15 नवंबर, 2018


जनता परेशानलूटेरे मालेमाल
नोटबंदी के दो साल
सुनील कुमार


2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री के दावेदार नरेन्द्र मोदी ने लोगों से अनेक वादे किए थेजिनमें से मुख्य वादा था विदेशों से कालेधन को लाना और सभी के खाते में 15-15 लाख रुपये देना और हर साल दो करोड़ बेरोजगार लोगों को रोजगार देना। यह दोनो लोकलुभावने वादे लोगों के दिल को छू गए और पूर्ण बहुमत से एनडीए सरकार बन गई। एक सभा में 15 लाख रू. को अमितशाह चुनावी जुमला घोषित कर चुके हैंतो मोदी दो करोड़ रोजगार को ढेंगा दिखा चुके हैं। कालेधन को लेकर मोदी सरकार ने बताया कि उन्होंने काफी प्रयास किया जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज की निगरानी में एसआईटी का गठनअलग-अलग देशों के साथ टैक्स समझौताविदेशों में जमा कालेधन के लिए 2015 में मजबूत कानून बनाया जाना इत्यादी।


मोदी के यह सब प्रयास’ ढाक के तीन पात रहेअभी तक एक रू. का भी काला धन नहीं आया। देश की जनता के अन्दर यह सवाल था कि मोदी ने जो 100 दिन में काला धन लाने और 15 लाख देने की बात कही थी उस दिशा में कुछ हो भी रहा है या नहीं। तभी अचानक 8 नवम्बर, 2106 को शाम 8 बजे मोदी घोषणा करते हैं कि 12 बजे रात से 500, 1000 रू. के नोट नहीं चलेंगे और 50दिन में सब ठीक हो जायेगा अगर नहीं ठीक हुआ तो जिस चौराहे पर चाहे सजा दे। मोदी के नोटबंदी के समय दिये गए वक्तव्य का कुछ अंश- ‘‘देश को भ्रष्टाचार और काले धन रूपी दीमक से मुक्त कराने के लिए एक और सशक्त कदम की जरूरत है। 8 नवम्बर की रात्रि12 बजे से वर्तमान में जारी 500 और 1000 रू. के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगेये मुद्राएं कानूनन अमान्य होगी।  भ्रष्टाचारकाले धन और जाली नोट के कारोबार में लिप्त देश विरोधी और समाज विरोधी तत्वों के पास मौजूद  500 और 1000 रू. के पुराने नोट अब केवल कागज के टुकड़े समान रह जाएंगे। हमारा इस कदम  से देश में भ्रष्टाचारकालाधन एवं जाली नोट के खिलाफ हम जो लड़ाई लड़ रहे हैंउसको ताकत मिलने वाली है। जो आदमी सम्पत्ति मेहनत और ईमानदारी से कमा रहे हैं उनकी हक की पूरी रक्षा की जायेगी। 30 दिसम्बर तक जो किसी कारणवश नोट नहीं जमा कर पाये उनको डिक्लेरेशन फार्म के साथ 31 मार्च 2017तक रिजर्व बैंक में जमा करा सकते हैं।’’  मोदीजी ने और भी कई तरह के नियम समझाये कि क्या करना है क्या नहीं करना हैमोदी के इस घोषणा से देश में 86 प्रतिशत नोटों का चलन बंद हो गया।

नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर यहां की आम जनता पर पड़ा। देश में अफरा-तफरी का माहौल हो गया। अधिकांश लोग काम धंधे पर जाना बंद करके परिवार की जरुरत के लिए नोट बदलवाने के लिए बैंकों के सामनेएटीएम लाईन के सामने 8-10 घंटा खड़े होते फिर भी उनको पैसे नहीं मिल पाते दूसरे-तीसरे दिन फिर वह इसी तरह लाईन में खड़े होते और खाली हाथ घर आ जाते। नोटबंदी के दौरान कम से कम 150 लोगों की जानें चली गई। कोई भी अरबपति-खरबपति लाईन में खड़े हुए नहीं दिखा ना ही उनका हार्ट अटैक हुआ। जब आम लोगों कि घरों कि शादियां टाली जा रही थी उसी समय 16 नवमबर, 2016 को कर्नाटक के मंत्री रह चुके जर्नादन रेड्डी ने अपनी बेटी की शादी में 500 करोड़ रू. खर्च किये।

नोटबंदी को बीजेपी के प्रवक्ता काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक की संज्ञा दे रहे थे और जापान के टोक्यों में मोदी जी बोल रहे थे कि‘‘कल तक गंगा में चवन्नी तक न डालने वाले लोग अब नोट बहा रहे हैं’’। सरकार की तैयारी का यह आलम था कि 43 दिन में 60 बार नियम बदले गये।  8 अक्टूबर, 2018 को नोटबंदी के दो साल पूरा होने पर मोदी जी का कोई ट्वीट नहीं आया जो कि हैरानी की बात है। उस दिन वो लाल कृष्ण आडवाणी के जन्मदिन की बधाई का फोटो ट्वीट कर रहे थे। नोटबंदी के नतीजे सामने आने के बाद सरकार के स्वर बदलने लगे जो कभी काला धन पर नकेल कसने की बात कर रहे थे वे कहने लगे कि नोटबंदी का उद्देश्य अर्थव्यवस्था को डिजिटल बनाना था।

नोटबंदी के समय अर्थशास्त्रियों की राय
भारत के पूर्व चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर कौशिक बसु ने न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखा था, “मोदी सरकार का नोटबंदी का फैसला गुड इकोनॉमिक्स’ कतई नहीं रहा। इसके फायदों से अधिकनुकसान ज्यादा होंगे।

इकोनॉमिक्स का नोबेल पुरस्कार पाने वाले पॉल क्रूगमैन ने कहा था, “बड़े नोटों को बंद करने से भारत की इकोनॉमी को बड़ा फायदा होते नहीं दिख रहा। इस फैसले से सिर्फ करप्ट लोग भविष्य में ज्यादा अलर्ट हो जाएंगे। लोगों के बिहेवियर में सिर्फ एक ही परमानेंट बदलाव आएगावह यह कि बेईमान लोग अपने पैसे को काले से सफेद करने के मामले में ज्यादा सतर्क हो जाएंगे और उसके ज्यादा नए तरीके ढूंढ लेंगे।

इकोनॉमिक्स के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन ने कहा था, “नोटबंदी का फैसला नोटों की अहमियतबैंक खातों की अहमियत और भरोसे पर चलने वाली पूरी इकोनॉमी की अहमियत को कम कर देता हैये मनमाना फैसला है।

बिजनेस मैगजीन फोर्ब्स के एडिटर इन-चीफ स्टीव फोर्ब्स ने सम्पादकिय में लिखा था, “नोटबंदी का फैसला जनता के पैसे पर डाका डालने जैसा है। 1970 के दशक में नसबंदी जैसा अनैतिक फैसला लिया गया थालेकिन उसके बाद से नोटबंदी तक ऐसा फैसला नहीं लिया गया था। मोदी सरकार ने देश में मौजूद 86प्रतिशत लीगल करेंसी एक झटके में इलीगल कर दी। यह कदम देश की इकोनॉमी के लिए तगड़ा झटका है।
फ्रेंच अर्थशास्त्री गाय सोरमन ने कहा- जड़ें जमा चुके करप्शन को यह खत्म नहीं कर सकता। नरेंद्र मोदी का शासन में जल्दबाजी दिखाना कुछ निराश करने वाला है।

सरकार का मत
                इससे काल धन खत्म हो जायेगा।
                भारत की अर्थव्यवस्था कैसलेश होगी।
                अनौपचारिक लेन देन को औपचारिक बनाया जायेगा।
                भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगा।
                लोग पैसे जलाबहा और फेंक रहे हैं।
                आतंकवादनक्सलवद का कमर टूट जायेगा। 
रिजर्व बैंक
                देश में 500 व 1000 रू. के नोट 15.417 लाख करोड़ चलन में था जिसमें से 15.310 लाख करोड़ रू. लौट आये हैं।
                देश को 9 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है।
नोटबंदी से 2.30 घंटे पहले की बैठक में बता दिया था कि इससे देश में समस्या आयेगी और कालेधन और नकली नोटों पर रोक नहीं लगेगी।

आम जनता

गगन आहूजाकपड़ा व्यापारी हैं जो बताते हैं कि हमने सामान स्टॉक रखा हुआ थानोटबंदी के बाद उसे बेचना मुश्किल हो गया। इस वजह से नया माल नहीं खरीद पाए। उसका असर हमारे व्यापार पर पड़ाआम लोगों पर पड़ा और साथ ही हमारे मज़दूरों-कारीगरों पर पड़ा। जहाँ हम 10 लोगों को नौकरी पर रखे हुए थे अब 6 लोगों से ही काम चलाना पड़ा।
बिजेंदर कहते हैं कि नोटबंदी के बाद मुझे 5 नौकरियां बदलनी पड़ी। एक जगह नौकरी करता तो कुछ दिन बाद मालिक कहता कि ब्रेक ले लोअभी काम नहीं है। मेरा तो परिवार यहीं है किसी तरह जुगाड़ कर लेता हूँ लेकिन ऐसे कई दोस्त हैं जो वापस अपने गाँव-शहर लौट गएक्योंकि काम मिलना लगभग बंद ही हो गया है।



रोजगार

सेन्टर फॉर मानिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने जो रिपोर्ट जारी किया है उसके मुताबिक जुलाई 2017 से सितम्बर 2018 के बीच (14 माह में) बेरोजगारी दर में 167 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जुलाई 2017 में बेरोजगारी दर 3 प्रतिशत थीजो सितम्बर 2018में बढ़कर 8 प्रतिशत हो गई। इस तरह बेरोजगारी ने 20 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। नोटबंदी के समय श्रमिक आंकड़ा 47-48प्रतिशत था जो घटकर 42.4 प्रतिशत हो गया है। 2017 में 40.7करोड़ लोगों के पास रोजगार था जो 2018 में घटकर 39.7 करोड़ हो गया। हर साल तकरीबन 1.3-1.5 करोड़ लोग देश के लेबर मार्केट में आते हैं।

सरकारी आंकड़े के मुताबिक 2010 से 2014 के दौरान कुल29,70,000 नये लोगों को रोजगार मिला लेकिन मोदी के शासन काल में 2015 एवं 2016 में केवल 2,70,000 लोगों को ही रोजगार मिला। इसके बाद मोदी सरकार ने रोजगार से सम्बन्धित आंकड़ों को जारी करना ही बन्द कर दिया क्योंकि मोदी जी ने चुनाव से पहले दो करोड़ रोजगार हर साल देने की बात कही थी।

गरीबो की लूट से अमिरों की ऐश

सरकार ने मिनिमम बैलेंस नहीं रखने पर लोगों के बैंकखाते से पैसे काटने लगे। मिनिमम बैलेंस गरीबों के खाते में नहीं होता है अमिरों की चिंता तो मैक्सिमम की होती है चार्ज मैक्सिसम बैलेंस पर लगना चाहिए था।
2017-18 में 21 सरकारी और 3 प्राइवेट बैंक मिनिमम बैलेंस पर चार्ज से 5000 करोड़ रू. कमाए हैंजिसमें अकेले एस.बी.आई. की कमाई 2433.87 करोड़ रू. है उसके बाद भी एस.बी.आई6547 करोड़ रू. का घाटा हुआ है। चार साल में बैंकों ने विभिन्न तरीके से खाताधारकों के अकाउंट से 11,500 रू. काटा है।

मोदी ने गरीबों से 0 बैलेंसे पर जनधन योजना के तहत अकांउट खोलने के लिए कहा था। जनधन योजना में फरवरी 2017 तक31.20 करोड़ खाते खुल चुके थे जिसमें 8 अगस्त् 2018 तक81,197 करोड़ रू. थे जिसकी चर्चा मोदी करते रहते हैं। जनधन योजना में 20 प्रतिशत खातों में कोई लेन-देन नहीं हो रहा है अतः यह खाते अत्यंत गरीबों के ही होंगे जो कि 0 बैलेंस के नाम पर खाते तो खुलवा लिये लेकिन उनके पास इसमें लेन-देन करने की जमा पूंजी नहीं होगी। सरकार जनधन के 59 लाख खातों को बंद कर दिया है।

एक तरफ गरीबों के खातो बंद किए जा रहे हैं और उनके खातों से पैसे काटे जाते हैं वही दूसरी तरफ भारत में कुछ लोग बैंकों को चूना लगा कर विदेश भाग गए हैं। मोदी सरकार के 4 साल के कार्यकाल के दौरान 31 बड़े बैंक घोटालेबाजों ने विभिन्न बैंकों से करीब70,000 करोड़ रुपये का कर्ज लेकर देश छोड़ दिया है। ऐसे प्रमुख घोटालेबाजों में विजय माल्या (करीब 9,000 करोड़ रुपये)नीरव मोदी एवं उसके चाचा मेहुल चौकसी (12,636 करोड़ रुपये)जतिन मेहता (7,000 करोड़ रुपये)चेतन जयन्ती लाल संदेसारा एवं नितिन जयन्ती लाल संदेसारा (5,000 करोड़ रुपये)दीपक तलवार आदि शामिल हैं। इससे बैंको का एनपीए बढ़ रहा है मोदी शासनकाल के 4 सालों (2015 से 2018 तक) में सरकारी एवं निजी बैंकों के कुल 3,57,331 करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाले गए।

6 अप्रैल, 2018 को लोकसभा में वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने बताया कि 31 मार्च 2015 तक सरकारी बैंकों का एनपीए 2 लाख 67 हज़ार करोड़ था जो 30 जून 2017 तक सरकारी बैंकों का एनपीए 6 लाख 89 हज़ार करोड़ हो गया। आरबीआई ने अपनी हाल में जारी वार्षिक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि मार्च 2015 तक अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का जो कुल एनपीए 3,23,464 करोड़ रुपये का थावह मार्च 2018 तक बढ़कर 10,35,,528 करोड़ रुपये हो गया है।

कर्जदार उद्योगपति

अनिल अम्बानी         1.25 लाख करोड़
वेदांता ग्रुप      1.03 लाख करोड़
एस्सार ग्रुप     1.01 लाख करोड़
अडानी ग्रुप     96,031 करोड़
जेपी ग्रुप       75,163 करोड़
जेएसडब्लयु ग्रुप  58171 करोड़
जीएमआर ग्रुप   47969 करोड़ रू.
लैंकों ग्रुप       47102 करोड़ रू.
वीडियोकॉन ग्रुप  45,405 करोड़ रू.
जीवीके ग्रुप     33933 करोड़ रू.
स्रोत : जनसत्ता।
सुप्रीम कोर्ट के दिसम्बर 2015 में बैंकों को कर्ज न चुकाने वाले बड़े बकाएदारों के नाम सार्वजनिक करने का आदेश दिया था लेकिन अभी तक नाम घोषित नहीं किया गया। क्रेडिट सुइज मार्च 2015के बैलेंस सीट के आधार पर अक्टूबर 2015 में 10 बकायदारों की लिस्ट जारी किया था-

पिछले साल जून में रिजर्व बैंक की आंतरिक परामर्श समिति ने 12खातों की पहचान की हैइन 12 खातों में जितना कर्ज बैंकों का फंसा हैवह राशि बैंकों के कुल एनपीए का 25 प्रतिशत तक बैठती है. रिजर्व बैंक के परामर्श के बाद बैंकों ने भूषण स्टील लिमिटेडभूषण पावर एंड स्टील लिमिटेडएस्सार स्टील लिमिटेडजेपी इंफ्राटेक लिमिटेडलैंको इंफ्राटेक लिमिटेडमोनेट इस्पात एंड एनर्जी लिमिटेडज्योति स्ट्रक्चर्स लिमिटेडएलेक्ट्रोस्टील स्टील्स लिमिटेडएमटेक आटो लिमिटेडएरा इंफ्रा इंजीनियरिंग लि. आलोक इंडस्ट्रीज लिमिटेड तथा एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड को एनसीएलटी के पास भेजा। इन सभी फंसे कर्ज के खातों में कुल मिलाकर 1.75 लाख करोड़ रुपये का बकाया है।

सरकार यह मानती है कि इसमें से बहुत सारे लोग जानबूझ कर कर्ज नहीं लौटा रहे हैं।  वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने लोकसभा में प्रश्नों के लिखित जबाब में कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको से लिये गये कर्ज को क्षमता होने के बावजूद भी नहीं लौटाने वालों की संख्या दिसम्बर 2017 तक 9,063 है जिनके पास 1,10,050करोड़ रू. का कर्ज फंसा है जबकि 2015-16 में यह आंका76,865 करोड़ रू. था। सरकार इस तरह गरीबों से पैसे वसूल कर अमीरों पर लूटा रही है और मोदी जी कहते हैं कि ‘‘मैं जानता हूं कि मैंने कैसी-कैसी ताकतों से लड़ाई मोल ली हैवे लोग मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेंगे मुझे बर्बाद कर देंगे। क्योंकि उनकी 70 साल की लूट खतरे में है।’’- 20 नवम्बर गोवा।

कैशलेस इकॉनमी पर रिजर्व बैंक का आंकड़ा है कि 8 नवंबर, 2016 की रात को 17.01 लाख करोड़ कैश चलन में था। वहीं, 8नवंबर, 2018 को 18.76 लाख करोड़ रुपये कैश चलन में है। इससे स्पष्ट है कि कैशलेस इकॉनमी भी फ्लॉप साबित हुई है। नोटबंदी के बाद से स्विस बैंक में भारतीयों का पैसा 50 फीसदी तक बढ़ गया है जिसको अरूण जेटली जी अब कहते हैं कि स्विस बैंक में जमा सभी धनकाला धन नहीं होता है लेकिन 2014 को पहले स्विस बैंक में जमा धनकाला धन मोदी जी मानते थे। 2014 के आंकड़े के आधार पर मोदी जी ने 15 लाख रू. प्रत्येक व्यक्ति के खाते में देने की बात कही थी तो 50 प्रतिशत बढ़ने के बाद वह रकम 22.5 लाख प्रति व्यक्ति हो जाता है। वादे की मुताबिक मोदी सरकार पर जनता का 22.5, 22.5 लाख रू. बकाया है। 

जाली नोट

नोटबंदी के बाद  दावा किया गया था कि जाली नोट बंद हो जाएंगें यहां तक गोदी मीडिया अपने से मनगढ़ंत कहानी बनाई कि इसके अंदर चिप लगा हुआ है जमीन के अंदर भी रखने से इसको पकड़ा जा सकता है। जबकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक 2016-17 में 500 रुपये के 199 नकली नोट पकड़े गए थे। वहीं 2017-18 में नकली नोटों की संख्या बढ़कर 9,892 हो गई है। 2016-17 में 2000 के 638 नकली नोट पकड़े गए थेलेकिन 2017-18 में इन नोटों की संख्या बढ़कर 17,929 हो गई। नोटबंदी के बाद से अब तक अलग-अलग जगहों पर जाली नोट की खेप पकड़ी है. नोटबंदी के तुरंत बाद गुजरात के सूरत में 6 लाख के नकली नोट पकड़े गए थे। छत्तीसगढ़ में इसी साल जून महीने में 12 लाख रुपये के नकली नोट पकड़े गए यह सभी नोट 2000 के थे। नोटबंदी के दो साल जिस दिन पूरे हुए उसी दिन तेलंगाना में 7.5 करोड़ रू. पकड़े गये।

नोटबंदी के समय आतंकवादनक्सलवाद की कमर तोड़ने की बात कह रहे थे लेकिन देखा जाये तो कश्मीर में ज्यादा घटनाएं हो रही हैं। नक्सलवाद की कमर तोड़ते तोड़ते अर्बन नक्सल’ का शिगुफा छेड़ दिया है और गोदी मीडियाराज्यसत्ता ने प्रचारित करना शुरू कर दिया कि ये लोग प्रधानमंत्री की हत्या करना चाहते हैं। इसके नाम पर लूट के खिलाफ बोलने और लिखने वाले लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है।

वित्त मंत्री कहते हैं कि 2014 में 3.8 करोड़ लोग टैक्स जमा करते थे जो कि 2018 में 6.86 करोड़ हो गया है लेकिन उन्होने टैक्स में जमा हुए पैसे को नहीं बताया क्योंकि आय में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है इसलिए आंकड़े जारी नहीं किये गए। प्रधानमंत्री कहते हैं कि यह पैसा गरीबों के काम आ रहा है जबकि हम देख रहे हैं कि किस तरह से इन पैसों  को धन्नासेठों/पूंजीपतियों में बांटा जा रहा हैंमूर्तियां लगाई जा रही हैं। नोटबंदी के बाद कैग द्वार ऑडिट किया जाना था जो कि अभी तक नहीं किया गया है।

मोदी सरकार को बकायेदार पूंजीपतियों की सम्पत्तियों को जब्त कर अस्पतालस्कूल/कॉलेजरोजगार के साधन खोलने चाहिए। लेकिन यह सरकार अब नोटबंदी और विकास पर कम चर्चा करके राम नाम जपने में लगी हुई है। नोटबंदी से जनता के पैसों को जेब से निकाल कर घाटे में चल रहे बैंकों में पैसा डालना था जिससे कि सरकार कि गाड़ी बढ़ सके। नोटबंदी से बेरोजगारी में बेतहासा बढ़ोतरी हुई हैछोटे रोजगारव्यापार खत्म हो गए जिसका लाभ बड़े बड़े व्यापारियों को मिला है। आम आदमी के खाते से पैसे काट कर बैंक के घाटों को कम करने कि कोशिश की जा रही है। नोटबंदी के बाद देश में भ्रष्टाचारकालेधनबैंकों के एनपीए में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। सरकार का अगला निशाना रिजर्ब बैंक के रिजर्व पैसों पर है जिसमें से 3.61 लाख करोड़ सरकाररिजर्ब बैंक मांग रही है जिसको लेकर बैंक गर्वनर और सरकार में रस्साकसी चल रहा है। नोटबंदी का लाभ बड़े बड़े पूंजीपतियों को हुआ है जिसको सरकार का वरदान मिला हुआ है।

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