29 जुलाई, 2018

निर्बंध: पांच

घोड़े भी इंसान को कुछ सिखा सकते हैं 

यादवेन्द्र


                                             यादवेन्द्र

अत्यंत लोकप्रिय उपन्यासों के ब्रिटिश लेखक निकोलस इवांस के अत्यंत लोकप्रिय उपन्यास "द हॉर्स व्हिस्परर" पर आधारित इसी नाम की फ़िल्म(रॉबर्ट रेडफोर्ड के निर्देशन में 1998 में बनी) फ़िर से देखी -- शायद पाँचवी बार।यह बर्फीले चढ़ाव पर हुई फिसलने से हुई एक दुर्घटना में घोड़े और उस से गिर कर बुरी तरह से घायल हो गयी लड़की के दुबारा उठ खड़े होने के संघर्ष की शानदार कहानी है जिसे मिल कर सम्भव करते हैं लड़की की दृढ निश्चयी माँ एनी मैक्लीन और अड़ियल घोड़ो को ठीक करने वाला पशु मनोवैज्ञानिक सह ट्रेनर टॉम बुकर - भारत  में इनका प्रचलन नहीं है पर पश्चिमी दुनिया में जिन्हें "हॉर्स व्हिस्परर" जैसे बेहद अर्थपूर्ण सम्बोधन से पुकारते हैं ।

दरअसल व्हिस्परर अमेरिकी स्लैंग का कवित्वपूर्ण शब्द है जो उस व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है जो किसी जानवर से इस हद तक अंतरंग होता है कि दोनों एक दूसरे की भाषा सहज रूप में  समझने लगते हैं। पर  इनकी गिनती शायद दोनों हथेलियों की उँगलियों से ज्यादा न हो।   

"हॉर्स व्हिस्परर" फ़िल्म स्क्रिप्ट के कुछ  अंश
एनी(मैक्लीन) - मैंने इस आर्टिकल में तुम्हारे काम के बारे में पढ़ा - कि तुम उनलोगों के साथ किस तरह का काम करते हो जिनके घोड़ों के साथ कोई समस्या होती है।
टॉम(बुकर)- दरअसल सच्चाई अलग है ...मैं उन घोड़ों के साथ काम करता हूँ जिन्हें उनके मालिकों से समस्या होती है।
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टॉम - जब मैं किसी घोड़े के साथ काम करता हूँ तो उसका इतिहास जानने में पहली दिलचस्पी होती है ....और कुछ गिने चुने मामलों को छोड़ दें तो सभी घोड़े अपनी सारी कहानी खुद बयान  कर देते हैं ….. मेरी दिलचस्पी हमेशा से घोड़े का पक्ष सुनने और जानने में रही है।
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वहाँ एकत्र समूह गर्मजोशी से हँसता है।टॉम ने अपनी बात राल्फ़ लॉरेन के मँहगे कपड़े पहन कर खड़ी महिला (एनी) को सुना कर कही जो घेरे से थोड़ी दूरी बना कर खड़ी थी।
टॉम -यदि यह घोड़ा सनकी था या आलसी था - जैसा तुम कह रही हो - तो हम पहले जाकर उसकी दुम देखेंगे कि वह कैसे हरकत करती है .... और उसके  कान भी देखेंगे। पर मुझे लगता नहीं कि यह कोई सनकी घोड़ा है .... अलबत्ता मुझे यह बुरी तरह से डरा और  घबराया हुआ मालूम होता है। देखो तो उसकी गर्दन की चमड़ी कैसी सिकुड़ी हुई है ,वह यह तय नहीं कर पा रहा है कि जाना किधर है .... ।

एनी  ने सहमति में सिर हिलाया। टॉम पल भर को घोड़े को निहारता है और इस तरह खड़ा रहता है जिस से गोल गोल चक्कर काटते घोड़े के चेहरे की ओर ही लगातार देखता रहे।
टॉम : अब तुम खुद देखो यह कैसे अपने पुट्ठे मेरे सामने कर रहा है ..... मुझे लगता है कि बाड़े से बाहर निकलने में यह आनाकानी इसलिए करता है क्योंकि उसके जख्म दुखते हैं।
एनी : उसको उठने बैठने या घूमने में तकलीफ़ होती है ,तुम देख सकते हो। मैं उसको धीमी चाल से चलाते हुए ऊँची छलाँग की ओर ले जाना चाहती हूँ .... ।
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कौन है असल हॉर्स व्हिस्परर ? 

दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों की फ़ेहरिस्त में शीर्ष स्थान पर रहने वाला निकोलस इवांस का यह  उपन्यास "द हॉर्स व्हिस्परर" जिस वास्तविक चरित्र पर आधारित है वह हैं डैन बक ब्रेन्नामन। वे बारह वर्ष की अवस्था से घोड़ों के साथ खेलते और चोट खाते रहे हैं - कई बार उनकी जान जाते जाते बची पर उन्होंने सबक यह लिया कि सबसे पहले वह कारण जाना जाये जिसके चलते घोडा अपने सहज बर्ताव से अलग चल रहा है ... एकबार यह मालूम हो जाए तो उसका निदान ढूँढना आसान हो जाता है। डैन बिगड़ैल घोड़ों को किसी न किसी दुर्व्यवहार या हिंसा के शिकार रहे बिगड़ैल बच्चे मानते हैं।वे किसी का भरोसा नहीं करते और उन्हें हरदम अंदेशा होता है कि सामने वाला इंसान आक्रमण करेगा। पर धैर्य , कुशल    नेतृत्व , करुणा और दृढ़ता के साथ इनको अतीत की कु - स्मृतियों से बाहर निकाला जा सकता है। जब घोड़े या कोई भी जानवर मालिक के साथ से सुरक्षित और निडर महसूस करने लगे तब उन दोनों के बीच सही संबंध जुड़ सकता है। घोड़े सामान्य तौर पर क्षमाशील होते हैं - हम अपने जीवन के जिन हिस्सों के खालीपन को खुद नहीं भर सकते घोड़े उन्हें भरना जानते हैं।  वे दरअसल आपको खुश देखना और करना चाहते हैं पर आपको उनके साथ चलना पड़ेगा।
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भारत में "हॉर्स व्हिस्परर" संबोधन पहली बार मैंने हाल में भारत तिब्बत बॉर्डर पुलिस  के सब इंस्पेक्टर मंगल सिंह के संदर्भ में सुना जो इस पुलिस बल के श्रेष्ठ एनिमल ट्रेनर मंगल सिंह माने जाते थे जिनकी  हाल में असमय मृत्यु हो गयी।


अरुणाचल प्रदेश के लोहितपुर एनिमल ट्रेनिंग सेंटर में मंगल सिंह ने सुबह लगभग छह बजे जानवरों का चारा खिलाया और एक घंटे बाद दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। एक अधिकारी के मुताबिक जानवरों को बिन बताये यह महसूस हो गया था कि उनके प्यारे ट्रेनर के साथ कुछ हुआ है। उन्होंने दोपहर और शाम को खाने की तरफ़ नज़र उठा कर भी नहीं देखा - अगले दिन भी बस नाम मात्र का भोजन किया। मंगल सिंह की कमी उन्हें खल रही है । जानवरों और मंगल सिंह के बीच एक खास किस्म का ‘रिश्ता’ था। खिलाते-पिलाते और ट्रेनिंग के दौरान मंगल सिंह जानवरों से बातचीत भी करते थे।घोड़े मंगल सिंह की भाषा कितनी समझ पाते थे पक्के तौर पर तो यह कहा नहीं जा सकता लेकिन उनके इशारों को वह बखूबी समझते थे। और एक बात जो घोड़ों और मंगल सिंह को जोड़ती थी वह था घोड़ों के प्रति मंगल सिंह का अपार और अंतरंग प्रेम।     

इस से पहले मंगल सिंह तीन वर्षों तक काबुल दूतावास में कुत्तों के स्क्वैड के 9 के प्रमुख थे और कई भयावह दुर्घटनाओं से भारतीयों को बचाने में सफल रहे थे - इस अनुकरणीय और साहसिक कार्य  के लिए उन्हें कठिन सेवा मेडल और फ़ॉरेन सर्विस मेडल से नवाजा गया था।

                          सब इंस्पेक्टर मंगल सिंह

थोड़ा सा भी भिन्न होने पर आसपास के मनुष्यों के प्रति बढ़ती  जाती  घृणा और असहिष्णुता के इस दुः समय में इंसान और घोड़ों के ऐसे  अप्रतिम प्रेम और साझेपन के उदाहरण बुनियादी मानवीय मूल्यों के प्रति गहरा भरोसा पैदा करते हैं - आखिर हमें  मारकाट से अमन चैन की तरफ़ लौटना ही होगा।





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निर्बंध: चार नीचे लिंक पर पढ़िए

पहनावे और विचार का गहरा रिश्ता
https://bizooka2009.blogspot.com/2018/07/blog-post_4.html?m=1



3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत शोधपूर्ण आलेख। रोचक जानकारी के लिए आभार

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  2. ACCHI JAANKARI. VAISE AAPNE Do Bailon kee katha padhi hogi hee. Us babat kya khayal hai?

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  3. Sir,
    अदभुत,अप्रतिम,बिल्कुल नया तरीक़े आप की लेखनी कलेक्शन है।आप जैसे महान साहित्य कार की लेख को पढ़ना अपने आप मे रोमांचक है।आप का मुंबई क्राइम पेज़ न्यूज़ में बड़े ही दिल से स्वागत है।
    VR.Chavan
    Editor
    www.mumbaicrimepage.com

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