01 मई, 2015

परमेश्वर फुंकवाल की कवितायेँ

और मुझे क्या चाहिए
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मेरी इच्छा सूची में हैं
सच की खाद से बढ़े
और समय की आंच में सिके हरे चनो का स्वाद
किसी स्कूल के बाहर भीषण बरसात में भीगता
अपनी बहन की प्रतीक्षा करता भाई
थकी साँसों से सुलगी
अपने कल पर होने वाली बहस की बीडी
और उसके बचे हुए ठूंठ पर
दस लोगों के फेफड़ों की गंध
इधर कोई दौड़ चल रही है
कट रहे हैं गले और
धमनियों के रक्त में बह चला है चिपचिप करता एक गाढ़ा द्रव
ऐसे में यदि मिल सके
इस पीढ़ी के लिए काफ़ी
थोडा सा श्मशान वैराग्य
जीवन को अपने अंत से बाँधने वाली
एक छोटी सी रस्सी चाहिए मुझे.
ठंडी चाय
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छोटू चाय ला
छोटू पंचर ठीक से बनाना
छोटू आठ नंबर का पाना दे
ईश्वर के विपरीत हर जगह मिल जाता है
उसका ये छोटा प्रतिरूप
छोटू स्कूल नहीं जाता 
‘स्कूल जाऊंगा तो खाऊंगा क्या’
और एक कट चाय का गिलास ठक से टेबल पर
उम्र के पहले पकी उसकी भाषा में कई प्रश्न हैं
यह जमीन किसकी है
सेठ की होगी
सेठ के पास कैसे आयी
पुरखों से
और वे कहाँ से लाये
उनके पुरखों से, वे जमींदार होंगे
उनके पास?
उनने ताक़त से जीती होगी
किस से
उत्तर नहीं मिलता
एक लम्बे मौन के अंतराल में मैं पढ़ सकता हूँ 
उसके मस्तिष्क में
बिजली की तरह कौंधता एक छोटा सा सवाल
हम फिर ताक़त से ले सकते हैं ये सब?
जब तक में प्रश्न का जवाब दे पाऊं
चाय ठंडी हो चुकती है. 

-परमेश्वर फुंकवाल
प्रस्तुति:- राजेश झरपुरे

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टिप्पणियाँ:-

परमेश्वर फुंकवाल:-

राजेश झरपुरे जी शुक्रिया साझा करने के लिए।
बी एल पाल जी और तितिक्षा जी, धन्यवाद आपकी समीक्षा के लिए। पहली कविता में मेरी ईच्छाओ की एक छोटी सूची है जो इस बात पर समाप्त होती है कि मेरा जीवन हमेशा इस प्रकार जिया जाए कि किसी भी क्षण यह विस्मृति न हो कि यह एक दिन जाना है। यदि यह भाव संप्रेषण नहीं हो पाए तो यह मेरी ही कमी है। आपको पुनः धन्यवाद।

बी एल पाल:-
परमेश्वर भाई पहली कविता मेरी समझ के अनुसार आपकी पंक्ति"और उसके बचे हुए ठूंठ पर/दस लोगों के फेफड़ों की गंध"कविता यहीं तक है उसके आगेे लिखी हुई पक्तियां कविता नहीं है।

परमेश्वर फुंकवाल:-
महत्वपूर्ण है आपकी बात। कारण जान पाऊँ तो मदद मिलेगी। धन्यवाद।

बी एल पाल:-
और उसके बचे हुए ठूंठ पर दस लोगों के फेफड़ों की गंध तक ही कविता है।उसके आगे की पंक्तियाँ कविता नहीं है कारन पहला यह की मध्यांतर तथा उसके आगे की बात दोनों अलग अलग है एक साथ अंट भी नहीं सकती दूसरी महत्वपूर्ण बात मध्यांतर के आगे बात एक कवि के रूप  से ज्यादा कुछ धार्मिक उपदेशक जैसे रूप में है  या कुछ  कुछ शमशान वैराग्य जैसे या फिर सुफियाना अंदाज जैसे में है।

ललिता यादव:-
'और मुझे क्या चाहिए' सारगर्भित कविता आज की पीढी श्मशान वैराग्य से ज्यादा झेल नहीं पायेगी।
जितना बच सकता है उसे ही बचा रखने की कोशिश।

परमेश्वर फुंकवाल:-
शुक्रिया बी एल पाल जी। यह बात सही है कि आप द्वारा बताए बिंदु पर कविता की टोन में परिवर्तन आता है किंतु कविता इसकी अंतिम पंक्तियों के लिए लिखी गई है। क्या उस बिंदु के बाद सीधे अंतिम पंक्ति पर आने से कुछ बात बनती है। ललिता जी धन्यवाद आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी के लिए।

बी एल पाल:-
उसके बचे हुए ठूंठ पर/दस लोगों की गंध।इसके बाद सीधे उसके निचे यह पंक्तियाँ आ जाए "जीवन को अंतस से बाँधने वाली/एक छोटी सी रस्सी चाहिए"। इस रूप  में मुझे लगता है  कविता का वैक्तिक के साथ साथ सही  समाजीकरण में कुछ सही तरीके से बात तो बनती है।मैंने अपने पाठकीय रूप में  अंत  क़ी   जगह अंतस शब्द आरोपित कर दिया हूँ ऐसा करना गलत है ।मुझे अंत शब्द के रहने से अंत से बांधने वाली बात एक गुंफन में ले जाती हुई   सी    सही अर्थ देने में असमर्थ सी लगी।परमेश्वर भाई यह मात्र मेरी अपनी एक पाठकीय प्रातिकिरिया है। कोई समीक्षा नही है। कुल मिलाकर आपके कहे अनुसार बीच की पंक्तियाँ निकाल देने पर निश्चित ही बात बनती है।ऊपर की पंक्तियाँ बहुत ही स्तरीय संवेदना के साथ है।

परमेश्वर फुंकवाल:-
शुक्रिया पाल जी आपकी वृहद टिप्पणी से सीखने को मिला। समय के लिए धन्यवाद।

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