24 जनवरी, 2019


हूबनाथ के दोहे

भाग - एक 

हूबनाथ 

1..


काल कुकुर रपटा रहा,
भाग सके तो भाग।
जीवन रोटी बाजरी,
झपट पड़ेगा काग।।


2..

कांटों के झंखाड़ में,
भटकैया के फूल।
बिधना चतुर सुजान तू,
ऐसी भारी भूल।।



प्रेम बर्फ़ की कब्र है,
प्रेम आग का फूल।
सूली ऊपर सेज है,
जिगर धंसा इक शूल।।


4

नेता,हाकिम, धर्मगुरु,डाक्टर और वकील।
टुटही पनहीं में छिपी,
इक मुर्चहिया कील।।


5...

दिन अगोरते बीतता,
बज्र हो गई रात।
तन चुहिया की जान तो,
मन बिल्ली के घात।।


6...

तुम जनमे जिस भूमि तहं,
नफ़रत का ब्यौपार।
ये रावण के बाप हैं,
कौन करे संहार।।


7...

राम तुम्हारी गूंज से,
कांपे सूखे पात।
रावण के मुख जा बसे,
बिन सीता के नाथ।।


8...

क्यों प्रकटे,क्या कर रहे,
तनिक न सोचा नाथ।
जनता को दुख दे रहे,
मिल रावण के साथ।।



9...

देह नदी की धार में,
बढ़ती जाए रेत।
बाड़ लगाए क्या हुआ,
मेड़ खा गए खेत।।


10...

मन मिर्ज़ा तन साहिबां,
जग अंधियारा कूप।।
दुख का सागर सामने,
डूब सके तो डूब।।


11..

सूखी नदिया प्यार की,
घाट लगी है आग।
गिद्धों के वर्चस्व में,
गौरैयों के भाग।।







12...

एक बीज के गर्भ में,
बरगद पीपल आम।
जिसकी गहरी जड़ गई,
 उभरा उसका नाम।।


13...

गांजा रिक्शा झोंपड़ी,
गुटखा बीड़ी पान।।
बबुआ एमे पास है,
बॉस अंगूठा छाप।।



14...

बुढ़िया पैंड़ा ताकती,
गोरिया जोहे कॉल।
छोरा दलदल में फंसा,
रात अगोरे मॉल।।



15...

दरिया तरसे आब को,
अंखियां तरसे खाब।
गांव बसा श्मशान में,
शहरों में असबाब।।


16...

बढ़िया चावल मॉल में,
भूसी खाय किसान।
सूरज उनके बैंक में,
इनको नहीं बिहान।।



17....

जग जीतन को आय थे
बिके वासना हाथ
मन बौराया तन थका
बची  अधूरी साध


18...

समय सांस शक्ति सुधन
सबकी कसी लगाम।
जिसने रेखा पार की
उसको नहीं विराम।।



।।गंवार।।

19...

पाहुन अपने द्वार हो,
नहीं पूछते ज़ात।
भूख प्यास पहचानते,
मानुस की औकात।।


20..

मिठवा चउरा चोंपिया,
सिंदूरी अभिराम।
कभी न बदलें स्वाद ये
कभी न बदलें नाम।।


21...

शाम न पाती तोड़ते,
हरी न तोड़ें डार।
पूरी बांस न काटते,
कहते उसे गंवार।।








22..

चिड़िया का कौरा अलग,
भोजन को परनाम।
ये गंवार हैं जानते,
सबके दाता राम।।


23...

पर्यावरण न जानते,
ना जानें विज्ञान।
तुलसी पीपल आम में,
इनके हैं भगवान।।


24...

जंगल में दीमक लगे,
घुन गोचर के भाग।
पोखर में घड़ियाल है,
टूटी मड़ई आग।।


25..

शहर खा रहे गांव को,
मुखिया नदी तलाब।
खेती बारी खा गए,
उन्नति के सैलाब।।


26..

रिश्ता तिल का बीज है,
जब तक उसमें तेल।
तब तक उसकी आरती,
फिर घूरे पर ठेल।।


27..

सबकी मंज़िल एक है,
मरघट क़ब्रिस्तान।
जिसकी गति जितनी अधिक,
उतना किस्मतवान।।


28...

नए बीज के सामने,
हर किसान मजबूर।
अमृत में विष घोलता,
वह बजार से चूर।।



29...

आग लगा कर देश को
दिया कबीरा रोय
राजनीति के पाट बिच
साबित बचा न कोय


30..

ना आस्था ना प्रेम है
बस केवल व्यापार
रामलला प्रॉडक्ट है
राजनीति बाज़ार


31..

मन तो अटका रूप में
खाक मिलेंगे राम
नानक दरिया इश्क में
साहिल का क्या काम

32..

मंदिर मस्जिद खेल हैं
राजनीति के हाथ
राजा जी के पाप हैं
परजा जी के माथ






33..

अल्लाह जीजस राम रब,
सब  छूछे अल्फ़ाज़।
शबद परे जब जाएगा,
तब होगा आगाज़।।


हूबनाथ का साक्षात्कार नीचे लिंक पर पढ़िए

https://bizooka2009.blogspot.com/2018/12/blog-post_28.html?m=1




4 टिप्‍पणियां:

  1. हूनाथ जी केबहुत ही धारदार व समसामायिक टिप्पणी करते है अच्छे दोहो के लिए बधाई ।

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  2. हूनाथ जी केबहुत ही धारदार व समसामायिक टिप्पणी करते है अच्छे दोहो के लिए बधाई ।

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  3. हूंनाथ जी के दोहेबहुत ही धारदार है।

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  4. हूबनाथ जी के दोहे पढ़े शानदार, सामायिक दोहे गंवार शीर्षक दोहे--भारतीय संस्कृति को संजोने वाले गंवारों को सलाम। 13वें दोहे को देखें शायद टाइप की त्रुटि है। 33वां दोहा प्रिय लगा ।बधाई हूबनाथ भाई

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