ओ ! फ़िलिस्तीन
राधारमण अग्रवाल
मेरी बेटी पूछती है
पापा, फ़िलिस्तीन माने
क्या होता है ?
क्या फ़िलिस्तीन है नाम
किसी अमरीकी चॉकलेट का
या किसी मिठाई के टुकड़े का ?
बेटी. फ़िलिस्तीन नाम है
हमारे दिल के टुकड़े का,
जैसे तुम
फ़िलिस्तीन नाम है हमारे ख़ून का
बहता है जो
दूर, परदेस में लड़ते
जुझारू फ़िलिस्तीनियों की रगों में
फ़िलिस्तीन नाम है एक सपने का,
एक सच का,
जिसका नाम लेते डरते हैं
कायर भी, ताक़तवर भी
फ़िलिस्तीन तब था
जब नहीं था कुछ भी
फ़िलिस्तीन तब भी होगा
जब नहीं रहेगा कुछ भी
फ़िलिस्तीन नहीं होगा सिर्फ फ़िलिस्तीन में
दौड़ेगा बच्चे के पैर बन हर देश में
देखेगा हर उस आँख से
जो देखना चाहेगी अत्याचारी की मौत
चमकेगा धार बन
हर उस तलवार पर
जो गिरना चाहेगी
वक़्त के बंद दरवाज़े पर !
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चित्र फेसबुक से साभार
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कवि का परिचय
1947 में इलाहाबाद में जन्मे राधारमण अग्रवाल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम कॉम तक पढ़ाई की , उनकी कविताएं लिखने में और तमाम भाषाओं का साहित्य पढ़ने में रुचि थी। उन्होंने विश्व साहित्य से अनेक कृतियों का अनुवाद किया। 1979 में पारे की नदी नाम से कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। 1990 में ' सुबह ' नाम से उनके द्वारा अनूदित फिलिस्तीनी कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ । 1991 में एयरफ़िलिस्तीनी कविताओं का संग्रह ' मौत उनके लिए नहीं ' नाम अफ्रो-एशियाई लेखक संघ के लिए पहल द्वारा प्रकाशित किया गया था।
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