23 अगस्त, 2024

राख ही जानती है जलने का ताप

 

मूल कन्नड़:- डॉ. मूड्नाकूडू चिन्नस्वामी

बन्धुआ मजदूर थे मेरे दादा एक बार

प्यासे जानवरों को तालाब के किनारे छोडकर

खुद भी अंजुली भर पी लिया जल

गाँव भर फैल गई यह खबर कि

तालाब मैला हो गया

मालिक लोगों ने उसे पकड़

पुआल में डाल जिन्दा जला दिया।

उस जली राख को ढो न सकने से

भूमाता गरजकर कौंदकर सिसक-सिसककर रो पड़ी तब

आसमान ने बरसात के रूप में आकर सांत्वना दिया तब

राख से ढके अंगार के रूप में

मेरे पिता का जन्म हुआ।

फिर बन्दुआ मजदूर बने मेरे पिता ने  अपने पिता को याद कर

वैसे ही एक संतान की अपेक्षा करते हुए

मंदिर के आँगन में हाथ फैलाकर साष्टांग नमस्कार किया

गाँव भर फैल गया यह खबर कि

भगवान मैले हो गये

मालिक लोगों ने झोंपड़ी में आग लगाकर 

सोते हुए मेरे बाप की हड्डियों को जला दिया।

फिर उस राख को न ढो सकने से

भूमाता भूकंपन द्वारा सिसक-सिसककर रो बैठी तब

सागर ने बाढ के रूप में आकर सांत्वना दी तब

ज्वालामुखी के रूप में 

मैं पैदा हुआ।


अब मुझे वे जला नहीं सकते

मुझे पकड़ने आकर वे खुद जल जायेंगे

क्योंकि मैं

अज्ञान को जलाने वाला अक्षर बन गया हूँ!

मौत रहित सत्य के लिये साक्षी बन गया हूँ!!

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परिचय 

कन्नड़ के वरिष्ठ कवि, लेखक और आलोचक डॉ. मूड्नाकूडू चिन्नस्वामी का जन्म उन्नसी सौ चौवन में चामराजनगर जिले में हुआ। मुख्य रूप से आपकी रुचि कविता होने के बावजूद आपने कहानी, नाटक, अनुवाद, संपादन साहित्य के अलावा साहित्य के विभिन्न विधाओं में काम किया है।  अब तक आपकी चालीस रचनाएँ प्रकाशित हैं।

आपकी कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी , हिन्दी, स्पेनिश, फ्रेंच और हिब्रू सहित कई भारतीय भाषाओं में हुई है।  आपकी कई कविता और नाटक को स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों में पढाया जा रहा है। आपको कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उनमें .कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार(२००९), कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार (२०१४) और आपके ‘बहुत्व भारत और बौद्ध दर्शन‘ रचना के लिए प्रतिष्ठित  ‘ केन्द्र साहित्य अकादमी ‘ पुरस्कार(२०२२) आदि प्रमुख हैं।

आपकी अंग्रेजी की पहली रचना ‘ दलित कास्मस ‘ ब्रिटन के रौउट्लेज संस्था की ओर से २९२३ में प्रकाशित हैं।

‘ द आउटलुक ‘ अंग्रेजी साप्ताहिक ने अपने २६ अप्रैल, २०२१ के विशेषांक के सर्वेक्षण में अंबेडकर पर एक संक्षिप्त परिचय प्रकाशित

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अनुवाद: डॉ. एन. देवाराज

5 टिप्‍पणियां:

  1. मूल भाषा से अन्य भाषा में अनुवाद खासकर कविता बड़ी बेजान सी महसूस होती है। जबकि इस कविता का विषय बहुत ही क्रूर सच से मिलवाता है।

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  2. ्दलित पर अत्याचारों की किस्त जिस तरह बरपा होती है, उसका ज्वालामुखी बन जाना स्वाभाविक है। प्रभावशाली कविता।

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  3. हमारे समाज के कुरूप चेहरे को दर्शाती कविता 💯

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