18 मार्च, 2018

 संजीव खुदशाह की कहानी 


डायलर टोन  

''थोड़ा सा प्यार हुआ है थोड़ा है बांकि....`` गीत उसके मोबाईल के डायलर टोन पर सुनने की आदत सी हो गई थी जब भी उसे फोन लगाता। ये गीत बहुत सुरीला,साथ ही प्यार की चासनी में भी घुला हुआ था। मै उसे कहता तुम फोन मत उठाया करो बस मुझे ये गीत सुनना है। लेकिन कभी-कभी लगातार सुनने के कारण बोरियत होने लगती।''सुस्मिता`` यही नाम है इस डायलर टोन वाली बंगाली लड़की का, तीखे नैन-नक्श, भरा पुरा शरीर, सलीके से कपड़े पहनने की शौकीन, लगातार साथी की खोज में व्यस्त। जो इसे पसंद करता उसे ये ना पसंद कर देती। जिसे ये पसंद करती वो इससे दूर भागता। इस संदर्भ में वो एक बंगाली कहावत कहा करती...

जाके चाई ताके पाई ना।
जाके पाई ताके चाई ना।।


संजीव खुदशाह 



वो मेरे मोबाईल के इनबाक्स में हमेशा कुछ न कुछ लिख कर भेजती। रोज सुबह उठकर इन बाक्स को चेक करना मेरी आदत में शुमार था। कभी-कभी मै उसे कहता- तुझे और कोई काम नही है क्या?इतना मैसेज भेजती हो कि मेरे मोबाईल का मैसेज बाक्स पूरा भर जाता है और मुझे मैसेज मिटाने के लिए मसक्कत करनी पड़ती है। वो हंस कर कहती मिटा-लिया करो न सर, या मुझे दे दिया करों मै मिटा दिया करूगीं।
मैं जोरों से हंसता कहता तुम्हे मै अपना मोबाईल क्यों दूं इसमें मेरे कुछ प्राईवेट मैसेज भी है। और वो जली-भूनी सी मुँह को टेढ़ा कर मुझे चिढ़ाती। थोड़ी देर तक गंभीर बनी रहती।
सुस्मिता सोशल एक्टीविटी में भी भाग लेती। काफी सारे लोंगो से सम्पर्क है उसके। कभी-कभी घंटो उसका मोबाईल व्यस्त रहता। मैं कहता क्यों कोई मिल गया क्या आज-कल तुम्हारा मोबाईल खूब बीजी चल रहा है। वो कहती नही सर देखों न एक लड़का मुझे खूब झेलता है। मै परेशान हो गई हूं। तो मै कहता तुम उसके साथ मीठी -मीठी  बाते करोगी तो वो तुमसे बात करेगा ही।



पाब्लो पिकासो 



नही सर ऐसी कोई बात नही है। मैने सिर्फ औपचारिक बात ही की थी, लेकिन वो तो मेरे पीछे ही पड़ गया। कभी मुझसे उसकी मुलाकात हुई थी, मुझे याद नही, लेकिन कहता है तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो।
कई बार वो इस तरह के काल से परेशान हो जाती तो मेरे मोबाईल नम्बर पर काल ट्रांसफर कर देती और मुझे बता देती- “सर मैने काल ट्रांसफर कर दिया है उस लड़के को अच्छा सुनाना।“ और मै उनको धमकी-चमकी देता, ''अब ये मोबाईल मेरे पास रहेगा, तुम इसमें आईन्दा फोन मत करना।`` दुबारा फोन आता तो कहता-''मेरे मोबाईल में तुम्हारा नम्बर आ गया है अब अगर तुम नही सुधरे तो मै पुलिस में तुम्हारा नम्बर दे दूगां।`` कई बार ऐसा भी हुआ कि उसके किसी पुरूष रिश्तेदारों का फोन आया और मैनें उनको अच्छी डांट लगाई। बाद में जब सुस्मिता आती तो हॅस-हॅस के बताती तुमने मेरे चाचा के लड़के को इतना डांटा की अब वो मुझसे फोन पर बात ही नही करता। और मामा का लड़का तो घर आकर मम्मी से पूछ रहा था सुस्मिता ने शादी कर ली मुझे बताया नही? बाबा उसके हसबैन्ड ने मुझे खूब डाट लगाई: ''तुम दुबारा मुझे फोन मत करना अब ये फोन मेरे पास रहेगा।
एक बार सुस्मिता ने कहा -''सर आप कभी मेरे घर आईये आपको मां से मिलवाउगीं।`` सुस्मिता मेरे आफिस में निजी जीवन बीमा कम्पनी में ऐजेन्ट का कार्य करती थी,और लंच ब्रेक में कभी-कभी उससे मुलाकात और बातचीत भी हो जाया करती थी। उपर के माले पर अपना आफिस था तथा नीचे के माले में कैन्टीन था। पूरी बिल्डिंग  सरकारी,गैर सरकारी एवं निजी कम्पनियों के दफ्तर थे। इसलिए कैन्टीन में हमेंशा गहमा गहमी रहती थी।
मां से मिलवाने वाले प्रश्न के जवाब में मैने सुस्मिता से पूछा''क्यों तुम्हारी अम्मा ने मुझे चाय पे बुलाया है क्या?`` वो शरमा गई । नही सर आईये तो सही। कहते हुए अपना सिर झुका लिया। बस यहीं से मेरा उसके घर आने जाने का सिलसिला चालू हो गया। उसका घर सुस्मिता के कैरेक्टर से बिल्कुल भिन्न था। उसके दो छोटे भाई है एक की शादी हो चुकि है तथा रेलवे में अच्छे पद पर कार्यरत है। भाभी झगड़ालू एवं सास ननद से उसकी बनती न थी। कभी-कभी मां भी भाभी की तरफदारी करती और घर में घंटो तू-तू मै-मैं चलती। उससे छोटा भाई जो तीस के आस-पास का होगा पूरा निकम्मा, “काम का ना काज का दुश्मन अनाज का” उपर से पैसे चुराकर जुआ खेलना उसकी आदत हो गई थी। घर की ज्यादातर चीजे सम्भालकर या ताले में रखे जाते क्योकि छोटा भाई कभी भी हाथ साफ कर सकता था। मां को सुस्मिता का घर से बाहर घुमना पसंद नही था।

एक बार मैने सुस्मिता को समझाया-'' सुस्मिता जब तुम्हारी मम्मी को तुम्हारा घर से बाहर जाना पसंद नही है तो तुम क्यों इतना बाहर घुमती रहती हो।`` सुस्मिता ने गंभीर होकर जवाब दिया - ''क्या करू सर घर मुझे काटने को दौड़ता, कहते किसी को निशाना किसी पे रहता है,एक दुसरे को जलील करने का मानों काम्पटीशन होता है हमारे घर में। घर से बाहर निकलती हूं। मेहनत से चार पैसे कमाती हूं और कुछ पल सुकून से निकल जाते है।`` वो एक गहरी सांस लेकर रूक गई । मैने कुछ कहने की कोशिश की- ''तो कब तक चलेगा ऐसा।``
''क्या करू......... इसलिए तो कहती हूं कोई लड़का तैयार हो जाय बस मै शादी कर लूं और कभी पलट कर इस घर में ना आउं।`` उसने एक श्वांस में अपनी बात रख दीं । मैने पूछा -''तो प्राब्लम क्या है तुमसे तो कोई भी लड़का शादी कर लेगा। अच्छी भली हो अबतक।`` मैने गंभीर वातावरण को सरल बनाने के उद्देश्य से मजाक के लहजे में ये बात कही।
''नही सर ऐसा नही है कोई लड़का मुझसे शादी नही करेगा। सब टाईमपास करना चाहते है या अपनी गर्लफ्रेण्ड की संख्या में इजाफा करना चाहते है। घर बसाना इन लड़को की फितरत में नही है।`` अब मै भी गंभीर हो चला था - ''नही सुस्मिता ऐसा नही है, कई अच्छे लड़के है जो तुम जैसी लड़की से विवाह करना पसंद करेगें।``-मैने कहा। सुस्मिता अपने आंखो में आये हल्के अश्रु की धारा को दुपट्टे से पोछते हुए कहने लगी ''नही सर मुझे कई नही, एक लड़का चाहिए``
''ठीक है मिल जायेगा``
''कब मिल जायेगा ?``
''जब तुम कहो`` मैने तुरंत कहा।
''अभी ? ........ क्या आप मुझसे शादी करोगे।`` उसने कहा।
मै अचानक खड़े हए इस प्रश्न से भौचक्का रह गया। लेकिन अपने आपको सहज बनाने की कोशिश में लग गया।
''मैने तो ऐसा सोचा भी नही`` मैने कहा।
''मैने कहा था न सर कोई भी तैयार नही होगा। ठीक है मै अब चलती हूं कल बात करेगे।`` कह कर वो चली गई। मै सोचता रहा। आधी रात तक मुझे नींद नही आई उसके ही ख्यालों में डुबा रहा। वो मुझे अच्छी लगती है इतना तो तय है लेकिन शादी या प्यार के लिए मै अपने आपको तैयार नही कर पा रहा था। बहुत ध्यान से सोचने पर भी इसका कारण मुझे समझ नही आ रहा था। शायद मेरी कल्पना जैसी लडकी वो नही थी। या उसका ज्यादा घुमना फिरना, बात-बात पर झूठ बोल जाना मुझे नापसंद था। जो भी हो मै अपने आपको इस रिश्ते के लिए तैयार नही कर पा रहा था।
दुसरे दिन उसी कैन्टीन में हमारी मुलाकात हुई। मै गभीर था। वो नही। मैने चाय की चुस्की ली और कहा-''मैं कल वाली बात पर तुमसे कुछ डिस्कस करना चाहता हूं``
मैने चाय की एक चुस्की और ली, बात को आगे बढ़ाया-''मै तुम्हे उस नजरिये से नही देखता हूं। तुम्हारे बारे में आधी रात तक सोचता रहा लेकिन फिर भी अपने आपकों'हॉं` के लिए तैयार नही कर पाया हूं। तुम एक बहुत अच्छी लड़की हो समझदार और मेहनती हो, हां थोड़ा घुमती हो, थोड़ा झूठ भी बोलती हों लेकिन अच्छी हो। हो सके तो मुझे माफ कर देना ``
सुस्मिता ने मेरा हाथ पकड़ लिया - ''माफी किस बात के लिए सर। माफी तो मुझे मांगना चाहिए,आपको आधी रात तक जागने के लिए मजबूर किया।``
मैने अपनी बात को खत्म करने कि कोशिश में पुरी चाय एक साथ ही पी डाली ओर गंभीर हो कर कहने लगा-''हां तो हमारी ये आखरी मिटींग है अब हम भविष्य में नही मिलेंगे``।
'`ऐसा क्यूं.... ऐसा क्यूं....`` वो लगातार मुझसे प्रश्न पुछे जा रही थी।
सुस्मिता की तड़प उसके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी।
''हम एक अच्छे दोस्त बन कर तो रह ही सकते है। आपको अगर मेरा प्यार कबुल नही न सही...``उसने कहा।
दरअसल एक तरफा प्यार का परिणाम मै पत्र-पत्रिकाओं में देख चुका था। और भविष्य में आने वाली कठिनाईयों से वाकिफ था। इसलिए दोस्ती के रूप में भी इस सम्बन्ध को कन्टिन्यू नही करना चाहता था। सुस्मिता लगातार फोन करती रहती। मै कभी बात करता कभी फोन कट कर देता कभी इगनोर करता। बाद में सुस्मिता के नम्बर को साइलेन्ट मोड में डाल दिया। रोज सुबह २०-२५ मिस काल मेरे मोबाईल में पड़े रहते। कभी मै फोन करके पूछता क्यों तुम्हे नींद नही आती। तो कहती कया करू सर नींद नही आ रही थी इसलिए तो फोन किया था। लेकिन अब आप तो फोन उठाते ही नही पता नही क्या गलती हो गई मुझसे।
अब मै कभी-कभी उससे फोन पर बात कर लिया करता। सुस्मिता मुझे रोज दो चार एस.एम.एस भी किया करती। अब मुझे आदत सी हो गई। मिस काल कि संख्या देखने की या एस.एम.एस. पढ़ने की। कभी जब कोई मिस काल नही रहता तो मुझे चिन्ता हो जाती।ये आदत भी बड़ी बुरी बला है चाहे अच्छी हो या बुरी आदत तो आदत है। भले मेरे मन मे उसके प्रति कोई प्रेम का अंकुरण नही फूटा किन्तु एक अन्जाना सा रिश्ता जरूर बन गया था। बहरहाल मिस काल नही होने पर मेरी बेचैनी उसे फोन करने की हद तक बढ़ जाती तो ज्ञात होता की घर में मेहमान आये है, या कोई लड़का उसे देखने आया है। या उसका मोबाईल खराब हे। इस बीच उसने अपने मोबाईल का डायलर टोन डलवा लिया एक खूबसुरत सा फिल्मी गीत '' थोड़ा सा प्यार हुआ है थोड़ा है बाकीं हम तो दिल दे ही चुके है। बस तेरी हां है बांकी...`` ये गीत बहुत प्यारा लगता था लेकिन अब इस गीत को सुनते-सुनते बोर हो चुका था। इस बीच सुस्मिता की शादी की बात-चीत कहीं चल रही थी। उसका फोन बिजी भी रहता था। मुझे खुशी थी कि वो अब कहीं शैटल होने जा रही है। इसके बावजूद उसका मिसकाल एवं एस.एम.एस. मेरे मोबाईल में पडे रहते।
अब कभी उससे बात होती तो मै उसे उस लड़के के नाम पर छेड़ने लगता। ''क्यो सुस्मिता कब जा रही हो बनारस अब वहां रस्सोगुल्ला नही बनारस का पान खाना`` वो चिढ़ जाती ''आप कैसी बात कर रहे है? मै नही जाने की बनारस-वनारस मेरा मन नही लगता। जिसके लिए प्यार नही बन पाये उससे शादी कैसी? बस शरीर का मिलन। नही सर नही मैं उससे शादी नही करूगीं``
''नही सुस्मिता ऐसा नही कहते शुरू में थोड़ी एडजस्टमेंट प्राबलेम तो आती ही है, बाद में सब ठीक हो जाता है। ऐसे मना नही करते`` मै उसे नसीहत देने की कोशिश कारता।
जब मे उसे बातों-बातों में बनारस के नाम पर छेड़ने लगता । तो मुझसे लड़ने लगती कहती एक दिन मै मर जाउगीं न तब आप को पता चलेगा। मै हंसने लगता कहता क्या पता चलेगा अरे तब भी तो तु बनारस ही जाओंगी। और वो रोने लगती।
एक बार सुस्मिता ने मुझे बताया कि मां के साथ वो अपने किसी दोस्त की शादी में जा रही है,देर रात तक लौटेगी। लेकिन तीन दिन तक उसका न तो मिस काल आया न ही कोई एस.एम.एस.। मैने कई बार उसके मोबाईल पर काल किया लेकिन स्वीच आफ का संदेश मिला। मै परेशान हो गया। कई जगह उसके दूसरे काक्टेक्ट में बात की कोई कुछ कहता कोई कुछ। उसके घर गया तो देखा उसकी मां घर पर हे पूछने पर बताया सुस्मिता चाचा के यहां गई है। सब की अलग-अलग बात सुनकर मुझे सुस्मिता पर बड़ा ही क्रोध आ रहा था।
चौथे दिन शाम को उसका फोन आया। मैने फोन तुरंत रिसीब किया क्या। ''सुस्मिता तुम कहां थी।``- मैने पूछा। ''मै तो घर में ही थी``-उसने कहा। उसके सफेद झूठ पर मुझे और क्रोध आने लगा।
मैने कहा -''मै तो तुम्हारे घर से ही आ रहा हूं। तुम तो वहां नही थी।``
चोरी पकड़ी जाते ही उसने कहां ''मै दोस्त के यहां शादी में गई थी उन लोगों ने मुझे रोक लिया और मोबाईल भी बंद कर दिया तो मै क्या करती`` ।


पाब्लो पिकासो 



''तो तुम्हारे घर में कोई प्राब्लम नहीं  था?``
''मां को मैने कहा मै चाचा के घर सिलीगुड़ी जा रही हूं।`` उसने कहा।
मुझे पता नही क्यू खूब गुस्सा आ रहा था। मैने उसे न जाने क्या-क्या उल्टा सीधा कहा। लेकिन वो रोती रही। उसने कहा मुझे क्षमा कर दो मेरे से गलती हो गई। मैने अपना फोन काट दिया। अब लगातार उसका काल आने लगा, एस.एम.एस. भी। लेकिन मैने फोन नही उठाया। शायद मन का चोर चाह रहा हो कि अब तुम भी परेशान हो, जैसा मै हुआ हू। १५-२० बार काल आने के बाद मैने फोन उठाया और कहा ''देखो सुस्मिता तुम अब मुझे डिस्टर्ब नही करना मै तुमसे बात नही करना चाहता।`` उसने कहा -''सर आप बात नही करोगे तो मै अभी नदी में कूद कर अपनी जान दे दूगीं।`` मैने कहा''तीन दिन गायब रही तब याद नही आई ।`` उसने कहा ''लोगो ने मुझे आपके विरूध भड़का दिया था इसलिए मैने फोन नही किया।``
''ठीक है अब तुम्हे मुझसे बात करने कि जरूरत नही है``-कहकर मैने फोन काट कर साइलेन्ट मोड में कर दिया दी और सोने की कोशिश करने लगा। देर रात मेरी आंख लग गई।
सुबह आदतन मैने अपने मोबाईल पर सुस्मिता के मिस काल की संख्या देख रहा था। केवल पांच काल लेकिन एस.एम.एस. एक भी न था।
थोड़ी देर में सुस्मिता के एक दोस्त ने मुझे फोन किया। सर आप कहां हो जल्दी आ जाओं सुस्मिता की लाश नदी के किनारे पड़ी है। मुझे यकीन  नही हो रहा था, लग रहा था, किसी ने मजाक किया है। मै लगातार सुस्मिता को फोन कर रहा था। वहां से आवाज आ रही थी.....।
थोड़ा सा प्यार हुआ है थोड़ा है बाकी
हम तो दिल दे ही चुके है बस तेरी हां है बाकी
कौन सा मोड़ आया जिन्दगी के सफर में.................
००




संक्षिप्त परिचय:
संजीव खुदशाह  
जन्म12 फरवरी 1973 को बिलासपुर छत्तीसगढ़ में हुआ
आपने एम.ए. एल.एल.बी. तक शिक्षा प्राप्त की। आप देश में चोटी के दलित लेखकों में शुमार किये जाते है और प्रगतिशील विचारक, कवि,कथा कार, समीक्षक, आलोचक एवं पत्रकार के रूप में जाने जाते है। आपकी रचनाएं देश की लगभग सभी अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। "सफाई कामगार समुदाय" एवं "आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग", "दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल"  आपकी चर्चित कृतियों मे शामिल है। आपकी किताबें मराठी, पंजाबी, एवं ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनूदीत हो चुकी है। आपकी पहचान मिमिक्री कलाकार और नाट्यकर्मी के रूप में भी है। आपको देश के नामचीन विश्वविद्यालयों द्वारा व्याख्यान देने हेतु आमंत्र‍ित किया जाता रहा है। आप कई पुरस्‍कार एवं सम्मान से सम्मानित किए जा चुके है।

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