मैंने चाहा तुम्हें, और ज़्यादा
अबू सेलमा
जब भी लड़ा हूँ तुम्हारे लिए
बढ़ी है मुहब्बत मेरे दिल में, तुम्हारे लिए
ज़्यादा, और ज़्यादा
चित्र रमेश आनंद
भला कौन सी ज़मीन है
महकती होगी जो
मुश्क और लोहबान की खुशबू से
और कौन सी ज़मीन है
महकती होगी जो
दुनियाँ के सबसे बेहतरीन इत्र से
लड़ता रहा हूँ मैं अपने वतन के लिए
शाखें, अब भी हरी हैं मेरी
ऐ प्यारे वतन फ़िलिस्तीन,
उड़ता हूँ आसमान में
सबसे बुलन्द पहाड़ी से भी ऊँचे
बढ़ी है मुहब्बत मेरे दिल में, तुम्हारे लिए
ज़्यादा और ज़्यादा
ऐ प्यारे वतन फ़िलिस्तीन,
तुम्हारा नाम ही काफ़ी है
धड़कनें तेज करने को
तुम्हारे बदन का ताँबई रंग
मात करता है ख़ूबसूरती को
देखकर तुमको
गूंजते हैं कानों में
पाक रूहों के कलाम
लहरा उठते हैं मेरी आखों में
तुम्हारी सरहद, तुम्हारे समुन्दर
क्या फूल उठे हैं नीबू इस बार
हमारे आखिरी आँसुओं से
चीड़ पर बैठी चिड़िया
नहीं उड़ पा रही
फिर से, उसी ऊँचाई तक
न सितारे रह गये पहरेदार
कारमेल की पहाड़ियों के
खाली खेत
मनाते हैं सोग, हमारे न रहने का
खाली हैं बाग़ीचे
लाल पड़ गईं, रोती हैं ज़ार ज़ार
अंगूर की पत्तियाँ, हमारे लिए
ऐ प्यारे वतन फ़िलिस्तीन,
रोक रक्खो अपने जाँबाज़ों को
शायद देखना बदा हो कुछ और देशनिकाले से उठ खड़ा होता है एक पक्का इरादा
ढंक लेती है विद्रोह की आग
हर रूह को
नहीं कर पायेगा आदमी जब तक खुद को आज़ाद
नहीं हो पायेगा कभी, अपना वतन आज़ाद
हर के पास है अपनी ज़मीन, अपना घर अपने वतन जैसा ख़ूनी इतिहास लड़खड़ाता हूँ
जिस भी रास्ते पर बढ़ता हूँ मैं
मिलती है धूल ही धूल करने को बदरंग चेहरा
पर, उतरता है पंख लगाये
जब कभी भी तुम्हारा नाम,
कानों में धुल जाता है शहद सा
तुम्हारे नाम का एक-एक हर्फ़
मेरी कविता
बोती है बीज प्यार का
हर शरणार्थी शिविर में
जल उठती है एक मशाल
रौंदी हुई, दरबदर ज़मीन पर
फ़िलिस्तीन नहीं होगा
इससे ज़्यादा ख़ूबसूरत, पाक और क़ीमती
जब भी लड़ा हूँ तुम्हारे लिए
बढ़ी है मुहब्बत मेरे दिल में, तुम्हारे लिए
ज़्यादा, और ज़्यादा
०००
कवि का परिचय
अबू सेलमा - 1907 में जन्म। असली नाम अब्दुल करीम-अल-कारमी। कवि इब्राहिम तूकान और अब्दुर्रहीम महमूद के साथ इन्हें भी आधुनिक फ़िलिस्तीनी कविता के आधार स्तम्भों में एक माना जाता है। इनके अनेक कविता-संग्रह उपलब्ध हैं जिनमें एक बच्चों के लिए भी है। 1978 के 'लोटस' पत्रिका पुरस्कार से सम्मानित । अपनी मृत्यु के कुछ ही पहले फ़िलिस्तीनी लेखक एवं पत्रकार संघ के अध्यक्ष चुने गए थे। प्रस्तुत कविता उनके संग्रह 'एक पंख - सबसे ऊँचे' से ली गई है।
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अनुवादक
राधारमण अग्रवाल
1947 में इलाहाबाद में जन्मे राधारमण अग्रवाल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम कॉम तक पढ़ाई की , उनकी कविताएं लिखने में और तमाम भाषाओं का साहित्य पढ़ने में रुचि थी। उन्होंने विश्व साहित्य से अनेक कृतियों का अनुवाद किया। 1979 में पारे की नदी नाम से कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। 1990 में ' सुबह ' नाम से उनके द्वारा अनूदित फिलिस्तीनी कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ । 1991 में फ़िलिस्तीनी कविताओं का संग्रह ' मौत उनके लिए नहीं ' नाम अफ्रो-एशियाई लेखक संघ के लिए पहल द्वारा प्रकाशित किया गया था।
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