02 मार्च, 2018

नित्यानंद गायेन की कविताएं



नित्यानंद गायेन 

कविताएँ 


बस्तियों में लोग गहरी नींद में सो रहे हैं

साल बदल गया है
किन्तु,
ज़ुल्म का जश्न जारी है अब भी
सत्ता खुश है
विपक्ष बेहाल है
न्याय की ख़ामोशी नहीं टूटी अब तक
ज़ख्मों से खून रिस रहा है लगातर
कान बंद हैं
चीखें अब सुनाई नहीं देती हमें
सिपाही खड़े हैं सीमा पर शहीद होने को
उनके नाम पर सियासत कायम हैं
दरिया का रंग सुर्ख हो चुका है बहुत पहले
आँखों ने रंगों को पहचानना छोड़ दिया है
सांसे तो चल रही हैं
पर,दिल की धड़कन धीमी पड़ गई है
गाय रंभा रही है नदी के आर -पार
जंगल की आग लगातर फैल रही है
आबादी नज़दीक है
बस्तियों में लोग गहरी नींद में सो रहे हैं
कबीर चीख़ रहे हैं
पर हमने उन्हें सुनना बंद कर दिया है
राज सभा में शतरंज का खेल जारी है
इस बार अज्ञातवास पर कौन जायेगा
इस पर कोई चर्चा नहीं है कहीं
प्रजा का पलायन जारी है
पर अब राजा न तो अंधा है
न ही बहरा
हाँ, वह नि:संतान ज़रूर है
संतानहीन हो चुके माँ -बाप उससे
अपने बच्चों के लिए इंसाफ़ मांग रहे हैं
और राजा हंस रहा है
उन्हें देख कर !


राजा की पसंद सर्वोपरि है
लाशों की मंडी पर
बैठा है लोकतंत्र
इनदिनों
पुलिस जानती है राजा की पसंद
उसे पसंद है
नरमुंडों की घाटी
राजा की पसंद सर्वोपरि है !

यह राजाजी के शिकार खेलने का
वक्त है |

महावीर वर्मा



अपनी जमीन -जंगल के लिए

किसान बोलता नहीं
शोषण की कहानी
कर लेता है ख़ुदकुशी
आदिवासी बोलते हैं
लड़ते हैं अपनी जमीन -जंगल के लिए
पुलिस मार देती है गोली
छात्र उठाये आवाज़ अपने हक़ के लिए
भर दिए जाते हैं जेल |
लोकतंत्र की किताब में
ये नये अध्याय हैं !
इन नये लिखे अध्यायों को बदलने के लिए
लड़ना तो होगा |



आओ,आँखों से साझा करें इसे 

तुम्हारे संघर्ष की कहानी में
छिपी हुई है
मेरी नई कविता
करीब आओ तो
पढ़ सकता हूँ उसे
मैं तुम्हारी आखों में।

वो तमाम कमियाँ
बुराई और कमजोरियां
जो इन्सान में होती हैं
मुझमें भी है |
शायद
इसलिए
तुमसे करता हूँ
प्रेम !

नि:शब्द है
हमारा दर्द
आओ,
आँखों से साझा करें इसे
हम, एक -दूजे से....




बुखार में बड़बड़ाना

1.
पहाड़ से उतरते हुए
शीत लहर ने मेरे शरीर में प्रवेश किया
और तापमान बढ़ गया शरीर का
शरीर तप रहा है मेरा
भीतर ठंड का अहसास
इस अहसास को बुखार कहते है !
देश भी
तप रहा है मेरे बदन की तरह
और सरकार कह रही है
मामला ठंडा है !
मेरे देश को बुखार तो नहीं है ?
#बुखार में बड़बड़ाना |



2.

अहिंसा और शांति के पक्षधर गाँधी का
हत्यारा गोडसे का मंदिर
बनाने वाले
और उस मंदिर के समर्थक
यदि कभी
शांति और प्रेम की भाषा में
मुझसे बात करने लगें
मैं, उस वक्त
सावधान हो जाऊंगा
वो अपने पक्ष में तर्क देंगे
अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात कह कर
हत्यारा और उसके समर्थक में
कोई अंतर नहीं होता
क्योंकि हत्यारे का समर्थक
भविष्य का हत्यारा होता है|


महावीर वर्मा



कविता के पक्ष में होना मतलब जीवन के पक्ष में होना है

कविता करना या लिखना कोई पेशा नहीं है
कविता करना मतलब
जग और जीवन से परिचित होना है मेरे लिए
वैसे भी जीवन में कविता के प्रवेश के बाद हमने
ठीक से जीना सीखा है
मर के भी जीवत रहने की कला केवल कविता में है

यह जानने के बाद ही जीवन का होना सार्थक लगता है
कविता जीवन है
मनुष्य की तमाम कमज़ोरियों से परिचित किसने कराया हमें
जबाव है कविता
इसलिए कविता के पक्ष में रहना ही
अपने पक्ष में रहना है

हमारी तमाम संवेदनाएं जब
कमज़ोर पड़ने लगें
और कभी जब यह अहसास होने लगे कि
हम मर रहे हैं
पर हमारी सांसों का चलना जारी है
उस वक्त सबसे कमज़ोर हो जाते हैं हम
तब कोई सुंदर कविता हाथ थाम कर यदि कह दें हमसे कि
यही जीवन है
एक नई उंमग जग सकती है हमारे भीतर
जीने की प्रबल चाह उभर आती है
ऐसे में निराश मन में
नई ऊर्जा का सृजन होता है
पतझड़ में वसंत आता है
इसे ही कविता कहते हैं शायद
पर मेरा यकीन है
यही कविता है




चिकित्सा विज्ञान 

हमारी तमाम शारीरिक बिमारियों का उपचार कर दें,
संभव है आज
किन्तु दिल में सुकून कोई मधुर कविता ही भर सकती है
दुनिया की तमाम महान क्रांतियों की कहानी पढ़ कर देखिये कभी
उनमें हर समय नई ऊर्जा किसी कवि की
रचना ने भरी है
हर जन-क्रांति में कोई न कोई कवि शामिल हैं
अपनी कविता के साथ
इसलिए कविता के पक्ष में होना
मनुष्य के पक्ष में होना है
जीवन के पक्ष में होना है
जनहित में मानवता के पक्ष में होना है !






एक चिड़िया आकाश पर
अत्याचार,
शोषण -दमन
और तानाशाह के खिलाफ़
हम कविता लिख रहे हैं
नदी किनारे आखिरी वृक्ष मौन खड़ा है
एक चिड़िया आकाश पर फैले
काले धुंए से लड़ रही है !





राजा निपुण शिकारी है

राजा संविधान कभी नहीं पढ़ता
वैसे राजा संविधान लिखता भी नहीं
इसलिए वह संविधान की परवाह नहीं करता
राजा का आदेश ही
राजा का संविधान है
जिसे प्रजा पर हर हाल में थोप दिया जाता है
क्यों कि राजा का मानना है कि
उसकी भलाई में ही
प्रजा की भलाई है
राजा आखिर सिर्फ राजा नहीं होता
इतिहास कहता है राजा धरती पर देवता का प्रतिनिधि है
और ये इतिहास किसने कब लिखा
किसी को नहीं पता
किसी देवता ने किसी मनु को राजा बना दिया था
ऐसी अफ़वाह खूब फैलायी गयी यहाँ
वर्षों पहले क्टेवियन ने जूलियस सीज़र के सभी संतानों को मार दिया था
राजाओं को प्रिय है आक्रमण और हत्याओं की कहानी
राजाओं का प्रिय शौक है शिकार खेलना
प्राचीन राजा जंगल में शिकार खेलते थे
आधुनिक राजा के साम्राज्य में जंगल नहीं बचे हैं
इसलिए राजा अब शहरों, नगरों, कस्बों और गांवों में घुस कर शिकार खेलता है
वह शहर,
नगर,
गाँव को जंगल बना देना चाहता है |
राजा निपुण शिकारी है
और प्रजा आधुनिक जंगल के निवासी !


महावीर वर्मा



प्रेम क्रांति का पहला पड़ाव है

इस दौर में
कवियों से अधिक हमले
प्रेमियों पर हुए हैं
तभी तो ,
कवियों से अधिक
प्रेमी शहीद हुए हैं
सत्ता डरती है
प्रेमियों से
लिखी गयी कविता अब मोड़ कर रख दी जाती है
कवि पुरस्कार लेकर खुश हो जाता है
तारीफ़ कवि की सबसे बड़ी कमजोरी है
जबकि प्रेम ऐसा कुछ नहीं चाहता
प्रेमी विद्रोह करता है
सबसे पहले
वह अपनों का विरोध करता है
जो प्रेम के विरोध में होते हैं
इसी तरह परिवार से समाज तक
और समाज से
सत्ता तक पहुँचता है उसका विरोध
सत्ता, जो एंटी रोमियो दल बनाती है
इसलिए ,
प्रेम क्रांति का पहला पड़ाव है
और मैं इस क्रांति के पहले पड़ाव पर हूँ !
००
नित्यानंद गायेन दिल्ली में रहते हैं।
दिल्ली की सेल्फी से जुड़े हैं।
संपर्क:
nityanand.gayen@gmail.com




1 टिप्पणी:

  1. राजनीतिक चेतना सम्पन्न ये कविताएं जीवन और मनुष्यता के पक्ष में सबलता से खड़ी हैं.. इन सशक्त रचनाओं के लिए कवि को बधाई एवं शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं