02 दिसंबर, 2017

फिलिम: शटर आईलैण्ड


                   सब आपकी आँखों का धोखा है !

                               अभिनव सिन्हा

मार्टिन स्कॉर्सेज़ी पिछले कुछ दशकों से हॉलीवुड के अग्रणी निर्देशकों में से एक रहे हैं। उनके नाम ‘रेजिंग बुल’, ‘टैक्सी ड्राइवर’, ‘मीन स्ट्रीट्स’, ‘गुडफेलाज़’, ‘दि डिपार्टेड’, आदि जैसी प्रसिद्ध और आलोचकों द्वारा सराही गयी फिल्में दर्ज़ हैं।


मार्टिन स्कॉर्सेज़ी इतालवी मूल के हैं और उनका बचपन इटली के जिस हिस्से में बीता वहाँ एक प्रकार से माफ़ियाओं का राज चलता था। एक बार स्कॉर्सेज़ी ने कहा था कि माफ़िया क्या होता है, यह देखने के लिए उन्हें सिर्फ अपनी खिड़की से पर्दा हटाने की ज़रूरत थी। इसलिए माफ़िया जगत पर फिल्म बनाना उनकी ख़ासियत रही है। इन फिल्मों में उन्होंने माफ़ियाओं का एक ख़ास तरीके से “यथार्थवादी” चित्रण किया है। इस चित्रण पर हम कभी आगे लिखेंगे, लेकिन जिस फिल्म की हम अभी बात कर रहे हैं, उसका किसी भी रूप में माफ़िया  जगत से कोई ताल्लुक नहीं है। यह 2010 में बनी फिल्म है, जो कि मनोवैज्ञानिक थ्रिलर है। इसकी थीम आपराधिक मानसिक रोगियों के अस्पताल से जुड़ी हुई है। पाठकों में से कई लोगों ने शायद यह फिल्म न देखी हो, इसलिए इसकी आलोचनात्मक समीक्षा करने से पहले फिल्म के प्लॉट और कहानी के बारे में बता देना उपयोगी होगा।

फिल्म का कथानक

फिल्म की कहानी 1954 में घटित होती है, यानी कि शीत युद्ध के दौरान। फिल्म की शुरुआत जिस शॉट से होती है, उसमें अमेरिकी फेडरल मार्शल टेडी डेनियल्स (लियोनार्डो डि कैप्रियो) और उसका सहयोगी चक (मार्क रफेलो) एक जहाज़ से शटर आईलैण्ड नामक द्वीप पर जा रहे हैं। टेडी समुद्री बुखार के कारण बाथरूम में उल्टियाँ कर रहा है। जब वह जहाज़ के डेक पर आता है तो वह चक से मिलता है। यह उसकी चक से पहली मुलाकात है। वे उस जहाज़ पर कैसे चढ़े, और पहले उनकी मुलाकात क्यों नहीं हुई, इसके बारे में फिल्म कुछ नहीं बताती है, जिसका कि एक वैध कारण है। वे शटर आईलैण्ड पर ऐशक्लिफ अस्पताल जा रहे हैं, जहाँ कि आपराधिक रूप से पागल मानसिक रोगियों को रखा जाता है। उनका काम है वहाँ से एक महिला रोगी रेचल सोलाण्डो (एमिली मॉर्टिमर) के अचानक ग़ायब हो जाने की पड़ताल करना। यह रोगी अपने तालाबन्द कमरे से रहस्यमय रूप से ऐसे ग़ायब हो गयी जैसे कि हवा हो गयी हो। इस अस्पताल के प्रमुख मनोचिकित्सक डा. जॉन कॉली (बेन किंग्सले) बताते हैं कि रेचल ने अपने तीन बच्चों को डुबाकर मार दिया था, लेकिन उसे लगता है कि उसके बच्चे अभी भी ज़िन्दा हैं। वह इस अस्पताल को भी अस्पताल नहीं बल्कि अपना घर, और अस्पताल के कर्मचारियों को अखबारवाला, दूधवाला आदि समझती है। यह पूरा द्वीप ऊँची और बीहड़ चट्टानों से घिरा हुआ है, और आस-पास का समुद्र बेहद आक्रामक है। डा. कॉली दोनों पुलिसवालों को बताता है कि रेचल को पूरे द्वीप के चप्पे-चप्पे पर ढूँढ लिया गया है, लेकिन उसका पता नहीं चला। इसी बीच मौसम ख़राब हो रहा है और एक भारी तूफ़ान आने के संकेत मिल रहे हैं। डा. कॉली टेड और चक की मरीज़ों की फाइलें देखने की माँग से इंकार कर देता है और कहता है कि इसके लिए उसे अस्पताल के निदेशक मण्डल से बात करनी होगी। बाद में, निदेशक मण्डल भी टेड और चक की इन माँगों को नहीं मानता है। टेड और चक को रेचल का कमरा दिखलाया जाता है, जहाँ टेड को एक टाइल के नीचे दबा हुआ रेचल का लिखा एक नोट मिलता है, जिस पर लिखा होता है, “4 का नियम क्या है? संख्या 67 कौन है?”। इसका अर्थ टेड और चक के समझ में नहीं आता और वे अपनी जाँच आगे बढ़ाना शुरू करते हैं। इसके पहले टेड डा. नेरिंग (मैक्स वॉन डाइक) से मिलता है जो कि अस्पताल में चीफ ऑफ स्टाफ है। वहाँ पृष्ठभूमि में 19वीं सदी के यहूदी जर्मन संगीतकार माहलर का संगीत बज रहा है, जिसके संगीत को नात्सी जर्मनी में प्रतिबन्धित कर दिया गया था। यह संगीत सुनकर टेड के दिमाग़ में कुछ छवियाँ आती हैं, जो कि द्वितीय विश्वयुद्ध में एक अमेरिकी सैनिक के तौर पर उसके अनुभवों पर आधारित थीं। टेड को अन्दाज़ा लगता है कि डा. नेरिंग जर्मन और और उसे अमेरिका के ऑफिस ऑफ स्ट्रैटेज़िक सर्विसेज़ ने भर्ती किया है। इस कार्यालय ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद कई नात्सी वैज्ञानिकों को अमेरिकी रक्षा सेवा में भर्ती किया था; उनमें से कई न्यूरेम्बर्ग मुकदमे में पेश भी हो चुके थे। इनमें से कइयों को अमेरिकी प्रशासन ने यातना की नयी तकनीकों को ईजाद करने के काम में लगाया था। टेड को शक़ होता है कि डा. नेरिंग भी एक नात्सी है। उनके बीच एक छोटी-सी बहस होती है जिसमें डा. नेरिंग मरीज़ों और डॉक्टरों की फाइलें टेड को दिखाने से इंकार कर देता है। इस पर टेड यह धमकी देता है कि वह केस को यहीं बन्द कर उनके ख़िलाफ़ एक रिपोर्ट एफ.बी.आई. को दे देगा और अगले दिन ही वहाँ से चला जायेगा। लेकिन रात में ही तूफान आ जाता है और मौसम ऐसा नहीं रह जाता कि वे शटर आईलैण्ड से निकल पायें।

उसी रात टेड को अपनी पत्नी डोलोरेस (मिचेल विलियम्स) का सपना आता है, जो घर में लगी आग में दो वर्ष पहले मर गयी थी। सपने में वह टेड को बताती है कि रेचल द्वीप पर ही है और एण्ड्रू लेडिस भी वहीं है। लेडिस वह व्यक्ति होता है जिसने उसके घर में आग लगायी थी। अगली सुबह, टेड रेचल के समूह के रोगियों से पूछताछ शुरू करता है। जब चक थोड़ी देर के लिए पानी लेने जाता है तो एक सामान्य दिखने वाली महिला रोगी (जिसने कि अपने पति की कुल्हाड़े से हत्या कर दी होती है) टेड की नोटबुक उसके हाथ लेकर उस पर लिखती है,” भाग जाओ!” इसके बाद टेड अपने साथी चक को बताता है कि ऐशक्लिफ पर इस केस की पड़ताल के लिए आने के पीछे एक कारण यह भी था कि वह लेडिस को ढूँढ सके। हालाँकि, उसका इरादा लेडिस को मारने का नहीं है। लेडिस फाँसी से बच निकला था और एक साल बाद एक अखबार के ज़रिये टेड को पता चला था कि उसने एक बच्चों के स्कूल में आग लगा दी थी, जिसके बाद उसे ऐशक्लिफ में स्थानान्तरित कर दिया गया था।

लेकिन इन सबके बावजूद वह लेडिस को मारना नहीं चाहता है, क्योंकि उसने अपनी ज़िन्दगी में पहले ही काफ़ी मौतें और खून-ख़राबा देख लिया है। टेड बताता है कि वह द्वितीय विश्वयुद्ध में उन अमेरिकी सैनिकों में से था ज़िन्होंने जर्मनी में दाकाऊ के यातना शिविर को मुक्त कराया था। इस दौरान अमेरिकी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर रहे नात्सी सैनिकों का नरसंहार कर दिया था। इस दौरान टेड ने यातना शिविर में मरे हुए हज़ारों लोगों की बर्फ में जमी लाशें भी देखी थीं। उसने यातना शिविर के अधिकारी के बारे में भी बताया जिसने आत्महत्या करने के लिए खुद को गोली मार ली थी, लेकिन वह मरा नहीं था। वह तड़प रहा था और रिवॉल्वर की तरफ़ हाथ बढ़ा रहा था, ताकि अपने आपको तक़लीफ़ से मुक्ति दिला सके। लेकिन टेड ने वह रिवाल्वर अपने बूट से दूर खिसका दी थी, जिसके कारण वह एक घण्टे तक तड़पने के बाद मरा था। इन सभी कारणों से अब वह और खून-ख़राबा नहीं करना चाहता है।

उसका मकसद बस यह पता लगाना है कि ऐशक्लिफ में क्या चल रहा है और उसके बाद वापस चले जाना है, क्योंकि उसे यहाँ चल रही चीज़ों में कुछ अजीब लग रहा है। उसने बताया कि उसे अपने एक सहकर्मी से पता चला था कि ऐशक्लिफ की फण्डिंग ‘हाउस अनअमेरिकन ऐक्टिविटीज़ कमिटी’ (हुआक) से आ रही है, जिसका काम मुख्य तौर पर कम्युनिस्टों के ख़िलाफ़ धरपकड़ करना, उनका उत्पीड़न करना और उन्हें गिरफ्तार करके उन पर मुकदमा चलवाना था। टेड बताता है कि उसे ऐशक्लिफ का एक भूतपूर्व मरीज़ मिला था जिसने उसे बताया था कि यहाँ पर मरीज़ों के दिमाग़ों पर अमानवीय प्रयोग किये जा रहे हैं। इसी चीज़ का पता लगाने के लिए वह ऐशक्लिफ़ आना चाहता था। चक ने सहमति जतायी कि उस जगह कुछ गड़बड़ है, लेकिन साथ ही उसने अचरज जताया कि टेड यहाँ आना चाहता था, और उसे तुरन्त यहाँ एक केस पर आने का मौका भी दे दिया गया। इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि उसे यहाँ साज़िश के तहत लाया गया हो। दोनों इस बात पर राज़ी होते हैं कि जल्द से जल्द ऐशक्लिफ में चल रही गड़बड़ के बारे में सबूत जुटाकर शटर आईलैण्ड से निकल लिया जाये।

अस्पताल वापस आने पर टेड डा. कॉली और डा. नेरिंग की मौजूदगी में चल रही निदेशक मण्डल की बैठक में पहुँच जाता है, जो इस बात पर चल रही होती है कि तूफान में बिजली जाने पर रोगियों की रक्षा कैसे की जायेगी। इसमें डा. नेरिंग का रुख़ कठोर है और रोगियों में बारे में उसे उतनी चिन्ता नहीं है, जबकि डा. कॉली का दृष्टिकोण उदार और मानवतावादी है। टेड यह बात सुनता है और पाता है कि अस्पताल में कुल 66 रोगी हैं। इस पर उसे रेचल सोलाण्डो का नोट याद आता है ज़िसमें पूछा गया था कि संख्या 67 कौन है। वह पूछता है कि रेचल के अनुसार रोगी संख्या 67 कौन था? डा. कॉली बताता है कि उसे इसके बारे में जानकारी नहीं है, लेकिन अब वह खुद रेचल से पूछ सकता है क्योंकि रेचल द्वीप पर मौजूद लाइटहाउस के पास मिल गयी है। रेचल से साक्षात्कार के दौरान टेड को पता चलता है कि उसे अपने खोने के बारे में कुछ भी पता नहीं है। उसे लगता कि उसका जीवन सामान्य है। टेड अपना परिचय एक पुलिस अफसर के तौर पर देता है जो कि कम्युनिस्ट विद्रोहियों द्वारा उसके इलाके में विद्रोही साहित्य के प्रचार-प्रसार की जाँच कर रहा है। रेचल को अचानक लगता है कि टेड उसका पति ज़िम है, वह उसे गले लगाती है, लेकिन जल्द ही वह चीखने लगती है कि उसका पति मर चुका है और पूछती है कि ‘तुम कौन हो?’ इस वाकये से टेड परेशान हो जाता है, उसे भयंकर सिरदर्द होता है।

चक उसे बिस्तर पर ले जाता है। टेड फिर से सपना देखता है ज़िसमें एक छोटी-सी बच्ची दाकाऊ में, जब वह वीरान यातना शिविर में लाशों के बीच से जा रहा होता है, उससे कहती है, ‘तुम्हें मुझे बचाना चाहिए था, हम सबको बचाना चाहिए था।” इसके बाद टेड को मतिभ्रम होता है कि वह लेडिस से बात कर रहा है और फिर अपने पार्टनर चक से बात कर रहा है। इसके बाद, वह देखता है कि वह रेचल में मरे हुए बच्चों को उठाकर ले जाने में उसकी मदद कर रहा है। उसे लगता है कि वह नींद से जाग गया है, लेकिन यह उसका भ्रम होता है। उसे एक और भ्रान्ति होती है, कि कमरे में उसकी पत्नी प्रवेश करती है। वह उसे बताती है कि लेडिस अभी भी द्वीप पर है और वह उसे खोजकर उसे मार डाले। टेड तूफान के कारण उठता है। कई मरीज़ अपने कमरों से भाग निकले हैं। टेड चक के साथ वार्ड सी में जाता है जहाँ सबसे ख़तरनाक रोगी रखे जाते हैं। वहाँ वह थोड़ी देर के लिए चक से बिछड़ जाता है।

इस दौरान वह जॉर्ज नॉइस से मिलता है, जो कि ऐशक्लिफ का वही भूतपूर्व मरीज़ है, जो कि समाजवादी होता है और ज़िसने टेड को बॉस्टन में बताया होता है कि ऐशक्लिफ में मरीज़ों के दिमाग़ों पर प्रयोग किये जा रहे हैं। वह फिर से ऐशक्लिफ में लाये जाने के लिए टेड को ज़िम्मेदार ठहराता है और बताता है कि वह एक साज़िश का शिकार हो चुका है। वह कहता है कि उसे लेडिस को ढूँढने और सरकारी षड्यन्त्र के बारे में सबूत जुटाने में से किसी एक काम को चुनना होगा और उसकी पत्नी उसकी यादों में आकर उसे छल रही है। टेड कहता है कि उसकी पत्नी को भूल पाना उसके लिए सम्भव नहीं है, लेकिन वह ऐशक्लिफ में चल रही गड़बड़ के बारे में प्रमाण जुटाकर उसे वहाँ से बाहर निकलवायेगा। नॉइस उसे बताता है कि उसे डर है कि उसे लाइट हाउस में ले जाया जायेगा, जहाँ मरीज़ों के दिमाग़ को खोलकर उन्हें गुलाम जैसा बना दिया जाता है, उनकी लोबोटोमी की जाती है।

टेड लाइट हाउस जाने का प्रयास करता है, लेकिन बुरे मौसम के कारण नहीं जा पाता। चक को साथ ले जाने से वह इंकार कर देता है। जब वह वापस आता है तो उसे चक चट्टान से नीचे गिरा हुआ दिखता है। वह नीचे पहुँचता है, तो चक वहाँ से ग़ायब होता है। ऊपर चढ़ने के दौरान उसे चट्टानों के बीच एक गुफ़ा मिलती है, ज़िसमें उसे एक औरत मिलती है जो उसे बताती है कि वह रेचल सोलाण्डो (पैट्रीशिया क्लार्कसन) है और वह ऐशक्लिफ़ में एक डॉक्टर थी। वह बताती है कि टेड को फँसाकर वहाँ का मरीज़ बनाने की साज़िश की जा रही है। ऐशक्लिफ में मरीज़ों के दिमाग़ों पर प्रयोग करके उन्हें शीतयुद्ध में प्रयोग किये जाने वाले एजेण्टों में तब्दील किया जा रहा है। इसके लिए हर प्रकार के विरोध को पागलपन करार दिया जा रहा है। फिर वह टेड को गुफ़ा से बाहर निकाल देती है, इस डर से कि उसके कारण अस्पताल के गार्ड उसे भी ढूँढ लेंगे। इसके बाद टेड गार्डों को धोखा देने के लिए डा. कॉली की कार को आग लगाकर उड़ा देता है और लाइट हाउस में पहुँच जाता है।

वहाँ सबसे ऊपर के कमरे में टेड को डा. कॉली मिलता है और यहीं पर पूरे रहस्य का पर्दाफाश होता है। कॉली बताता है कि टेड कोई नहीं बल्कि उसके मन की कल्पना है, और वह स्वयं वास्तव में एण्ड्रू लेडिस है। वह एक मानसिक रोगी है, जो पहले सेना में हुआ करता था और द्वितीय विश्वयुद्ध में उसने दाकाऊ के यातना शिविर को मुक्त करने के अभियान में भी भाग लिया था। उसकी ये यादें बिल्कुल सही हैं। लेकिन युद्ध से वापस आने के बाद वह पुलिस में नौकरी करता है। उसकी बीवी में आत्मघाती और पागलपन के रुझान होते हैं। वह स्वयं और उसके पड़ोसी इस बारे में लेडिस को आगाह भी करते हैं, लेकिन वह द्वितीय विश्वयुद्ध के अपने अनुभवों के कारण स्वयं शराबी हो चुका होता है, और इन चेतावनियों पर ध्यान नहीं देता। एक दिन उसकी पत्नी उसके तीन बच्चों को तालाब में डुबाकर मार देती है। इसके बाद वह अपनी पत्नी को गोली मार देता है। इसके बाद उसे ऐशक्लिफ में भर्ती कर दिया जाता है।

वह अपना दिमागी सन्तुलन खो चुका होता है। वह इस बात को स्वीकार नहीं कर पाता कि उसके बच्चों की उसकी पत्नी ने और उसकी पत्नी की उसने हत्या कर दी है। इस वास्तविकता से भागने के लिए वह एक कल्पना रचता है ज़िसमें वह टेडी डेनियल्स है, और साथ ही रेचल सोलाण्डो जैसे अन्य चरित्र हैं। कम्युनिस्टों और अन्य विद्रोहियों के ख़िलाफ़ नात्सी प्रयोगों के बारे में उसकी सोच एक कल्पना है। डा. कॉली उससे पूछता है, “तुम पिछले दो दिनों से पूरे द्वीप पर घूम रहे हो। कहाँ हैं तुम्हारे नात्सी प्रयोग?” वह बताता है कि डा. शीहन (ज़िसे पहले रेचल का छुट्टी पर गया चिकित्सक बताया गया होता है) और वह पिछले दो वर्षों से दवाओं के ज़रिये यह प्रयास कर रहे थे कि वह अपनी फन्तासी से बाहर आकर सच्चाई को स्वीकार कर ले। लेकिन ऐसा न होने पर उन्होंने एक नया तरीका अपनाया। उन्होंने तय किया कि लेडिस को उसकी फन्तासी में जीने दिया जाय। अन्त में, वह ऐसे मुकाम पर पहुँच जायेगा जहाँ फन्तासी में जी पाना सम्भव नहीं होगा और अन्ततः वह अन्तिम तौर पर असलियत को स्वीकार कर लेगा। और इस बार वह वापस अपनी फन्तासी की दुनिया में नहीं जायेगा। वह बताता है कि ‘4 का नियम’ और कुछ नहीं बल्कि चार शख़्सों के नाम हैं, ज़िनमें से दो असली हैं, और दो उसकी दिमाग़ की पैदावार हैं। दो असली नामों (सोलान्दो और टेडी वास्तव में डोलोरेस और लेडिस के ही नाम के एनाग्राम हैं) को उलट-पलट कर उसने दो नये नामों वाले चरित्र बना दिये हैं। डा. कॉली लेडिस (टेड) को उसके मरे हुए बच्चों की तस्वीर दिखाता है।

वह बताता है कि अगर उसके इलाज में यह नया तरीका विफल रहा तो उसकी लोबोटोमी (मस्तिष्क शल्य क्रिया करके रोगी को स्थिर बना देना) करने के अलावा कोई रास्ता नहीं रह जायेगा। डा. कॉली और डा. शीहन इस रास्ते के विरोधी हैं, जबकि डा. नेरिंग इस रास्ते के समर्थक हैं। चक यहीं पर प्रकट होता है और बताता है कि वही डा. शीहन हैं। फिर दोनों डॉक्टर मिलकर लेडिस को वास्तविकता के बारे में बताते हैं। पहले लेडिस इंकार करता है, लेकिन उसके बाद उसके दिमाग़ में डा. कॉली द्वारा बताया गयी घटनाएँ एक फिल्म की तरह चलती हैं, और उसे याद आता है कि वह वाकई लेडिस है। वह गिर जाता है। अगले दृश्य में डा. कॉली उससे पूछते हैं कि वह कौन है। वह मानता है कि वह लेडिस है और उसने टेडी डेनियल्स को केन्द्र में रखकर एक पूरी फन्तासी रची थी ताकि उसे यथार्थ का सामना न करना पड़े, क्योंकि अपने बच्चों की मौत के लिए वह अपने आपको ज़िम्मेदार मानता है। डा. कॉली कहते हैं कि उन्हें डर है कि वह फिर से अपनी फन्तासी की दुनिया में न पहुँच जाये।

अगले दृश्य में लेडिस अस्पताल की सीढ़ियों पर बैठा है और वह फिर से अपनी फन्तासी की दुनिया में पहुँच चुका है। उसके बगल में डा. शीहन बैठा होता है, जो कि एक बार फिर से अपने चक के किरदार को निभा रहा होता है। टेड (लेडिस) कहता है कि वह इस द्वीप से जाना चाहता है और दुनिया को बताना चाहता है कि इस द्वीप पर क्या चल रहा है। इस पर चक (डा. शीहन) डा. कॉली और डा. नेरिंग की ओर इशारा करके बताता है कि मरीज़ फिर से अपनी फन्तासी में जा चुका है। डा. कॉली डा. नेरिंग से निराशापूर्ण तरीके से इशारा करके कुछ कहता है और चला जाता है। डा. नेरिंग गार्डों के साथ टेड और चक के पास आता है। टेड चक से कहता है, “इस जगह को देखकर मैं सोचता हूँ कि क्या ज़्यादा बुरा है- एक दरिन्दे की तरह जीना या एक अच्छे इंसान की तरह मर जाना।” इसके बाद, वह गार्डों के साथ उठकर चला जाता है। यह इस तरफ इशारा था कि उसे लोबोटोमी के लिए ले जाया जा रहा है। इसके बाद अन्तिम दृश्य में लाइट हाउस को दिखाया जाता है और पृष्ठभूमि में चेलो से भयावह संगीत बजता है।

व्याख्याः पहले इस बारे में कि किस चीज़ की व्याख्या

करने का प्रयास न करें!

इस फिल्म की व्याख्या करने में अधिकांश समीक्षकों ने जो गड़बड़ी की है, वह यह कि वे वाकई ऐशक्लिफ को एक ऐसे संस्थान के रूप में देखते हैं जहाँ व्यवस्था के विरोधियों के दिमाग़ों पर नात्सी किस्म के प्रयोग किये जा रहे हैं। उस सूरत में यह फिल्म एक प्रगतिशील फिल्म बन जाती है, हालाँकि यह पराजय में समाप्त होती है। लेकिन यह इस फिल्म का बिल्कुल ग़लत पाठ है। अगर इस फिल्म की एक सही आलोचना की जानी है, तो उसकी पहली शर्त यह है कि आप यह मानकर चलें कि इस फिल्म में जो कहानी पेश की गयी है, वह एकदम सीधी और स्पष्ट है, और उसके बीजलेख को समझने या विनिर्मित (डीकंस्ट्रक्ट) करने की कोई ज़रूरत नहीं है। यानी, आपको पहले यह मानना पड़ेगा कि लियोनार्डो डि कैप्रियो का चरित्र वास्तव में एक पागल है। यानी कि वह एण्ड्रू लेडिस है, न कि टेड। टेड वास्तव में लेडिस द्वारा रची गयी फन्तासी का चरित्र है, जो कि उसने इसलिए रचा है कि उसे अपने जीवन के कड़वे यथार्थ का सामना न करना पड़े। आखि़री दृश्य में वास्तव में लेडिस दरअसल अपनी फन्तासी की दुनिया में नहीं गया है और वह जानता है कि डा. कॉली और डा. नेरिंग उसे दूर से देख रहे हैं।

वह जानबूझकर अपने फिर से बीमार होने का नाटक करता है, ताकि उसे लोबोटोमाइज़ कर दिया जाय। इसका कारण यह है कि आखि़री तौर पर यथार्थ को स्वीकार करने के बाद, उसकी तकलीफ़ इतनी ज़्यादा है कि वह उसे बर्दाश्त नहीं कर सकता है। वह टेडी डेनियल्स के तौर पर ख़त्म होना चाहता है, बजाय एण्ड्रू लेडिस के तौर पर जीने के। फिल्म में किसी अमेरिकी सरकारी एजेंसी द्वारा राजनीतिक विरोधियों पर मानसिक प्रयोग का रहस्य नहीं है और टेड डेनियल्स वास्तव में मानसिक आघात से पीड़ित रोगी लेडिस ही है, इसके कई प्रमाण दिये जा सकते हैं। मसलन, फिल्म के शुरुआती दृश्य में ज़िस नौका से टेडी शटर आईलैण्ड पर आ रहा है, उस पर उसके कमरे में ज़ंज़ीरें और सिर पर बाँधने वाला पट्टा टंगा है। इन उपकरणों का इस्तेमाल मानसिक रोगियों को एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाने में किया जाता है। स्पष्ट है कि चक (यानी, डा. शीहन) टेडी (यानी लेडिस) को शटर आईलैण्ड पर नौका से ले आ रहा है। इस दृश्य के पहले से ही टेडी अपनी फन्तासी को जी रहा है, जैसा कि डा. कॉली और डा. शीहन की योजना थी। जॉर्ज नॉइस, ज़िससे कि टेडी वॉर्ड सी में मिलता है, उससे वह पहले भी अस्पताल में ही मिला होता है। वह कई बार अपराध करने वाला पागल है और वही टेडी को उसकी फन्तासी के लिए यह मसाला देता है कि ऐशक्लिफ में राजनीतिक विरोधियों पर प्रयोग किये जा रहे हैं।

जब भी टेडी गार्डों के पास होता है तो वे बेहद चौकन्ने हो जाते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि डा. कॉली की योजना के अनुसार एक नाटक चल रहा है ज़िसमें लेडिस टेड बना हुआ है, लेकिन वे यह भी जानते हैं कि लेडिस एक ख़तरनाक पागल है, जो पहले भी गार्डों पर हमला कर चुका है। इसलिए वे इस नाटक को लेकर बहुत उत्साहित नहीं होते हैं। जब टेडी एक सामान्य दिखने वाली पागल मिसेज कियर्न्स का साक्षात्कार लेता है, तो मिसेज़ कियर्न्स चक की ओर ऐसे देखती है, जैसे कि उसे पहचानती हो। जब टेड पूछता है कि डा. शीहन कैसे व्यक्ति हैं और क्या उन्होंने कभी उसे छेड़ा है, तो वह चक (जो कि वास्तव में डा. शीहन ही है) की तरफ़ देखती है और कहती है कि ऐसा नहीं है और डा. शीहन बहुत अच्छे आदमी हैं। इस पर चक के होंठों पर एक धन्यवाद ज्ञापन वाली हल्की मुस्कान आती है। फिल्म के शुरू में एक पागल औरत टेड के ऐशक्लिफ में आने पर उसे हाथ से चुप रहने का इशारा करती है और बाद में मुस्कराती है। क्योंकि वह टेड को पहले से ही जानती है और चूँकि उसे इस पूरे नाटक को न बिगाड़ने की हिदायत दी गयी है, इसलिए वह उसे चुप रहने का इशारा करती है। फिल्म की शुरुआत में टेडी चक से कहता है कि वह ऐशक्लिफ जैसी जगह पहले भी देख चुका है, जबकि वह ऐशक्लिफ पर पहली बार जा रहा है। ऐसे दज़र्नों उदाहरण दिये जा सकते हैं ज़िससे सिद्ध किया जा सकता है कि फिल्म की कहानी में कोई घुमाव नहीं है और इसकी कहानी में किसी रहस्य को ढूँढने के लिए मगजमारी करना अपने वक्त को ज़ाया करना है।

व्याख्याः कहानी से परे…

लेकिन हम फिल्म को देखते हुए जानते हैं कि इसमें कहानी और प्लॉट के बाहर बहुत-कुछ है; बल्कि कहना चाहिए कि फिल्म का असली सन्देश इसकी कहानी में है ही नहीं। वास्तव में, इस फिल्म का सन्देश लेडिस की फन्तासी में है, और इस बात में है कि जो वह सोच रहा है वह यथार्थ नहीं बल्कि फन्तासी है। यहाँ सबसे अहम बात यह है कि लेडिस की फन्तासी के तौर पर किस कहानी को चुना गया है। लेडिस ने एक फन्तासी की दुनिया इसलिए रची थी ताकि वह अपने यथार्थ से मुक्ति पा सके, उससे दूर जा सके। ज़िस उपन्यास पर यह फिल्म बनी है उसका लेखक या फिल्म का निर्देशक इस काम के लिए कोई भी फन्तासी रच सकता था, जैसे कि लेडिस अपने आपको स्वयं एक डॉक्टर समझता या फिर नर्स समझता या कुछ और। लेकिन जो फन्तासी रची गयी है, उसमें वह अमेरिकी फेडरल मार्शल (एक पुलिस वाला) है जो कि एक ऐसे संस्थान की जाँच कर रहा है, ज़िसके बारे में उसे शक़ है कि वहाँ अमेरिकी सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों के दिमाग़ों पर प्रयोग कर रही है; लेडिस की कल्पना में यह प्रयोग अमेरिकी सरकार द्वारा 1950 के दशक में भर्ती किये गये भूतपूर्व नात्सी डॉक्टर डा. नेरिंग द्वारा किये जा रहे हैं; इसमें उसे एक समाजवादी नौजवान मिलता है (नॉइस) जो उसे बताता है कि ऐशक्लिफ़ अस्पताल में उसके ऊपर भी प्रयोग किये गये हैं और वह किसी तरह से वहाँ से निकलकर एक सामान्य जेल में पहुँचा था; उसकी कल्पना में लेडिस का एक पुलिस वाला सहकर्मी उसे बताता है कि ऐशक्लिफ़ अस्पताल की फण्डिंग मैकार्थी काल की कुख्यात ‘हुआक’ (हाउस अनअमेरिकन ऐक्टिविटीज़ कमिटी) की ओर से आती है; और अपनी फन्तासी में जाँच-पड़ताल करते हुए लेडिस को यह पूरा विश्वास हो जाता है कि ऐशक्लिफ अस्पताल में वाकई राजनीतिक विरोधियों के मस्तिष्क पर प्रयोग करके उन्हें राजनीतिक तौर पर निष्क्रिय और आज्ञाकारी बनाया जा रहा है।

लेडिस अपनी कल्पना में ही अमेरिकी सत्ता द्वारा किये जा रहे इस बर्बर प्रयोग की तुलना नात्सियों के यातना शिविरों और सोवियत संघ के गुलाग (इसके बिना हॉलीवुड कैसे रह सकता है; सोवियत संघ के फेटिश से वह मुक्त ही नहीं हो पा रहा है!) से करता है। यह पूरी फन्तासी तार्किक रूप से बिल्कुल पूर्ण है। और वास्तव में, अमेरिकी इतिहास में अमेरिकी पूँजीवाद द्वारा ऐसे बर्बर, अमानवीय कृत्यों के ठोस प्रमाण भी मौजूद हैं। एमके-अल्ट्रा नामक एक ऐसा ही कार्यक्रम अमेरिकी सरकार ने 1950 के दशक में चलाया था, ज़िसमें राजनीतिक कैदियों पर प्रयोग किये जाते थे और उनमें मनोवैज्ञानिक यातना के ज़रिये व्यवहार-परिवर्तन किये जाते थे। यह कार्यक्रम सी.आई.ए. का था। उसके बाद भी अमेरिकी सरकार कम्युनिस्टों के दमन के लिए ऐसे तरीकों का बार-बार इस्तेमाल करती रही है। और फिल्म में लेडिस की फन्तासी बिल्कुल यही है। हमें यह नहीं बताया जाता है कि उस समय तक ऐसी चीज़ें वास्तव में हो रही थीं। फिल्म की कहानी 1954 की है और लेडिस अस्पताल में 1952 से है। उस समय अमेरिकी सरकार के इन कुकर्मों के बारे में कोई विशेष जानकारी सामने नहीं आयी थी। लेकिन लेडिस की यही फन्तासी है। और वास्तव में ऐसी चीज़ें हो भी रही थीं।

लेकिन अन्त में पता चलता है कि लेडिस जो कुछ सोच रहा था वह महज़ उसकी कल्पना की उड़ान थी। और यह कल्पना क्या थी? यह कल्पना थी अमेरिकी साम्राज्यवाद द्वारा किये जा रहे कुकर्मों के बारे में! यातना शिविर, राजनीतिक कैदियों पर बर्बर चिकित्सीय प्रयोग, उनमें व्यवहारगत परिवर्तन लाकर उन्हें आज्ञाकारी और दासवत बनान- यह सब कल्पना है! और निर्देशक इस कल्पना को बारीकियों में जाकर विकसित करता है। जब चट्टान पर मौजूद गुफ़ा में टेड एक काल्पनिक महिला से मिलता है जो अपने आपको डा. रेचल सोलान्दो बताती है, तो वह उसे बताती है कि पूरे अस्पताल का स्टाफ सरकार की साज़िश के बारे में जानता है, और तुम किसी पर भरोसा नहीं कर सकते। एक भयावह माहौल पैदा किया जाता है। साम्राज्यवाद के प्रति भय का भाव पैदा किया जाता है। नायक सरकार के कुकर्मों का पर्दाफाश करने के प्रति कटिबद्ध है; लेकिन अन्त में सब बेकार! क्योंकि अन्त में पता चलता है कि नायक स्वयं एक पागल होता है। वास्तविकता और कल्पना की इस बाइनरी का इस्तेमाल किसलिए किया गया है? जैसा कि हमने पहले कहा था कि फिल्म के प्लॉट और कहानी में ऐसा कुछ ख़ास नहीं है ज़िसे कि विनिर्मित किया जाय। दरअसल, इस फिल्म में जो विनिर्मित करने लिए है, वह यह बाइनरी ही है, जोकि लेडिस के यथार्थ और कल्पना के बीच पैदा की गयी है। वास्तव में, यह उसके पागलपन का लक्षण है, सिम्प्टम है। अब इस बाइनरी और इस लक्षण को सामने रखते हुए यह सवाल पूछा जा सकता है कि फिल्म इसके ज़रिये किस चीज़ का रूपक पेश कर रही है, किस चीज़ को मेटाफराइज़ कर रही है?

यहीं पर फिल्म का सन्देश आता है। और यही पर इस सन्देश की समकालीनता प्रकट होती है। इस बाइनरी में कल्पना नुमाइन्दगी करती है अमेरिकी साम्राज्यवाद के कुकर्मों के यथार्थ की, न सिर्फ 1954 के यथार्थ की बल्कि आज के यथार्थ की! यह महज़ इत्तेफाक नहीं है कि ऐशक्लिफ की भौतिक संरचना में कई ऐसे तत्व मिलते हैं जो कि अबू गरेब के यातना शिविर से मिलते-जुलते हैं। इस कल्पना में अमेरिकी साम्राज्यवाद के सभी कुकर्म यथार्थवादी तरीके से प्रस्तुत होते हैं। लेकिन अन्ततः कल्पना एक कल्पना होती है। और बाइनरी का दूसरा छोर क्या है? यथार्थ! यथार्थ में यह कल्पना करने वाला व्यक्ति कौन है- एक पागल! यह पागल पहले वाकई द्वितीय विश्वयुद्ध का अमेरिकी सैनिक था, जो कि दकाऊ के नात्सी यातना शिविर की मुक्ति में शामिल था। उसके बाद वह पुलिस की नौकरी भी करता है। लेकिन जब उसकी पत्नी उसके बच्चों की हत्या करती है, और वह अपनी पत्नी की हत्या करता है, उसके बाद से वह अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठता है और फिर उसे ऐशक्लिफ लाया जाता है।

और यहाँ अपने मानसिक आघात से निपटने के लिए जो काल्पनिक समानान्तर दुनिया वह रचता है, उसमें यथार्थ और कल्पना के तत्व अन्तर्गुंथित हो जाते हैं। लेकिन इसमें जो शुद्ध कल्पना का तत्व है, वह अमेरिकी साम्राज्यवाद के कुकर्मों के बारे में है। ऐसे में, हमारे सामने यह फिल्म जो रूपक रखती है, उसका नतीजा या निष्कर्ष क्या है? वह यह है कि जो कोई व्यक्ति अमेरिकी बुर्जुआ जनवाद के इन पहलुओं की बात करता है, वह महज़ इनकी कल्पना कर रहा है। अमेरिकी जनवाद ऐसा नहीं करता! अमेरिका में ऐसा नहीं होता! निश्चित तौर पर, युद्ध के दौरान फिल्म में अमेरिकी सैनिकों को भी नात्सी सैनिकों का नरसंहार करते हुए दिखलाया जाता है। लेकिन साथ में नात्सियों द्वारा किये गये कत्ले-आम का चित्र भी हमारे सामने प्रस्तुत किया जाता है, जो कि इस नरसंहार का आंशिक और सशर्त वैधीकरण करता है। निश्चित तौर पर, फिल्म इस कृत्य को सीधे तौर पर सही नहीं ठहराती है। लेकिन ज़िन स्थितियों में आत्मसमर्पण करने वाले नात्सी सैनिकों का नरसंहार दिखाया गया है, वह भी ग़ौर करने लायक है। आत्मसमर्पण करने वाले नात्सी सैनिकों में से एक भागने की कोशिश करता है, ज़िस पर एक अमेरिकी सैनिक गोली चलाता है। इसके बाद पैदा हुई अराजकता में सभी अमेरिकी सैनिक आत्मसमर्पण कर चुके नात्सियों पर गोली चलाने लगते हैं और संयोगवश एक नरसंहार हो जाता है। इसके पहले अमेरिकी सैनिक नात्सी सैनिकों को गिरफ्तार करने के लिए उनकी कतारें लगवा रहे हैं, या उन्हें मारने के लिए, यह फिल्म में अस्पष्ट ही छोड़ दिया गया है। और इस घटना को लेकर नायक के मन में एक प्रकार का अपराध-बोध रह जाता है, ज़िसके कारण उसे बाद में शराब की लत भी लग जाती है।

इस लत के कारण ही वह अपनी पत्नी की आत्मघाती और पागलपन भरी प्रवृत्तियों पर ग़ौर नहीं करता, ज़िसकी कीमत अन्त में उसे अपने पूरे परिवार की मौत के साथ चुकानी पड़ती है। यही उसके मानसिक आघात का कारण बनता है, और इस मानसिक आघात के कारण ही वह अमेरिकी साम्राज्यवाद की अतियों और अत्याचारों की कल्पना रचता है। यहाँ ज़िस प्रकार की कारणात्मकता निर्मित की गयी है, वह स्पष्ट तौर पर यह दिखा रही है कि अमेरिका मुक्तिदाता के तौर पर अपने मिशन के दौरान युद्ध की परिस्थितियों में कुछ आकस्मिक स्थितियों में कुछ अतिरेक पर चला जाता है, लेकिन यह मुक्तिदाता के तौर पर उसके मिशन का एक अंग है। इसका दूसरा कारण यह भी है कि इस मिशन को अंजाम देने वाले लोग इंसान हैं, ज़िनमें अच्छाई और बुराई दोनों की प्रवृत्तियाँ मौजूद हैं। कई मौकों पर चीज़ें इन व्यक्तियों की अच्छाइयों या बुराइयों से निर्धारित होती हैं, न कि अमेरिकी सत्ता के इरादों से। इसलिए ऐसे में जो परस्पर क्षति (कोलैटरल डैमेज) होता है, उससे बचा नहीं जा सकता है। लेकिन कुछ लोग इन अनिवार्य बुराइयों का सामान्यीकरण करते हैं और उसे अमेरिकी जनवाद पर थोप देते हैं। जैसा कि फिल्म में टेडी डेनियल्स उर्फ एण्ड्रू लेडिस करता है। उसकी इस कल्पना को मसाला देने का काम एक अन्य आपराधिक पागल नॉइस करता है, जो कई बार अपराधों को अंजाम दे चुका है। इसे लेडिस एक समाजवादी युवा मानता है, ज़िसे कि अमेरिकी सरकार ने ऐशक्लिफ में इसलिए भेजा है कि उसके ऊपर प्रयोग करके उसे आज्ञाकारी और दासवत बनाया जाय।

ऐसे में, अप्रत्यक्ष तौर पर फिल्म का सन्देश यह बन जाता है कि अमेरिकी साम्राज्यवाद पर ज़िन अपराधों का आरोप लगाया जाता है, दरअसल वे कल्पनाएँ हैं। वे मानसिक निर्मितियाँ हैं। और ऐसी कल्पनाएँ करने वाले लोग पागल हैं, जो कि निजी मानसिक आघात के कारण व्यवस्था के विरोधी बन गये हैं। फिल्म ऐसे लोगों को शैतान या दरिन्दे के रूप में पेश नहीं करती। फिल्म इन लोगों के प्रति दया का भाव पैदा करती है। मिसाल के तौर पर, फिल्म के अन्तिम दृश्यों में जब लेडिस लाइट हाउस पर पहुँच जाता है और वहाँ उसे अपनी फन्तासी और मतिभ्रम की असलियत के बारे में पता चलता है, तो दर्शक और कुछ नहीं कर पाता, बस नायक के साथ एक सहानुभूति और उसके प्रति एक दयाभाव का अनुभव करता है। वह चाहता है कि टेडी डेनियल्स ही सही हो, और ऐशक्लिफ वाकई एक षड्यन्त्र का ही हिस्सा हो।

यह दर्शक की इच्छा या आकांक्षा बन जाती है। लेकिन इन आकांक्षाओं पर फिल्म अन्त तक आघात करती रहती है, और बताती है कि सच यही है कि टेडी डेनियल्स वास्तव में लेडिस है, जो कि एक पागल है। उस पर आप दया अवश्य कर सकते हैं, लेकिन उसका एक ही सम्भव अन्त है। उसकी कोई मदद नहीं कर सकता है। और फिल्म के अन्त में लेडिस को लोबोटोमाइज़ करने के लिए ले जाया जाता है। यह ऐसे सभी लोगों का इलाज है जो आज अमेरिकी समाज में अपनी अन्तश्चेतना के साथ समझौता नहीं कर रहे हैं। जो अमेरिकी साम्राज्यवाद और देश के भीतर अमेरिकी सत्ता की दमनकारी नीतियों का विरोध कर रहे हैं। जो आबू गरेब पर सवाल खड़ा कर रहे हैं, जो सी.आई.ए. के गुप्त तानाशाहाना गतिविधियों पर उंगली उठा रहे हैं, और जो इराक़ और अफगानिस्तान पर अमेरिका द्वारा थोपे गये आपराधिक युद्धों पर सवाल उठा रहे हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादी की अमानवीयता और बर्बरता उनकी कल्पना है। निश्चित तौर पर, यह भले लोगों की कल्पना है, लेकिन ये भले लोग असुधारणीय रूप से मानसिक रोगग्रस्त हैं!

यहाँ पर एक और चीज़ ग़ौर करने वाली है। ऐशक्लिफ़ में जो मनोचिकित्सक मौजूद हैं, उनके बीच एक बहस चल रही है। ऐसे पागलों के इलाज के लिए कौन-सी रणनीति अपनायी जानी चाहिए? क्या उन्हें सीधे लोबोटोमाइज़ कर दिया जाना चाहिए, जैसा कि डा. नेरिंग का मत है? या फिर उन्हें बातचीत और दवाइयों द्वारा ठीक करने का प्रयास किया जाना चाहिए, जैसा कि डा. कॉली का विचार है? वास्तव में, लेडिस का केस इस बहस को सुलझाने का निर्धारक उपकरण बन जाता है। लेडिस के केस में डा. कॉली अपने तरीके की आखि़री आज़माइश करते हैं। डा. कॉली का मानना था कि अगर लेडिस को अपनी फन्तासी में जीने का अवसर दिया जाय और उसके साथ सहयोग किया जाय, तो अन्त में इस फन्तासी को वह ऐसे छोर तक ले जायेगा, ज़िससे कि अचानक उसे अहसास हो जायेगा कि उसकी कल्पना झूठी है, और वास्तव में दुनिया वैसी नहीं है, जैसा कि वह सोचता है! डा. नेरिंग का शुरू से ही इस तरीके पर भरोसा नहीं है, और उसका मानना है कि ऐसे मरीज़ों (राजनीतिक विरोधियों) को सीधे लोबोटोमाइज़ कर दिया जाना चाहिए, यानी कि पहले ही निर्णायक कदम उठाकर उन्हें आज्ञाकारी और दासवत बना दिया जाना चाहिए।



अन्त में, डा. कॉली की योजना सफल नहीं हो पाती है। क्योंकि लेडिस अन्तिम दृश्य में यह समझ चुका होता है कि वास्तविकता क्या है और उसकी कल्पना क्या थी, लेकिन फिर भी वह ऐसा नाटक करता है, मानो वह फिर से अपनी फन्तासी की दुनिया में लौट गया है। इसका एक पाठ यह हो सकता है कि लेडिस के लिए अपने परिवार की मौत के मानसिक आघात के साथ जीना सम्भव नहीं था, इसलिए वह टेडी डेनियल्स के रूप में ही मरना चाहता है। इसका एक दूसरा पाठ यह भी हो सकता है कि अमेरिकी समाज में अमेरिकी व्यवस्था के प्रति मौजूद राजनीतिक विरोध, विशेष तौर पर कम्युनिस्ट विरोध, अपनी अर्थहीनता को समझ लेने के बाद भी अपनी न “सुधरने” की ज़िद पर अड़ा रहता है, ज़िसके कारण अन्त में उसका एक अनुदारवादी समाधान निकालना पड़ता है, यानी कि राजनीतिक लोबोटोमाइज़ेशन, जो आबू गरेब जैसी जेलों और यातना शिविरों के रूप में भी हो सकता है। यहाँ डा. कॉली अमेरिकी राजनीति में, ख़ास तौर पर, डेमोक्रैटों के बीच मौजूद उदारवादियों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि डा. नेरिंग कट्टरपंथी रिपब्लिकनों का प्रतिनिधित्व करता है।

कम्युनिस्टों या किसी भी प्रकार के ख़तरनाक राजनीतिक प्रतिरोध से बुर्जुआ जनवाद उदारतापूर्ण ढंग से नहीं निपट सकता, क्योंकि उनसे वैसे निपटा ही नहीं जा सकता है। उनसे निपटने के लिए डा. कॉली जैसे लोगों की ज़रूरत नहीं है, बल्कि डा. नेरिंग जैसे लोगों की ज़रूरत है। उनके तरीके अतिवादी हो सकते हैं, तकलीफ़देह हो सकते हैं, बुरे और अनुदार दिख सकते हैं! लेकिन अगर दुनिया के सबसे बड़े बुर्जुआ जनवाद को कम्युनिस्ट ख़तरे से बचाना है, अगर “तार्किक चयन करने वाले व्यक्ति” की सामूहिकता, समानता आदि के ख़तरनाक सिद्धान्तों से रक्षा करनी है, तो व्यवस्था की बागडोर को डा. नेरिंग जैसे लोगों के हाथों में सौंपना पड़ेगा। डा. कॉली के रास्ते की हार और डा. नेरिंग के रास्ते की विजय इसी बात का प्रतीक है। ये दोनों व्यवस्था का ही अंग हैं, दोनों डॉक्टर हैं, और दोनों अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं। दोनों की पहुँच में भिन्नता है, और इन्हें देखकर (ख़ास तौर पर, जब तूफान की स्थितियों में वॉर्ड सी के मरीज़ों की सुरक्षा को लेकर उनके बीच बहस हो रही होती है) एकदम से बिल क्लिण्टन या ओबामा जैसे एक व्यक्ति और दूसरी ओर जॉर्ज डब्ल्यू. बुश या डिक चेनी जैसे एक व्यक्ति का ख़याल दिमाग़ में बरबस ही उभर आता है। उनकी पूरी तर्कपद्धति वही है।

डा. कॉली मानवतावादी तरीके से उनकी जानें बचाने की बात कर रहे हैं, जबकि डा. नेरिंग की दलील है कि उनकी जान बचाने के चक्कर में अगर किसी बड़े नुकसान की सम्भावना हो तो उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। लेकिन किसी भी किस्म पर ढाँचा सुरक्षित रहना चाहिए। इसलिए इस स्तर पर भी फिल्म का सन्देश बिल्कुल स्पष्ट है। बुर्जुआ जनवाद उदारतावाद के बूते नहीं चल सकता, बल्कि व्यवस्था को लागू करने के लिए ठण्डी निर्णायकता रखने वाले व्यक्तियों के बूते चल सकता है, चाहे वे ऐसे कदम ही क्यों न उठायें जो कि कई बार बर्बर दिख सकते हैं। लेकिन ऐसा वे महज़ व्यापक कल्याण के लिए करते हैं, जैसे कि अमेरिका आबू गरेब जैसी जेलों में जो यातनाएँ कैदियों को देता है, वे प्रत्यक्ष तौर पर बर्बर या क्रूर दिख सकती हैं, लेकिन वह अनिवार्य बुराई है। इसका कोई विकल्प नहीं है, और यह कार्रवाइयाँ व्यापक कल्याण के लिए की जाती हैं!

कुल मिलाकर, यह फिल्म साम्राज्यवाद, दमन, उत्पीड़न, शोषण और लूट को एक मिथक बना देती है। जो भी इन पर भरोसा करता है या ऐसे मिथक फैलाता है, वह आपराधिक रूप से पागल है। दूसरी बात, ऐसे पागलों का इलाज डेमोक्रैटों वाले उदारतावाद और मानवतावाद के बूते नहीं किया जा सकता है। ऐसे पागल अक्सर भले लेकिन भटके हुए, मतिभ्रम के शिकार बेचारे लोग होते हैं। लेकिन, इनका कोई इलाज नहीं हो सकता और अगर इन्हें खुला छोड़ दिया गया कि वे अपनी फन्तासी में ज़ियें, तो वे सभ्य बुर्जुआ नागरिक समाज के लिए एक ख़तरा बन जायेंगे, जैसा कि डा. कॉली लेडिस को अन्तिम दृश्यों में से एक में बताते हैं, कि वह ऐशक्लिफ का सबसे ख़तरनाक मरीज़ है क्योंकि वह ‘ट्रेण्ड’ है, ‘चालाक’ है और उन्नत है। इसलिए ऐसे मतिभ्रम के शिकार आपराधिक प्रवृत्ति वाले पागलों का एक ही इलाज है, कि उनके साथ सख़्ती के साथ पेश आया जाय। और यह काम अमेरिका के डेमोक्रैट नहीं कर सकते हैं। यह काम रिपब्लिकन ही करेंगे! एक दृश्य में लेडिस डा. कॉली को धन्यवाद देता है और कहता है, “आपने हमेशा मेरा साथ दिया है। जब किसी ने मेरा साथ नहीं दिया तो आपने दिया है।” यह बयान भी एक प्रतीकात्मक बयान है, ज़िसे आराम से समझा जा सकता है। अमेरिका का कोई भी रैडिकल जो व्यवस्था परिवर्तन का पक्ष चुनता है, वह अपने पकड़े जाने, अपने सुधार की प्रक्रिया आदि के दौरान अमेरिका में मौजूद उदारवादियों (विशेषकर डेमोक्रैटों, और उसमें भी विशेषकर हॉलीवुड में भरे उदारवादी डेमोक्रैटों, जैसे जॉर्ज क्लूनी, हैले बेरी, आदि) को कभी भी ऐसा धन्यवाद ज्ञापन कर सकते हैं!

फिल्म अपनी कहानी और प्लॉट से अलग जाते हुए और कई बातें कहती हैं, ज़िन सभी का हम यहाँ विश्लेषण नहीं कर सकते हैं। ‘शटर आईलैण्ड’ एक मनोवैज्ञानिक फिल्म है जो कि कई स्तरों पर काम करती है और इसमें बहुस्वरीयता के ज़बर्दस्त तत्व मौजूद हैं। मिसाल के तौर पर, जब टेड दकाऊ में यातना शिविर के बारे में एक स्वप्न देखता है, तो बर्फ में मरी पड़ी एक बच्ची ज़िन्दा होकर उससे बोलती है, कि तुम्हें मुझे बचाना चाहिए था, तुम्हें हम सभी को बचाना चाहिए था। इस बच्ची की शक्ल हूबहू लेडिस की बेटी जैसी है। यह दृश्य भी एक प्रतीकात्मक दृश्य है, इसे लेडिस के व्यक्तिगत मानसिक आघात का नतीजा भी समझा सकता है कि उसने उस यातना शिविर के सन्दर्भ में अपनी बेटी को रख दिया है। इसकी दूसरी व्याख्या यह भी हो सकती है कि अमेरिका द्वारा लम्बे समय तक युद्ध में प्रवेश न करने के कारण, नात्सी जर्मनी का मुकाबला करने का पूरा बोझ अन्य ताक़तों पर आ गया, ज़िसके कारण हिटलर के पतन में देर हुई। यह मृत लोगों की ओर से अमेरिका के अन्तःकरण पर खड़ा किया गया सवाल भी हो सकता है। लेकिन हमें इस विश्लेषण को ज़्यादा विस्तृत तौर पर रखने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि इस फिल्म के रूपकों के दो मूल सन्देश हम ऊपर बता चुके हैं। यही सन्देश इस फिल्म का कोर है और अगर कुछ विनिर्मित करने को है, तो वह टेडी की कल्पनाएँ, सपने और मतिभ्रम है। और अगर उनमें निहित रूपकों और इस कल्पना के साथ यथार्थ की उस बाइनरी को देखें जो कि यह फिल्म हमारे सामने पेश करती है, तो फिल्म का सन्देश बिल्कुल साफ़ हो जाता है। आबू ग़रीब, इराक़, अफगानिकस्तान आदि सबकुछ मिथ है और राजनीतिक पागलों की दिमाग़ की सनक है! अमेरिका और अमेरिकी ऐसा नहीं करते!
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साभार:नान्दीपाठ

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