14 अप्रैल, 2015

अजामिल जी की कविता

उस दिन
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अजामिल
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उस दिन उसने पांच हाथ की साडी पहनी
उस दिन उसने खुद को लपेटा -सब तरफ से
उस दिन उसने दिन में कई कई बार आईना देखा
उस दिन उसने कंधे पर खोल दिए लम्बे बाल
उस दिन खुद को छुपाते हुए सबसे 
वह इतराई इठलाई शरमाई

उस दिन पूरे समय गुनगुनाती रही इधर उधर
उस दिन उसने स्टीरियो पर दर्द भरा गीत सुना
उस दिन उसने अलबम में तस्वीरें देखी आँख भर
उस दिन सुबक सुबक रोयी -जाने क्या सोचकर

उस दिन उसे चाँद खूबसूरत लगा
उस दिन चिड़ियों की तरह आकाश में 
उड़ने को चाहा उसका मन
उस दिन उसने बालकनी में  खड़े होकर
जी भर देखा दूर दूर तक

उस दिन उसने सपने सहेजे
उस दिन उसने अंतहीन प्रतीक्षा की किसी के आने की
उस दिन उसने जीवन में पहला प्रेमपत्र लिखा
उस दिन उसने रुमाल पर बेलबूटे बनाए
और मगन हो गयी

उस दिन,हाँ उस दिन हमारे देखते देखते
बिटिया बड़ी हो गयी
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     अजामिल
     मूलनाम : आर्य रत्न व्यास
     जन्म: आज़ादी के बाद किसी एक दिन
     शिक्षा: एम्.ऐ इलाहाबाद विश्वविद्यालय
     काव्य संकलन: त्रयी (संपादक: डा .जगदीस गुप्त )शिविर : सम्पादन:विनोद शाही
आठवें दशक की सर्वश्रेष्ठ कविताएं सम्पादक :
डा.हरवंश राय बच्चन जो कुछ हाशिये पर लिखा है सम्पादक :अनिल श्रीवास्तव
औरतें जहां भी हैं अंजुमन प्रकाशन इलाहाबाद देश की लगभग सभी चर्चित पत्र पत्रिकाओं में कविताओ का प्रकाशन
पता : मीरपुर,इलाहाबाद 211003
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टिप्पणी:-

परमेश्वर फुंकवाल:-
एक नया जीवन ऐसे ही आरंभ होता है,  अचानक एक दिन बेटी बड़ी हो जाती है। एक संवेदित करती कविता।


सुरेन्द्र रघुवंशी:-
उस दिन अजामिल जी की बेटी के बड़े हो जाने के आत्मिक सुख, सपनों की उड़ान और  पिता के घर से विदा होने के विचार पर ही पीड़ा की तरलता में बह जाने की बेहद सुन्दर और स्वाभाविक कविता है।
        बेटी है तो घर है और सपने हैं सौंदर्य के साथ ।घर की ख़ुशी ,सफाई और बेल बूटे सिर्फ लड़की से ही हैं ।कविता इस अभिव्यक्ति में सफल हुई है । हार्दिक वधाई अजामिल जी ।
आपकी सृजन यात्रा के लिए मेरी अनंत शुभकामनाएं ।


पूर्णिमा पराजित:-
ऐसे ही इक दिन अचानक बडी हो जाती है बेटी,जब उसकी अपनी एक सपनों की दुनिया बन जाती है और वो भविष्य के ताने बाने बुनने लगती है ।बहुत सहज अभिव्यक्ति........ सुन्दर कविता।

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