेस्टन फोर्डम
(1844-1905)
मैरी वेस्टन फोर्डम का जन्म साउथ कैरोलिना, अमेरिका में हुआ. उनके जीवन के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती. सिविल वार के समय निडरता से आपने अपना स्कूल चलाया और रिकंस्ट्रक्शन के समय भी उन्होंने साउथ कैरोलिना में शिक्षिका की नौकरी की. उनकी कविताओं में पारिवारिक ढांचा और अकाल-मृत्यु ग्रस्त बच्चों का बखूबी वर्णन मिलता है. उनका एकमात्र कविता-संग्रह ‘मैगनोलिया लीव्स’ 1897 में प्रकाशित हुआ. 1904 में चार्ल्सटन में उनका देहावसान हुआ.
भावी स्त्री
केवल देखो , यह है 'पिछले सवा छह का प्रेम
और यहां तक कि वह आंच भी नहीं पकड़ पाया
खैर, आप जानते हैं कि मुझे होना चाहिए दफ्तर में
लेकिन, हमेशा की तरह देर हो जाएगी मुझे नाश्ते में
अब जल्दी करो और जगाओ बच्चों को
और उन्हें तैयार करों तुरंत
'बेचारे मेरे लाड़ले ' मुझे पता है कि वे पड़ जाएंगे सुस्त
मेरे प्यारे, कितना सुस्त हो व्यर्थ समय गंवाने वाले इंसान
लेना, मुंह की छोटी पसलियों के नीचे से गोमांस, बढ़िया और रसेवाला
टोस्ट भूरे और मक्खन भी लेना दुरुस्त
और सुनिश्चित करों कि आप कॉफी को भी कर सको व्यवस्थित
देखना कि चांदी का बर्तन भी हो स्वच्छ
जब सब तैयार हो जाए, तेज़ी से बड़ों और आवाज़ दो मुझे
आठ बजे, जाती हूँ मैं दफ्तर
कदाचित गरीबी या निर्दयता से बढ़ जाते हैं हम आगे
जानते हो तुम
''इस उपजीविका के लिए
स्टॉक नीचे गिर सकता है,
मेरे बॉन्ड अंकित मूल्य से गिर सकते हैं नीचे
तो निश्चित रूप से, मैं शायद ही कभी छोड़ सकती हूँ तुम्हें
एक गिल्ट या सिंगार के लिए
सब तैयार है ? अब, जबकि मैं बैठ गयी हूँ खाने
बस मेरी कार को ले आओ मेरे दरवाजे पर
फिर सफा करो बर्तन और ध्यान दो अब
चार बजे तुरंत कर लो भोजन
हमारा महिला सम्मेलन है,आज रात
और मालूम है तुम्हें
मैं पहली वक्ता हूँ
पुरुष ने हमें एकांत के अधिकृत कर दिया है
दुनिया के सामने मगर चिल्लाते हैं वे ,
'ऐसा ही है।'
तो 'खुदा हाफ़िज़' - द्वार पर दस्तक होने पर, मेरे प्रिय
देखो तुम दरवाजा खोलने से पहले
अजी ! किसी पुरुष बावर्ची के बिना
एक सभ्य महिला का अस्तित्व कैसा
ओलिविया वार्ड बुश-बैंक
(1869-1944)
ओलिविया वार्ड बुश-बैंक |
ओलिविया वार्ड बुश-बैंक का जन्म 23 मई, 1869 को साग हार्बर, लॉन्ग आइलैंड, न्यूयॉर्क में हुआ.वार्ड ने लेखन के तौर पर कविता और गद्य लेखन को अपनाया। वह कलर्ड अमेरिकी मैगज़ीन में नियमित तौर पर लिखती रही, इसके साथ ही उन्होंने 'न्यू रोशेल;, 'न्यूयॉर्क पब्लिकेशन', 'वेस्टचेस्टर रिकॉर्ड-कूरियर' के लिए भी नियमित तौर पर स्तंभ लिखे। 1930 के दशक में उन्होंने एक कला स्तंभ लिखा और वेस्टचेस्टर रिकॉर्ड-कूरियर के लिए कला संपादक के रूप में कार्य किया।
वार्ड ने कई नाटक और लघु कथाएं लिखीं, जिनमें से अधिकांश कभी प्रकाशित नहीं हुईं, क्योंकि उन्होंने इनमें अंतरजातीय संस्कृति के मुद्दों को व्यक्त किया था. 1944 में ओलिविया वार्ड बुश बैंक की मृत्यु हुई।
खेद
कहा मैंने एक दिन एक बेपरवाह शब्द
एक प्रियजन ने सुना और पधार गया दूर
रोई मैं "कर दो मुझे माफ़, हो गई थी मैं विवेकशून्य
नहीं पहुँचाऊँगी कभी चोट मैं या नहीं होऊंगी कभी निर्दयी"
लंबे समय से कर रही थी मैं इंतजार
अपने प्रियजन को दोबारा मोह लेना व्यर्थ हुआ
देर हो चुकी है बहुत
आह ! रोने और करने के लिए विनती
मौत का हुआ आगमन; आयी वह लेने मेरे प्रियजन को
उस दशा में, कैसा है मेरा पीड़ादायक भाग्य
कोई भी भाषा नहीं कर सकती मेरा दु:ख परिभाषित
गहरे अफसोस के आँसू बात को नहीं सकते बदल
बोलै था उस दिन मैंने जो एक विचारशून्य शब्द
आवाज
तिरोहित होते दिन और वर्ष में
खड़ी हूँ मैं भूतिया प्रेतों से घिरे मैदान पर
और कदापि इसकी उदासीन बर्बादी के ऊपर
कुछ अजीब, उदास आवाज सुनती हूँ मैं
छायादार अतीत से बाहर की कुछ ;
और एक पुकार पर पछताती हूँ मैं
और जानती हूँ मैं हैं ये गलत खर्च किया हुआ समय
किसकी याददाश्त अभी तक है ठहरी हुई
फिर शिकस्त बोलती है कडवे स्वर और दुःख में
और इसकी सभी संतापों, ग्लानि के साथ बोलती है
जिसके हैं गहरे और बेरहम डंक
मेरे दुखदाई विचार होते हैं उद्घाटित
इस ढब से करती हैं ये आवाजें मुझसे बातें
और उड़ जाती हैं अतीत की छाया सी
मेरी आत्मा लड़ती है निराशा में
और बहते हैं मोटे और घने आँसू
लेकिन जब, मैं खड़ी हूँ
भविष्य के दिनों और सालों के व्यापक इलाके में
और सूर्य के प्रकाश से भरी समतल भूमि पर
सुनती हूँ मैं एक मीठी आवाज़
अंधेरे अतीत से मुक्ति पाने
और वह याददाश्त कुचलने का देती हैं आदेश
खुश हो सुनूंगी मैं
और मानूंगी आज्ञा
सही समय की पुकार की
क्लारा एन थॉम्पसन
(1869-1949)
क्लारा एन थॉम्पसन ऑहियो में एक गुलाम परिवार में हुआ. अपने खाली समय में क्लारा कविताएं लिखती थी. 1908 में उनका पहला कविता-संग्रह "सांग्स बाय द वेस्टसाइड' प्रकाशित हुआ. दूसरा कविता-संग्रह ए गारलैंड ऑफ़ पोयम्स( 1926) में प्रकाशित हुआ. कुछ संचयन में शामिल होकर वे हेर्लम पुनर्जागरण का हिस्सा बन गयी थी.
क्लारा एन थॉम्पसन |
उम्मीद
हमारे पास है विषादपूर्ण दिन की पूर्व संध्या
सबसे अन्धकारमय रात, एक सुबह;
सोचिए मत, जब हों बादल घने और काले ,
तुम्हारा रास्ता भी है बहुत सूना
सारे बादल जो उगे थे कभी ,
जीवन के उजले रास्ते को चमकाने के लिए,
और दर्द की बेचैन रात
और सभी थकाऊ दिन
लाएंगे तुम्हारे लिए उपहार, होगा जिनका मूल्य अधिक
होंगे क्योंकि तुम्हारे नज़दीक उनका मूल्य अधिक
आत्मा जो मूर्छित नहीं होती तूफान में
उभरती हैं हो उज्ज्वल और स्पष्ट
विभक्त
कहा उसने कर दिया है माफ़
मुझे
देखा आँखों में उसकी
और था परिचित कि सच थी उसकी बातें
एक आनंदित क्षण वास्ते
लगा मुझे बढ़ गयी हैं मेरी उम्मीदें
और सोचा मैंने
अपनी सौगंध को बदलने बारे
लेकिन, कुछ कमी महसूस की मैंने
उसकी शांत, स्थिर, टकटकी में,
पहुंचा दिया प्रेमिल शब्दों को मृत्यु के पास, वे आए;
हालांकि, था उनका अनुरागी हृदय
इसलिए माफ़ किया मुक्त हृदय से ,
फिर भी, जानती थी मैं
वह नहीं था पहले सा
एक ज़माने में, वह निर्मल हृदय
सब कुछ था, लेकिन था मेरा अपना
वैसे मालूम था मुझे कि कैसे तेज़ होती थी इसकी धड़कन
कैसे वो प्यारी, सौम्य, आँखें,
एक नरम आभा के साथ, चमचमाती थी ,
मेरे पदचाप की थाप पर
०००
विपिन चौधरी |
कभी-कभार चार नीचे लिंक पर पढ़िए
https://bizooka2009.blogspot.com/2019/01/30-1852-1916-1849.html?m=1
विपिन जी हर बार नए नए कवि से परिचय कराती हैं और उनकी कविताओं के अनुवाद पढाती हैं - यह हिंदी में अपनी तरह का अनूठा काम है।हमारा साहित्य इनसे समृद्ध होता है।बिजूका और विपिन जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंयादवेन्द्र