07 मार्च, 2019


निर्बंध: अठारह
माँओं का युद्ध
यादवेन्द्र


जिस जमाने में अमेरिका इराक पर आक्रमण कर रहा था उस समय बहुत सारे बुद्धिजीवी कवि लेखक अमेरिकी सरकार की युद्ध को सही ठहराती उन्मादी नीतियों के विरोध में खड़े थे और उन्होंने मिल कर एक वेबसाइट 'पोएट्स अगेंस्ट द वार' बनाई थी जिस पर युद्ध विरोधी कवियों की बहुत सारी रचनाएँ आती थीं। 2008 के आसपास मैंने इस वेबसाइट से कई कविताओं के अनुवाद किए थे - इस पर प्रस्तुत एक कविता मुझे आजकल देश के वर्तमान हालातों में बार बार याद आ रही है। पुलवामा हमले के बाद से जिस तरह से सत्ताधारियों द्वारा युद्ध की ललकार और जगह-जगह से दुश्मन को नेस्तनाबूद कर देने के आवाजें सुनाई दे रही हैं उन परिस्थितियों में आज इस वेबसाइट की यह कविता मुझे बहुत याद आ रही है जिसमें कवि तब के अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की पत्नी लॉरा बुश के साथ एक माँ के संवाद को याद करता है ।यह कविता रॉबिन टर्नर नाम की एक अमेरिकी कवि की लिखी हुई कविता है जो युद्ध में मारे गए और युद्ध में लड़ाई लड़ रहे सैनिक की माँ की अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी के साथ जो बातचीत है इसका बेहद मर्मांतक चित्रण करती है। जाहिर है, युद्ध किसी समस्या का समाधान कभी नहीं हुआ... आज तक दुनिया में युद्ध ने कभी किसी समस्या का समाधान नहीं किया बल्कि समस्याएँ और उलझा दीं,ज्यादा बड़ी समस्याएँ पैदा कर दीं और नए युद्ध की पीठिका तैयार कर दी।इस पृष्ठभूमि में उस कविता को पढ़ना समीचीन होगा :

रॉबिन टर्नर



           कैसा दुःख
                               
             रॉबिन टर्नर 


क्या आपको एहसास है कि अमेरिकी अवाम
कितना दुखी और आक्रांत है?

लॉरा बुश- हाँ, मुझे बखूबी एहसास है...
और आप यकीन मानिये
प्रेसीडेंट से और साथ में मुझसे ज्यादा दुखी और कोई
कैसे हो सकता है भला...ये सब देखकर?


डियर मिसेज बुश...डियर लॉरा...
आप नाराज तो नहीं हो जाएंगी यदि मैं आपको बस
लॉरा कहकर बुलाऊँ?

हम दोनों स्त्रियाँ हैं तो हैं-माँ भी हैं
और दोनों टेक्सास की ही रहनेवाली है...
हम दोनों एक ही बोली तो बोलती हैं
और हमारी मातृभाषा भी एक ही है


क्या आपको एहसास है कि अमेरिकी अवाम
कितना दुखी और आक्रांत है?

सुबह-सुबह
मैं कपड़े पर इस्तरी कर रही थी
तभी आपका इंटरव्यू देखा
अपने छोटे बेटे की उस कमीज पर इस्तरी...
जो उसके भैया की ही तरह होने के कारण
उसको ज्यादा अजीज है...


उसका भैया अब कभी लौटकर नहीं आएगा घर...
वह मारा गया इराक में


प्रेसीडेंट से और साथ में मुझसे ज्यादा दुखी
और कोई कैसे हो सकता है भला?


मन में आया आपको अंदर बंद रखनेवाले
बॉक्स को तोड़ डालूँ
और आप यूँ ही मेरी किचन में बैठी रहें
जब तक मेरे कपड़ों की इस्तरी पूरी न हो जाए...
बस केवल आप और मैं
और बतियातें रहे औरतोंवाली तमाम बातें
मैं अपने दिल की बातें कहूँ आपसे...
कि अब ये किस कदर टूट चुका है-बातें कुछ भी करें
और बातें सब कुछ की...छोटी से छोटी बात भी
जैसे महज एक शब्द
या मेरे बांके पति के सजीले चेहरे पर
बेटे की मौत की घुटी हुई पीड़ा की...

मैं आपको बताऊँ कि...
कैसे आँसू बन गये हैं हमारी जुबान अनजाने ही
और दिन भर की बातचीत से इस भारी नदी को अलहदा करना
हमारे लिए मुमकिन नहीं हो रहा अब...


वहाँ गुमसुम पड़ी किचन में बस हम दो ही तो रहेंगे
आप और मैं...
ऐसा हो सकता है कि बतकही में मुझे ये सुध ही न रहे
कि दरअसल मैं तो इस्तरी कर रही थी
और बस नाक की सीध में ही अपलक देखती रह जाऊँ
आज सुबह की तरह....


संभव है शर्ट को जलाती हुई प्रेस पर
मेरी छोड़ आपकी निगाह पड़ जाए...

आपको छेद दिख जाए जो शर्ट में बना है नया
बिल्कुल अभी-अभी...या आपका ध्यान खींच ले
अनायास उठता हुआ धुंआ
इससे ज्यादा दुःख भला किसके कंधे टिका होगा?
लॉरा, आप मेरा यकीन करें....
00

यादवेन्द्र



निर्बंध की पिछली कड़ी नीचे लिंक पर पढ़िए

https://bizooka2009.blogspot.com/2019/02/6-2018-2009-8-2018-2013-2012-2017-768.html?m=1





Y Pandey
Former Director (Actg )& Chief Scientist , CSIR-CBRI
Roorkee
   

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