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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

31 अगस्त, 2024

अनिता रश्मि की कहानी चश्मे वाली दो गहरी आंखें

 

 चश्मेवाली दो गहरी आंखें

अनिता रश्मि

अम्मा इक्वेरियम के सामने खड़ीं होकर पीली रोशनी में नहाईं मछलियों को देखने लगीं। रंग-बिरंगे बल्ब की पीली रौशनी में तैरती मछलियाँ! गोल्ड फिश। ट्राॅपिकल! उनके चेहरे पर भी एक चमक उभर आई। मछलियाँ एक लय में तैरती हैं। और उन्हें वह लय देखना बहुत पसंद है। वे मछलियों की तेजी में खो-सी जाती हैं।

   मछलियाँ अपने में मगन कभी तैरती हुईं ऊपर जातीं, कभी नीचे। सजाए गए नकली कोरल और हरे पौधों से बचती हुई वे रंगीन-सादे छोटे-छोटे पत्थरों को छूने से पहले वापस लौट आतीं।

  "उनकी तेज गति में जो लय है, चाहे तो उनसे भी जीना सीख ले आदमी।" 

   प्रायः कहते हैं वे।

  गोपाल के हाथ में एक किताब थी। वह उसमें फिर डूबने के लिए बेताब था। पर अब अम्मा सामने। उसने किताब के अंदरी पन्ने पर एक उँगली फँसाई और अम्मा को देखने लगा। अम्मा का चेहरा बल्ब की पीली रौशनी के वृत्त से घिरा है। एक जगमगाते वृत्त से। 

   वह चेहरा स्नेह से भरा है। जब भी वे इक्वेरियम के पास खड़ी होती हैं, उनका चेहरा ऐसे ही दमकता होता है। वह नहीं समझ पाता रौशनी के वृत्त से या स्नेह की दीप्ति से? वह उन्हें गौर से देखने लगता अक्सर। 

उसने हाथ में पकड़ी किताब ‘माँ’ को एक नजर देखा और यूँ ही बीच में उँगली फँसाए खड़ा रहा। 

    उसका मन गोर्की की ‘माँ’ से ज्यादा अपनी अम्मा के मुस्कुराते चेहरे में रमने लगा। 

     "हाथ में क्या है?...गोर्की की ‘माँ’? अच्छी है, पढ़ो।"

   "गोर्की ने क्या लिखा है अम्मा! मैं इसके पचास पन्ने यहीं सोफे पर बैठे-बैठे पढ़ गया। अंतिम पंक्ति खत्म की थी कि..."

 अम्मा तेजी से इक्वेरियम के पास आकर तैरती मछलियों के बारे में बताने लगीं, 

   "गोल्ड फिश को 65 डिग्री फारेनहाइट...ट्रॉपिकल को लगभग 75 डिग्री फॉरेनहाइट!...अलग-अलग टेम्परेचर चाहिए दोनों को।"

 "ऐसे में एक साथ रखने से हम सब डरते थे। पर अम्मा तुम नहीं डरती। हर प्रॉब्लम का सॉल्यूशन है न तुम्हारे पास?"

   "कुछ का नहीं भी है।"

अम्मा ने कबर्ड से दानेवाला डब्बा उठा, इक्वेरियम का ढक्कन खोलकर उसमें दाने डालने लगीं। लपक कर आती मछलियों की तेजी देखते बनती। लाल-पीली-नीली, नारंगी, सतरंगी मछलियाँ। दाना उनमें और गति भरता...तेज और तेज...। अम्मा के चेहरे की चमक और बढ़ जाती। अम्मा जब भी वहाँ खड़ी होतीं, सब कुछ भूल जाता। वह अम्मा के चेहरे से फूट पड़नेवाले इस उजास, इस स्नेह को अपने अंदर भर लेना चाहता है। पूरा का पूरा!

   कहाँ-कहाँ से ढूँढकर लाई गईं थी वे मछलियाँ। ठीक उसकी तरह। निशा, अफज़ल, जॉर्ज, फातिमा, बबलू और इन जैसे अनेक बच्चों की तरह। ये बच्चे और इनके सरीखे अन्य बच्चे, किशोर, नन्हें, लावारिस या निर्धन!

   अपनी माय चरकी के चेहरे पर भी देखी है यह चमकती रौशनी। यह चमकता वृत! खासकर तब, जब वह किसी काम में व्यस्त होती और श्रम के स्वेद-कण से उसका काला, चेचक के दाग से भरा अभावग्रस्त चेहरा दमकता रहता। वह बगल में कंचे या गुल्ली-डंडा खेला करता। माय उसे खेलते देख स्नेह से भर उठती। जब-तब एक नजर उस पर डालती। और फिर व्यस्त!

  अम्मा एक प्यारा शब्द, अपनेपन के समेटे हुए। ममत्व से भरा। दुहरे बदन की गौरवर्णी अम्मा दो कारणों से चर्चित थीं। एक साड़ी बाँधने की अपनी विशिष्ट शैली, दूसरा स्नेहिल कार्य-व्यवहार! पूरे शहर में उनका नाम आदर से लिया जाता। अम्बा बिल्डिंग के सारे बच्चों के लिए तो वे जीता-जागता ईश्वरीय रुप हैं। 

  अम्मा वे केवल इकलौते पुत्र शिशिर की ही नहीं, टिंकू, मींटू, हुसैन, लोहित, अमरजीत कौर, टॉम, रजनी, मेरी, फरहा, दिलखुश की भी हैं। कितने बच्चे अपनी मंजिल की डोर थाम उड़ गए। पेरिस, लंदन से भी बच्चे नए माँ-पिता के साथ आते और "अम्मा-अम्मा!" कहते नहीं थकते। 

  कई और बच्चे इस अम्बा बिल्डिंग में मौजूद हैं। कुछेक बच्चों का अब तक नामकरण भी नहीं हो पाया है। गोपाल अक्सर लड़ पड़ता,

   "ठीक है, उन्होंने उन्हें अपने गर्भ में धारण नहीं किया। लेकिन हैं तो वे सबकी माँ ही।"

   अम्मा ने बताया था,

  "कोई अपने माँ-बाप के पाप की सजा भोगता हुआ कचरे के डब्बे में, कोई ट्रेन की बोगी में, कोई माँ-पिता को खोकर फुटपाथ पर पड़ा मिला। कोई मेले की भीड़ में परिजनों से सदा के लिए बिछुड़ गया था।"

वे सब अम्बा बिल्डिंग की विशाल स्नेह छाया में पहुँच गए। किसी-किसी को बच्चा चोर गिरोह से बचाकर पुलिस ने ही उन तक पहुँचाया था। कोई छोटी-मोटी चोरियाँ कर भागते हुए उन तक आ पहुँचा था। दंगों में बेघर हुए बच्चों की पूरी फौज थी। उन्होंने कई बर्बाद हो गए गाँवों को समय-समय पर गोद लिया था। वहाँ से कई बच्चों को ले आईं थीं। जैसे अम्बा बिल्डिंग नहीं, खुदा का घर हो।

  भिन्न-भिन्न जाति, धर्म, समुदाय के बच्चे उन्हें इक्वेरियम में जतन से बचाई गईं मछलियों की तरह लगते...साफ-चमकते हुए...स्नेह के गुड़ में पगे...तेजी से इधर-उधर भागते हुए...स्वच्छंद!...निर्द्वंद!!

  "सब समा गए, सब अँट गए आपकी दोनों बाहों में। है न अम्मा?"

 "उनके खाने-पीने का इंतजाम कैसे करती हैं?"

किसी के पूछने पर मुस्कान के साए में उन्होंने कहा था,

"ईश्वर ने जन्म दिया है, खाना भी वही देगा।" 

 बहुप्रचलित, बहुप्रचारित उक्ति ईश्वर पर लागू होती हो या न हो, अम्मा पर जरूर होती है। अम्बा बिल्डिंग में जो आ गया, उसके लिए तो जरूर। 

    "यूँ खड़ा होकर क्या सोचे जा रहा है ननकू गोपाल?"

   वह चौंका, "कुछ नहीं अम्मा।"

     वे फिर व्यस्त एक जादुई मुस्कान के साथ हमेशा की तरह।

    "शिशिर की चिट्ठी आई है।"

    "कहाँ है?"

    "टी. वी. स्टैंड पर रख दी है।"

    "ठीक, क्या लिखा है?"   

    "वही।"

    "वही, याने केवल हाल-चाल?"

    "हाँ!" उनका ध्यान मछलियों की ओर ही था, उसी मुस्कुराहट के साथ। गोपाल कमरे में गया और चिट्ठी लाकर उन्हें पकड़ा दी।

  "तुम्हीं पढ़ो।"

    गोपाल ने ही चिट्ठी पढ़कर सुना भी दी। वे फिर मुस्कुरा उठीं। उनकी मुस्कान उसे बाँधने लगी। शिशिर उनका इकलौता पुत्र है। एम. बी.ए. कर पूना में नौकरी कर रहा है। शिशिर का कैम्पस सलेक्शन हुआ तो गोपाल भी खुशी से उछल पड़ा था। अम्मा की खुशी में ही उसकी खुशी है। कितनी कम उम्र में शिशिर की नौकरी लगी। तेइस की कच्ची उम्र में ही। शिशिर तो चला गया पूना, गोपाल यहीं रह गया।


   गोपाल को बचपन के दिन हमेशा याद आते...जैसे घुरि-घुरि पंछी जहाज पर आवे। अक्सरहाँ वह गलत ढंग से ही सही इस जहाज वाली बात को याद करता। 

      अम्मा छोटे शिशिर का हाथ पकड़कर पार्क की ओर जाती दिख जाती थीं। वे जब भी उधर से गुजरतीं, गोपाल को अपने झोपड़े के बाहर खड़े देखतीं। शिशिर से एक-डेढ़ साल ही छोटा है वह। गोपाल की माँ चरकी कभी अम्बा बिल्डिंग में आया का काम करती थी। कभी-कभार गोपाल को भी साथ ले जाती। शिशिर से खेलकर वह सदा खूब खुश होता। उस दिन वह बहुत-बहुत खुश रहता।

  गोपाल अक्सर अपने बाबा के काम में हाथ बँटाया करता। अम्मा उधर से गुजरतीं तो अम्बा बिल्डिंग की यादें तेज। उसे शिशिर कहीं का राजकुमार लगता। अम्मा किसी परी देश की रानी। शिशिर का अम्मा के पास होना उसे और भी तड़पाता।

  पनीर-रोटी, लॉन की हरी-हरी कोमल घास, मखमली घास की हरियरी, बच्चों की भीड़...किलकारियाँ...बच्चों का गेंदों के पीछे भागना...या बैडमिंटन की उजली-उजली चिड़िया को हवा में यूँ उड़ा देना...उसे फिर-फिर याद आने लगता। वह काम छोड़ टकटकी बाँध चकोर बन जाता। 

    एक दिन वह दौड़कर अम्मा के पास चला गया था। शिशिर को देख पुकारा भी था। बहती नाक को बुशर्ट के किनारे से पोंछ ललचाई नजरों से उन दोनों को देखने लगा था। 

   इकलौते शिशिर की ठाठ चुभती उसे। उन बच्चों की भी, जो अम्मा के थे ही नहीं। उसे अपने माय-बाबा से चिढ़ हो जाती। उसकी आँखों में कुछ था जरूर! तभी अम्मा ने पकड़ लिया था। उस दिन उसकी आँखों से झर-झर आँसू ढर रहे थे। घर में उपेक्षा, डाँट, अत्यधिक काम...।

   आँसू बनकर उस दिन यह उपेक्षा बह रही थी। अम्मा और शिशिर को देखते ही दोनों हाथों से आंसू पोंछ, ललककर आगे बढ़ा। पीछे-पीछे माय भी आ गई थी।

  "इसे क्या बनाना है तेतरी?"

  "का बनाएँगे मलकिन। अब्भी तो छोटा है। आठेक बरिस का होने पर कहीं काम-धंधा पकड़ लेगा।"

  "क्या काम?"

  वह नाक सुड़कता उन्हें देखता रहा।

  "कहीं ईंटा-भट्ठा या फैक्टरिया में लगा देंगे, और का।" -   माय के सपनों की आँच से झुलस उठा था गोपाल। उसकी माय की आँखों में उसके लिए इतने ही सपने थे। सपने कि सपनों की पतझड़? अक्सर वह अब भी उलझ जाता है।

   "इसे मुझे दे दो।" अम्मा ने कहा था। 

   "ई गोपलवा को?...एतना छोटका छौंड़ को लेकर का कीजिएगा?"

   "हम पढ़ाएँगे इसे।"

  माय को विश्वास नहीं हुआ था। फटे गुलाबी आँचल समेत उसका हाथ मुँह पर चला गया था। गाँव से आए हुए नौ साल हो गए थे। इस तरह की बात से वह अनजान थी। पर अम्मा तो अम्मा ठहरीं।

   "इसे हमें देना ही पड़ेगा तेतरी। इसकी आँखों में एक आग है। उसे बचाने की जरूरत है।"

   "का...का बोले, का है?... आग...कहाँ?"

  माय ने गोपाल की आँखों में आँखें गड़ा दीं। उसे कुछ भी नजर नहीं आया, सिवाय कीच के। वह आँचल से उसी को पोंछने लगी थी।

   अम्मा आगे बढ़ आई थी।

   "तुम नहीं समझोगी तेतरी...इसे हमें दे दो बस।"

    "इसे आप ले जाइएगा तो हामर काम-धंधा कउन...?"

    "घबराओ मत। हम कुछ काम कराएँगे। तुम्हारे पास एक तारीख को इसका वेतन पहुँच जाया करेगा।"

     अम्मा माय-बाबा के स्वाभिमान की रक्षा ऐसे ही कर सकती थीं। उस समय नहीं, पर बाद में समझ गया था गोपाल।

   ना-नुकूर ज्यादा हुई नहीं और वह आ गया अम्बा बिल्डिंग!...अपने सपनों के परी देश में।

   उसकी निरर्थक ज़िदगी को प्यार-दुलार की खाद मिली। संतुलित धूप, हवा, पानी भी मिला...वह पल्लवित-पुष्पित। यहाँ उसके हिस्से की धूप, हवा, पानी को किसी ने बाँधा नहीं, बाँटा नहीं। सबके हिस्से में भरपूर धूप थी, हवा थी, पानी था। यहाँ सुंदर क्यारी में वह भी सज गया।

  गोपाल कब, कैसे शिशिर का अनुज बनता चला गया, किसी को एहसास ही नहीं हुआ। थोड़ा मुखर! थोड़ा मॅुंहलग्गू भी! कई बार वह सवालों से घिर जाता, 

  'यदि अम्बा बिल्डिंग नहीं आता तो...?' 

वह जान बूझकर इस ‘तो' से जूझना चाहता है।...तो वह एक फुटबॉल होता...इधर से उधर...उधर से इधर! जिंदगी उसे किक लगाया करती...वह भी बड़े मनोयाग और प्रेम से...।                                 

     एक दिन उसने अम्मा को जा घेरा था, 

  "आपको क्या मिलता है अम्मा इतने बच्चों को संँभालकर?"

    "संतोष !...बहुत संतोष रे ननकू गोपाल!"

  उस दिन अपनी जिंदगी का पूरा कच्चा चिट्ठा बता गई थीं,

   "पापा सबके दुख-बलाय को अँजुली में भरकर पी जानेवाले संत ठहरे...मैं थोड़ा ज्यादा ही नाजुक-दिल थी। किसी के दर्द से इतना दुखी हो जाती कि गहरे उपवास में चली जाती। पापा ने पहचान लिया। फिर तो उनका ऐटिट्यूट ही बदल गया।"

  वह आगे भी कहती,

  "वे अपने साथ मुझे भी जेल के कैदियों से मिलाने ले जाते, तब हमारे हाथों में गिफ्ट पैक होते। ढेरों संवेदनाएँ, ढेरों प्यार भी! हम तब हम न रहते। अपना दुख-तकलीफ, खुशी-गम बहुत छोटा लगने लगता।"

  "सलाखों के पीछे कई बार निरपराधों को भी देखा। मसें भीगते नवजवानों को भी, खुद के बोझ से दबी विपन्न स्त्रियों को भी। सन्नाटे को तब चीर पाना संभव न होता।" 

   नाना के बारे में बताते समय गर्व से उनकी गर्दन तन जाती,

  "पापा की कोशिशों से ही उन कैदियों को गाने-बजाने, पेंटिंग की शिक्षा दी जाने लगी थी। तब हम भाई-बहन उस धूसर रंगों के बदलते जाने के भी गवाह रहे थे। हम पर भी रंग चढ़ा और बस...शुरू।"

जाने-अनजाने गोपाल के अंदर भी जोश मारने लगता। वह धीरे-धीरे अम्मा का सबसे करीबी बन बैठा।

ऐसे में एक दिन समय ने बेईमानी कर दी। उस दिन भी वह गोर्की के मां के लगभग आखिरी पन्नों से गुजर रहा था। बाहर लाॅन के कोनेवाली कुर्सियों में से एक में एकदम डूबकर पढ़ रहा था। 

क्यारियों को सींचती अम्मा को उसने एक नजर देखा भी।‌ फिर गोर्की ने डुबो लिया।

   "शर्म नहीं आती? जीवन देने की शक्ति नहीं, फिर लेते क्यों हो? यह उम्र पुस्तक थामने की है या हथियार?"

 अम्मा की चिल्लाने की आवाज से चौंक कर देखा। वे गेट के सामने खड़े लड़कों को जोरदार डाँट पिला रही थीं। अत्यधिक जोर से चिल्लाने के कारण उनकी आवाज फट गई थी।

गेट के बाहर पिस्तौल थामे शोहदों के दो झुंड को एक-दूसरे के सामने तने खड़े थे। दोनों तरफ अड़ियल टट्टू। हाथों में पिस्तौलें।

उन लोगों का निशाना बदल गया और तन गईं पिस्तौलें अम्मा की ओर।

   "ऐ...ऐ... क्या कर रहे हो?...ऐई!"

  गोपाल हड़बड़ाकर उठ गया। पुस्तक नीचे औंधे मुंह गिरी। वह दौड़ा। उधर दोनों तरफ की एक-एक गोलियांँ अजब से असहिष्णु वक्त की गवाह बन गईं। वह दौड़कर कर उन तक पहुंच पाता, उससे पूर्व ही अम्मा गिर गईं। लड़के रफूचक्कर! गोपाल ने अम्मा के सर को गोद में रख लिया। एक कंधे, दूसरी सीने में लगी थीं गोलियां। उनके रक्त से तत्काल सन गई कोमल घास। 

कमरों से सभी छोटे बच्चे बाहर लाॅन में आ गए। उनकी दहाड़ें रुकने का नाम नहीं ले रही थीं।

संभलने से पूर्व ही स्कूल बस से उतरकर दौड़ते हुए बाकी बड़े बच्चे गेट खोलकर अंदर आए और ठिठके खड़े रह गए। 

उन सबकी प्यारी अम्मा लाश बनकर पड़ी थीं। 

   

कई दिन भयंकर उदासी में लिपटे। बच्चे भी स्तब्ध! बाहर बरामदे-कमरों में चुपचाप बैठे रहते। हर तरफ पिन ड्राॅप सन्नाटा! न ढंग से खाने की सुध, न पहनने की। 

  अम्मा की मछलियाँ भी जैसे उदास हो गई थीं। आज हताश गोपाल एक्वेरियम के ऊपर दीवार पर सज गई अम्मा की मालाधारी तस्वीर को देखे जा रहा था। 

अजब सी बेचैनी में घिरा। बेचैनी मन से उठकर पूरे शरीर में जा पहुंची थी। बच्चों की दशा उससे देखी नहीं जा रही थी। उस तस्वीर से झाँकती आँखों से पूछ बैठा,

  "इतनी भी क्या जल्दी थी अम्मा?"

   "तेरहवीं के बाद शिशिर भी तो वापस चला गया है।...अब इन सबको कौन देखेगा?"

   तभी सबसे छोटा राही पास आया। गोपाल का हाथ खींचते हुए बोला, 

  "भैया!"

   गोपाल ने उसे गोद में उठा लिया। वह अपने नन्हें हाथों से गोपाल के गीले गालों को पोंछने लगा। उसके गालों पर भी गीली लकीरें। गोपाल ने उसे भींच लिया। पर उसने अपने को आजाद किया और गोपाल की आँखों में एकटक देखता पूछने लगा,

  "भैया! कहानी नहीं सुनाओगे?...सुनाओ न...अम्मा की तर...।"

  "अम्मा की तर...ह? अम्मा की तरह?" गोपाल चौंका।

   उसकी निगाहें ऊपर उठ गईं। अम्मा की गहरी आँखें चश्मे के पार से मुस्कुरा रही थीं। एक हसरत उनकी आँखों में खुदी थी


सभी चित्र- महावीर वर्मा



परिचय 



प्रथम लघु उपन्यास "गुलमोहर के नीचे" 19-20 की उम्र में। 

दोनों उपन्यास पुरस्कृत। 

विविध विधा की रचनाएँ हंस, कथादेश, समकालीन भारतीय साहित्य, वर्तमान साहित्य, कथाक्रम सहित अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में।

शैलप्रिया स्मृति सम्मान, स्पेनिन साहित्य गौरव सम्मान, सर्व भाषा ट्रस्ट कथा सम्मान, इंडिया नेटबुक्स कथा रत्न सम्मान, जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान, जयपुर साहित्य सम्मान सहित अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार, सम्मान। 

   सुप्रसिद्ध राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्र, पत्रिकाओं, वेब मैगजीनो़ं में निरंतर विविधवर्णी  रचनाएँ।

राँची झारखण्ड

दीपक शर्मा की कविताएं

  

 जनता और जन प्रतिनिधि 

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चित्र -अनुप्रिया


कुछ लोग 

मंच पर बैठे हैं

और कुछ लोग 

मंच के नीचे थे

मंच पर बैठे लोग

जन-प्रतिनिधि थे

और मंच के नीचे 

आम जनता थी

जन-प्रतिनिधि लोग

बता रहे थे

इतिहास में दर्ज

अपने पुरुखों की कहानियाँ

दिखा रहे थे 

फ्रेम में मढ़ाये उनके चित्र

और चित्र के नीचे उनके स्वर्णिम नाम

वे नाम

राजा के थे

मंत्री के थे

सलाहकार और मनीषी के थे


एक दूसरा मंच था

जिस पर बैठे

कविगण, लेखक और दार्शनिक 

उनकी महिमा का

प्रशस्ति-गान कर रहे थे


मौन जनता

उन चित्रों में

इतिहास में

गायन में

ढूँढ़ रही थी

अपने पुरुखों का नाम

जिन्होंने सबसे आगे बढ़कर

सबसे ज्यादा दी थी कुर्बानियाँ

वे प्रजा थी

आम सैनिक थे

सेवक थे

वे तब भी

मंच के नीचे थे

और आज भी नीचे ही हैं

विभिन्न शिलाओं और इतिहास के पन्नों पर

उनके नाम

न तब थे

न अब हैं। 

०००

      

हम अच्छे थे बुरे हो गए

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मैं अच्छा बना रहा

जब तक आपके घरों में 

सेवाभाव से करता रहा चाकरी

बिना दम लिए दबाये आपके पैर

दाढ़ी बनाये 

बंग्ला छांटे

मसाज किये

आपके हर कार-परोजन

शादी-विवाह, तिलक बरक्षा, 

गृहप्रवेश, मरनी-करनी आदि में 

बुलावा-नेवता देते रहे

जानवरों की तरह खटते रहे

और उठाते रहे आपके जूठे पत्तल


मैं अच्छा बना रहा 

जब तक मेरे घर की औरतें 

आपके घरों में जाती रही 

सउर में आपकी बीवी की मूड़ दबाती रही

आपके पैरों में महावर लगती रही

चौक पूरी 

नाखून काटी 

पाहूर बांटी

और हर कार-परोजन में 

दौड़ धूपकर सारी व्यवस्था संभालती रहीं 

तब तक हम बहुत अच्छे रहें


अब हम बुरे हो गए 

जब हमारे बच्चे

स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों में जाने लगे

आपकी चाकरी करने से कतरने लगे 

और अपनी योग्यता के अनुसार 

नौकरी की मांग करने लगे 

जिसे आप 

अपने हिस्से की भागीदारी में 

कटौती कहते हैं

०००

       










चित्र पीटीआई से साभार 



विनेश फोगाट

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विनेश!

तुम खुद देश की मेडल हो

निराश मत होना

तुम्हारी बहादुरी और संघर्ष को 

दुनिया ने देखा है 

तुमने न केवल

विश्व चैंपियन रेसलर को हराया है 

अपितु उन सभी आलोचकों को भी हराया 

जिन्हें तुम्हारे काबिलियत पर शक था 

तुमने उन्हें हराया 

जिन्होंने तुम्हारे राह में रोड़े अटकाए 

काँटे बिछाए 

घात लगाए 

उन सबको एक साथ चित किया है 

देश हारने वालों का भी इतिहास लिखता है 

लेकिन तुम तो विजेता हो

विश्व विजेता!

०००

      

उपले और कम्प्यूटर 

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मुझे उपले बनाना आता है सर !

मैं गोबर ज्ञान से मुक्त होने के लिए

गाँव से चलकर 

आया हूं शहर 


बीस बरिस पहले 

उपले पाथते हुए मेरी माँ ने 

थमाया था मुझे कॉपी और कलम 

गाय-गोरू चराते हुए पिता ने 

भेजा था मुझे पाठशाला 

और कहा था कि 

बेटा विज्ञान का युग है

अब तुम 

कलम और कंप्यूटर चलाना सीखो!


यह बात आपको भी पता होगा कि 

उपले का पाठ पढ़ाने में जितना सुख है

पाथने में उतना नहीं है

आप बेहतर पढ़ाई किए होंगे सर 

और आपके पास 

शिक्षण का लंबा अनुभव भी है 

मगर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 

आप मेरी निरक्षर माँ से अच्छा 

उपला नहीं बना सकते।


नहीं तो

एक काम कीजिए न सर !

एक महीने के लिए

आप अपने बच्चों को 

मेरे साथ भेज दीजिए गाँव 

मैं उन्हें सिखा दूँगा उपले बनाना 

और आप मुझे सिखा दीजिए 

कंप्यूटर चलाना।


वैसे भी

सिलेंडर के युग में

उपले का क्या काम ?


संस्कृति की रक्षा के लिए?


तो आप बांध लीजिए 

अपने द्वार पर दो-चार गाय और भैस

भर लीजिए अपने दफ्तर में भूसा

चूनी और चोकर

मैं आपके ड्राइंग रूम को

विभिन्न आकृतियों से

गोबर और घासनुमा म्यूजियम बना दूँगा

०००

        

तालाब में मछली पकड़ते हुए बच्चे 

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तालाब में 

मछली पकड़ते हुए बच्चे 

अभी निकलेंगे 

तालाब से बाहर 

और जाएंगे स्कूल

स्कूल जाते जाते 

वे पढ़ने लगेंगे किताबें

किताबें पढ़ते-पढ़ते 

सीख जाएंगे 

अंग्रेजी, गणित, दर्शन और विज्ञान

धीरे-धीरे पढ़ जाएंगे 

देश का संविधान

फिर मछली पकड़ने 

नहीं जाएंगे 

वापस कभी तालाब में

०००


परिचय 


जन्मतिथि- 27 अप्रैल 1991

शिक्षा - एम.  ए.  हिंदी साहित्य (काशी हिंदू विश्वविद्यालय), बी.  टी. सी.  यूजीसी जे आर एफ

लेखन-विधा - कविता, आलेख,  लघुकथा, समीक्षा व कहानी

प्रकाशित रचनाएं - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, साझा षंकलनों व अंतर्जाल पर प्रकाशित कविताएं,  लघुकथाएँ  व आलेख व कहानी

सम्मान- पद्मश्री पंडित बलवंत राय भट्ट भावरंग स्वर्ण पदक एवं विभिन्न साहित्यिक मंचों से सम्मान

सम्प्रति - सहायक अध्यापक बेसिक शिक्षा विभाग वाराणसी

स्थाई पता- ग्राम-रामपुर,  पोस्ट- जयगोपालगंज,  केराकत जौनपुर उत्तर प्रदेश- 222142

मो० 8931826996

30 अगस्त, 2024

आपदा में अवसर की तलाश !


             

 यह भाजपा को वर्तमान प्रधानमंत्री ने दिया हुआ मंत्र है ! जो उन्होंने मार्च 2020 में कोरोना की पहली लहर के समय कहा था ! जब की उस समय कोरोना के उपर कोई भी दवा इजाद नही हुई थी ! और एकदम नई बिमारी होने की वजह से लगभग संपूर्ण विश्व में ही अफरा-तफरी का माहौल बन गया था !

    


डॉ.सुरेश खैरनार 

लेकिन इस मंत्र का प्रयोग नरेंद्र मोदीजी ने अपने राजनीतिक जीवन के शुरुआती दौर में 27 फरवरी 2002 के बाद गोधरा कांड के 59 अधजले शवोको, और आधे-अधूरे पोस्टमार्टम के बगैर !  खुद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ढाईसौ किलोमीटर की यात्रा कर के गुजरात विश्व हिंदु परिषद के अध्यक्ष श्री जयदीप पटेल को सौंपने की प्रक्रिया ! और सबसे अहम बात गोधरा की महिला कलेक्टर, श्रीमती जयंती वी रवी के, विरोध के बावजूद ! गोधरा के मामलेदार की मदद लेकर विश्व हिंदु परीषद और बजरंग दल के लोगो के कब्जे में देना कौन सा आपदा में अवसर था ?

                      जो कि कानूनी तौर पर उन शवों को नजदीक के रिश्तेदारों को सौंपना छोड़ कर ! जो कि गुजरात के पुलिस मॅन्यूअल Vol. As provided in Rule 144,145,223 and 224 where you will find salutary provisions recommending a quick dispatch of the bodies for postmortem to the nearest Hospital, prohibition of teking photographs which are revolting in nature and quite disposal of dead bodies keeping in mind the sensibilities of the victim's relative. And yet in violation of statutory rules on that fretful day, all the bodies were transported to Ahmedabad"

'legal malice '

       Further "Clearly 59 bodies could not have moved more than 200 kilometres to Ahmedabad without the knowledge of the chief minister, the chief Secretary and Director General of police. Clearly, an intentional violation of procedure was done for the call for Gujarat Bandh given by the political party which constituted the government in Gandhinagar. In violating a laid - down procedure, legal malice is established beyond doubt and when this legal mallce has manifested itself into widespread violence resulting in massive carneg across the States, elements of criminal conspiracy are clearly established "

           उन लाशों को ट्रकों को उपर बगैर ढके लादकर ! गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में जुलूस निकाला गया है ! और 28 फरवरी से संपूर्ण गुजरात में विश्व हिंदु परिषद और बजरंग दल तथा  बीजेपी और संघ के तरफसे गुजरात बंद का ऐलान किया गया था ! और केरल हायकोर्ट ने बंद करने के निर्णय पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद सत्ताधारी पार्टी का बंद को समर्थन था ! मतलब गोधरा कांड की अधजली बॉडीयो को गुजरात दंगों के भड़काने के लिए फ्यूल के तौर पर इस्तेमाल करने वाले आपदाओं में अवसर की तलाश वाले के सिवाय और कौन हो सकता है ?

                लेकिन कमाल की बात है कि इन सभी मुद्दों पर नाही नानावटी कमिशन ने ध्यान दिया, और सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा नियुक्त कि गई एसआईटी ने ! और दिसंबर 2013 में नरेंद्र मोदी को क्लिन चिट दे दी गई है ! क्या भारत की न्यायिक संस्थाओं का पतन होने की शुरुआत आजादी के बाद गुजरात के दंगों के तथाकथित न्याय के नाम पर और पुलिस - प्रशासन की ओर से इस कांड में कहा - कहा और कैसी - कैसी कोताही बरती गई है ?

         पर भी कुछ लोग कहते हैं, कि सबसे ज्यादा सजा देने का रेकॉर्ड गुजरात के दंगों के केसेस में ही हुआ है ! मुझे आज अचरज होता है कि मुख्य गुनाहगार जो एक षडयंत्र के तहत पूरे दंगे की राजनीति कर के सही - सलामत तो है ही लेकिन अपनी चौवालिस इंची छाती का एक फीट नाप बढाजढाकर आज हिंदुहृदय सम्राट के पोजीशन में आकर 140 करोड़ आबादी के छातीयो पर मुंग दल रहा हैं ! और देश की सार्वजनिक संपत्ति को औने-पौने दामों में बेच रहा है ! संसद से लेकर न्यायालय प्रशासन, सभी संविधानिक संस्थाओं को सिर्फ और सिर्फ अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहा है ! और सर्वसामान्य मजदूरों से लेकर किसानों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है ! 

            उसके बावजूद संघ के हरावल दस्तों के नेतृत्व में, नियोजित तरीकों से मतदाता सूची में नाम देख कर और खाना बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले गॅस सिलिंडर का तथा पेट्रोल की कैनो का इस्तेमाल किया गया है ! इतना नियोजित आजाद भारत के इतिहास का पहला राज्य पुरस्कृत दंगा था ! जिसे गुजरात प्रयोग के नाम से भी जाना जाता है ! इसलिए सबसे पहले मैं जस्टिस वी. आर. कृष्ण अय्यर की प्रस्तावना जो Crime Against Humanity नाम से गुजरात दंगों के 508 पन्ने के जांच आयोग को, तत्कालीन कॅबीनेट मंत्री श्री. हरेन पंड्या ने बताया था, कि "27 फरवरी 2002 की रात्रि कैबिनेट की बैठक में, नरेंद्र मोदी ने कहा" कि कलसे गुजरात में जो भी कुछ प्रतिक्रिया हिंदुओं के द्वारा होगी उसे कोई भी नहीं रोकेगा" ! यह सुनकर जस्टिस कृष्ण अय्यर ने हरेन पंड्या को पुछा कि !" यह आपको कहते हुए डर नहीं लगता ?" और जस्टिस कृष्ण अय्यर की भविष्यवाणी सही साबित हुई है ! उन्होंने अपने प्रस्तावना में, जो पहले पन्ने पर छपी है Foreword  की कुछ पंक्तियां देकर शुरू करता हूँ ! "What a shock and shame that INDIA'S fair Secular name should suffer dastardly disgrace through the recent Government - abetted Gujarat communal rage, compounded by grisly Genocide Carnage and savage arsonous pillage, victimising people of Muslim vintage - and unkindest cut of all '-allegedly executed with the monstrous abetment of chief minister Modi his colleagues and party goons. The gravamen of this pogrom-like operation was that the administration reversed its constitutional role and by omission and commission, engineerd the loot, ravishmen and murder wich was methodically perpetrated through planned process by chauvinist VHP elements, goaded by terrorist appetite. What ensued was a ghastly sight the like of which, since bleeding partition days, no Indian eye had seen, no Indian heart had conceived and of which no Indian tongue could adequately tell. Hindutva barbarians came out on the streets in different parts of Gujarat and in all fleming fury, targeted innocent and helpless Muslims who had nothing to do with the antecedent Godhra event. They were brutalised by miscreants uninhabited by the police ; their women were unblushingly molested ; and Muslim men, women and children, in a travesty of justice, were burnt alive. The chief minister, othe - bound to defend law and order, vicariously connived at the inhuman violence and some of his ministers even commanded the macabre acts of horror.

        There was none to question the malevolent managers of communal massacre. The criminal outrage, there was none in uniform to resist, not even to record information of the felonies. Nor was there any impartial official to render succour or assure civilised peace. When government failed and the local media distorted the truth. The Fascist trend flourished and the barbaric,fanatic, rapist human animals remained unchecked.

Awakened by this sinister scenario, people of consciousness, all over the country, felt the gory, catastrophe merited investigation, 

                   भारतीय संसदीय राजनीति के इतिहास में आजादी के बाद पहली बार ! किसी भारतीय राजनेता ने दंगे के उपर अपने राजनीतिक करियर बनाने की ताजा मिसाल है ! वर्तमान समय में भारत के प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र मोदी ! जिसे वह खुद आपदा में अवसर की तलाश जैसा नाम दे चुके हैं ! 

         अब जिन - जिन लोगों के अंदर का जमीर नष्ट हो गया है ! उन सभी लोगों के वह अपने रोल मॉडल बने हैं ! और यही सबसे ज्यादा चिंता का विषय हैं ! क्योंकि भारत जैसे बहुधर्मिय, बहुजातीय, बहुसांस्कृतिक देश की एकता और अखंडता के लिए इस तरह के धार्मिक आधार बनाकर राजनीतिक दलों से खतरा हैं !

             और मेरे जैसे सानेगुरुजी के संपूर्ण विश्व को अपने ओटमे लेकर चलने वाले साहित्यकार की कविता ! "खरा तो एकची धर्म जगाला प्रेम अर्पावे" ( सच्चा धर्म वहीं है जो समस्त विश्व को प्रेम अर्पण करने की सिख देता हो ! ) जैसी प्रार्थना गाते हुए जीवन की शुरुआत हुई हो ! ऐसे आदमी के गले नरेंद्र मोदी कभी किसी का रोल मॉडल बन सकता है ? यह बात गले नही उतरती है ! क्योंकि मुझे विदेशों में जाने के समय जब मैं भारत से आया हूँ ! कहता हूँ, तो मुझे कहा जाता है ! कि ओ यू आर कमिंग फ्राम गांधीज कंट्री !

             इस गुजरात के रोल मॉडल के अपनी जन्मना जाती (तेली) की जनसंख्या गुजरात की कुल जनसंख्या में दो प्रतिशत से कम होने के कारण, नरेंद्र मोदी को जब अक्तूबर 2001 में दिल्ली से गुजरात के मुख्यमंत्री, गुजरात बीजेपी के सत्ता में बैठे हुए मुख्यमंत्री केसुभाई पटेल को हटा कर ! झगड़े के कारण तात्कालिक रूप से कुछ समय के लिए भेजा गया था ! और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है ! कि नरेंद्र मोदी भले उम्र के सत्रह साल के थे ! तबसे आर एस एस के स्वयंसेवक बनने के बाद ! संघ की तरफ से अस्सी (1985) के दशक में बीजेपी बनाने के बाद बीजेपी के लिये भेजा था ! लेकिन गुजरात बीजेपी के आपसी झगड़े के कारण ही इनका नाम लो प्रोफाइल के तौर पर मुख्यमंत्री के पद पर 2001 के अक्तूबर को, नियुक्त किया गया था ! और उसके पहले इन्होंने ग्रामपंचायत का भी चुनाव में हिस्सा नहीं लिया था ! तो मुख्यमंत्री बनने के बाद, छ महीनों के भीतर विधानसभा का सदस्य बनने का नियम के कारण ! इन्हें कोई सुरक्षित सिट चाहिए थी ! तो एलिसब्रिज नाम की अहमदाबाद शहर की सिट से ! हरेन पंड्या रेकॉर्ड मार्जिन से चुने हुए प्रतिनिधि को ! नरेंद्र मोदी ने अपने लिए खाली करने के लिए ! इस्तीफा देने के लिए कहा तो  हरेन पंड्या साफ मना कर दिये !

          तो वह राजकोट विधानसभा चुनाव में 24 अक्तूबर के दिन ! विधानसभा के चुनाव जीते थे ! और उसके  बाद अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करना है ! यह उनकी पहली प्राथमिकता होना स्वाभाविक था ! और गोधरा कांड में आपदा में अवसर जो उन्होंने अपने बचपन से, संघ की हिंदुत्व की शिक्षा - दिक्षा के कारण ! यह मौका अपने हिंदुहृदयसम्राट बनने के लिए विशेष रूप से इस्तेमाल किया ! और भारतीय संसदीय जनतंत्र को एक विशेष धर्म की राजनीति के केंद्र बिंदु बनाने की योजना बखुबी अमल में लाने में कामयाब हुए हैं ! यही उनके आपदा में अवसर की तलाश हैं ! और वह खुद दोपहर के बाद अहमदाबाद से गोधरा 250 कीलोमिटर के सफर करते हुए सिधे गोधरा कांड में जली हुई बॉडीयोके शवविच्छेदन के कार्यक्रम के दौरान पहुंचे और अपने साथ विश्व हिंदु परिषद के अध्यक्ष जयदीप पटेल के कब्जे में मामलेदार को बुलाया और तथाकथित औपचारिकता कराके सभी अधजली बाँडिजको ओपन ट्रकों में लादकर 28  फरवरी 2002 के सुबह से अहमदाबाद के रास्तें पर जुलूस निकालने में कौन सी कानून और व्यवस्था की बहाली होने वाली थीं ?   या इसमें भी आपदा में अवसर की तलाश थी ? 

            दुसरी महत्वपूर्ण भूमिका बात कीसी राज्य को अपने यहां के कानून - व्यवस्था के लिए अगर सेना की आवश्यकता लगती हैं ? तो वहां के मुख्यमंत्री खुद सेना को बुलाने के लिए लिखते हैं ! तब कहीं सरसेनापती निर्णय लेते हैं ! तो गोधरा कांड के बाद श्याम को या दुसरे दिन 28 फरवरी 2002 को भारत की सेना को बुलाया ! और वह आने के तीन दिन तक उसे अहमदाबाद एअरपोर्ट के बाहर नही आने देना ! मतलब कानून व्यवस्था की फार्मालिटिज तो की है ! लेकिन आॅन पेपर पर जमीन पर नही ! आर्मी को तीन दिन तक अहमदाबाद के एअरपोर्ट के बाहर नहीं निकलने देने में क्या आपदा में अवसर की तलाश थी  ? 

             गुजरात के दंगों को देखते हुए भारतीय सेना के सरसेनापती जनरल पद्मनाभनने लेफ्टनंट जनरल झमिरुद्दीन शाह के नेतृत्व में 1 मार्च को 3000 जवानों की 63 हवाई जहाज की खेपों में अहमदाबाद एअरपोर्ट पर उन्होंने उतारने के बावजूद, तीन मार्च तक उन्हें स्टेटद्वारा लाजिस्टिक नही देकर उन्हें अहमदाबाद एअरपोर्ट के बाहर नहीं निकलने दिया था !  यह है जस्टिस कृष्ण अय्यर की " What a shock and shame that India's fair Secular name should suffer drastically disgrace through the recent government - abetted Gujarat communal rage, compounded by grisly Genocidal carnage and savage arsonous pillage, victimising people of Muslim vintage - and 'unkindest cut of all' - allegedly executed with the monstrous abetment of chief minister Modi, his colleagues and party goons. The he gravamen of this pogrom - like operation was that the administration reversed its CONSTITUTIONAL ROLL ! And by omissions and commission, engineered the loot, ravishment and murder which was methodically perpetrated through planned process by chauvinist VHP elements, goaded by terrorist appetite. 

          आजादी की पचहत्तर वी सालगिरह के समय, इस तरह के सांप्रदायिक मानसिकता वाले लोगो का ! सत्ता में बने रहना भारत जैसे बहुविधी संस्कृति वाले देश की एकता और अखंडता के लिए चिंता की बात हैं ! उसका सबसे बड़ा उदाहरण बीस वर्षों के पहले गुजरात में इन्हें मुख्यमंत्री रहते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था की "आपने राजधर्म का पालन नहीं किया !" और वह आज 140 करोड आबादी की जनसंख्या के देश के, प्रमुख पदाधिकारी होते हुए ! गत दस साल की कार्यशैली को देखते हुए ! लगता नहीं कीं भारत में रह रहे सभी लोगो के लिए उन्हें कोई लगाव हो ? कश्मीरसे 370 हटाने ,नागरिकता वाले बील, लवजेहाद, गोहत्या बंदी, मंदिर बनाने की प्रक्रिया से लेकर हिजाब, सिविल कोड जैसे मुद्दों पर जानबूझकर अल्पसंख्यक समुदायों को डराने के लिए, कोरोना जैसी महामारी का भी इस्तेमाल किया जाता हैं ! गुजरात माॅडल के साथ भारत का उग्र हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद की आडमे ! अल्पसंख्यक समुदायों को डराने वालें आदित्यनाथ या हेमंत बिश्वा शर्मा हो या खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृहमंत्री अमित शाह हो ! सभी ने भारतीय संविधान की शपथ ग्रहण करने के बाद इन महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचे हैं ! 

                              और पिछले दो सप्ताहों से पस्चिम बंगाल में एक महिला डाक्टर के साथ हुए अत्याचार को लेकर जिस तरह से भाजपा विशुध्द राजनीतिक हुडदंग कीए जा रहा है वह शतप्रतिशत नरेंद्र मोदी के आपदाओं में अवसर के तलाश के अंतर्गत चलाया जा रहा षड्यंत्र है ! मैंने इसके पहले भी लिखा है कि भारत में प्रति दिन 88 महिलाओं के साथ अत्याचार किए जा रहे हैं और इस में दलित तथा आदिवासियों के महिलाओं की संख्या सब से अधिक है और महिलाओं के साथ किए जा रहे अत्याचारों में लगभग भारत के सभी प्रदेश शामिल हैं कलकत्ता के महिला डाक्टर के साथ हुई घटना के दिन ही बिहार के मुजफ्फरपुर में एक दलित लड़की के साथ अत्याचार हुआ है ! और उसी दिन महाराष्ट्र में मुंबई के पास बदलापूर में तो तीन साल की बालिकाओं के साथ अत्याचारों की घटनाओं के होने के बावजूद सिर्फ बंगाल की घटना को लेकर भाजपा ममता बनर्जी को हटाने का आपदा में अवसर की कोशिश के सिवाय कुछ नहीं है ! भाजपा को महिलाओं के अत्याचारों की इतनी चिंता है तो बदलापूर, मुजफ्फरपुर मणिपुर तथा भाजपा शासित राज्यों में भी आयेदिन महिलाओं के साथ किए जा रहे अत्याचारों को लेकर इस तरह का आंदोलन क्यों नहीं कर रहे हैं ? क्या यह सिर्फ ममता बनर्जी को हटाने के लिए आपदा में अवसर की कोशिश है ??????????? 

डॉ. सुरेश खैरनार, 29 अगस्त 2024, नागपुर.

पुष्पराज की कविताएं



मजदूर का पसीना












चित्र:- मुकेश बिजौले


कवि जो रोटी बेलता है

कवि जो रोटी पकाता है

कवि जो रोटी पचाता है

वह सोचता है

रोटी पैदा करने के बारे में।

वह सोचता है

रोटी के बिना भूख की तड़प के बारे में।

वह सोचता है

भूख से तड़प कर हुई हर एक मौत के बारे में।

वह सोचता है

क्या "भूख" दुनियाँ की 

सबसे महानतम कविता का नाम है।

वह सोचता है

क्या "मजदूर" दुनियाँ के सबसे बड़े कवि का नाम है।

वह सोचता है 

रोटी पचाने के बाद

रोटी कमाने के बारे में ।

वह सोचता है 

भूख ,रोटी औऱ मजदूर 

जैसे शब्द प्रतिबंधित होने चाहिए।

वह सोचता है

भूख और रोटी की तड़प से हुई हर एक मौत पर लिखा जाए

शहीद, शहीद ,शहीद।

कवियों गिनो

भूख और रोटी के निमित्त शहीदों के नाम।

शहीद मजदूर प्रथम अगर रामजी था 

तो दूसरे शहीद श्रमिक का नाम 

क्या लक्ष्मण था।

शहीद मजदूर तृतीय का नाम भूलते क्यों हो

लिखो -शहीद मजदूर तीसरे का नाम भरत ही था।

प्रथम मेरा भाई था

तो दूसरा,तीसरा,चौथा क्या कसाई था।

सबके नाम लिखो

इंडिया गेट के सामानांतर खड़ा करो

शहीद श्रमिक स्मृति गेट।

एक, दो,तीन के बाद कुल कितने मरे

"चायवाले" को नहीं पता "छायवाले" का नाम।

राम,लक्ष्मण, भरत सब मर चुके हैं

राम मरे,लक्ष्मण मरे,भरत मरे।

मर गए भरत तो कैसे बचा भारत?

भगवानों की अकाल मौत हुई है।

अब भगवानों का अस्तित्व समाप्त करो

रामजी की भूख से हुई मौत के बाद 

"राम मंदिर" का नाम "क्षुधा मंदिर", "भूख मंदिर","रोटी मंदिर","मजदूर मंदिर"होना चाहिए।

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मजदूर का पसीना कविता जिन 
रामजी महतो की  त्रासद मौत के बाद लिखी गई थी।यह तस्वीर उन्हीं रामजी महतो की है। कोविड आपदा के दौरान दिल्ली में ड्राइवरी करने वाले रामजी महतो ने 16 अप्रैल 2020 को 850 किलोमीटर की पदयात्रा करने के बाद प्रधानमंत्री जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में दम तोड़ दिया था।रामजी को अभी 400 किलोमीटर की पदयात्रा कर बिहार के बेगूसराय के बखरी स्थित अपने ग्राम पहुंचना था।17 अप्रैल 2020 की द टेलीग्राफ के लखनऊ संवाददाता पीयूष श्रीवास्तव की रिपोर्ट  Migrant falls and dies on PM’s turf ने रामजी महतो को लावारिश लाश होने से बचा दिया था।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने धमकी दी थी कि श्रमिकों को हम बिहार घुसने नहीं देंगे।जातीय जनगणना के सूत्रधार मुख्यमंत्री ने अपने रक्तकुल के श्रमिक रामजी महतो की मृत काया को बिहार प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी।वाराणसी के दारोगा गौरव पाण्डेय ने रामजी की अंत्येष्टि कर इंसानियत की मिसाल कायम की थी।काशी के दिवंगत साहित्यकार चौथीराम यादव ने गौरव पाण्डेय की  सार्वजनिक रूप से सराहना की थी


कविता पूछती है 

तो पूछते हैं फिराक

इलाहाबाद का नाम बदला गया

और तुमने इंकलाब नहीं किया।

पूछते हैं महाप्राण 

कि "राम की शक्तिपूजा" के बाद 

अयोध्या में किस राम को पुनर्जीवित किया गया।

पूछते हैं मुक्तिबोध 

क्या यह "अंधेरे समय" के खिलाफ

रौशनी के चमत्कार का समय है।

पूछते हैं धूमिल 

अपने-अपने जन्मदिवसों में मग्न साहित्यकारों

लूट गया जब लोकतंत्र 

तो हिन्दी का साहित्यकार कौन है

हिन्दी साहित्य क्यों मौन है।

राहुल सांकृत्यायन प्रसन्न हैं 

कि बिहार में जब उनके सारे चिन्ह मिटा दिए गए

लुटेरे इतिहास भक्षक के साथ खड़े साक्षात कवि कमल हैं।

प्रेमचंद जी का प्रगतिशील लेखक संघ 

एक तस्कर सम्राट के पुत्र को विधायक बनाकर धन्य है।

रहस्य को खोलना मना है

मेरे जिंदा होने का मतलब 

यह कि वे मुझे इस समय मारना नहीं चाहते हैं।

लखनऊ में बुल्डोजर बा 

तो बिहार में कौन चीज बा 

बिहार में चरणामृत बा 

बिहार में पलटुआ के आरती बा।

नागार्जुन के धरती पर आलोक धन्वा के सुरंग बा

सुंरँगे में सोना बा,चांदी बा ,सपना के महल बा।

अभूतपूर्व विद्वता ,सेक्युलर जहाज पर 

रजा फाउंडेशन के टाका पर

अपूर्व आनंदमय  भाषण बा।


(पंकज चतुर्वेदी की "पूछती है कविता" के आलोक में)

28 अगस्त 2024

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"एकल पुरुष

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"अकेली स्त्री " को

 एक विचारधारा मानने की संकल्पना

अगर मानवता के हक में है 

तो "एकल पुरुष" को व्याधि नहीं माना जाए।

विधवाओं के संताप से सताए हुए देश में 

विधुरों का दर्द अव्यक्त ही रह गया।

विदुषियों,विद्वानों वाले राष्ट्र में 

विस्थापित स्त्रियों का दर्द 

किसी विस्थापित स्त्री को ही लिखना पड़ेगा।

बलात्कार पीड़िता स्त्रियों का दर्द 

किसी बलात्कार पीड़िता को ही लिखना होगा।

एक घरेलू नौकरानी की आत्मकथा 

पहली बार एक घरेलू नौकरानी की 

अपनी कलम से दर्ज हुई।

जैसे सिरसा की बलात्कार पीड़िता साध्वी स्त्रियां 

छुपकर भूमिगत ही रहती हैं।

फेमिनिस्टों ने जैसे 

आलो-आँधारी का मूल्यांकन नहीं किया।

जांबाज विदुषी स्त्रियों की व्यस्तताएं भी समझिए

लिट् फेस्टिवल,बुक फेयर,ऑनलाइन भाषण ।

भारत की जांबाज विदुषी स्त्रियों ने जानने की कोशिश नहीं की कि 

भारत का सबसे बड़ा खूंखार-बर्बर बलात्कारी 

जब पैरोल पर जेल से बाहर निकलता है

तो सिरसा की बलात्कार पीड़िता साध्वियों 

का भय कितना अधिक बढ़ जाता है।

बलात्कार पीड़िताओं का

 ताउम्र भूमिगत जीवन मानवता का उत्कर्ष है क्या?

गुरुदेव के "एकला चलो" से अगर हम ताकतवर हुए होते 

तो हम सत्तापरस्त पत्रकार बिरादरी में 

इतने अस्पृश्य नहीं हुए होते।

वैधव्य अगर सुख नहीं है 

तो विधुर होना पूर्णतः अभिशाप है

"एकल पुरुष" वैधव्य और विधुर के मध्य का शोक है।

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चित्र 

फेसबुक से साभार 



युद्ध के बारे में

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उन्हें जंगली कहा गया

उन्हें हिंसक कहा गया।

बलात्कार,हत्या,दंगे

इन जंगली चौपायों ने नहीं रचाए।

उन्होंने परिवार नियोजन नहीं कराए

तो क्या खाद्यान्न संकट गिलहरी और बकरियों की देन है?

उन्होंने भाषाएँ नहीं सीखी

इसलिए वे विश्वविद्यालयों के वक्ता नहीं बनाए गए।

वे निरक्षर ही रहे 

इसलिए अकादमी पुरस्कार का उन्हें लालच भी नहीं।

उन्होंने विवाह नहीं रचाए 

इसलिए उन्हें तलाक और पुनर्विवाह की चिंता नहीं।

उन्हें अर्थ गरिमा का नहीं मालूम

इसलिए हिजाब ,बुर्के,घूँघट से बेहतर

वे सब दिन नग्न ही रह गए।

उन्हें प्रेम का अर्थ नहीं पढाया गया

इसलिए वे  मनुष्यों से घृणा नहीं कर पाए।

वे घृणा का अर्थ नहीं जान पाए

इसलिए किसी युद्ध में उन्होंने तोप नहीं दागे।।

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संक्षिप्त परिचय


पुष्पराज का जन्म माँ के गाँव में हुआ और पालन-पोषण बिहार में पिता के यहाँ हुआ। युवा होने के बाद वे यात्री भी बन गये और उन्हें खानाबदोश या खानाबदोश पत्रकार के रूप में जाना जाता है। चाहे वह कलिंगनगर (उड़ीसा) में टाटा समूह का खून-खराबा हो, प्लाचीमड्डा (केरल) में कोका कोला के खिलाफ जनता का उभार हो या विकास के नाम पर नर्मदा घाटी के आदिवासियों और किसानों को बर्बाद करना, पुष्पराज ने हमेशा अपने अनुभवों को दर्ज किया है। जैसा कि यह पत्रकारिता में है। प्रभात खबर ने एक समय अपनी रिपोर्ताज को सिलसिलेवार प्रकाशित करना शुरू किया था, जिसे जनसत्ता ने आगे बढ़ाया. मुसहरों की स्थिति और 2007 की बाढ़ पर केंद्रित उनकी रिपोर्टें हिंदुस्तान में प्रकाशित हुईं और लोकप्रिय हुईं। 2002 में 'हंस' में प्रकाशित 'मऊ जेल में सात दिन' और नक्सल आंदोलन के घने इलाकों से लौटने पर जनसत्ता में प्रकाशित रिपोर्ट उनकी अलग पहचान साबित करती है। पेंगुइन प्रकाशन से हिन्दी और अंग्रेज़ी में प्रकाशित उनकी किताब 

'नंदीग्राम डायरी ' ने पुष्पराज को ख़ूब ख्याति प्रदान की है। पुष्पराज कविता, रिपोर्ताज, संस्मरण लेखन के साथ- साथ समय-समय पर देश में चलने वाले जन आंदोलनों में भी सक्रिय भागीदारी करते रहे हैं।



29 अगस्त, 2024

महिलाएं जायें तो कहां जायें

 

डॉ. अशोक कुमारी


देश में जब चारों तरफ कोलकाता के आरजी अस्पताल में हुए कृत्य पर चारों तरफ विरोध के बीच रोज-ब-रोज भारत के कोने-कोने से लड़कियों बच्चियों महिलाओं के साथ बलात्कार की खबरें अखबारों की सुर्खियां बनी हुई हैं । इसी बीच उत्तराखंड के रूद्रपुर से नर्स के साथ रेप और हत्या की खबरें आई उसके बाद समाचार पत्रों और टीवी मीडिया में रोज दो-चार रेप की खबरें आने लगी। बैंगलुरु में कैब से घर जा रही लड़की के साथ बलात्कार, बाराबंकी में 25 साल के व्यक्ति ने अपने पड़ोस की नौ साल की बच्ची के साथ बलात्कार किया। जालंधर कपूरथला में पड़ोस के 28 साल के आदमी ने आठ साल की बच्ची को बहला-फुसला कर अपने घर ले गया और उसका बलत्कार किया। 22 अगस्त बलिया में पड़ोस के व्यक्ति ने 13 साल की बच्ची से बलात्कार किया। ग्वालियर के थाटीपुर इलाके में 17 साल की लड़की का बलात्कार कर उसका अश्लील विडियों बनाया गया। जयपुर में पड़ोसी ने नाबालिग के साथ बलात्कार का प्रयास किया उसके चिल्लाने पर घरवालों ने पड़ोसी की पिटाई की। असम के ढींग में 22 अगस्त को 14 साल की नाबालिग लड़की ट्यूशन से पढ़कर अपने घर जा रही थी तभी उसके साथ गैंगरेप हुआ जबकि उसका घर वहां से आधा किलोमीटर पर था, पीड़िता को अस्पताल ले जाते समय उसकी मौत हो गई। 13 अगस्त को बदलापुर में तीन और चार साल कि दो बच्चियों के साथ यौन शोषण किया गया। मामला सामने आने के बाद बीस अगस्त को हजारों लोगो ने स्कूल और फिर पुलिस थाने पर प्रदर्शन किया। मामले ने जब तूल पकड़ा तब पुलिस ने स्कूल प्रशासन के खिलाफ एफआईआर लिखी, इससे पहले स्कूल प्रशासन मामले को दबाने की कोशिश कर रहे थे ताकि स्कूल की साख बनी रहे। इस घटना पर बाम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि अगर स्कूल ही सेफ नही है तो शिक्षा के अधिकार और बाकि चीजो पर बात करने का क्या मतलब स्कूल प्रशासन को केस दर्ज करने पर सवाल किया। बदलापुर के बाद मध्य प्रदेश अकोला में भी छ: बच्चियों के यौन-शोषण का मामला उजागर हुआ अकोला की घटना में स्कूल शिक्षक ही अपराधी निकला। मुंबई में इंस्टाग्राम पर हुई दोस्ती के बाद मिलने पर 13 साल की लड़की से 21 साल के पुरुष ने बलात्कार किया। जोधपुर में तीन साल की बच्ची के साथ होमगार्ड के जवान ने बलात्कार किया। दिल्ली में 24 अगस्त को एक खबर आई जिसमे एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी और बेटी को तवे से पीट पीट कर मार डाला उसकी बेटी ने उस पर पॉस्को के तहत मुकदमा दर्ज किया हुआ था। 27 अगस्त को  रत्नागिरी पहाड़ी में नर्सिंग की छात्रा से ऑटो ड्राइवर ने बलात्कार किया, जोधपुर सरकारी अस्पताल के दो सफाई कर्मचारी ने चौदह साल के बच्ची के साथ गैंगरेप किया। यह सब घटनाएं तो शहरी क्षेत्र की हैं जहां पर मीडिया मौजूद है यही कारण है कि भारत के सरकारी आंकड़े ही इस भयावहता को दर्शाते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरों की रिपोर्ट से पता चलता हैं कि 2022 मे भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में चार प्रतिशत की वृद्धि हुई हैं जिसमें पतियों और रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता, अपहरण, हमले और बलात्कार के मामले शामिल हैं । इसमें 2020 में 3,71,503 मामलों से बढ़कर 2022 में 4,45,256 मामले हो गए हैं । महिलाओं के खिलाफ बढ़े अपराधों में एक बड़ा हिस्सा पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता (31.4 प्रतिशत), महिलाओं का अपहरण और व्यपहरण (19.2 प्रतिशत), महिलाओं पर उनकी गरिमा को ठेस पंहुचाने के इरादे से हमला (18.7 प्रतिशत), शामिल हैं । एनसीआरबी 2022 की रिपोर्ट के अनुसार 31 हजार रेप केस दर्ज किए गए इसका मतलब हर दिन के 85 बलात्कार हो रहे हैं । ऐसा नहीं है कि बलात्कार की घटनाएं पहले नही होती थी लेकिन रिपोर्टिंग नहीं हो पाती थी, बलात्कार हर रोज होते रहे हैं रेप का विरोध करने के लिए भीड़ और मीडिया सर्तक नहीं रहती थी इसे केवल खबर की तरह देखा जाता था, यौन- उत्पीड़न के मामलों में महिला आंदोलनों की एक बड़ी सकारात्मक भूमिका रही हैं इन आंदोलनों द्वारा पुलिस प्रशासन के साथ-साथ समाज को भी जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है जिससे घरेलू हिंसा और बलात्कार के मामलों को लोकलाज के डर से दबाया न जाए।

भारत के अन्दर उपरोक्त घटनाएं देश के कोने-कोने से व्यक्तिगत कुंठित मानसिकता का परिणाम हैं इसके अलावा यहां पर इस तरह के संगठित अपराध भी होते रहे हैं जैसा कि 2017 में गठित हेमा कमिटी (मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में यौन शोषण के मामले) की रिपोर्ट लोगों के सामने आई हैं । 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े कानून बनाने के कई दावे किए गए। साल 2013 में केंद्र सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए निर्भया फंड बनाया, जिसका मकसद राज्यों में महिलाओं की सुरक्षा को पुख्ता करना था, मगर, पैरामेडिकल की स्टूडेंट से गैंगरेप के बाद पता चला की निर्भया फंड की 9 हजार करोड़ रुपये की धनराशि का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा भी सही से इस्तेमाल नहीं हो पाया हैं । 12 साल बाद जिस तरह कोलकाता अस्पताल में बलात्कार की घटना के बाद भारत के सभी राज्यों से रोज बलात्कार की घटनायें रिपोर्ट की जा रही है उससे पता चलता है की हम 12 साल पहले जहां थे आज भी वहीं पर हैं, स्थिति ज्यों-की-त्यों बनी हुई हैं । 

पितृसतात्मक समाज में महिलाएं

हाल ही में ओलम्पिक खेलों में अपना लोहा मनवा चुकी विनेश फोगाट ने कहा कि ‘‘बेटियां को पेट से ही जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है’’। विनेश की ये बात सच है कि लड़कियों को पेट से ही संघर्ष करना पड़ता है इसका मुख्य कारण हैं कि हम पितृसत्तात्मक समाज में जी रहे हैं जहां लड़कियों को दोयम दर्जे का माना जाता हैं और उसे जीवन जीने के लिए सामन्ती मूल्यों को ढोना पड़ता हैं जो इन मूल्यों को ढोने से मना करती हैं उन्हे समाज का बहिष्कार के साथ और न जाने क्या क्या झेलना पड़ता हैं? यह भी तथ्य है कि जो इन सामन्ती मूल्यों को ढो कर चल रही हैं वह खुद इन्ही मूल्यों से पीड़ित और ग्रसित हैं लेकिन जब तक वह इस बात को समझ पाती तब तक बहुत देर हो चुकी होती है जैसा कि 22 अगस्त मसूरी क्षेत्र गाजियाबाद में हुआ जहां एक शक्की पति अपनी पत्नी के मुंह पर तकिया रख कर तब तक बैठा रहा जब तक वह मर नही गई। 25-26 अगस्त, 2024 को महाराष्ट्र के संभाजी नगर में महिला डाक्टर ने इसलिए आत्महत्या कर लिया क्योकि पति उस पर शक करता था और फोन नंबर बदलने की बात करता था, वह 7 पेज के सुसाईड नोट में लिखती हैं कि आपने आत्मनिर्भर, महत्वाकांक्षी लड़की को आश्रित बना दिया मैं स्त्री विशेषज्ञ बनना चाहती थी। आप हमारे घर वालों से बात नहीं करने देते थे। वह आखिर में लिखती है ‘‘मुझे आपके हावी होने वाले स्वभाव से बहुत कुछ मिलता हैं इंसान को हावी नहीं होना चाहिए, मैं जीना चाहती थी, लेकिन शादी के बाद से हमारे बीच कुछ भी संभव नहीं था। मुझे कभी समझा ही नहीं, बस बंदिशों में रखा। इस परेशानी से तंग आकर मैं खुद को खत्म कर रही हूं। अच्छे से दिखो, अच्छे से रहो... और यदि तुमने कभी मुझसे थोड़ा भी प्यार किया है तो मुझे कसकर गले लगाओ और फिर चिता पर रखना। मुझे भूल जाओ और बाकी जिन्दगी खुशी से जियो।’’ अपने अंतिम पत्र में भी डाक्टर को सफाई देना पड़ रहा हैं और लिखती है- आपका संदेह खत्म नहीं होता। लगातार मेरे चरित्र पर संदेह करते रहे लेकिन देव शपथ के साथ कहना चाहती हूं कि मैं आपके प्रति ईमानदार थी, हूं और रहूंगी, मेरे किरदार में कुछ भी गलत नहीं था। 

हर जगह असुरक्षित

सवाल यह उठता है की महिलाएं कहां सुरक्षित हैं, घर में पिता, स्कूल में शिक्षक और सफाई कर्मचारी, पड़ोस में पड़ोसी, बस में ड्राइवर, ऑफिस में बॉस, कंपनी में मालिक, यहाँ तक की थाने में महिला सिपाही भी सुरक्षित नहीं हैं । यहाँ तक की जनता के प्रतिनिधि माने जाने वाले नेताओं के पास भी महिला सुरक्षित नहीं हैं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा 151 (16 सांसद और 135 विधायक) ‘जन प्रतिनिध’ महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित आरोपों का  सामना कर रहे हैं, इनमें से 16 पर (2 सांसद और 14 विधायक) बलात्कार का केस है। इनमें प्रज्वल रेवन्ना जैसे नेता भी हैं जिनका महिलाओं के साथ अत्याचार करने में भारत में ही नहीं दुनिया में भी एक रिकॉर्ड बना दिया हैं । आज महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं है। बेटियों को बचपन से सिखाया जाता है की संभल कर रहना चाहिए, बाहर का माहौल बहुत खराब है। लड़कियों को देर रात अकेले नही घूमना चाहिए, माहौल अच्छा नही हैं । लड़कियों को किसी के साथ नही चलना चाहिए आज कल किसी पर भरोसा नही करना चाहिए। लड़कियों को छोटे कपड़े नही पहनना चाहिए, पुरुष आकर्षित होते हैं। लड़कियां ज्यादा मेकअप करके निकलेंगी तो पुरुष छेड़ेंगे ही। बाहर जाओ, स्कूल जाओ तो रास्ते में किसी से बात मत करो। इस तरह के निर्देश अक्सर हमें घर में बचपन से मिलते रहे हैं और यह निर्देश देने में हमारी माताएं ही है जो कि पुरुष प्रधान समाज के बोझ को उठाती हुई हमें पाल-पोष रही होती हैं। मां चाहती है कि वह अपनी बेटियों को कहां सुरक्षा से रखे कि वह इस समाज में सुरक्षित अनुभव कर सके। 


इन खबरों के बीच हाल ही में रामपुर उत्तर प्रदेश से खबरें आ रही हैं एक प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका के साथ स्कूल निरीक्षक के दौरान सीएमओ द्वारा अश्लील बात करने पर शिक्षिका ने करारा जवाब दिया इस पर सीएमओ एस पी सिंह की मौखिक शिकायत पर स्कूल शिक्षिका को निलंबित कर दिया गया। शिक्षिका ने यह भी बताया कि ‘’अपने साथ होने वाले यौन-दुर्व्यव्हार के खिलाफ बोलने पर हो सकता है कल उसे भी ट्रक से मार दिया जाएं और एक सड़क दुर्घटना का रुप दे दिया जाएं।‘’ इस घटना का वहां के लोकल लोगो को पता चला तब शिक्षिका के साथ स्कूल के बच्चे और उनके माता-पिता खड़े हुए और सीएमओ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और टीचर का निलंबन रद्द करने की मांग की। इस घटना का जिक्र मैने दो कारणों से किया पहला अगर हम देखते है कि महिला को सेक्स आब्जेक्ट की तरह देखने वाले लोग हर जगह मिल जायेंगे, जरुरी है कि ऐसे लोगो की पहचान गली- मौहल्लें के स्तर पर की जाएं और छेड़खानी के मामले को भी गंभीरता से लिया जाएं । यौन-उत्पीड़न  के मामले की रिपोर्ट अगर लिखवाने जाओ तो ऐसे मामलों मे पुलिस का रवैया अक्सर टालमटोल का ही होता है, पुलिस का रवैया अक्सर समझा-बुझा कर रफा-दफा करने का होता है। हमारे देश में बहुत सारे यौन उत्पीड़न के मामलों में परिजन चुप्पी साध लेते है क्योकि ऐसे मामलों मे अक्सर जान पहचान वाले लोग शामिल होते है, और जो मामले पुलिस तक पंहुचते है उनमें दोषियों को सजा दिलाने में तत्परता नही दिखाई जाती। उल्टा महिला पर ही सवाल किये जाते हैं। बहुत सारे मामलों में पुलिस का रवैया पक्षपातपूर्ण होता है क्योकि यह भी सच है कि पुलिस पर राजनैतिक प्रभाव अधिक होता है अधिकांश बलात्कार ताकतवर लोगों द्वारा किया जाता है। ऐसा ही एक मामला अजमेर के यौन उत्पीड़न का था जिसमें डरा-धमका कर सौ महिलाओं का उत्पीड़न किया गया था, इस मामले में फैसला आने में 32 साल लग गए जब दोषियों को सजा दी गईं ऐसे बहुत सारे मामले है जिसमें पीड़िता को इंसाफ के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। इसलिए जरुरी है कि रोजमर्रा के जीवन में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव पर चर्चा की जाएं, कार्यस्थल से लेकर सड़कों पर होने वाले यौन-उत्पीड़न में महिलाओं के कपड़ों आदि को न बोलकर उत्पीड़न करने वाले पुरुष की ओर उंगली उठाई जाये।

देखा जा रहा हैं कि बलात्कार की घटना को भी वोट बैंक बनाने के लिए प्रयोग किया जा रहा हैं, जहां एक राज्य में दूसरी पार्टी की सरकार है तो वहां पर दूसरी पार्टी के लोग जोर-शोर से मुद्दे को उठाते हैं लेकिन वही विरोध करने वाली पार्टी के राज्य में जब बलात्कार होता है तो वह उस पर चुप रहना ही बेहतर समझती हैं । बलात्कार की घटना किसी राज्य और पार्टी की देन नहीं है यह पुरूष प्रधान की देन हैं जहां पर महिलाओं को एक वस्तु के रूप में देखा जाता हैं । उपरोक्त घटनाएं बताती हैं कि महिलाएं कहीं भी घर से सड़क तक, आफिस से अस्पताल तक, कोर्ट से लेकर थाने तक कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। वह तीन साल की अबोध बच्ची हो या 70 साल की वरिष्ठ नागरिक पुरुषों की नजर में हवस को पूरा करने की वस्तु दिखती है। इसलिए जरुरी है कि कम से कम जहां पर इस तरह की घटनाएं होती है वहां लोकल स्तर पर जनता एकजुट हो और विरोध करे, शासन-प्रशासन को जवाब देह बनायें। हम अपने घरों में अपने बच्चों और पुरुषों को बतायें की महिला कोई वस्तु नहीं है वह भी इंसान हैं जिसके पास तुम्हारे ही तरह दुनिया में घूमने -फिरने-बोलने की आजादी हैं। हमें ऐसे ‘जन प्रतिनिधि चुनने से बचने होंगे जो अपराधी और दुराचारी प्रवृत्ति के हों ।

०००












डॉ. अशोक कुमारी दिल्ली विश्वविद्यालय में अतिथि अध्यापन कार्य, नारिवादी सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय रूप से आवाज उठाती रही है ।

28 अगस्त, 2024

केरल फ़िल्म इंडस्ट्री में हेमा कमिटी की अनुशंसाएं लागू हो

तुहिन, असीम गिरी

नई दिल्ली,28 अगस्त 2024. क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम) ने केरल फिल्म इंडस्ट्री में यौन उत्पीडन की जांच के लिए बने " हेमा कमिटी" की रपट को पारदर्शी तरीके से लागू करने की मांग केरल सरकार से की।साथ ही केरल फिल्म इंडस्ट्री में यौन उत्पीडन के आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की मांग भी राज्य सरकार से की।

विदित हो कि केरल सरकार ने हेमा कमेटी का गठन तुरंत नहीं किया था। केरल में एक मशहूर अभिनेत्री के साथ यौन उत्पीड़न के बाद, WCC सदस्यों द्वारा फिल्म उद्योग में महिलाओं के खिलाफ शोषण और हिंसा को उजागर करने के लिए किए गए बहुत प्रयास के बाद ही हेमा आयोग का गठन किया गया था। रिपोर्ट 2019 में बनाई गई थी और इसे जारी होने में लगभग 5 साल लग गए। इससे भी बदतर यह है कि इस रिपोर्ट के जारी होने में देरी के कारण कई महिला कलाकारों को न्याय से वंचित किया जा रहा है। WCC सदस्यों द्वारा किए गए गहन प्रयास का ही नतीजा है कि यह रिपोर्ट अब सामने आ रही है। यह खुलासा हुआ है कि रिपोर्ट से कई पैराग्राफ और पेज छिपाए गए हैं।


इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद, कई प्रमुख अभिनेताओं पर आरोप लगे। पहला आरोप एक बंगाली अभिनेत्री  रीताभरी चक्रवर्ती ने रंजीत नामक एक बहुत प्रसिद्ध मलयाली निर्देशक के खिलाफ लगाया था । लेकिन आरोप के बाद, केरल  वाम मोर्चा सरकार के सांस्कृतिक और युवा मामलों के मंत्री साजी चेरियन द्वारा जारी किया गया पहला बयान पीड़िता के खिलाफ था और निर्देशक का समर्थन करता हुआ दिखाई दिया जो बहुत निराशाजनक है।  लेकिन आरोपों के बाद उन्होंने मीडिया से कहा कि उन्होंने रिपोर्ट पढ़ी ही नहीं, यह कितनी गैरजिम्मेदाराना प्रतिक्रिया है। दुर्व्यवहार के सबसे ज्यादा आरोप अब माकपा विधायक मुकेश पर लगे हैं।


जब यह रिपोर्ट पहली बार सामने आई थी, तब कहा गया था कि इस पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी। लेकिन कड़े हस्तक्षेप के कारण ही सरकार को जांच के लिए एक टीम नियुक्त करनी पड़ी।


सबसे बड़ी बात यह है कि केरल के कुख्यात "अभिनेत्री  पर यौन हमला मामले" की पीड़िता को अभी भी न्याय नहीं मिल पाया है, जिसे अपने ही एक सह-कलाकार से और भी बदतर शोषण और हमले का सामना करना पड़ा था, यह बात सरकार की विश्वसनीयता को खत्म करती है। इसलिए, क्या गारंटी है कि दूसरों को भी न्याय मिलेगा?

यहां सिर्फ केरल फिल्म इंडस्ट्री की बात नहीं है बॉलीवुड सहित देश के हर क्षेत्र में मर्दवादी  घोर महिला विरोधी मानसिकता के चलते महिलाओं को  हर पल असुरक्षा और हैवानियत के साए में जीना पड़ता है।कोलकाता में युवा डॉक्टर के खिलाफ  हुए दरिंदगी के बाद पूरे देश में आज बारह साल पहले निर्भया मामले की तरह महिला उत्पीड़न के खिलाफ जबरदस्त जागृति देखने को मिल रही है। यह भी तथ्य है कि सबसे ज्यादा महिला विरोधी  क्रूर अत्याचार, पूरे देश में पिछले दस सालों से अधिक समय से सत्तासीन संघी मनुवादी/ ब्राम्हणवादी फासीवादी ताकतों के राज में हो रहे हैं।  आरएसएस फासिस्ट ही  सबसे ज्यादा महिला विरोधी मर्दवादी हैं और मनुस्मृति आधारित हिंदुराष्ट्र बनाने के लिए कटिबद्ध हैं। जिस मनुस्मृति के  अनुसार महिलाओं को दलितों आदिवासियों और उत्पीड़ित वर्गों की तरह मानव का दर्ज़ा नहीं दिया गया है।

क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम) ,देश भर में महिला उत्पीड़न और घोर मर्दवादी सोच के खिलाफ ,पीड़िताओं के हक में न्याय की मांग कर रहे जन उभार के साथ मजबूती से खड़ा है।


तुहिन, असीम गिरी 

अखिल भारतीय संयोजकद्वय

क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम)

शेफ़ाली शर्मा की कविताएं

  


कहानी








चित्र 

पिकासो 



कहानियाँ सूक्ष्म जीवों की मानिंद

हमारे आसपास

हमारी देह के ऊपर

और भीतर रहीं

कमजोर पड़ते ही याद दिलाया

कि अब सुधारो अपना खान पान

या कोई दवा करो


लगभग हर जीव ने 

अपनी संतानों की कोशिकाओं में

सुरक्षित किया 

रंग, बनावट और चाल-ढाल में

एक जैसा बने रहने का राज़

केवल इंसानों ने सुरक्षित किए

अपने अनुभव

कहानियों की शक्ल में


कहानियों ने ही बनाया हमें

सबसे समझदार

सबसे होशियार।

०००

 सच और कहानी 


उसकी कहानी में मेरा

मेरी कहानी में उसका

गलत होना लाज़मी है


लेकिन

कहानी सुनना एक बात है

मान लेना दूसरी

तीसरी और सबसे ज्यादा ज़रूरी बात है

कहानी में सच को खोजना।

०००

एकमात्र 


कई ग्रह मिल कर

एक सौरमंडल

सात तारे मिल कर

एक सप्त ऋषि

और सात रंग मिल कर

एक इंद्रधनुष


एक होना कितना सुखद होता है

जब सभी मिलकर एक होना चाहते हों


पर कितना दुखदाई

जब कोई सबको हटा कर होना चाहता हो

एक

एकमात्र....

०००

इंद्रधनुष 


अपने स्वतंत्र अस्तित्व को बचाते हुए

एक रहने की

आख़िरी और पुरजोर कोशिश है

इंद्रधनुष


कोशिशें हमेशा खूबसूरत होती हैं

अनेक होते हुए एक रहना

काले या सफेद हो जाने से कहीं ज़्यादा

बेहतर है।

०००

चलते रहना होगा बेखौफ़ 


क्या तुम ये मान बैठे हो

कि सूरज रोज करता है सफर

पूरब से पश्चिम का

या तुम्हें विश्वास है उस पर जिसने

पहली बार 

पृथ्वी के घूमने की बात की थी ।


तर्क के साथ खड़े रहने वाले जानते हैं 

कि अंधेरे के समय में रौशनी तक

चलकर जाना होगा

जाना होगा वहाँ तक

जहाँ रौशनी पहुँचती हो ।


तर्क करते ये लोग निकल आते हैं 

सड़कों पर अंधेरे समय में 

ऐसे अंधेरे समय में जब 

साफ-साफ दिखाई दे भविष्य के रास्ते में उगी गाजर घास

जो न उखाड़ी तो

बोझिल हो जाएंगी साँसें 

अपने नाखूनों में अपनी ही चमड़ी भरी होगी ।


ये लोग सड़कों पर निकलकर चलते हैं 

चलते हैं कि 

न दब जाए कोई आवाज़ ,

सुरक्षित रहे अभिव्यक्ति 

इल्ज़ाम लगे भी तो 

सड़कों पर न हों फैसले ।


चलते हैं कि न सो जाए कोई भूखा

न लटके हों किसी पेड़ पर लाशों के फल

न मार दिया जाए कोई इंसान 

इंसान होने के लिए 

व्यवस्थापिकाएं संदेहों, शंकाओं से मुक्त हों ।


चलते हैं कि न भूल जाए कोई वादे

सवालों का डर बना रहे

डर बना रहे जनादेश का

चलते हैं कि आने वाली नस्लों को भी

बेखौफ़ चलना है सड़कों पर।

०००


नाम


मैं अपना नाम बदलकर फरहा रख लूं

तो कितनी मुसलमान हो जाउंगी 

कितनी हिंदू हो जाउंगी 

अगर राधा रख लूं

मारिया में कितनी ईसाइयत झलकती है

कितनी सिक्ख हो सकती हूं 

अगर दिलशाद हो जाऊं 


अब तक तो समझ चुके होगे कि

नाम बदलकर मैं नहीं

लोगों का नज़रिया बदलेगा


तो अगर किसी नाम को पढ़कर 

उस से कुछ खरीदने में दिक्कत महसूस करो

अपने नज़रिए से घृणा करना

कोशिश करना उसे बदलने की

०००

शुभ और अशुभ के बीच देवता


देवता सो रहे हैं 

सारे शुभ कार्य बंद हैं 

लेकिन बच्चे.....

बच्चे जन्म ले रहे हैं 


उसी दर से 

जिस दर से साल के किसी और वक्त 

जन्म लेते हैं 


इस से ज्यादा शुभ

इस पृथ्वी पर और क्या घटता होगा


सभ्यताओं का फलना-फूलना

कभी देवताओं के आधीन नहीं रहा

सभ्यताओं ने जन्म दिया देवताओं को 

सभ्यताओं के साथ फलते-फूलते रहे देवता


कभी सोचना

देवताओं के नाम पर की गई 

केवल एक हत्या

कितना बड़ा ख़तरा है 

और किसके लिए ख़तरा है।

०००

 बुलडोजर 


गलत करने वाले के पूरे परिवार को

गाँव से बाहर निकाल देते थे


हम

बड़ी देर में समझें

कि सज़ा केवल उसे देनी चाहिए 

जिसने गलती की हो


समझे तो देर में 

लेकिन भूले बहुत जल्दी


याद दिलाते ही

हमें याद आ गया

घृणा एक से नहीं 

उस के जैसे सभी से की जानी चाहिए 


उसके

पूरे परिवार 

पूरे समाज 

पूरी कौम से


और अब हमारे पास बुलडोजर है.......

०००



परिचय

नाम- शेफ़ाली शर्मा

जन्म- 28 अगस्त 1987

शिक्षा- एम.एस.सी. ,एम.ए.।

पुरस्कार - हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा वर्ष 2020 के श्रीमती माधुरी देवी अग्रवाल स्मृति पुनर्नवा नवलेखन पुरस्कार से पुरस्कृत।

कविता पाठ- आकाशवाणी छिंदवाड़ा, मुकुट बिहारी सरोज सम्मान, एकता परिषद के मंच से, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की संभावना श्रंखला, कलमप्रिया,   गिरिजा माथुर जन्म शताब्दी समारोह, पुनर्नवा पुरस्कार एवं सप्तपर्णी सम्मान समारोह, युवा प्रतिभा प्रोत्साहन मंच, छिंदवाड़ा द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन एवं मुशायरा,  याद-ए-अक्षत 2020। 

कविता संग्रह- साॅरी आर्यभट्ट सर, बोधि प्रकाशन 

साझा संग्रह- धरती होती है माँ- बोधि प्रकाशन। 

प्रकाशन- वागर्थ, समावर्तन, छत्तीसगढ़ मित्र, पाठ पत्रिका, साँझी बात, अट्टआहस, आर्यकल्प, आंचलिका, सुख़नवर, कलमकार, काव्य स्पंदन, साहित्यायन, मध्य प्रदेश विवरणिका, पहले-पहल, सुबह सवेरे दैनिक समाचार पत्र, लोकजतन, सत्यास्त्र समाचार पत्र, पत्रिका एवं दिव्य एक्सप्रेस में रचनाएँ प्रकाशित।

वर्तमान निवास- शहीद मेजर अमित ठेंगे वार्ड, जैन मंदिर के पास, शक्ति नगर रोड गुलाबरा छिंदवाड़ा

480001

9907762973

shefali_2887@yahoo.com

हरदीप सबरवाल की कविताएं


क्रम अनुसार 


चूंकि वो मुसलमान था 

इसलिए निशाना भी आसान था 

उसे पाकिस्तानी कहा गया

हां! कहीं एक पाकिस्तान था 


उसके बाजू में खड़ा था एक सिख 

उसकी वेशभूषा से रहा था दिख 

उसे खालिस्तानी कहा गया 

कहां! कोई खालिस्तान था 


पड़ोसी देश में वो हिन्दू था 

सबके निशाने का वो केंद्रबिंदु था 

उनके न्याय का मकसद ही 

उस काफ़िर को सजा देना था 


इलाका वो सिंहली बहुल था 

अफसोस कि वो तमिल था 

उस पर संसाधन हथियाने का दोष था 

इसलिए ही उसके खिलाफ रोष था 


चूंकि अमरीका में वो काला था 

सच में ही वो गुनाह करने वाला था

वो फिलिस्तीन में यहूदी भी था 

वो कश्मीर में पंडित भी था

रूस में वो यूक्रेनी रहा 

चीन में वो उइगर बन गया


वो सच में सार्वभौमिक रहा 

क्रम अनुसार वो जहां भी रहा 


वो जो भी था संख्या में कम था 

इसलिए दूसरे के निशाने में दम था...

०००

अम्माएं 

गुड़ की बनी चाय पीती थीं, 

और कहती थीं इससे सुगर नहीं बढ़ती, 

यूं अपने इस ज्ञान पर इतना ही भरोसा रखती थीं

सुनने वाले की सहमति असहमति जितना,


अंग्रेजी के शब्दों का कत्लेआम करती, 

और नाती पोतों के चेहरे पर बिखर जाती

ढेर सारी हंसी बनकर, 

इन अम्माओं के पास बातों की कमी नहीं थी, 


हर महीने पाकिस्तान के घर के पास के मासिक मेले से 

पंचतोलिया सोने के हार लेने से लेकर, 

चूल्हे के नीचे दबा कर आईं गहनों के ढेर की 

अमीर दास्तान से लेकर

सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए 

कतारों की तकलीफ़ बताते गिड़गिड़ाते किस्से तक, 


एक दोस्त की अम्मा 

शक करती थी, आते जाते दोस्तों पर, 

दिन भर गालियां बकती

कि दोस्त के चाचा को किसी ऐसे ही दोस्त ने 

नशे की आदत लगवा दी,

और हर दोस्त को वैसा ही समझती, 


अम्माएं जो घर में प्रेत सी भटकती,

अवांछित,

बहुओं की आंखों की किरकिरी बन, 

और बेटियों की आंखों के दर्द 


कई कई बार इसके विपरीत भी,

अम्माएं चाहे कितनी ही कंगाल दिखती थीं

घर आती जाती लड़कियों के हाथ में धरने को

किसी अजनबी शहर से आए अनजान रिश्तेदार के लिए भी,

जाने कौन सी पोटली से कुछ निकाल ही लाती, 


यूं देने को उनके पास कमी नहीं थी,

वो लुटाती रहती थीं हर आने जाने वाले पर

ढेर सारी मुस्कुराहटें, 

आशीर्वादों के गुच्छे, 

दुआओं की कतारें, 

नज़र उतारते हिलते हाथ, 


उनकी आंखों में उतरते भोलेपन के कायल होने लगते 

आने जाने वाले जब

बहुएं खीझ भरी टिप्पणी करती, 

और अम्माएं 

अपनी टीस को होले से होठों के नीचे दबा लेतीं 


अम्माओं की बातों की तरह ही 

उनके पास कमी नहीं होती ईश्वरों की, 

और उन अनगिनत ईश्वरों के लिए

अनगिनत प्रार्थनाओं की, 


जैसे कोई अंत नहीं था इन प्रार्थनाओं का

वैसे ही

खत्म नहीं होती, उनकी बीमारियां 

उनके रात भर खांसने की आवाजे, 

लगातार चलने वाले घुटनों के दर्द, 

आंखों की कम होती रोशनियां, 

कहानियों जैसी लंबी तकलीफों की दास्तानें, 


यूं तो

अम्माओं ने एक लंबी दुनियां देखी थी, 

अम्माएं कितना कुछ जानती थीं

फिर भी अम्माएं नहीं जान पाई

इतने ढेर सारे ईश्वरों के पास भी

उनकी ढेर सारी तकलीफों के हल नहीं थे…..

०००









चित्र 

पिकासो



अनंत 

इतनी कविताओं के लिखे जाने के बाद भी 

जरूरत रही कुछ और कविताओं की


इतनी धुनों पर कदमताल होते होते भी 

मचलते रहे पांव नई धुन पर थिरकने को


सारा सावन बरसती रही मेघ से बूंदे 

धरती फिर भी लबालब रही भीगने की ख्वाहिश से


लदे रहे फूलों से पूरी बहार में पेड़ हर ओर

नजर फिर भी भरी नहीं नए रंगों को खोजने से


स्मृतियों की ढेरों बातें सांझा करते वक्त 

कोशिश रही खूब सारी अन्य स्मृतियां खोजने की


इतने सुखद अनुभवों को जीने के बाद भी 

रही तलाश कायम कुछ नया अनुभव पाने की


कितने भी दर्शन लिखे जाए आदि और अंत के

इच्छाएं साथ साथ चलेंगी तलाश में अनंत की...

०००

खाई 

कॉलेज में तीनों गहरे दोस्त हैं, 

घर तक पहुंचते पहुंचते

उन में से दलित बन गया, 

दूसरा पिछड़ा, 

तीसरा बन जाता है सवर्ण, 

अब ये नहीं पता कि कॉलेज से उनके घर तक, 

कोई सड़क जाती है

या फिर खाई…..

०००




परिचय

नाम - हरदीप सबरवाल 

शिक्षा - MA (English) पंजाबी यूनीवर्सिटी पटियाला से

लेखन विधा- कविता, लघुकथा और कहानी

लेखन भाषा - हिंदी, इंग्लिश और पंजाबी

प्रकाशन 

हिंदी काव्य संग्रह "और कितने दुर्योधन" शब्दाहुति प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित

पंजाबी काव्य संग्रह " मनी प्लांट वरगा आदमी" कैलीबर प्रकाशन पटियाला से प्रकाशित 


 हिंदी, इंग्लिश और पंजाबी में तीन दर्जन से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई

Spectrum publishing house UK published a poetry book Faceless( English) 

अब तक ६ सांझा संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित 

अनुवाद - दविंदर पटियालवी के लघुकथा संग्रह उड़ान का पंजाबी से हिंदी अनुवाद ( बोधी प्रकाशन)   

२. राहुल सांकृत्यायन के नोवेल का हिंदी से पंजाबी में अनुवाद ( प्रकाशनाधीन) 


सम्मान और उपलब्धियां 

   २०१४ में उनकी कविता HIV Positive को Yoalfaaz best poetry competition में प्रथम स्थान मिला। 

2015 में उनकी कविता The Refugee's Roots को The Writers Drawer International poetry contest में दूसरा स्थान मिला. 

2016 मे उनकी कहानी "The Swing" ने The Writers Drawer short story contest 2016 में तीसरा स्थान जीता . 

प्रतिलिपी लघुकथा सम्मान 2017 में इनकी में तृतीय स्थान मिला.

Two times winner of 10 days poetry challange by poets in Nigeria


प्रतिलिपि कविता सम्मान 2019 से सम्मानित

पटियाला रेडियो पर कविताओं का पठन, 

लागोस के रेडियो पर भी इनकी कविता पढ़ी गई


पंजाबी लघुकथा की त्रैमासिक पत्रिका 'छिण' के सह संपादक

27 अगस्त, 2024

डर लग रहा है मुझे

 

मूल कन्नड: प्रो.एस.जी सिद्धरामाय्या

हिन्दी अनुवाद: डॉ.एन.देवराज


मुझे इसलिए डर नहीं लग रहा है कि

मैं मौत के मुंह में जा रहा हूँ, मुझे इसलिए डर लग रहा है कि

मुझमें मनुष्यत्व खो गया।


हर दिन नफरत की साजिश

रचने के षड्यन्त्र के बारे में।

मासूम   ज़िन्दगियों की बलि चढने के बारे में।





चित्र 

मुकेश बिजोले










जो न बोते है और न उगाते हैं

ऐसे लोगों को दाने का दाम न मालूम होने के बारे में।

जो पालन पोषण नहीं करते

उन्हें जीवन मूल्य न मालूम होने के बारे में।


मुझे डर लग रहा है कि मुझे इन खादिमों ने हमारे

बच्चों को गुलाम बना लिया इसके बारे में।

डर लग रहा है मुझे हमारे बच्चों के द्वारा

जो मनुष्यता का वह पाठ भूलने के बारे में, जो हम उन्हें पढ़ाते हैं


मुझे डर लग रहा है , नफरत के पाठ को ही 

देशप्रेम हो जाने के बारे में।

डर लग रहा है मुझे,  कुल्हाडी की  तेज धारा को ही

पेड़ के लिए मृत्यु बन जाने के बारे में।


मुझे डर लग रहा है  रक्षक के वेष में 

भक्षक के बडबडाने और

बाड़ द्वारा ही खेत के चरने के बारे में।


डर लग रहा है मुझे काव्य के मार जाने 

औरभाषा भ्रष्ट होने के बारे में।

मुझे डर लग रहा है  झूठ के ही सत्य का वेष

धारण  करने, संतवाणी होने के बारे में।

०००


कवि का संक्षिप्त परिचय 

प्रो.एस.जी सिद्धरामाय्या:-

कन्नड साहित्य के सुप्रतिष्ठित लेखक, कवि, नाटककार श्री प्रो.एस.जी सिद्धरामाय्या का जन्म १९.११.१९४६ को कर्नाटक के तुमकूर में हुआ। एम.ए के बाद सरकारी कॉलेज   चिक्कनायकनहल्ली में प्राचार्य के रूप में नियक्त हुए। अवकाश ग्रहण करने के बाद कर्नाटक सरकार ने कन्नड पुस्तक प्राधिकार का अध्यक्ष नियुक्त किया।(२००५-२००८) उसके बाद  कन्नड उन्नति प्राधिकार का अध्यक्ष बनाया गया(२०१५-२०१८)। उपलब्धियाँ: दो दर्जन से अधिक कविता संग्रह, पाँच से ज्यादा नाटक, दस से ज्यादा आलोचना ग्रंथ, एक यात्रा वृत्त आदि । अपनी साहित्य साधना  के लिए वे अनेकों सम्मानों से विभूषित किये गये।जिनमें  कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार, साहित्य सम्मान पुरस्कार, राज्योत्सव पुरस्कार, मास्ति पुरस्कार, पु.ति.ना.पुरस्कार, अम्मा पुरस्कार प्रमुख हैं।

अनुवादक का परिचय:

डॉ.एन.देवराज:-

 

कन्नड साहित्य के सुप्रतिष्ठित कवि, कहानीकार एवं अनुवादक डॉ.एन.देवराज का जन्म तीस सितम्बर को बेंगलूरु में हुआ। आपने बेंगलूरु विश्वविद्यालय से एम.ए प्रथम रैंक (दो स्वर्ण पदक साहित) और पीहेच.डी (डॉ.ए.पी.जे अब्दुल कलाम जी के करकमलों से) और एम.बी.ए एम.एस.विश्वद्यालय से  उपाधी प्राप्त की। एम.ए के बाद आप बेंगलूर के प्रसिद्ध क्राईस्ट कॉलेज में हिन्दी प्राध्यापक नियुकत हुए। और कुछ समय तक जैन विश्वविद्यालय, बेंगलूरु के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक रहें। इण्या कॉमिक्स नामक कंपनी के सलाहकार भी थे। दर्जनों विश्वविद्यालयों में राष्ट्रीय व्याख्यान दिये हैं। फिलहाल मोरार्जी देसाई आवासीय पाठशाला, बेंगलूरु में कार्यरत हैं।

उपलब्धियाँ:- दो कविता संकलन (कन्नड भाषा में), दो आलोचना (हिन्दी से अनूदित), तीन उपन्यास (हिन्दी से अनूदित) , एक नाटक (कन्नड से अनूदित), बीस से अधिक कहानियों का अनुवाद (कन्नड और हिन्दी भाषा में, तीस से ज्याद कन्नड के प्रसिद्ध कविताओं का अनुवाद आकाशवाणी, बेंगलूर के लिए( कन्नड और हिन्दी भाषा में) पाँच से ज्यादा हिन्दी एकांकी और निबन्धों का अनुवाद, डॉ. बाबू जगजीवनराम अध्ययन और संशोधन केन्द्र, मैसूर विश्ववदियालय , मैसूर के लिए श्रीमति इन्द्राणी देवी जी द्वारा संकलित बाबू जगजीवनराम जी के भाषणों का अनुवाद, दस से अधिक शरण साहित्य से संबंधित लेखों का अनुवाद आकाशवाणी बेंगलूर केन्द्र के लिए तीन सौ से ज्यादा हिन्दी पाठ, दस से ज्यादा भाषण आदि प्रमुख हैं। अपनी सुदीर्घ साहित्य-साधना के लिए अनेक सम्मानों से विभूषित किए गए जिनमें आकाशवाणी से अनुवाद के लिए ‘राष्ट्रीय पुरस्कार‘, जंगल तंत्रम उपन्यास के अनुवाद के लिए बेंगलूरु विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग से ‘लाल बहादूर शास्त्री‘ अनुवाद पुरस्कार, कर्नाटक रक्षणा वेदिके बेंगलूरु से ‘कुवेम्पु स्मारक साहित्य रत्न‘ पुरस्कार, ज्ञानद होम्बेलकु संस्था से ‘सावित्री बाई फुले‘ पुरस्कार, राष्ट्रीय चेतना परिवार  ‘गुरु द्रोणाचार्य‘ पुरस्कार प्राप्त हैं।

26 अगस्त, 2024

ग़ज़ा के कवि मोहम्मद मूसा की कविताएँ

 

1

मेरी बाहों में 

दो बच्चे रो रहे हैं 


मेरे ऊपर 

एक मकान का 

मलबा पड़ा है।












2

कृपया हमारे बारे में भूल जाएँ 


कृपया हमारे बारे में भूल जाएँ 

भूल जाएँ हमारे नाम,

हमारे जीने की आज़ादी,

रुपहले पर्दे पर ख़ून के धब्बे,

तकिए के नीचे दबी चीखें,

भूख की प्रतिध्वनियां,

मलबे के नीचे दफ़्न हमारी देह,

हमारी सड़कों पर बहता ख़ून,

हमेशा बनी रहती ख़ून की गंध,


भूल जाएँ कि हम एक जैसे दिखते भी हैं या नहीं,

कि हम एक सी भाषा बोलते हैं या नहीं,

कि हमउम्र हैं हमारे बच्चे या नहीं 

कि आप सो सकते हैं और हम नहीं,

कि आप सपनें देखते हैं और हम नहीं,

बस हमें भूल जाएँ।


क्या शुरुआती दुखों की गर्मियों में मरना बेहतर है या 

विलंबित हारों की सर्दियों में?

क्या हमें हमारे संप्रदाय की कब्रों में दफ़नाया गया है?

या यूँ ही छोड़ दिया गया है आवारा कुत्तों के खाने के लिए?


हमें भूल जाएँ बस,

क्योंकि हमें भी आपके होने की याद नहीं ...


3

अगस्त का आसमान ख़ून से रंगा है, 

मेरी पतली देह के बराबर एक गड्ढा है मेरे सामने


कहाँ चले गए मेरे दोस्त?

कहाँ चला गया मेरा घर?


मुझे युद्ध की हवा  

उस गड्ढे की ओर धकेल रही है

आख़िर क्यों?


4

प्रचुरता और ज़रूरत के बीच,

ऊँची इमारतों और आश्रय के बीच,

शांति और भयंकर तूफान के बीच,

अँधेरे में खड़ी हैं हमारी धूमिल आशाएँ,

इन तमाम विरोधाभासों के बीच ग़ज़ा खड़ा है गरिमा और जबरदस्त लचीलापन लिए।


हे फ़ीनिक्स, उठो अपने उपचारात्मक स्वभाव के साथ 

इस मुसीबतज़दा धरती के हिस्से को ढंक दो अपने पँखों से।


गलियाँ और सड़कें जो कभी जीवंत हुआ करती थीं,

अब वीरान और टूट फूट चुकी हैं,

बच्चों में डर गहरे बैठ चुका है,

माँएँ कमज़ोर होती यादों से चिपकी रहती हैं,

पिता अपनी कांपती घबराहट को छिपाते हैं।


फिर भी मैं एक बच्चे की तरह साये में खड़ा होता हूँ,

दुखों का अंत करने वाली एक सुबह की कामना करता हूँ।


परन्तु इस अनंत धारा में मिसाइलें

बिना चेतावनियों के

रात को और आकांक्षाओं को  बाँट देती है।


आठसौ दिन लम्बी इस अथक, निष्ठुर यात्रा के बीच,

शहर की दुर्दशा से राहत के लिए कोई अलार्म नहीं बजता,


हे फ़ीनिक्स थोड़े से दुलार के साथ फिर उड़ो,

और संकटग्रस्त क्षेत्र पर शांति की चादर ओढ़ा दो।

तुम्हारी उड़ान में, हम एक नया दिन देखते हैं,

जहाँ ग़ज़ा धुन निराशा से मुक्त है।


ग़ज़ा पोएटिक सोसाइटी


अंग्रेजी भाषा से अनुवाद : भास्कर

25 अगस्त, 2024

युद्ध के बारे में शंकरानंद की कविताएं

 


युद्ध के बारे में कुछ कविताएं 


एक

-----

युद्ध के बारे में अब 

कुछ पता नहीं चलता

कब शुरू हो जाता है युद्ध

कोई नहीं जान पाता यह


लेकिन युद्ध होता है और

धीरे-धीरे मारे जाते हैं इतने लोग

जितने किसी युद्ध में ही 

मारे जा सकते हैं।

०००












चित्र:-निज़ार अल बद्र  

दो

-----

युद्ध की घोषणा नहीं हुई और

युद्ध शुरू हो गया


जिनके पास हथियार थे

वे निहत्थों पर चलाने लगे गोलियां

गिराने रगे उनकी बस्ती पर बम

जो तरसते रहे उम्र भर

दो जून रोटी के लिए!

०००



तीन

-----

जिसके पास जमा होते हैं हथियार और बम

और मिसाइल

उसे इसी बात की फ़िक्र होती है कि

कब शुरू हो युद्ध


जिसके पास कुछ नहीं होता

वह चैन से सोता है!

०००


चार

-----

जब आकाश में गरजते हैं

बमवर्षक विमान

तब सारी चिड़िया 

लापता होती हैं


वे जानती हैं कि

अभी यहां 

गाने से कुछ नहीं होगा!

०००



पांच

-----

ऐसा कभी नहीं होता कि

युद्ध चल रहा हो और

खत्म हो जाए गोली


ऐसा कभी नहीं होता कि

युद्ध चल रहा हो और

बम की कमी हो जाए


युद्ध लड़ने के लिए 

सिपाही नहीं मिलें

ऐसा कभी नहीं होता!

०००


छः

-----

जो युद्ध का आदेश देते हैं

वे और कुछ नहीं करते


सिर्फ हथियार और सैनिक 

मुहैया करवाते हैं


युद्ध में खत्म होने के लिए!

०००



सात

-----

युद्ध तो युद्ध है

युद्ध में गोला-बारूद ही

अंतिम सहारा होता है


वहां जो आंखें होती हैं

वे बहता हुआ खून नहीं देखती


युद्ध तो युद्ध है और वहां

जो भी निशाना नहीं साधेगा और

गोली नहीं चलाएगा


वह किसी और की गोली से मारा जाएगा!

०००



आठ

-----

इधर आ रही है लाश और 

बह रहा है खून

जो लाश को संभाले हुए हैं

वे बतिया रहे हैं आपस में कि

यह जिसकी लाश है

वह बहुत ताकतवर आदमी था


जो भी हो 

लेकिन सिर्फ पांच छोटी-छोटी

गोलियां लगने से

मारा गया वह ताकतवर आदमी

अब उसकी लाश से 

कुछ काम नहीं होगा!

०००



नौ

-----

जब चल रहा होता है युद्ध

तब युद्ध करवाने वाले 

आराम कर रहे होते हैं

उनके बच्चे घरों में खेलते हैं और

उनकी पत्नी बुन रही होती है सपने


उनके घर के बाहर लगा होता है पहरा

ताकि कोई हमला न कर दे!

०००


दस

-----

आज तक जितने भी युद्ध हुए हैं

उनका लेखा-जोखा कहीं नहीं है


कोई नहीं बता सकता कि 

कितने लोग मारे गए और

कितनी बार तबाह हुई है 

बसी-बसाई दुनिया

युद्ध में


लेकिन अफसोस कि 

बहुत कम युद्ध सफल हुए हैं और

उसका फायदा मिला है बहुत कम

आम जनता को


शायद इसीलिए 

युद्ध की जरूरत है आज भी


अब अगर युद्ध लड़ा जाए तो

लड़ा जाए एकदम युद्ध की तरह और

उसकी घोषणा 

न तो तानाशाह करे न शहंशाह

न कोई राष्ट्रपति न कोई प्रधानमंत्री



युद्ध की घोषणा करे तो वह

जिसे आज तक 

युद्ध में कुछ नहीं हुआ हासिल और

जब वह युद्ध लड़े तो 

अपने हिसाब से लड़े

तभी बदल सकती है दुनिया


नहीं तो फिर कोई युद्ध नहीं

यूं ही युद्ध के नाम पर होती रहेंगी हत्याएं।

०००





ऐसे में भी

--------------

चारों तरफ

बरस रही है आग

उठ रहा है धुआं

चल रही है गोली

मर रहा है कोई


मैं देख रहा हूं एक बच्चे को

जो ऐसे में भी

रोंप रहा है फूल का गाछ!

०००




परिचय:- जन्म-८ अक्टूबर १९८३ को खगडिया जिले के एक गाँव हरिपुर में|

शिक्षा -एम०ए(हिन्दी),बी०एड०

 प्रकाशन-कथादेश,आजकल,आलोचना,हंस,वाक्,पाखी,वागर्थ,वसुधा,नया ज्ञानोदय,सरस्वती,कथाक्रम,परिकथा,पक्षधर,वर्तमानसाहित्य,कथन,उद्भावना,

बया,नया पथ, लमही,सदानीरा,साखी,समकालीन भारतीय

साहित्य,मधुमती,इंदप्रस्थभारती,पूर्वग्रह,मगध,कविताविहान,नईधारा,आउटलुक,दोआबा,बहुवचन,अहाजिन्दगी,बहुमत,बनासजन,निकट,जनसत्ता,विश्वरंग कविता विशेषांक,पुस्तकनामा साहित्य वार्षिकी,स्वाधीनता शारदीय

विशेषांक,आज की जनधारा वार्षिकी,कथारंग वार्षिकी,सब लोग,संडे नवजीवन,दैनिक जागरण,नई दुनिया,दैनिक भास्कर,जनसंदेश

टाइम्स,जनतंत्र,हरिभूमि,प्रभात खबर दीपावलीविशेषांक,शुभमसन्देश,जनमोर्चा,

नवभारत आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित|कुछ में कहानियां भी|

पिता,बच्चे,किसान और कोरोना काल की कविताओं सहित कई महत्वपूर्ण और चर्चित संकलनों के साथ `छठा युवा द्वादश`और `समकालीन कविता`  में कविताएं शामिल|

हिन्दवी,समालोचन,इन्द्रधनुष,अनुनाद,समकालीन जनमत,हिंदी समय,समता मार्ग,कविता कोश,पोषमपा,पहली बार,कृत्या आदि पर भी कविताएं|

अब तक तीन कविता संग्रह दूसरे दिन के लिए,पदचाप के साथ और इंकार की भाषा प्रकाशित|आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से कविताएं प्रसारित|साहित्य अकादमी,रज़ा फाउंडेशन,भारत भवन सहित कई महत्वपूर्ण आयोजनों में कविता पाठ|पंजाबी,मराठी,नेपाली और अंग्रेजी भाषाओं में कविताओं के अनुवाद भी|

कविता के लिए विद्यापति पुरस्कार,राजस्थान पत्रिका का सृजनात्मक पुरस्कार,मलखान सिंह सिसौदिया कविता पुरस्कार|


सम्प्रति - लेखन के साथ अध्यापन

संपर्क-क्रांति भवन ,कृष्णा नगर ,खगरिया -८५१२०४ 

मोबाइल -८९८६९३३०४९