अर्जेंटीना के लेखक और कवि होर्हे लुईस बोर्हेस का जन्म ब्यूनस आयर्स में 1899 में हुआ था। उनका परिवार 1914 में स्विट्जरलैंड चला गया जहां उनकी पढाई हुई और उन्होंने स्पेन की यात्रा की। 1921 में अर्जेंटीना में वापसी के बाद, बोर्हेस की
कवितायें और लेख अतियथार्थवादी साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे। उन्होंने लाइब्रेरियन और लेक्चरर के रूप में भी काम किया। वह कई भाषाओं में निपुण थे। पेरोन शासन के दौरान उनका राजनीतिक उत्पीड़न किया गया था क्योंकि उन्होंने सैन्य जन्ता का समर्थन किया था जिसने पेरोन शासन को उखाड़ फेंका था। एक वंशानुगत बीमारी के चलते, बोर्हेस 1950 में अन्धता के शिकार हो गये। उन्हें 1955 में नेशनल पब्लिक लाइब्रेरी के निदेशक और ब्यूनस आयर्स के विश्वविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें 1961 में अंतरराष्ट्रीय ख्याति तब मिली जब उन्हें अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशकों का प्रथम पुरस्कार प्रिक्स फोर्मेंटर प्राप्त हुआ। उनके लेखन को संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में व्यापक रूप से अनुवाद और प्रकाशित किया गया। स्विट्जरलैंड में जिनेवा में 1986 में बोर्हेस की मृत्यु हुई थी।
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होर्हे लुईस बोर्हेस की कविताऍं
अनुवाद: सरिता शर्मा
चौक
शाम ढले
निढाल हो जाते हैं, दो या तीन रंगवाले आंगन।
आज की रात, चमकता पूरा चाँद,
जगत पर राज नहीं करता।
चौक आकाशगंगा है ।
चौक ढलान है
जिससे बह कर आकाश घर में आता है।
निर्मल,
अनंत काल सितारों के दोराहे पर प्रतीक्षारत है।
जीना सुखद है
दरवाजे, पेड़ और तालाब के
दोस्ताना अंधेरे में।
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सादगी
यह खोलती है बगीचे का फाटक
सेवक जैसी विनम्रता से
अत्यधिक निष्ठा सवाल उठाती है
मन में, मेरी निगाहों को
ज़रूरत नहीं उन चीजों पर टिकने की
जो पहले से मौजूद हैं हूबहू स्मृति में।
मैं जानता हूँ रिवाजों, आत्माओं और
संकेतों की बोली को
हर मानव बुनता चला जाता है जिन्हें।
मुझे नहीं जरूरत कुछ कहने की
और न ही व्यर्थ सुविधाओं की;
मुझे भली भांति समझते हैं मेरे करीबी लोग
जानते हैं मेरी तकलीफ और कमजोरी को।
परम सत्य को पाना है,
स्वर्ग दिला दे उसे शायद:
प्रशस्ति या जीत नहीं
बल्कि सादगी को स्वीकार करना है
निर्विवाद सत्य के अंश के रूप में
पत्थरों और पेड़ों की तरह।
०००
एक गुलाब और मिल्टन
समय की गहराई में गुम
गुलाबों की कई पीढ़ियों से
मुझे चाहिए सबसे ज्यादा बेदाग गुलाब,
गुमनामी से बचाया हुआ,
जो अपूर्व हो। भाग्यवश अवसर मिले मुझे
एक बार उपहार चुनने का
वह खामोश फूल, आखिरी गुलाब
जिसे मिल्टन ने थामा था
बिना निहारे। उजाड़ बाग का सिंदूरी, पीला
या सफेद गुलाब,
आपका अतीत मौजूद है अब भी जादुई ढंग से
देदीप्यमान सर्वदा इन गीतों में,
सुनहरा, रक्तिम, हाथीदांत या परछाई
उनके हाथ में अनदेखा गुलाब हो जैसे।
आत्महत्या
रात में एक भी सितारा नहीं बचेगा ।
रात तक नहीं बचेगी।
मैं मरूंगा और मेरे साथ ख़त्म होगा
असहनीय ब्रह्मांड का सारांश।
मैं मिटा दूंगा पिरामिड, सिक्के,
महाद्वीप और तमाम चेहरे।
संचित अतीत को मिटा दूंगा।
मिट्टी में मिला दूंगा इतिहास को, मिट्टी को मिट्टी में
अब मैं देख रहा हूँ आखिरी सूर्यास्त।
सुन रहा हूँ अंतिम पक्षी को।
किसो को कुछ भी नहीं दूंगा मैं वसीयत में।
०००
चॅंद्रमा
वह सोना कितना अकेला है।
इन रातों का चाँद वह चाँद नहीं
जिसे देखा आदम ने पहली बार। लोगों के रतजगों की
लंबी सदियों ने भर दिया है उसने
पुरातन विलाप से। देखो। वह तुम्हारा दर्पण है।
०००
पछतावा
मैंने किये जघन्य पाप
औरों से कहीं ज्यादा। मैं नहीं रहा
प्रसन्न। गुमनामी के हिमनदों को
ले लेने दो मुझे उनकी चपेट में निर्दयता से।
माता पिता ने जन्म दिया मुझे
जोखिमभरा सुंदर जीवन खेल के लिए,
पृथ्वी, जल, वायु और आग के लिए।
मैंने उन्हें निराश किया, मैं खुश नहीं था।
मेरे लिए उनकी जोशीली उम्मीदें पूरी न हुई
मैंने दिमाग चलाया सममिति में
कला के तर्कों, नगण्यता के जाल में।
वे चाहते थे मुझसे बहादुरी। मैं वैसा नहीं था।
यह कभी मुझसे दूर नहीं होती। बगल में रहती है सदा,
उदास आदमी की परछाई।
न्यू इंग्लैंड 1967
मेरे सपनों में आकृतियां बदल गयी हैं;
अब साथ लगे लाल घर हैं
और कांसे रंगी नाजुक पत्तियां
और अक्षत सर्दी और पावन लकड़ी।
सातवें दिन की तरह दुनिया
अच्छी है। सांझ में बनी हुई है
किंचित साहसी, उदास प्राचीन बड़बड़ाहट,
बाईबिलों और युद्ध की।
जल्द ही पहली बर्फ गिर जायेगी (वे कहते हैं)
अमरीका मेरा इंतजार कर रहा है हर सड़क पर,
मगर कल कुछ पल ऐसा लगा और आज बहुत देर तक
ढलती शाम में महसूस करता हूँ।
ब्यूनस आयर्स, मैं भटकता हूँ
तुम्हारी सड़कों पर बेवक्त या अकारण।
०००
अनूवादिका का परिचय
सरिता शर्मा (जन्म- 1964) ने अंग्रेजी और हिंदी भाषा में स्नातकोत्तर तथा अनुवाद, पत्रकारिता, फ्रेंच, क्रिएटिव राइटिंग और फिक्शन राइटिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया। पांच वर्ष तक
नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया में सम्पादकीय सहायक के पद पर कार्य किया। बीस वर्ष तक राज्य सभा सचिवालय में कार्य करने के बाद नवम्बर 2014 में सहायक निदेशक के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृति। कविता संकलन ‘सूनेपन से संघर्ष, कहानी संकलन ‘वैक्यूम’, आत्मकथात्मक उपन्यास ‘जीने के लिए’ और पिताजी की जीवनी 'जीवन जो जिया' प्रकाशित। रस्किन बांड की दो पुस्तकों ‘स्ट्रेंज पीपल, स्ट्रेंज प्लेसिज’ और ‘क्राइम स्टोरीज’, 'लिटल प्रिंस', 'विश्व की श्रेष्ठ कविताएं', ‘महान लेखकों के दुर्लभ विचार’ और ‘विश्वविख्यात लेखकों की 11 कहानियां’ का हिंदी अनुवाद प्रकाशित। अनेक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कहानियां, कवितायें, समीक्षाएं, यात्रा वृत्तान्त और विश्व साहित्य से कहानियों, कविताओं और साहित्य में नोबेल पुरस्कार विजेताओं के साक्षात्कारों का हिंदी अनुवाद प्रकाशित। कहानी ‘वैक्यूम’ पर रेडियो नाटक प्रसारित किया गया और एफ. एम. गोल्ड के ‘तस्वीर’ कार्यक्रम के लिए दस स्क्रिप्ट्स तैयार की।
संपर्क: मकान नंबर 137, सेक्टर- 1, आई एम टी मानेसर, गुरुग्राम, हरियाणा- 122051. मोबाइल-9871948430.
ईमेल: sarita12aug@hotmail.com
बोर्हेस की कविताओं का अनुवाद चुनौतीपूर्ण है। सरिता शर्मा ने बखूबी इस चुनौती को पूरा किया है। बधाइयां। अभिनंदन।
जवाब देंहटाएंनरेश चन्द्रकर