07 अप्रैल, 2018

आदित्य  कमल की रचनाएं



आदित्य कमल 




रचनाएँ


दिनदहाड़े रहज़नी


दिनदहाड़े  रहज़नी 1 करके गया , रहबर नया
बस्तियों में ख़ौफ़ तारी 2, चेहरों पर है डर नया ।

ज़िंदगी के आईने सब ध्वस्त , चकनाचूर  हैं
रोज़  कोई  फेंकता है ,  गलियों  से  पत्थर नया ।

कल मेरा परिवार सारा छत के नीचे  आ  दबा
योजनाओं  में  मुझे , कल  ही मिला था घर नया ।

कौन जाने  कल किसे  वध के लिए ले जाएगा
वाँ  तराशा जा रहा है , फिर से एक खंज़र नया ।

बूढ़ा बरगद ना पनपने देगा अगली पौध को
अब तो इस सहरा में उगता है कोई बंजर नया ।

व्यूह में तुम क़त्ल कर सकते हो, एक सफ़दर3 मगर
हममें  से  हर रोज़  पैदा  होता है  सफ़दर4 नया ।

रोज़ लिखता हूँ मैं अपनी ज़िंदगी की एक ग़ज़ल
रोज़  एक  इल्ज़ाम , चढ़  जाता  है  मेरे सर नया ।


1. रहज़नी- रास्ते में लूट-पाट , डकैती

2. तारी -- छाया हुआ

3. सफ़दर - सफ़दर हाशमी के लिए प्रयुक्त

4.सफ़दर - युद्ध में व्यूहों को भेदनेवाला योद्धा





तो बोलिए 


गाय-चर्चा के सिवा कुछ काम हो तो बोलिए
राम  से  दीगर  भी  कोई नाम हो तो बोलिए  ।

सूअरों को जमा करिए चुनके सूअरबाड़ों में
कीचड़ों  के खेल  से  विश्राम  हो तो बोलिए ।

शर्म  भी  शर्मा  गई है देख कर बेशर्मियाँ
इसके नीचे और कुछ बदनाम हो तो बोलिए ।

लोग तो बदला किए हर पाँच वर्षों में हक़ीम
बोलिए ,  कुछ  दर्द  में  आराम हो तो बोलिए ।

दिन में मंदिर पर बहस और रात चर्चा बुर्के पे
बची  थोड़ी  चैन  की  गर शाम हो तो बोलिए ।

जंग पाकिस्तान से और जात-मज़हब पे जुनून
इसके अलावे , और कुछ पैगाम हो तो बोलिए ।

आपके  जुमलों  से  मेरा  पेट आधा भर गया
शेष आधे का  कुछ  इन्तेज़ाम  हो  तो बोलिए ।

बिना  सुनवाई  कटी  है  उम्र  कारावास  में
मेरे  माथे  और  कुछ   इल्ज़ाम हो तो बोलिए ।


   



मेरे गाँव में


योजनाओं  का  मचा है  शोर,  मेरे  गाँव में
ठेकेदारी  पर   उगेगी   भोर ,   मेरे  गाँव में !

महुए पर गाती हुई कोयल तो निर्वासित हुई
चील , कौवों  के मजे हर ओर,  मेरे गाँव में ।

जिस दिहाड़ी पर टंगी है,पांच जन की ज़िंदगी
उसपे भी झपटें महाजन-चोर ,  मेरे गाँव में ।

बीडीओ के दफ़्तरों के शेल्फ पर जा ढ़ूँढ़िए
दब गईं हरियालियाँस ओर, मेरे गाँव में ।

पनघटों पर कीचड़ों की कथा है बदबू भरी
क्या कहें कि ज़ुल्म है  बरजोर , मेरे गाँव में ।

फ़सल पर आफ़त;न पूछो,आजकल हर साल है
कुछ बची तो ले गया सूदख़ोर , मेरे गाँव में ।

बांसबाड़ी में पड़ी कल रामदीन की लाश थी
क़र्ज़  में  लिपटी - सड़ी  बेठौर1  मेरे गाँव में ।

चैन की ख़ातिर  इधर तो भूलकर  ना आइए
है  यहाँ  भी  वही  आदमख़ोर ,  मेरे  गाँव में ।



1.बेठौर - बिना ठौर-ठिकाना का , लावारिश




पाब्लो पिकासो 




 ‎मुर्दा बना के रख देना


धुंध , अँधेरा , कोहरा  बिछा  के रख देना
रौशनी  का  ,  तमाशा  बना  के  रख देना !

लूट  लेना  ,  ज़िंदगी  की  कश्ती
डूबने  के ;  किनारे  पे  ला  के  रख  देना !

ठंढ से बचने के बहाने , जलाना  तीली
सारी की सारी , बस्तियाँ जला के रख देना !

तेरा भरोसा दिलाना , कि सर पे छत होगी
और मुझको ,मेरी जड़ तक हिला के रख देना !

बना के रखना रियाया को सिपाही,पैदल
हरेक  इंसान  को  मोहरा  बना  के  रख देना !

खोदना कब्र तवारीख़ की किताबों के
ज़िंदा  मसलों  को ,  मुर्दा  बना के रख देना !

कमाल खेल हैं साहब , तेरी सियासत के
मेरे  खिलाफ़ ;  मुझे ही  बढ़ा  के  रख  देना !
             



पत्थरों को तोड़ती

पत्थरों को तोड़ती नदियों की धारा देखिए
ज़िद्दी  लहरें मानतीं हैं ,  कब किनारा देखिए ।


खड़े होकर तट पे क्या देखोगे मौजों का जुनून
गहरे पानी में उतरिए ,  फिर  नज़ारा  देखिए ।

रात के इन ज़ुल्मतों 1से ख़ौफ़ में मत आइए
अपने दिल की आग में सूरज,शरारा2देखिए ।

मेरी आँखों के  समंदर में ज़रा  तो  झांकिए
प्यार मीठा देखिए, कुछ पानी खारा देखिए ।

पेट आधा काटकर ,सपनों के चिथड़े ओढ़कर
कैसे करते  हैं  करोड़ों जन  गुज़ारा , देखिए ।

उधर मुट्ठीभर,हुकूमत करने वालों की जमात
इधर  जत्थों में  सुलगता  सर्वहारा ,  देखिए ।

हाथ रखिए ज़िंदगी की हर धड़कती नब्ज़ पर
गौर से सुनिए ;  समझिए और इशारा देखिए ।

उनको उनके ज़ुल्म की हद पार करने दीजिए
सरफ़रोशी  का  इधर  जज़्बा  हमारा  देखिए ।


1.ज़ुल्मतों--अंधेरों

2.शरारा- चिंगारी ,स्फुलिंग



 धूप के बाग़  

धूप  के  बाग़  लगाए  जाएँ
फूल , किरणों के उगाए जाएँ ।

दिल के  वीरां पड़े जज़ीरे 1में
कुछ हरे  ख़्वाब बसाए जाएँ ।

घर भी दिखते हैं-यातना के शिविर
अब कहाँ बच्चे छुपाए जाएँ ?

क़त्ल की रात लाख लंबी हो
भोर  के  सपने  बचाए  जाएँ ।

झाड़-झाँखड़ उजाड़ लें पहले
फिर  नए  नगर बसाए जाएँ ।

वक़्त कबसे गवाह बनके खड़ा
अब भी मुजरिम तो बुलाए जाएँ ।

अपने  टूटे  हुए  घरौंदों  पर
नक़्शे  दुनिया  के बनाए जाएँ ।

आपका , मेरा एक-सा दुःख है
क्यों नहीं  हाथ मिलाए जाएँ ।


1.जज़ीरा - टापू



पाब्लो पिकासो 





इस तरफ़ भी....उस तरफ़

थे  ठगेरे  ही  उधर भी  ,  हैं ठगेरे इस तरफ़
उधर भी  छेंके  हुए थे ,  अभी  घेरे  इस तरफ़ !

दोस्तों , तालाब की ये मछलियाँ भागें किधर
कुछ मछेरे उस तरफ़ हैं , कुछ मछेरे इस तरफ़ !

गोल- चक्कर पर है आकर ज़िंदगी ऐसी फँसी
जैसे  फेरे  उस तरफ़ थे ,  वैसे  फेरे  इस तरफ़ !

कालिमा  इस कदर  चारों ओर है फैली  हुई
उधर  मावस रात ,   हैं  बढ़ते अँधेरे इस तरफ़ !

कातिलों  के  सारे  जत्थे  लगे हैं आखेट पर
कुछ के डेरे उस तरफ़ हैं , कुछ के डेरे इस तरफ़ !

उधर भी भाषण ही था और इधर भी भाषण ही है
उस तरफ़ लफ़्फ़ाज़ ही थे ,  हैं  लखेरे इस तरफ़ !

उनमें - इनमें फ़र्क क्या है , एक थैली के हैं सब
उस तरफ़  भी  चोर बैठे ,  और  लुटेरे  इस  तरफ़ !


 

हम ही हैं बेस्ट

मेरा बचवा लंगटे खेल रहा
वो ' मंदिर  वहीँ  बनाएँगे '
फुटपाथ पे ठंढी झेल रहा
वे  बाबर  से  फरियाएँगे ।

औरत सूखी मुरझाई सी
वे शिव- चर्चा करवाएँगे
और सर पर है ना टाट बची
इतिहास-भजन वो गाएँगे ।

हम रोज़ी-रोटी ढूंढ रहे
वो राम-सेतु  ढुंढ़वाएंगे
ख़िलजी को हवा में मारेंगे
या हज़ पर बहस चलाएँगे ।

रोज़गार  की  आस नहीं
दुर्गा - महिषा जगवाएँगे
घर में है सूखी घास नहीं
गाय पे  गला  कटवाएँगे ।

सूखा या बाढ़ ,अकाल पड़े
योजना का नाम बदल देंगे
लाखों- करोड़ बेकार खड़े
आरक्षण  का  दंगल  देंगे ।

हैं अस्पताल बीमार -
बजट में कुंभ के खर्चे पर चर्चा
शिक्षा का बदतर हाल-
सदन में गीता पर है परिचर्चा ।

तन पर लंगोट तक नहीं बची
'सेना' * में मोंछ पिंजाना है
सबको अपनी-अपनी ढपली
पर  अपना  राग  बजाना है ।

खाने को भात मयस्सर ना
इस्लाम  मगर  खतरे में है
सब  ईंटें  ढोओ  माथे पर
अब राम  इधर ख़तरे में है ।

घर में दंगा करवाते हैं
और पाकिस्तान पे चढ़ते हैं
सब राजनीति उनकी चलती
हम सब आपस में मरते हैं ।

सबसे अव्वल है काम बचा
कि  वेद-ज्ञान  रटवाना  है
गोबर पर करना है रिसर्च
सब गुड़ -गोबर करवाना है ।

माँ भले रहे भूखी - नंगी
वन्दे - मातरम  सुनाना  है
खंडहर अर्थ-व्यवस्था पर भी
गीत विकास का गाना है ।

चेहरा है झुलस कर राख हुआ
बुर्के पर रार मचाओ सब
उनके  बेटे-बेटी  विदेश
तुम दीनी डिग्री पाओ सब ।

खापों के फैसले सर माथे
जिस तरह कबीले कहें, चलो
जीवन संकट से फँसा रहे
तुम इधर-उधर मत्था पटको ।

वे स्वर्ग-नरक की कथा बाँचकर
धर्म की पुस्तक बेचते हैं
वो बड़े प्यार से , मुस्काकर
डर , ईर्ष्या , नफ़रत बेचते हैं ।

जीवन का रिक्शा टूट रहा
वो रोड का नाम बदल देंगे
सूखी काया , उजड़े चेहरे
पर जाति-गुलाल वो मल देंगे ।

हम  मज़दूरी मांगेंगे तो
वो देश-राग पर नाचेंगे
हालात पे जब तुम पूछोगे
वो भाषण मिलकर ठाँचेंगे ।

इस बलात्कार की धरती को
धरती का स्वर्ग बताते हैं
और आत्म-हत्याओं के नगर
आदर्श  नगर  कहलाते हैं ।

भुखमरी झेलते मुल्क को वो
देते  हैं  श्रेष्ठतम  का  तमगा
हम ही थे श्रेष्ठ , हम ही हैं बेस्ट
कहने को और बचा ही क्या ?

भाँति- भाँति की धार्मिक और जातीय सेनाएँ ।



     
.
पाब्लो पिकासो 




दीये जलाने पड़ते हैं

अन्धकार होता है तो फिर दीये जलाने पड़ते हैं
अन्धकार  गहराये , तो मश्आल उठाने  पड़ते  हैं ।

ज़ुल्म-दमन बढ़ता जाए तो जुटते हैं प्रतिरोध के स्वर
कूड़ा- करकट जमा हुए तो यार , जलाने पड़ते हैं ।

बहरों का शासन गर अपनी छाती तक चढ़ आता है
हंगामा  करना  पड़ता  है ,  शोर  मचाने  पड़ते हैं ।

घर में दुबके रहना भी जब नहीं सुरक्षित रह जाए
घर - बाहर  के  मुद्दे  सब , सड़कों पे लाने पड़ते हैं ।

आग लगाकर बस्ती में जब नीरो बंसी छेड़ता है
जलते  लोगों  को  विद्रोही  गाने ,  गाने  पड़ते  हैं  ।

रोज़ बदलती है दुनिया कुछ, रोज़ बदलती है कुछ रीत
रोज़ नया अंकुर उगता , कुछ रस्म पुराने पड़ते हैं ।

ऐसे ही जब उथल-पुथल कर आता है बदलाव का मोड़
तख़्त  गिराने  पड़ते  हैं ,  इतिहास  बनाने  पड़ते  हैं ।


     


फटे चीथड़े पहन के बोलो

फटे चीथड़े पहन के बोलो
भारत माता की जय-जय
मिट्टी-धूल में सन के बोलो
भारत माता की जय -जय
झुकी कमर पे तन के बोलो
भारत माता की जय-जय
प्रगति-गीत-भजन पे बोलो
भारत माता की जय-जय !

भूखा पेट दिखाकर बोलो
भारत माता की जय-जय
सूखे राग में गा कर बोलो
भारत माता की जय-जय
खाली थाल बजा कर बोलो
भारत माता की जय-जय
पिचके गाल फुलाकर बोलो
भारत माता की जय-जय !

सारे बेरोज़गारों बोलो
भारत माता की जय-जय
भाड़े के बेगारों बोलो
भारत माता की जय-जय
भीख में हाथ पसारो, बोलो
भारत माता की जय-जय
जो ना बोले मारो , बोलो
भारत माता की जय-जय ।

स्टार्ट-अप स्टार्ट है, बोलो
भारत माता की जय-जय
चाहे उलटी खाट है, बोलो
भारत माता की जय-जय
अपनी गिरती टाट से बोलो
भारत माता की जय-जय
बोलना होगा,ठाठ से बोलो
भारत माता की जय-जय !

फैक्टरियों के गेट पे बोलो
भारत माता की जय-जय
घटी मज़ूरी रेट पे बोलो
भारत माता की जय-जय
उजड़े , सूखे खेत से बोलो
भारत माता की जय- जय
सूखी मूँछ उमेठ के बोलो
भारत माता की जय-जय !

कानूनी तलवार पे बोलो
भारत माता की जय-जय
लाठी की बौछार पे बोलो
भारत माता की जय-जय
पीठ पे पड़ती मार पे बोलो
भारत माता की जय- जय
झुक करके सरकार से बोलो
भारत माता की जय- जय !

चाकू- छुरी चलाकर बोलो
भारत माता की जय-जय
त्रिशूलें चमका कर बोलो
भारत माता की जय-जय
पब्लिक को धमकाकर बोलो
भारत माता की जय - जय
कैंपस पर कब्ज़ा कर बोलो
भारत माता की जय-जय !

चौराहे पर आकर बोलो
भारत माता की जय -जय
जली रोटियाँ खाकर बोलो
भारत माता की जय- जय
पतली दाल पिलाकर बोलो
भारत माता की जय - जय
फाँसी चलो लगाकर बोलो
भारत माता की जय-जय !

तलवारों की नोंक पे बोलो
भारत माता की जय - जय
भाला-बरछी भोंक के बोलो
भारत माता की जय-जय
चीख़ के बोलो ,भौंक के बोलो
भारत माता की जय-जय
सच बोलो या ढोंग के बोलो
भारत माता की जय-जय !
नेता जी की लूट पे बोलो
भारत माता की जय -जय
सब सेठों की छूट पे बोलो
भारत माता की जय- जय
उनके नोच-खसोट पे बोलो
भारत माता की जय-जय
साहेब जी के सूट पे बोलो
भारत माता की जय- जय !

पूरा देश वो निगलें , बोलो
भारत माता की जय - जय
छाती ठोंक वो निकलें, बोलो
भारत माता की जय - जय
मन से या डर-डर कर बोलो
भारत माता की जय- जय
लाइन में मर- मर कर बोलो
भारत माता की जय- जय !

गुंडों के सरदार को बोलो
भारत माता की जय-जय
दमन औ' अत्याचार पे बोलो
भारत माता की जय - जय
दंगों- नरसंहार पे बोलो
भारत माता की जय - जय
माँ - बेटी को मार के बोलो
भारत माता की जय - जय !





 दर्द जब आदमी का

दर्द जब आदमी का हद से गुजर जाएगा
ये  नहीं  सोच  वो  बंदूकों से डर जाएगा ।


तेरी  तंज़ीम का हर एक पुख़्ता शीराज़ा
आह उट्ठेगी , पारः पारः बिखर जाएगा ।


उसकी चुप्पी तो बिना बोले जितना बोल गई
देखना  दूर  तलक  उसका असर जाएगा ।


हमें पता है तरक्क़ी की फाइलों का सफ़र
इन्ही  हवेलियों  तक  आके  ठहर जाएगा ।


तुम्ही  ने  आग  लगाईं  है , ये समझ लेना
धुआँ   उठेगा  और  तेरे  भी  घर  जाएगा ।


उसे  पता है  बोलने की सजा क्या होगी
मगर वो चुप रहा तो जीते जी मर जाएगा






पाब्लो पिकासो 




मिलों से, खेतों से

खंडहर ढहता हुआ, ईंट-ईंट बिखरा है
आज दुनिया का ये कैसा उजाड़ चेहरा है
रंग-रोगन से सजाई गईँ हैं दीवारें
पूरे आँगन में मगर चीख-शोर पसरा है
खून से है सनी बुनियाद, टूटता है कहर
लगता है भूत का डेरा है यहाँ आठों पहर
कितनी पीड़ाएँ ,दुःख -दर्द ,तबाही फैली
घुप्प अँधेरा है , हरेक ओर सियाही फैली
मिलके मश्आल जलाओ-मिलों से,खेतों से
उठो ,आवाज़ लगाओ--मिलों से,खेतों से ।

नई तंजीम1 है या कोई खुला खेल है ये
खुले दरवाजे-दरीचे हैं मगर जेल है ये
ख़ौफ़ के दृश्य हैं , फैली हुई वीरानी है
हर नफ़स2 पर किसी क़ातिल की निगेहबानी3 है
हुक्मरानों की कपट, मालिकों का ज़ुल्मो सितम
हम गुलामों की कमर तोड़ने का रोज़ जतन
वाह आज़ादी है--हायर और फायर देखो
जंगी हथियार लिए घूमता डायर* देखो
मीटिंगें आज बुलाओ -मिलों से,खेतों से
उठो आवाज़ लगाओ- मिलों से,खेतों से ।
कैसी खूंरेज़ी4का फ़रमान यहाँ जारी है
चूसते खून थे वो, जान की अब बारी है
आत्मा तक पे खरोंचें हैं, जिसने नोचा है
उसीका खेल है,हर खेल समझा-सोचा है
अब तो संगीन तले अम्न से डर लगता है
भाईचारा का उसका नारा ज़हर लगता है
दिल पे दीवारें हैं, अहसासों का बटवारा है
सबकी चौखट पे खड़ा एक ही हत्यारा है
भाई रे, हाथ बढ़ाओ - मिलों से,खेतों से
उठो आवाज़ लगाओ- मिलों से, खेतों से ।

आज की रात जगो , रात के बारे में लिखो
कठिन समय, बुरे हालात के बारे में लिखो
दुःखों के गीत रचो , मन की वेदनाएं कहो
अपने होंठों पे दबी सदियों की व्यथाएं कहो
वक़्त की कौल सुनो, समय की पुकार सुनो
अपने संघर्षों के आओ नए हथियार चुनो
अब भी जो खंडहर मिस्मार5अगर कर न सके
एक लड़ाई है आर-पार , अगर लड़ न सके
ढहती दीवारों में दब जाओगे,घुट जाओगे
चीख की कौन कहे , बोल भी न पाओगे
मुक्ति की बात चलाओ-- मिलों से, खेतों से
उठो,आवाज़ लगाओ-- मिलों से, खेतों से ।





1.तंज़ीम--व्यवस्था

2.नफ़स--साँस

3.निगेहबानी--निगाह रखना, निगरानी

4.खूंरेज़ी--खून-ख़राबा, बेरहमी से हत्या करना

5.मिस्मार--ध्वस्त

* डायर - जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड को अंजाम देनेवाला कुख्यात अंग्रेज़ पदाधिकारी ।यहाँ साम्राज्यवादी जुल्म, मनमानी और कत्लेआमों को अंजाम देनेवाले के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया है ।

     




नहीं गिरा पाओगे.. बहुत वज़नी है !


तुम्हीं ने तो मारी थी गोली उन्हें
सौ साल बीत गए...
बिस्तर पर पड़े हुए उस पाँच फीट पाँच इंच
के इंसान से
किस कदर ख़ौफ़ खाए हुए थे तुमलोग !
हिल चुका था तुम्हारे लूट-मार का वैश्विक साम्राज्य !!
आजतक ख़ौफ़ज़दा हो !
आज तक भय से उबरे नहीं !
किसके भूत का भय सता रहा है तुम्हें ?
और भविष्य भी सताता ही रहेगा ।
अंधो , पृथ्वी सूरज के चारों तरफ़ घूम रही थी
और तुम ब्रूनो को ज़िंदा जला रहे थे
गैलीलियो को कैद कर रखा था
' पूंजी' को मौन से मारना चाहा था तुम्हारे 'विद्वानों' ने
बेवकूफो , सचमुच हँसी आती है
तुम्हें पता ही नहीं है कि
लेनिन को ध्वस्त नहीं किया जा सकता !
नहीं गिरा पाओगे...बहुत वज़नी है !!
दुनियाभर के मेहनतकशों के हाथों में थमे
एक-एक हथौड़े का वज़न समझते हो ?
तुम्हे मालूम है कि इनके योग का मायने क्या होता है ?
तुम्हें मालूम है मुक्तिकामी जन-सैलाब के बहाव का दबाव ?
उसकी गति और उसकी ऊर्जा !!
संकट , तुम्हें पता है न ?... आज भी घिरे हो !
और कमज़ोर कड़ी पर पड़ने वाली मर्मान्तक चोट
थोड़ा याद कर लो !... डरते हो..??
हमारी पीढ़ी और आनेवाली नस्लों की
असंख्य आँखों में पलने वाले उन टेस लाल
सूरज सरीखे सपनों का वज़न
मापने की कूवत नहीं है तुममे...
अरे, उन असंख्य आँखों की पुतलियों के नीचे
चमकती हैं असंख्य लेनिन की मुस्कुराती ,
विचारमग्न , ठोस स्वप्नद्रष्टा आँखें !!
भविष्य की तरफ़ पीठ करके
मध्ययुगीनता की सड़ांध भरी बिष्टा करने वाले ,
जाहिल उन्मादियो !
नहीं गिरा पाओगे... बहुत वज़नी है !!!
०००

                    


संक्षिप्त परिचय: आदित्य कमल
पूंजीवादी जीवन के साथ नाभिनाल-बद्ध विसंगतियों से जूझने वाला , दो-दो हाथ करने वाला इंसान हूँ ।साहित्य और सांस्कृतिक गतिविधियों में रूचि रखता हूँ ।सचेत राजनीतिक , सामाजिक , सांस्कृतिक कार्यकर्त्ता हूँ ।25 दिसंबर , 1959 को बिहार के भागलपुर जिले में मेरा जन्म हुआ और स्नातकोत्तर तक की शिक्षा-दीक्षा पटना विश्वविद्यालय में हुई ।



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