20 मई, 2015

अच्युतानंद मिश्र की कविताएँ

"लड़के जवान हो गए "

और लड़के जवान हो गए
वक्त की पीठ पर चढ़ते
लुढ़कते फिसलते
लड़के जवान हो गए

उदास मटमैला फीका शहर
तेज रोशनी के बिजली के खंभे
जिनमे बरसों पहले बल्ब फूट चुका है
अँधेरे में सिर झुकाए खड़े जैसे
कोई बूढ़ा बाप जवान बेटी के सामने
उसी शहर में देखते देखते
लड़के जवान हो गए

लड़के जिन्होंने किताबें
पढ़ी नहीं सिर्फ बेचीं
एक जौहरी की तरह
हर किताब को उसके वजन से परखा
गली गली घूमकर आइसक्रीम बेचीं
चाट पापड़ी बेचीं
जिसका स्वाद उनके बचपन की उदासी में
कभी घुल नहीं सका
वे लड़के जवान हो गए

एकदम अचूक निशाना उनका
वे बिना किसी गलती के
चौथी मंजिल की बाल्कोनी में अखबार डालते
पैदा होते ही सीख लिया जीना

सावधानी से
हर वक्त रहे एकदम चौकन्ने
कि कोई मौका छूट न जाए
कि टूट न जाए
काँच का कोई खिलौना बेचते हुए
और गवानी पड़े दिहाड़ी
वे लड़के जवान हो गए

बेधड़क पार की सड़कें
जरा देर को भी नहीं सोचा
कि इस या उस गाड़ी से टकरा जाएँ
तो फिर क्या हो ?
जब भी किसी गाड़ीवाले ने मारी टक्कर
चीखते हुए वसूला अस्पताल का खर्च
जिससे बाद में पिता के लिए
दवा खरीदते हुए कभी नहीं
सोचा चोट की बाबत
वे लड़के जवान हो गए

अमीरी के ख्वाब में डूबे
अधजली सिगरेट और बीड़ियाँ फूँकते
अमिताभ बच्चन की कहानियाँ सुनाते
सुरती फाँकते और लड़कियों को देख
फिल्मी गीत गाते
लड़के जवान हो गए

एक दिन नकली जुलूस के लिए
शोर लगाते लड़के
जब सचमुच का भूख भूख चिल्लाने लगे
तो पुलिस ने दना-दन बरसाईं गोलियाँ
और जवान हो रहे लड़के
पुलिस की गोलियों का शिकार हुए

पुलिस ने कहा वे खूँखार थे
नक्सली थे तस्कर थे|
अपराधी थे पॉकेटमार थे
स्मैकिए थे नशेड़ी थे

माँ बाप ने कहा
वे हमारी आँख थे वे हमारे हाथ थे
किसी ने यह नहीं कहा वे भूखे
और जवान हो गए थे

बूढ़े हो रहे देश में
इस तरह मारे गए जवान लड़के

"किसान "

उसके हाथ में अब कुदाल नहीं रही
उसके बीज सड़ चुके हैं
खेत उसके पिता ने ही बेच डाला था
उसके माथे पर पगड़ी भी नहीं रही
हाँ कुछ दिन पहले तक
उसके घर में हल का फाल और मूठ
हुआ करता था

उसके घर में जो
नमक की आखरी डली बची है
वह इसी हल की बदौलत है
उसके सफेद कुर्ते को
उतना ही सफेद कह सकते हैं
जितना की उसके घर को घर
उसके पेशे को किसानी
उसके देश को किसानों का देश

नींद में अक्सर उसके पिता

दादा के बखार की बात करते
बखार माने
पूछता है उसका बेटा
जो दस रुपये रोज पर खटता है
नंदू चाचा की साइकिल की दुकान पर

दरकती हुए जमीन के
सूखे पपड़ों के भीतर से अन्न
के दाने निकालने का हुनर
नहीं सीख पाएगा वह

यह उन दिनों की बात है
जब भाषा इतनी बंजर नहीं हुई थी
दुनिया की हर भाषा में वह
अपने पेशे के साथ जीवित था
तब शायद डी.डी.टी. का चलन
भाषा में और जीवन में
इतना आम नहीं हुआ था

वे जो विशाल पंडाल के बीच
भव्य समारोह में
मना रहे हैं पृथ्वी दिवस
वे जो बचा रहे हैं बाघ को
और काले हिरन को
क्या वे एक दिन बचाएँगे किसान को
क्या उनके लिए भी यूँ ही होंगे सम्मेलन

कई सदी बाद
धरती के भीतर से
निकलेगा एक माथा
बताया जाएगा
देखो यह किसान का माथा है
सूँघो इसे

इसमें अब तक बची है
फसल की गंध
यह मिट्टी के
भीतर से खिंच लेता था जीवन रस

डायनासोर की तरह
नष्ट नहीं हुई उनकी प्रजाति
उन्हें एक एक कर
धीरे धीरे नष्ट किया गया

"बच्चे"

बच्चे जो कि चोर नहीं थे
चोरी करते हुए पकड़े गए
चोरी करना बुरी बात है
इस एहसास से वे महरूम थे

दरअसल अभी वे इतने
मासूम और पवित्र थे
कि भूखे रहने का

हुनर नहीं सीख पाए थे

अच्युतानंद मिश्र

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