दिल में क्या है ?
मुरीद-अल-बरघौठी
एक ब्रह्माण्ड
अनेक ग्रह
ग्रहों में धरती
धरती पर महाद्वीप
महाद्वीपों में एशिया
एशिया में फ़िलिस्तीन
फ़िलिस्तीन में नगर
नगर में सड़कें
सड़कों पर प्रदर्शन
प्रदर्शनकारियों में एक नौजवान
नौजवान के सीने में दिल
दिल में धंसी है
एक अदद गोली
०००
सफाई
कॉफी हाउस का कोना
शायर कर रहा है सफ़ेद पन्ने सियाह
सोचती है बुढ़िया
चिट्ठी लिख रहा है माँ को
माँ ही बची हैं चिट्ठी लिखने को ?
स्साला, लिखता होगा महबूबा को
ख़याल हैं नौजवान के
वो तो डलाइंग बना लहा है
तुतलाता है बच्चा
ठेके के काग़जात के अलावा
हो ही नहीं सकता
काग़ज़ का कोई भी टुकड़ा
व्यापारी की निगाह में
सैलानी के ज़ेहन में
तैरता है एक ख़ूबसूरत पोस्टकार्ड
नहीं, नहीं, जोड़ रहा है
अब बचा कितना कर्ज़
बेचारा क्लर्क
इन सारे ख़यालों को धता बताकर
बढ़ता है धीरे-धीरे
पुलिस इन्सपेक्टर मेज़ की तरफ़
०००
तस्वीर
नीला आकाश
सफ़ेद, मटमैले बादल
लम्बी, ऐंठी, लहराती सड़कें
सड़कों पर झूमते परचम
लाल नीले पीले हरे, और भी बहुतेरे
बेरुत में सुबह हुई
शववाहन रुकता है
सतमंज़िली इमारत के सामने
दो अदद गंदे बुड्ढे
दो अदद गंदी दाढ़ियों समेत
भर रहे खर्राटे शववाहन के अंदर
मजे से,
कोचवान भरता है लम्बे-लम्बे डग
बेसब्री से
पहली मंज़िल की खिड़की से
झाँकती हैं दो चकाचक वर्दियाॅं
उससे ऊपर
पीटे जा रही है लड़की
एक बदरंग फटा क़ालीन
बाँस के टुकड़े से
हर बार ढंक लेती है चेहरा
बाँये हाथ से
धूल से बचने के लिये
चौथी मंजिल वाली औरत
सुखा रही है अलगनी पर
बच्चे का सुथन्ना
पाँचवीं मंजिल वाला बच्चा
उछालता है गेंद छठवीं की तरफ़
कोई नहीं पकड़ता
सातवीं पर औरतें
खड़ी खड़ी बिसूर रही हैं यूं ही
सहसा पाँचवी मंज़िल वाला बच्चा
पकड़ लेता है रेलिंग
निगाहें घूमने लगती हैं
गेंद के साथ साथ
गेंद बढ़ती है
शव का इन्तज़ार करते
शववाहन की तरफ़
०००
दो औरतें
एक औरत
जाती है अक्सर
पेरिस में
जवाहरात की दूकानों पर
लगा देती है
शिकायतों के पहाड़
एक औरत
जाती है हर जुमेरात
पाँच क़ब्रिस्तानों में
खाती है क़समें
लड़ने की
०००
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी
अमरीका की नींव में है
कोका कोला, चेज़ मैनहटन, जनरल मोटर्स
क्रिस्चियन डायर, मैकडोनल्ड, शेल, डायनास्टी,
हिल्टन वग़ैरह वग़ैरह
अरब मुल्क भी नहीं हैं
बिना किसी नींव के
हमारे पास भी है
केन्टकी के लज़ीज़ भुने मुर्गे़
आँसू गैस, सरकारी गुर्गे
क्लब, और बहुत से क्लब
जासूसी महकमे वग़ैरह वग़ैरह
०००
अगर
अगर पहुँच पाता
अभिशप्त सिसिफस
पहाड़ की चोटी पर
उठाये बोझ भारी पत्थर का
तो भी, भुला दिया जाता आसानी से
अगर ज़रूरत पड़ती आग की मजनूं को
क्या गुज़रती लैला के दिल पर
फ़लाँ अगर बन जाता फ़लाँ जगह का सुबेदार
क्या हश्र होता
अगर होती लूसिया के पास कोई वजह
अगर ले पाता हैमलेट कोई फ़ैसला
अगर भाग पाता बेचारा ओथेलो
अगर जूलिएट रचा पाती निकाह रोमियो से
क्या होता शेक्सपीयर का
अगर
अगर
अगर.....
काश,
सच होता अगर
अफ़वाहों जैसा ही पुरअसर
०००
सभी चित्र गूगल से साभार
०००
कवि का परिचय
मुरीद-अल-बरघौठी- 1944 में जन्म। काहिरा विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक होने के बाद फ़िलिस्तीनी क्रांतिकारी रेडियो सेवा में कई वर्ष तक कार्यरत । अभी पी० एल० ओ० के सूचना विभाग में। इनके छह कविता- संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। 'फ़िलिस्तीन और सूरज', 'असलहों से लैस गरीबों के गीत', 'लम्बी है तलाश' इनमें प्रमुख हैं।
०००
अनुवादक
राधारमण अग्रवाल
1947 में इलाहाबाद में जन्मे राधारमण अग्रवाल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम कॉम तक पढ़ाई की , उनकी कविताएं लिखने में और तमाम भाषाओं का साहित्य पढ़ने में रुचि थी। उन्होंने विश्व साहित्य से अनेक कृतियों का अनुवाद किया। 1979 में पारे की नदी नाम से कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। 1990 में ' सुबह ' नाम से उनके द्वारा अनूदित फिलिस्तीनी कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ । 1991 में फ़िलिस्तीनी कविताओं का संग्रह ' मौत उनके लिए नहीं ' नाम अफ्रो-एशियाई लेखक संघ के लिए पहल द्वारा प्रकाशित किया गया था।
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