04 नवंबर, 2017

राकेश धर की कविताएं

राकेश धर: कांक्रीट का जंगल , नाम से कविता संग्रह प्रकाशित और दूसरा कविता संग्रह- नदी कुछ कह रही है, नाम से प्रकाशाधिन है।
राकेश धर
एक कहानी संग्रह-चंद क़दम, प्रकाशित। वेबदुनिया, नवभारत,अमर उजाला, आज समाज आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। म.प्र. साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित। दिल्ली में रहते हैं। शासकीय सेवक है।


कविताएं

 कंक्रीट के जंगल

आइए मैं ले चलूं आपको
कंक्रीट के जंगल में
जहां आप महसूस करेंगे
भौतिकता के ताप को
मानवता नैतिकता दया-करूणा
यहां बैठे हो रहे मानवीय मूल्यों के
अवमूल्यन की कहानी कुछ कर रहे
मैक्डॉवेल की बोतल में
मनीप्लांट है मुस्करा रहा
पास में खड़ा हुआ
नीम का पेड़ काटा जा रहा

ताजी हवा का झोंका
यहां है सिमटा जा रहा
पास में खड़ा हुआ
एयर कंडीशनर गुर्रा रहा
है हवेली बड़ी-सी
पर मगर वीरान है
बूढ़े-बूढ़ियों को सासों से
यह केवल आबाद है

आगंतुक ने मालिक से पूछा
पड़ोसी का क्या नाम है
वह झल्लाया फिर बुदबुदाया
मेरा उनसे क्या काम है
इस अनोखे जंगल में
प्राणवायु है केवल मनी
यदि मनी है तो सब कुछ
है यहां फनी-फनी।
००



याद आती है

याद आती है
जब मैं मां के गर्भ में था
तुम्हारा मां के पेट से कान लगाकर
मेरी बातों को सुनना
याद आता है
ज्ब मैं छह माह का था
मध्यरात्रि में मेरा नन्हे
हाथों से बाल खींचकर तुम्हें उठाना
घंटों तुम्हारे साथ खेलना
और थककर सो जाना
याद आता है
नमी स्कूल की एडमीशन की पंक्ति
में तुम्हारा फॉर्म के लिए घंटों खड़ा रहना
मेरा व्यक्तित्व परीक्षण होना और
तुम्हारी ढेरों मिन्नतों के बाद
स्कूल में मेरा एडमीशन होना

याद आता है
टनेक परीक्षाओं में मेरा
अनुत्तीर्ण होना
रोना और कमरा बंद कर
सो जाना
तुम्हारा धीरे से आना
उठाना खाना खिलाना
और पुनः धीरे से निकल जाना
याद आता है
बैंक से लोन लेकर
मुझे महंगे इंजीनियरिंग
कॉलेज में एडमीशन दिलाना
अपने पुराने स्कूटर पर
ढेरों किक मारना
लेकिन मुझे      
नामी कंपनी का लैपटॉप दिलाना
याद आता है
मेरा स्वदेश में
नौकरी न पाना
विदेश जाकर नौकरी करना
मोबाइल पर घंटों तुमसे बात करना
और तुम्हारी स्मृतियों में खो जाना
याद आता है
तुम्हारे स्मृति-शेष रहने की खबर सुनना
तुम्हारी अंतिम यात्रा में छुट्टी न मिल पाने के कारण
शरीक न हो पाना
तुम्हें याद कर घंटों रोना
और सिरहाने रखी तकिया का भीग जाना

याद आता है
घर की एक दीवार पर
तस्वीर के रूप में तुम्हारा टिक जाना
मेरा लगातार तुम्हें देखना
आंसुओं को पोंछ देना
और ईश्वर से प्रार्थना करना
कि अगले जन्म में तुम्हें
पुनः मेरा पिता बनाना
००



सृष्टि का सुन्दरतम अध्याय हैं बेटियां

किसी कवि की सुन्दर रचनाएं हैं बेटियां
अभिव्यक्ति हैं, अनुभूति हैं
आशाएं हैं बेटियां
गीता का संदेश और
कुरान हदीस की आयतें है बेटियां
रामायण की चौपइयां और ईद की सेवइयां हैं बेटियां
आंखों का नूर और
गजरे का फूल हैं बेटियां
बेला की सुगंध और
पीपल की छांव हैं बेटियां

आशा है विश्वास है
सृष्टि का सबसे सुन्दर
अध्याय हैं बेटियां

नव वंदना की राग हैं
नवचेतना की द्वार हैं बेटियां

अपने दुख सहकर
समाज को सुख देने का
पर्याय हैं बेटियां

सूरज की पहली किरण
और चांद का आफताब हैं बेटियां

शक्तिस्वरूपा जगत्जननी
मातरूपा बेमिसाल हैं बेटियां

तो बेटियों का तुम सम्मान करो
कभी न तुम इनका अपमान करो

उन्हें तुम इस धरा पर आने दो
सृष्टि को नई रोशनी दिखाने दो

वे वंदना की नई राग बन
तुम्हारी पीड़ा को हर लेंगी
वह चेतना की द्वार बनकर
नए अध्याय नव विकास
का सृजन करेंगी

बन जाएगी लोरी-गजल-गीत
तम्हारे जीवन का
तुम्हें भटके पथ से
सम्हालकर तम्हारा पूर्ण
विकास करेगी
तो हे भटके मानव तुम
अब सम्हल जाओ
बेटियां बचाओ और
बेटियां पढ़ाओ

नवनिर्माण नवविकास की
प्रस्तावना बन जाओ।
००


कविता मेरे लिए

मेरे मृत्यु के पश्चात
मेरी कविताएं
तुम्हारे पास आएंगी।

तुम्हें रूलाएंगी
तुम्हें हंसाएंगी
कुछ गीत नया सुनाएंगी।

आज तक मैं जो तुमसे
न कह सका
वह तुमसे कहकर जाएंगी।

कैनवस पर लिखा एक-एक शब्द
स्वर बनकर बोलेगा
वेदना, दर्द और अपेक्षाओं
के अनेक पृष्ठों को खोलेगा।

उसे सहेजकर रखना
वह तुम्हारी स्मृतियों में
रच-बस जाएगा
मिलन और समर्पण के
नए द्वार खोलेगा।

देगी नए आयाम इस कहानी को
जिसकी प्रस्तावना हमने और तुमने शुरू की थी
उसकी खूबसूरत उपसंहार बन जाएंगी।

करेंगी नया सृजन एक संबंधों का
भीगी मिट्टी की साँची खुशबू
की तरह प्रकृति में फैल जाएंगी
जीवन का एक सुंदर दर्शन बन जाएंगी।

शब्दों का एक-एक स्पर्श
तुम्हारे मन में रच-बस जाएगा
मधुर संगीत सुनाएगा।



ताकि नदी-पोखरे जिंदा रह सकें

अपने छुटपने में अपनी दादी के साथ
नदी के तट पर आया था
वहां दहाड़ खाती, कोलाहल करती नदी थी
निर्जन-सा घाट-तट था, कुछ नावें थीं।
कुछ अशिक्षित नाविक और मछुआरे थे
अपने यौवनकाल मे,
फिर उसी नदी के तट पर आया
अपनी जननी मां के साथ
घाट अब पक्का हो गया था
नदी अब पतली हो गई थी
लगा जैसे डाइटिंग कर रही हो।
गाड़ियों का धुआं बढ़ गया था
नदी का तट कुछ सहमा सा था
मौन हो अपनी पीड़ा को सह रहा था
कुछ कहने की चाह में मौन था।
आज तीस वर्षों बाद,
फिर उसी नदी के तट पर आया
अपनी पत्नी के साथ था
यहां पर लाल पत्थरों से
सजा हुआ घाट था
दूर-दूर तक सुंदर रोशनी के नजारे हैं
दूर तक फैले हुए बतियाते हुए
प्रेमी युगलों के समूह हैं
कुछ आइसक्रीम के डिब्बे हैं
कुछ कैडबरीज के रैपर हैं।
गाड़ियों की लंबी कतारें भी हैं
बहुत कोलाहल है, धुआं है
नदी अब सिमटकर, सहमकर
नाले में तब्दील हो गई है।
शायद वेंदीलेटर पर है,
अपनी अंतिम सांस को लेते हुए
जैसे कह रही है, तुम्हें यदि नदी, पोखरों को
बचाना है, तो उसके असली स्वरूप को लाना होगा
उसे फिर से यौवन का रूप वापस करना होगा
फिर से सुनो, सुनते जाओ नदी, पोखरों को बचाना होगा
ताकि नदी-पोखरे जिंदा रह सकें।
००

4 टिप्‍पणियां:

  1. संवेदनशील कविताएँ प्रभाव छोड़ती हैं
    -रतीनाथ योगेश्वर

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  4. समाज , एयर कंडीशनर, हवेली, स्कूल की एडमीशन, इंजीनियरिंग,कॉलेज, कुरान हदीस , कैनवस’ आदि शब्द चाहें जिस वजह से आयें हों पर कवि के काव्य संसार में अहमियत रखतें हैं \ कवि का काव्य संसार ऐसे गैर सांस्कृतिक शब्दों से बनी दुनिया को अपने भीतर अंतर्भुक्त करने के बावजूद सभ्यता भेदी आलोचनात्मक दृष्टि का एहसास भले हीं नहीं करा पाता , पर एक आधुनिक पढ़े लिखे सह्रदय की भावनात्मक प्रतिक्रिया को ज़रूर आगे लाता है. shyam

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