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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

26 सितंबर, 2024

मौत उनके लिए नहीं, फ़िलिस्तीनी कविताएं- बीसवीं कड़ी

  

वतन की साँस

हसन-अल-बाउहायरी


नींद की आखों में 

लगा देती है रात 

अपनी मुहर 

गूंजती है हवाओं में 

गुपचुप, रहस्य भरे गीतों की कड़ियाँ दूर, पहाड़ी से भी दूर 

क्षितिज से 

टकरातीं हैं इन ख़ामोश गीतों की कड़ियाँ


क़यामत की इस रात 

झटकती है निराशा को 

मनहूस रात के अंधेरे में 

पूछती है बहन से 

दुलार से 

दीदी,

लिली की महक का राज क्या है ?











आँख से गिरते आँसू 

खो जाते हैं वक़्त के गालों पर 

जवाब मौजूद है


दूर कहीं ख़यालों की जुबान में 

ख़याल लौटते हैं, छूते हैं झाड़ी को बहना,


लिली की ख़ुशबू ही है

हमारे वतन की साँस

०००

कवि का परिचय 


हसन अल बाउहारी-हायफ़ा में जन्म। बीसवीं सदी की फ़िलिस्तिनी कविता के आध्यात्मिक गुरु के रूप में इन्हें याद किया जाता है। अपनी जन्मभूमि के बारे में शायद ही किसी कवि ने इतनी मधुरता से गाया हो। इनके अनेक कविता-संग्रहों में 'सवेरा' (1943), 'बसंत की क्रिया' (1944), 'गुबह की मुस्कान' (1946) और 'हैफा-काली आँखों से' (1973) प्रमुख हैं। इन्होंने अनेक कविताओं के अंग्रेजी से अरबी में अनुवाद भी किए हैं। प्रमुख कवि हा हाजिम रशीद की पुस्तक 'हैफ़ा और अल-बाउहायरी' इनके जीवन और संघर्ष को चित्रित करती है।

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अनुवादक 


राधारमण अग्रवाल 

1947 में इलाहाबाद में जन्मे राधारमण अग्रवाल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम कॉम तक पढ़ाई की , उनकी कविताएं लिखने में और तमाम भाषाओं का साहित्य पढ़ने में रुचि थी। उन्होंने विश्व साहित्य से अनेक कृतियों का अनुवाद किया। 1979 में पारे की नदी नाम से कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। 1990 में ' सुबह ' नाम से उनके द्वारा अनूदित फिलिस्तीनी कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ । 1991 में फ़िलिस्तीनी कविताओं का संग्रह ' मौत उनके लिए नहीं ' नाम अफ्रो-एशियाई लेखक संघ के लिए पहल द्वारा प्रकाशित किया गया था।



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