03 नवंबर, 2017

अमित कुमार मल्ल की कविताएं

चित्र: अवधेश वाजपेई

कविताएं

    1

दिल है बहुत उदास
हो सके तो लौट आना

सह रहा हूं कब से
चढ़े सूरज का ताप
तुम पुरवईया बन
हो सके तो लौट आना

पूरा हो ना सका सपना
सबकी दुनिया बसाने का
फिर भी यदि महसूस हो
हो सके तो लौट आना

चाहा था सितारों को लाकर
तेरे कदमो मे डालना
इतना भरोसा करो
हो सके तो लौट आना

दुनिया की रीत
मैं बदल नहीं सकता
सच्चाई की हार समझकर
हो सके तो लौट आना

  2

उनकी  नाजुक  मिजाजी  का सच  मैंने देखा है ,
नजर  फ़िरा कर, वे पत्थर  को तोड़ देते   हैं

    3

मन चल उस ज़मीन पर
जहाँ परियों का मेला न हो
जहाँ हर समय सुबह न हो
और खुशियों का रेला न हो

जहाँ मदहोशी का
आलम न हो
बड़ी बड़ी बातें न हो
रातों से लंबे सपने न हो

जहाँ खेत हो गाव के
जुएँ हो हल् के
गर्दन हो बैलो के
कंधे हो किसान के

जहाँ प्यार हो
तकरार हो
और
मनुहार हो

मन चल उस ज़मीन पर
जहाँ परियों का मेला न हो

        4

ऊंट खिंचता
गाड़ी
गाड़ी के ऊपर लदा सामान
ऊंट को खिंचता आदमी
दोनों खींच रहे है
ढो रहे है
सामान और
अपना पेट

सामान ढोने पर
मिलेंगे
कुछ रुपये
जिनसे बुझेगी
भूख
आदमी और ऊँट की

   5

किताबो  की  दुनिया  से  आदर्शो  की दुनिया ,
एक  अंधी सुरंग  है  कही खुलती   नहीं  है   ।



चित्र: विनीता कामले

    6

मैं शीशे का दिल हूँ , वो पत्थर की हवेली है
कैसे मैं कहूँ, उनसे मुझे प्यार करना है

मेरे ख्यालो से खुशबू सी गुजरती है
कैसे मैं कहूँ , उनको बाहों में समाना है

लहरों सा आना जाना , मुझको नही भाता है
कैसे मैं कहूँ , उनसे मिलना मिट जाना है

पलको पे बिठाए है , वो लोग सयाने है
कैसें मैं कहूँ ,उनको हमदर्द बनाना है

तेरी निगाहों के थमने पे , दुनिया की निगाहे है
कैसे मैं कहूँ , उनको आँखों मे समाना है

         7

अपना हुआ नही एक शब्द

बीते बहुत दिन
लिखा नहीं एक शब्द

स्याही थी
खुली आँखें थी
पर लिखा नहीं एक शब्द

संवेदनाएं थी
लबों पर टला भी नहीं था
पर कहा नहीं एक शब्द

दुःख है
दुःख का कारण भी है
पर सहा नहीं एक शब्द

आदमी अब
भीड़ लगने लगा है
जिया नहीं एक शब्द

असमान का विस्तार
सिमट गया था मुझमे
भरा नहीं गया एक शब्द

लगा लिया है
एक मुखौटा
न हँसता है
न रोता है
अपना हुआ नहीं एक शब्द

     
चित्र: अवधेश वाजपेई

8

 
जंग जारी है

पसीनो और हाथो  के घट्टों से
  बुझाता . हूँ पेट की आग
भूख और रोटी की
जंग जारी है

शरीर को चाहिए रोटी
रोटी के लिए बिकता है शरीर
अस्मत और मजबूरी की
जंग जारी है

कलियों के साथ
उगते है काँटे भी
उन्हे खिलने के लिए
परिवेश  से जंग जारी है

      9

लोग पार कर रहे थे
मैं किनारे पर रुक गया
कि
बच्चे खेलते पार कर ले
जवान दौड़ते पार कर ले
बेसहारा सहारा लेकर पार कर ले

मैं वक्त बनकर बूढ़ा हो गया
किनारे पर ही खड़ा रहा

    10

किनारे पर रुककर
सोचता हूँ
क्यो न बहा
मैं बहाव के साथ

जिसमे गति थी
निर्द्वन्दता थी
और साथ था वक्त

जिसमे मौज थी
मस्ती थी
और थी बेफिक्री

जहाँ किसी का सीना था मेरा नश्तर था
जहाँ मेरी पीठ थी किसी का चाकू था
न पाप था
न पुण्य था

बिना कवच के
दीवाल की आड़ में
टेक लेकर सुस्ताते हुए
सोचता हूँ
क्यो फिक्रमंद ह्
सैलाब में बहते हुए घरो को देखकर
किसी को चोंच मारते देखकर

पाप कुछ नही है
मन और कार्य की भिन्नता है
सच केवल एक है
चलना और बहना
और गति के साथ बहना।
००

         
अमित कुमार मल्ल

परिचय:

1.नाम  - अमित कुमार मल्ल
2  जन्मस्थान - देवरिया
3 शिक्षा - एम 0 ए 0, एल 0 एल 0 बी0
4  व्यवसाय - नौकरी
5  रचनात्मक उपलब्धियां-
प्रथम काव्य संग्रह - लिखा नहीं एक शब्द , 2002 में प्रकाशित ।
प्रथम लोक कथा संग्रह - काका के कहे किस्से , 2002 मे प्रकाशित ।
दूसरा काव्य संग्रह - फिर , 2016    में प्रकाशित ।
2017 में  ,प्रथम काव्य संग्रह - लिखा नही एक शब्द का अंग्रेजी अनुवाद not a word was written प्रकाशित ।
काव्य संग्रह - फिर , की कुछ रचनाये , 2017 में ,पंजाबी में अनुदित होकर पंजाब टुडे में प्रकाशित ,
प्रकाशित तीन साझा काव्य संग्रह में कविताये शामिल ।
कविताये व लेख , देश के प्रमुख समाचारपत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित ।
आकाशवाणी लखनऊ से काव्य पाठ ।
6 पुरस्कार / सम्मान -
राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान , उत्तर प्रदेश द्वारा 2017 में ,डॉ शिव मंगल सिंह सुमन पुरस्कार , काव्य संग्रह , फिर , पर दिया गया ।

मोब न0 9319204423
इ मेल -amitkumar261161@gmail.com


       
               
                            

3 टिप्‍पणियां:

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  2. सारी रचनाये बहुत बढ़िया

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  3. गुर्दा दान के लिए वित्तीय इनाम
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