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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

27 सितंबर, 2024

मौत उनके लिए नहीं, फ़िलिस्तीनी कविताएं- इक्कीसवीं कड़ी

 

ओ ! फ़िलिस्तीन

राधारमण अग्रवाल


मेरी बेटी पूछती है 

पापा, फ़िलिस्तीन माने 

क्या होता है ?











क्या फ़िलिस्तीन है नाम 

किसी अमरीकी चॉकलेट का 

या किसी मिठाई के टुकड़े का ?


बेटी. फ़िलिस्तीन नाम है 

हमारे दिल के टुकड़े का, 

जैसे तुम


फ़िलिस्तीन नाम है हमारे ख़ून का 

बहता है जो 

दूर, परदेस में लड़ते 

जुझारू फ़िलिस्तीनियों की रगों में


फ़िलिस्तीन नाम है एक सपने का, 

एक सच का, 

जिसका नाम लेते डरते हैं 

कायर भी, ताक़तवर भी 

फ़िलिस्तीन तब था 

जब नहीं था कुछ भी 

फ़िलिस्तीन तब भी होगा 

जब नहीं रहेगा कुछ भी


फ़िलिस्तीन नहीं होगा सिर्फ फ़िलिस्तीन में 

दौड़ेगा बच्चे के पैर बन हर देश में 

देखेगा हर उस आँख से 

जो देखना चाहेगी अत्याचारी की मौत 

चमकेगा धार बन 

हर उस तलवार पर 

जो गिरना चाहेगी 

वक़्त के बंद दरवाज़े पर !

०००

चित्र फेसबुक से साभार 

०००

कवि का परिचय 

1947 में इलाहाबाद में जन्मे राधारमण अग्रवाल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम कॉम तक पढ़ाई की , उनकी कविताएं लिखने में और तमाम भाषाओं का साहित्य पढ़ने में रुचि थी। उन्होंने विश्व साहित्य से अनेक कृतियों का अनुवाद किया। 1979 में पारे की नदी नाम से कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। 1990 में ' सुबह ' नाम से उनके द्वारा अनूदित फिलिस्तीनी कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ । 1991 में एयरफ़िलिस्तीनी कविताओं का संग्रह ' मौत उनके लिए नहीं ' नाम अफ्रो-एशियाई लेखक संघ के लिए पहल द्वारा प्रकाशित किया गया था।


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