31 जुलाई, 2025

चित्रा पंवार की कविताऍं


 1.

तुम्हारे साथ


तुम्हारे साथ 

शहर ज़्यादा चमकीले और खूबसूरत थे 

शांत गाँवों को देखकर महसूस हुआ 

जैसे ध्यानमुद्रा में बैठे बुद्ध मुस्कुरा रहे हों 

जंगल भयानक नहीं बल्कि 

गीत गाती किसी चंचल लड़की सरीखे लगे

नदी थिरक रही थी मेरे मन से थोड़ा कम 

और पहाड़ मेरी हथेलियों पर सर झुकाए खड़े थे 

रास्तों पर हरियाली का उजाला पसरा था 

खुशी एक नन्हे शिशु की तरह 

एक दृश्य से दूसरे दृश्य तक 

उछल रही थी बेवजह

तुम्हारे साथ वाली यात्राओं 

में मैंने पाया कि 

जगहों की कोई सुंदरता नहीं होती 

साथ की होती है…. 












२.

ओ युद्धग्रस्त देश के लोगों

ओ जेरूशलम के लोगों

ओ तेहरान के लोगों 

कीव, गाज़ा के लोगों 

शायद तुम युद्ध नहीं चाहते !

शायद नहीं 

मैं भी तुम्हारी तरह एक आम इंसान हूं 

इसलिए दावे से कहती हूं 

 कि तुम युद्ध नहीं चाहते 

फिर सामना करो 

अपनी–अपनी सरकारों का 

सड़क पर उतर आओ 

जोर देकर कहो 

‘हम युद्ध नहीं चाहते’

तुम्हीं में से कुछ सिपाही हैं, कुछ वैज्ञानिक

कुछ नीतिकार, कुछ पत्रकार 

कुछ ड्राइवर , खानसामे, किसान

तुम सब लौट जाओ

अपने–अपने काम से वापस 

सरकारें बस युद्ध की घोषणा करती हैं 

और युद्ध जीतती हैं 

युद्ध तुम्हारे द्वारा तुम्हारी खुशियों

तुम्हारे जीवन को दाव पर लगा कर 

लड़े जाते हैं 

युद्ध 

तबाह टीले में बदल गई सभ्यता के शीर्ष पर 

तुम्हारी मर चुकी आत्मा

तुम्हारी स्त्रियों की छत –विक्षत योनि, स्तनों 

तुम्हारे बच्चों के बारूद से चीथड़े हुए बदन पर 

एक काले अमिट कलंक के रूप में लिखा जाएगा 

तुम्हारे हिस्से करुणा, निराशा, हताशा, लाचारी, हिंसा

के तमगों के सिवा कुछ नहीं आएगा

भले ही भविष्य में 

तुम कहलाए जाओगे

हारे हुए देश के नागरिक

या जीते हुए देश के नागरिक ..



३.

अथाह


अथाह प्रेम

अथाह दुःख 

अथाह श्रद्धा

अथाह घृणा 

में व्यक्ति मौन हो जाता है 

कुछ भाव इतने सघन होते हैं 

कि उनको ठीक–ठीक कहने के लिए

आज तक किसी भाषा

किसी लिपि में 

कोई शब्द नहीं बना...!



४.

एक बड़ी रेखा


उन चुप्पा स्त्रियों से डरो 

जो तुम्हारी गालियां भी दवा समझ 

अपमान के कड़वे घूंट के साथ 

चुपचाप निगल जाती हैं 

डरो उन स्त्रियों से 

जो मेहनती हैं 

तपते बदन भी घर, बाहर का बेहिसाब काम 

अपने कंधों पर थामे घूम रही हैं 

ऐसी औरतों को कमजोर मत समझना

जो अपना समय 

शिकवे–शिकायतों में व्यर्थ करने के बजाय 

खुद को तराशने में लगा रही हैं 


उनका लक्ष्य तुम्हें हराना नहीं 

बल्कि हर हाल में 

ख़ुद को सफलता की दिशा में बढ़ते हुए देखना हैं

और ये तो सुना ही होगा तुमने कि 

जब एक बड़ी रेखा के बगल में 

खींच दी जाती है उससे भी बड़ी रेखा 

तब पहली का आकार 

ख़ुद–ब–ख़ुद होने लगता है छोटा..!


५.

सूचना, जनहित में जारी!


इसमें 

नींद के उधड़े लिहाफ़ हैं 

कुछ कतरनें हैं खुशियों की

कुछ उत्सवों की काट–छांट हैं 

कुछ साज–श्रृंगार, इच्छाओं, अस्तित्व की 

 मृत्यु के शोक वाले दिन हैं 

कुछ एक काम से दूसरे के बीच 

ख़्वाब पुल से गुजरते हुए चुराया

 टुकड़ा–टुकड़ा वक़्त है

तानो, लांछनों, उपेक्षाओं के आईने से झांकते 

चंद सबकनुमा लम्हे हैं 

तो कुछ मजबूत पल खुद को साबित करने की 

पाई–पाई जिद को जोड़कर बनाए हैं 

स्त्रियों ने अपने खाते में जो समय इकट्ठा किया है 

जिसे खर्च किया है ख़ुद को तराशने में 

ये उनका अपना समय है 

कृपया

कोई देव, कोई पुरुष

इस पर दावा न करें !!












६.

साधारण से लड़के


कुछ साधारण से दिखने वाले 

लड़के

प्रेम कर बैठते हैं 

अपनी औकात से बाहर वाले सपनों से 


वे आम सी सूरत वाले लड़के 

कॉलेज की सबसे सुंदर, सबसे होनहार लड़की से

लगा बैठते हैं दिल 

पढ़ाई में औसत होने पर भी 

देते हैं यूपीएससी की परीक्षाएं 

बार–बार औंधे मुंह गिरते हैं

प्री, मेंस, इंटरव्यू की सीढ़ी से सीधे धरातल पर 

किंतु फिर भी हार नहीं मानते

साइकिल से चलते हुए मुड़–मुड़ कर देखते जाते हैं 

महंगी कारों को 

जो संघर्ष करते मां–बाप के दुःख पर 

मन ही मन बुदबुदाते हैं 

‘बस कुछ दिन ओर’

हां यही मामूली से दिखने वाले 

सामान्य घरों के लड़के

अपनी सामर्थ्य से कहीं बड़े

 सपनों का पीछा करते

 पहुंच जाते हैं सफलता के शीर्ष पर 

यही साधारण से मगर 

जिद्दी लड़के लिखते हैं 

एक दिन

संघर्ष और प्रेरणा की असाधारण सी कहानी...



७.

प्रेम युद्ध


कुछ प्रेम युद्ध

एक होने के

सुख की लालसा 

के लिए नहीं 

बल्कि बिछड़ने के

 मृत्यु से भी अधिक 

कष्टकारी 

दुःख से बचने के लिए 

लड़े जाते हैं...



सबसे कठिन प्रेम


सबसे कठिन प्रेम वो थे 

जो ईंट भट्ठों की अग्नि में तपकर निखर आए 

खेत में घसियारों की हंसिया से 

तराशे गए 

सबसे दुष्कर प्रेम संबंध 

सड़क पर पत्थर ढोती दो जोड़ी 

ठेक पड़ी हथेलियों के बीच पनप आए चुपचाप

सबसे समर्पित प्रेमी युद्ध में मारे गए गुमनाम 

सबसे समर्पित प्रेमिकाएं बंद कमरे में लगा कर 

पोंछती रहीं अपने प्रेमी के नाम का एक चुटकी सिंदूर

सबसे बदनसीब प्रेम वो रहे जिनके नामों को नसीब नहीं हो पाया 

 घर की नेम प्लेट पर एक साथ लिखा जाना 

सबसे मजबूत संबंध उस वक्त खड़े रह गए मौन 

जब पूछा गया ‘तुम इनके कौन लगते हो?’ का यक्ष प्रश्न 

उनके पपड़ाए होंठ

ताउम्र तरसते रहे मीठे चुंबनों को

मंच से पढ़ी गई एक अतिरिक्त 

मगर मजबूत कविता की तरह 

सुंदर किंतु समाज के विधान में दर्ज विषम प्रेम संबंध 

सिरे से ख़ारिज कर दिए गए 

जिन जोड़ों को प्रेम ने कुर्बानी के लिए चुना  

उन की पहुंच से बहुत दूर थीं किताबें 

वो न्याय के दूर–दराज के रिश्तेदार भी न थे 

न्याय महलों में विराजता था

और सताए हुए प्रेमी गुमनाम गलियों के निवासी थे 

नहीं तो कम से कम पड़ोसी धर्म के नाते ही सही 

 न्याय इनकी दलीलों को सुन तो सकता ही था 

सच्चे प्रेम को इतिहास ने  

हर–बार निजी लाभ–हानि की तराजू पर परख

 उदासीन हो किनारे रख दिया

सच्चे प्रेम की कहानी किसी अनब्याही मां की संतान सी

पड़ी सिसकती रही झाड़ी, गड्ढे में 

उसे उठा ले गई हवा

बहा ले गईं नदी 

उस प्रेम को बीज बना धरती ने धारण किया गर्भ में 

 पहाड़ ने कंधे पर बिठा 

आसमान की सैर कराई 

समंदर ने लहरों के आंचल पर झुलाया झूला 

सच्चे प्रेम से मिलना है तो 

तुम किताबों से नहीं बूढ़े जंगल से मिलना 

उसके गीत सुनना 

उल्लास और विलाप की कहानियों में 

खिलता जंगली फूल सा प्रेम 

सभ्यता की बस्तियों में नहीं 

दूर दराज के पहाड़ की तलहटी में खेलता मिल जाएगा तुम्हें।

००



संक्षिप्त परिचय 

जन्मस्थान– गांव– गोटका, मेरठ, उत्तर प्रदेश।

संप्रति– अध्यापन ।

साहित्यिक यात्रा –प्रेरणा अंशु, कथाक्रम, इंद्रप्रस्थ भारती,

सरस्वती, दैनिक जागरण, कथादेश, वागर्थ, सोच विचार, परिकथा, बाल भारती, हिंदवी, समकालीन जनमत, किस्सा कोताह, पाखी, गाथांतर, वर्तमान साहित्य, समकाल, कविताकोश, मधुमती, परिंदे, वनमाली, अनहद कोलकाता, सबद जलवायु,तज़किरा।

सहित अनेक पत्र–पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।

“दो औरतें” तथा “बारहमासा” नाम से कविता संग्रह प्रकाशित।

chitra.panwar20892@gmail.com

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सशक्त और हृदयस्पर्शी कवितायें ।
    कवयित्री को बहुत बहुत साधुवाद और हार्दिक बधाई !

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  2. बहुत ही अच्छी कविताएं हैं, परम्परा से हटकर नए प्रतीक, नए उपमान और एक दम अलग शैली, 👍👍
    हार्दिक बधाई चित्रा जी, खूब लिखिए 😍

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    1. बहुत अच्छी लगीं चित्रा पंवार की कविताएं। बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं चित्रा पंवार को।

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  3. बड़ी कठिन बात है प्रेम के बारे में तयशुदा सब कह पाना लेकिन यह बात सच जान पड़ती है कि सभ्यता और प्रेम के बीच कृत्रिम और नैसर्गिक का अंतर होता है। प्रेम का फूल सभ्यताओं में नहीं खिलते। चित्रा की कविताएँ सहज लगीं।समझ में आने के आकर्षण से भरी हुई भी। मेरी शुभकामनाएँ

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  4. अच्छा लिखा है

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