26 मार्च, 2018

रोज़गार अधिकार रैली

योगेश स्वामी

हज़ारों आंगनवाड़ी महिलाओं, नौजवानों, छात्रों और मज़दूरों ने किया संसद भवन का घेराव!
उठाई "भगतसिंह राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी कानून" को पारित करने की माँग!
देश भर से आये बेरोजगार नौजवानों-मज़दूरों ने रामलीला मैदान से संसद तक निकाली विशाल ‘रोजगार अधिकार रैली'! मोदी सरकार पर रोज़गार के अधिकार को मूलभूत अधिकारों में शामिल करने के लिए बनाया दबाव!




 नई दिल्ली, 25 मार्च़, रविवार । आज देश भर से आये सैंकड़ों नौजवानों-मज़दूरों, आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने रोज़गार के पक्के अधिकार के लिए रामलीला मैदान से संसद तक विशाल 'रोज़गार अधिकार रैली' निकाली। देश भर में बेरोजगारी की समस्या से जुझ रहे हजारों नौजवान-मज़दूरों-महिलाओं ने केन्द्र सरकार से ‘भगतसिंह रोजगार गारण्टी कानून' को पारित करने की माँग उठाते हुए विशाल रैली का आयोजन किया। रोज़गार के अ़़धिकार को मूलभूत अधिकारों में शामिल करवाने के लिए पिछले 3 महीनों से देश के अलग-अलग राज्यों में नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन व अन्य जन संगठनों के बैनर तले 'भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी कानून' अभियान चलाया जा रहा था। आज उसी अभियान की कड़ी में रामलीला मैदान से हज़ारों की संख्या में इकट्ठा होकर 'रोज़गार अधिकार रैली' की शुरुआत की गयी। हाथों में अपनी माँगों का बैनर लिए सैंकड़ों की संख्या में आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों, उनके बच्चों और परिवारवालों ने रैली की शुरुआत की जिसके पीछे तमाम नौवजवानों-मज़दूरों का हुज़ूम नारे लगाते हुआ और आम जनता में परचा वितरण करते हुए रामलीला मैदान से निकला। 'हर हाथ को काम दो वरना गद्दी छोड़ दो', 'भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी कानून पारित करो!', 'शिक्षा और रोज़गार हमारा जन्मसिद्ध अधिकार', 'हर घर में है बेरोज़गार कौन है इसका ज़िम्मेदार!, टाटा-बिड़ला-अम्बानी-अदानी की सरकार यह सब इसके ज़िम्मेदार !' जैसे गगनभेदी नारे लगाते हुए बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ एकजुट प्रदर्शनकारियों ने पूरे अनुशासन से अपनी रैली निकाली। दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र और बिहार के अलग-अलग इलाकों से आये हज़ारों नौजवानों-मज़दूरों और दिल्ली की हज़ारों आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने रैली का समापन संसद के पास एक महा जन-सभा में किया।
 'भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी कानून' संयोजन समिति के सदस्य सनी सिंह, जो लम्बे समय से स्टील मज़दूरों को संगठित कर रहे हैं ने कहा कि "अगर रोज़गार के अधिकार को जीने का अधिकार कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। लेकिन देश के अन्दर लम्बे समय से बेरोज़गारी का संकट बढ़ता ही चला जा रहा है। तमाम सरकारें आयी और चली गयी किन्तु आबादी के अनुपात में रोज़गार बढ़ने तो दूर उल्टा घटते चले गये"। उन्हों ने कहा कि "देश के प्रधानमंत्री से लेकर सरकार के आला मन्त्री-गण बेरोज़गारी का दंश झेल रही इस देश की गरीब-मेहनतकश आबादी के प्रति बहुत ही असंवेदनशील रवैया इख़्तियार करते हुए उन्हें 'पकौड़े तलने' और 'भीख मांगने' को कह रहें हैं। इसी से साबित हो जाता है कि बेरोज़गारी को दूर करने और नए रोज़गार पैदा करने के प्रति सरकार कितनी तत्पर है। सनी सिंह ने आगे कहा कि "नई सरकारी नौकरियाँ नहीं निकल रही हैं, सार्वजानिक क्षेत्रों की बर्बादी जारी है। केन्द्र और राज्यों के स्तर पर लाखों-लाख पद खाली पड़े हैं। भर्तियों को लटकाकर रखा जाता है, सरकारें भर्तियाँ करके भी नियुक्ति (‘जोइनिंग) नहीं देती हैं। परीक्षाएँ और इण्टरव्यू देने की प्रक्रिया में युवाओं के समय और स्वास्थ्य का तो नुकसान होता ही है किन्तु आर्थिक रूप से तो कमर ही टूट जाती है। ऐसे में आज संविधान के अनुछेद 14 और 21 की गरिमा तभी बनी रह सकती है जब हर व्यक्ति के पास रोज़गार का अधिकार हो। इसीलिए आज हम लोग यहाँ इकठ्ठा हुए हैं ताकि देश की संसद में बैठे नेताओं और मंत्रियों को यह याद


दिला दे कि जिनके वोट से जीतकर वो सरकार में आये है और आज संविधान की रक्षा करने का दावा करते है वो जनता अब अपने अधिकारों के लिए उठ खड़ी हुई है और अपना अधिकार लेकर रहेगी।"

इस अभियान की दिल्ली संयोजन समिति की शिवानी (जो दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन की अध्यक्ष भी हैं) ने कहा कि कुछ रिपोर्टों और आँकड़ों पर नज़र डालने पर रोज़गारहीनता के मामले में हम कम-से-कम स्वयं को तो कोसना बन्द कर देंगे! राज्यसभा में उठे एक सवाल के जवाब में कैबिनेट राज्य मन्त्री जितेन्द्र प्रसाद ने माना खुद कि खुद अकेले केंद्र में कुल 4,20,547 पद खाली पड़े हैं। देश भर में प्राइमरी-अपर-प्राइमरी अध्यापकों के क़रीब 10 लाख पद, पुलिस विभाग में 5,49,025 पद खाली पड़े हैं। दिल्ली में 2013 में 9.13 लाख बेरोज़गार थे जोकि 2014 में बढ़कर 10.97 लाख हो गये यही नहीं 2015 में इनकी संख्या 12.22 लाख हो गयी थी। नोटबन्दी और जीएसटी के बाद के हालात तो हम सब के सामने हैं जब दिल्ली में ही लाखों लोगों के मुँह से निवाला छीन लिया गया। आम आदमी पार्टी ने 55,000 खाली पदों को तुरन्त भरने और ठेका प्रथा ख़त्म करने की बात की थी किन्तु रोज़गार से जुड़े तमाम मामलों में आम आदमी पार्टी की सरकार भी औरों से अलग नहीं है।"


मज़दूर अख़बार 'मज़दूर बिगुल' के संपादक अभिनव ने सभा में बात रखते हुए कहा कि "मोदी सरकार का मज़दूर विरोधी चेहरा आज इस देश की मेहनतकश-गरीब अवाम के सामने बिलकुल बेपर्दा हो चूका है। 'अच्छे दिनों' की बात करते हुए जो सरकार हमारे बीच "बहुत हुई महंगाई की मार, अब की बार मोदी सरकार" जैसे नारों के जुमले उछालते हुए आयी थी उसने सत्ता हासिल करते ही मज़दूर और गरीब विरोधी नीतियाँ पारित करना शुरू कर दिया। हमारे देश के प्रधान सेवक उर्फ़ प्रधान मंत्री खुद को 'मज़दूर न-1' कहते हैं लेकिन इस देश के मज़दूरों को न्यूनतम वेतन जैसे श्रम कानूनों को सख़्ती से लागू करवाने की जगह वो कहते है कि भारत में लेबर इंस्पेक्टरों के पदों को ही ख़त्म कर देना चाहिए। हाल ही में 16 मार्च 2018 को मोदी सरकार द्वारा एक गज़ेट निकाल कर 'इंडस्ट्रियल एम्प्लॉयमेंट (स्टैंडिंग ऑर्डर्स) सेंट्रल रूल्स, 1946 में बदलाव कर टेक्सटाइल और कपड़ा उद्योग में निश्चित अवधि के रोज़गार को समाप्त कर दिया है। जिसके बाद खारख़ानेदार जब चाहे जिसे चाहे काम पर रखे और जब मन आये बिना किसी नोटिस के काम से निकाल बाहर करें। इस कदम से कितने लाख मज़दूर एक झटके में बेरोज़गार हो सकते है इसकी चिंता किये बिना मोदी सरकार ने यह आदेश जारी कर दिया। आज हमारे देश में 25 करोड़ से ज़्यादा आबादी बेरोज़गारी से त्रस्त है और अगर सरकार इसी तरह मज़दूर-विरोधी नीतियाँ लागू करती रहेगी तो यह संख्या और भी बढ़ जायेगी। एक बात जो हमारे देश के नौजवानों और मज़दूरों को अच्छी तरह समझ लेने चाहिए वो यह है कि बेरोज़गारी पूँजीवादी व्यवस्था का ही एक अंग है। पूँजीपति अपनी ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने की हवस को पूरा करने के लिए मज़दूरों को उनका जायज़ वेतन नहीं दते। मज़दूरों से उनके श्रम का पैसा छीन कर पूंजीपति अपनी तिजोरियां भरते हैं। ऐसे में पूँजीपतियों को हर हमेशा सड़क पर चप्पल फटकार कर घूमती हुई बेरोज़गारों की फ़ौज की ज़रूरत होती है। ताकि अगर काम कर रहे मज़दूर उनसे अपना हक़ माँगें तो वो तुरंत उन्हें काम से निकाल कर बेरोज़गारों की फ़ौज में से नयी भर्ती कर ले। इसी कुचक्र के चलते आज बेरोज़गारी ने इतना भयावह रूप इख़्तियार कर लिया है। इसीलिए आज सभी नौजवानों-मज़दूरों के लिए यह आवश्यक बन जाता है कि वो संगठित होकर एक साथ खड़े हो और अपने हक़ों के लिए एकजुट होकर संघर्ष करें।
प्रदर्शनकारियों ने अपनी माँगों का ज्ञापन प्रधान मंत्री को सौपा और उनसे अपील की कि वो बिना किसी विलम्भ के इन माँगों को संज्ञान में लेकर तुरंत उन्हें पूरा करने की दिशा में कदम उठाये।


मोदी सरकार को दिए गए ज्ञापन में संघर्षरत प्रदर्शनकारियों की निम्नलिखत माँगें शामिल थी:

1. हरेक काम करने योग्य नागरिक को स्थायी रोज़गार व सभी को समान और नि:शुल्क शिक्षा'  के अधिकार को संवैधानिक संशोधन करके मूलभूत अधिकारों में शामिल किया जाए।

2. ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून' पारित करो। गाँव-शहर दोनों के स्तर पर पक्के रोज़गार की गारण्टी, रोज़गार न देने की सूरत में सभी को न्यूनतम  10,000 रुपये प्रतिमाह गुजारे योग्य बेरोज़गारी भत्ता प्रदान करो।

3. नियमित प्रकृति के कार्य पर ठेका प्रथा तत्काल प्रतिबन्धित की जाये, सरकारी विभागों में नियमित प्रकृति का कार्य कर रहे सभी कर्मचारियों का स्थायी किया जाये और ऐसे सभी पदों पर स्थायी भर्ती की जाये।

4. केन्द्र और राज्यों के स्तर पर जिन भी पदों पर परीक्षाएँ हो चुकी है उनमें उत्तीर्ण उम्मीदवारों को तत्काल नियुक्तियाँ दो।

5. केन्द्र और राज्यों  के स्तर पर तुरन्त  प्रभाव से जरूरी परीक्षाएँ कराके सभी खाली पदों को जल्द से जल्द भरो।


रोज़गार अधिकार रैली में नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन, क्रा‍न्तिकारी मज़दूर मोर्चा, दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन आदि संगठनों ने ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून' को पारित करवाने के लिए शिरकत की। नौजवान भारत सभा की सांस्कृतिक टोली द्वारा क्रान्तिकारी गीतों की प्रस्तुति भी की गयी।
००
25 मार्च, 2018



संयोजक
योगेश स्वामी
भगतसिंह राष्टीलय रोजगार गारण्टीं क़ानून अभियान
9289498250

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें