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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

28 सितंबर, 2024

मौत उनके लिए नहीं, संग्रह के बारे में भीष्म साहनी की टिप्पणी


फ़िलिस्तीनी कविताओं का यह संग्रह आपके हाथ में है । समकालीन फ़िलिस्तीनी साहित्य हमारे पाठकों को हिन्दी भाषा में उपलब्ध हो सकेइसी उद्देश्य को सामने रखते हुए यह प्रयास किया गया है । 'पहलके सम्पादक और हिन्दी कथा-साहित्य के जाने-माने हस्ताक्षर श्री ज्ञानरंजन ने इस दिशा में पहलकदमी की है । 'पहलपत्रिका अर्से से विदेशी साहित्य से हमारे पाठकों का परिचय कराती रही है । हमें पूर्ण आशा है कि यह सत्प्रयास उस कमी को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा जो इस समय अफ्रीकाएशियादक्षिण अमरीका आदि के साहित्य को लेकर हमारे देश में पाई जाती है ।




आज की फ़िलिस्तीनी कविता और कहानी विश्व साहित्य के इतिहास में एक नया मोड़ ला रही है । जो दर्दमार्मिकताजो उत्कट जीवन प्रेम हृदय को उद्वे- लित करने वाली तूफानी भावनाएँ आज के फ़िलिस्तीनी साहित्य में पायी जाती हैंवैसी शायद ही किसी अन्य देश के साहित्य में पाई जाती रही होंगी । और उसके पीछे वह विकराल अनुभव है जिसमें से फ़िलिस्तीन की जनता पिछले चालीस से अधिक वर्षों से गुज़र रही है । फ़िलिस्तीन के बारे में सोचते हुए 'ट्रेजेडीशब्द बार-बार मन में उभरता है । समूचे क्षेत्र में फ़िलिस्तीनी कलाकार और संस्कृति- कर्मीं अद्भुत भूमिका निभा रहे हैं।


यह बहस कितनी पुरानी पड़ चुकी है कि कलाकार को सामाजिक-राजनैतिक मसलों से जुड़ना चाहिए या नहीं। इसका जवाब कोई किसी फ़िलिस्तीनी कवि के दिल से माँगेकि यह सवालद्विविधा बनकर कभी उसके मन से उठता है या नहीं । फ़िलिस्तीनी कौम की अनेक पीढ़ियाँ उन यातनापूर्ण स्थितियों में और उनसे पैदा होने वाले माहौल में साँस ले चुकी हैजिसमें अपमान हैछल-कपट हैउत्पीड़न हैघोर अन्याय हैपर साथ ही साथ आत्म-सम्मान के साथ ज़िन्दा रह पाने काअपने हकूक़ के लिए लड़नेसंघर्ष करने का जुझारूपन भी हैगहरी आशा और आत्मविश्वास भी है ।

 

 

यह चार दशाब्दियों का संघर्ष एक गौरवगाथा भी बनती हैवैसी ही जैसी वियतनाम की जुझारू जनता के बारे में सुनने में आती थी। ऐसे महौल में से वैसी ही कविता फूटकर निकलेगी जिसमें उन सभी भावनाओं का समावेश होगा जो उस माहौल में पाई जाती हैं ।


"मेरी कविता वह जलता दिया है जिसे मैं एक द्वार से दूसरे द्वार तक ले जा रहा हूँ ।"न जाने इस संघर्ष का अंत कब होगा। अभी तो उन लोगों को जो अपने देश की भूमि के लिएअपने हक़ के लिए जूझ रहे हैं, 'आतंकवादीकी संज्ञा दी जा रही है और हर तरह से उन्हें बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।


इस साहित्य को आप तक पहुँचाने का हमारा अभिप्राय केवल इतना ही है कि आप भी उन लोगों के दिल की धड़कनें सुन सकेंउन भावनाओं को महसूस कर सकें जो इस समय उन फ़िलिस्तीनी लेखकोंकलाकारों के दिलों को उद्वेलित कर रही हैंउस तड़प को महसूस कर सकें जिसमें से उनकी रचनाएँ जन्म ले रही हैं और उस विराट अभियान के साथ भावनात्मक स्तर पर जुड़ सकें जो इस समय फ़िलिस्तीन के संदर्भ में ही नहींदुनिया में जगह-जगह सामाजिक न्याय के लिए अन्यायपूर्ण विषमताओं को दूर करने के लिए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के आधार पर राष्ट्रों के आपसी रिश्तों को कायम कर पाने के लिए चल रहा है।


हम उन सभी मित्रों केसहकर्मियों के आभारी हैं जिन्होंने इस प्रयास में योग दिया है। 1987 में अफ्रो-एशियाई लेखक संघ (भारत) के तत्वावधान में अफ्रो- एशियाई युवा लेखकों का एक सिम्पोजियम दिल्ली में आयोजित किया गया था। उसके प्रबन्ध के लिए भारत सरकार की ओर से दी गई धनराशि में से ही इस संग्रह के प्रकाशन की व्यवस्था की गई है। भविष्य में भी ऐसे संकलन जुटा पाने के प्रयास किए जाते रहेंगे ।

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भीष्म साहनी सदस्य : अध्यक्ष समिति अफ्रो-एशियाई लेखक संघ

2 टिप्‍पणियां:

  1. फिलिस्तीनी कविताओं ने विश्व साहित्य में अपना स्थान बनाया है । उनके विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हो रहे हैं । हिंदी के अनुवादों से गुजरते हुए हमलोगो को भी फिलिस्तीनी कवियों की कुछ श्रेष्ठ कविताएं पढ़ने को मिली हैं । हमने फिलिस्तीन की पीड़ा को महसूस किया है ।

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  2. जी हमारी कोशिश रहेगी कि बिजूका के पाठकों को विश्व साहित्य से कुछ बेहतरीन रचनाएं पढ़वाते रहे। शुक्रिया साथी

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