06 नवंबर, 2017

पंकज चतुर्वेदी की कविताएँ

पंकज चतुर्वेदी:  जन्म: 24 अगस्त, 1971,  इटावा (उत्तर-प्रदेश)जे. एन. यू. से एम. ए., एम. फ़िल., पी-एच. डी.
कविता के लिए वर्ष 1994 के भारतभूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार,  आलोचना के लिए 2003 के देवीशंकर अवस्थी  सम्मान  एवं उ.प्र. हिन्दी संस्थान के रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार  से सम्मानित.एक संपूर्णता के लिए  (1998), एक ही चेहरा  (2006), रक्तचाप और अन्य कविताएँ  (2015) (कविता-संग्रह)
पंकज चतुर्वेदी
आत्मकथा की संस्कृति  (2003), निराशा में भी सामर्थ्य (2013), रघुवीर सहाय  (2014, साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली के लिए विनिबंध),  जीने का उदात्त आशय  (2015)  (आलोचना), यही तुम थे (2016, कवि वीरेन डंगवाल पर एकाग्र आलोचनात्मक संस्मरण), प्रतिनिधि कविताएँ : मंगलेश डबराल (2017, सम्पादन) प्रकाशित.



कविताएं


नया राजपत्र


अगर आप सरकार के
तरफ़दार नहीं हैं तो
इसके तीन ही मतलब हैं


एक : आप देशद्रोही हैं
उसमें भी बहुत संभव है
कि आप पाकिस्तान-परस्त हों

(अल्पसंख्यक अधिक संदिग्ध हैं)


दूसरा : आप नक्सली हैं
या बहुत संभव है
कि आप उनके लिए
काम करते हों

(आदिवासी अधिक संदिग्ध हैं)


तीसरा : आपके पास काला धन है
और आप उसे ठिकाने
नहीं लगा पाये
या बहुत संभव है
कि आपने उसे
जन-धन ख़ातों में
जमा करवा दिया हो

(ग़रीब अधिक संदिग्ध हैं)


इसके बावजूद अगर आपको
इस देश में रहने दिया जा रहा है
तो यह सरकार की
सहिष्णुता है
आपकी नहीं !




संदर्भ


युद्ध का वास्तविक विलोम
शान्ति नहीं
बुद्ध हैं


मगध और श्रावस्ती में जारी
राजकीय हिंसा
और रक्तपात के ही
संदर्भ में
बुद्ध ने कहा था :
'यह संसार निरंतर
जल रहा है
कैसी हँसी
कैसा आनंद ?


अंधकार में डूबे
ओ लोगो !
दीपक को
खोजते क्यों नहीं ?'

निज़ार अली बद्र



यह समय


यह समय
शांति का नहीं
भ्रांति का है


संवाद नहीं
विवाद का है


संयम नहीं
अधीरता का है


और जिन्हें सिर्फ़
शब्द ख़र्च करने हैं
उनकी वीरता का है
यह समय





मुद्रा के अभाव में


मुद्रा के अभाव में
मर रहे थे लोग
प्रजा से उठता था
हाहाकार


मंत्री ने
राजा से कहा :
महाराज !
राज्य ख़ुशहाल है
सब ओर है
अमन-चैन


राजा ने राहत की
साँस ली :
तो सुनता हूँ मैं
जो विलाप
यह उस प्रजा का
नहीं है
जिसने मुझे
चुना था




इशारा


भूखे-दुखी प्रजाजनों ने
राजा से पूछा :
राजन् ! आप हमें क्या देंगे ?


राजा ने जवाब दिया :
मेरा मानना है
कि छीनकर ही कुछ
दिया जा सकता है


जैसे मैंने तुम्हारे पैसे
और संसाधन छीनकर
पूँजीपतियों को दिये
वैसे ही तुम्हारी खेती-बाड़ी
यानी संपन्नता के लिए
पड़ोसी देश से छीनकर
मैं तुम्हें पानी दूँगा
जो एक समझौते के तहत
न जाने कब से
उसे मिल रहा है


दरअसल यह प्रजाजनों को
पानी नहीं
एक और युद्ध के लिए
तैयार रहने का इशारा था

निज़ार अली बद्र



सदिच्छा

शासक को अपने
राज्य में हुई
मौतों पर
अफ़सोस नहीं था


बल्कि आश्चर्य था
कि लोग उसके विरोध का
साहस कर पा रहे हैं


अंत में उसने
विचलित होकर कहा :
जो कुछ हुआ
मेरी सदिच्छा के
चलते हुआ




मंत्री जी को देखकर लगता है


मंत्री जी को देखकर लगता है
कि वह जितने सुखी-संपन्न हैं
राज्य की प्रजा
उतनी ही दुखी और विपन्न होगी


मंत्री जी को देखकर लगता है
कि वह जितने वाचाल हैं
प्रजा उतनी ही अवाक् होगी


मंत्री जी को देखकर लगता है
कि वह जितने धूर्त हैं
प्रजा उतनी ही निश्छल होगी


मंत्री जी को देखकर लगता है
कि इतने क्रूर व्यक्ति को
प्रजा का समर्थन नहीं होगा
राजा ने ही उसे मंत्री बनाया होगा !

निज़ार अली बद्र



मृत्यु को ख़बर मत बनाओ


मृत्यु का जश्न मनाती सत्ता
पत्रकारों से कहती है :
मृत्यु को ख़बर मत बनाओ
जश्न को बनाओ


जो मर गये
इसका क्या सबूत है
कि वे हमारे
जश्न के कारण मरे
उनका मरना
महज़ संयोग था




जिनसे उन्हें भय है

अब विचारक नहीं रह गये न दार्शनिक
रह भी गये हों तो राज्य
उन्हें पहचानता नहीं


सिर्फ़ संदिग्ध ढंग से अरबपति हुए व्यापारी
कुख्यात हत्यारे और भ्रष्ट अधिकारी
अभिनय कम और विज्ञापन अधिक
करनेवाले फ़िल्मी कलाकार
जनता से द्वेष रखते और
सत्ता का मुँह जोहते पत्रकार
हिंसा को सौजन्य माननेवाली
राजनीति के चाटुकार
रह गये हैं


राष्ट्रवाद को परिभाषित करने
देशभक्ति का ख़िताब बाँटने
और देशद्रोही कहकर
उन्हें लांछित करने के लिए
जिनसे उन्हें भय है
कि उनका सच वे जानते हैं

निज़ार अली बद्र



त्रासदी


अगर राष्ट्र-नेता का
मानसिक स्तर वही हो
जो उसके अनुयायियों का
तो यह त्रासदी भी
राष्ट्रीय है !




शासक अभद्र हो तो भी


शासक अभद्र हो तो भी
उसका विरोध अभद्र न हो


विरोध अभद्र हो गया
तो उसे ख़ुशी होगी
कि ऐसा ही मुल्क
उसने बनाना चाहा था
००



सम्पर्क :
सी-95, चार बंगला, भाभा युवक छात्रावास के सामने, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय,  सागर (म.प्र.)—    470003.




बिजूका के लिए रचनाएं भेजिए:
bizooka2009@gmail.com
सत्यनारायण पटेल

3 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut hi sundar kavitayein hain...Pankaj sir ko badhai...

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  2. बहुत ही बढ़िया कविताएं।
    प्रसंगिक और सार्थक।
    कवि को बधाई।

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  3. इन्द्र राठौर07 नवंबर, 2017 20:13

    हमारे समय के जटिल यथार्थ को अभिव्यक्त करने की जैसी कलात्मकता और सदृश बिंब संयोजन पंकज के यहां मुझे दिखलाई पड़ता है वह कहने मे तनिक भी संकोच नहीं और न अतिश्योक्ति होगी कि यह विरल कवियो के ही यहां है । हमारे समय के इस युवा कवि के बगैर हिन्दी की वॄहद काव्य परम्परा का मूल्यांकन आगे के दिनो में संभव नहीं ही हो पायेगा ।

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