25 जून, 2015

कहानी : सुल्ताना का सपना : रुकैया सखावत हुसैन

बेगम रुकैया के नाम से प्रख्यात रुकैया  सखावत हुसैन (1880-1932) प्रमुख स्त्रीवादी लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जानी जाती हैं. बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध के अविभाजित बंगाल में स्त्री-पुरुष समानता को लेकर किये गये उनके प्रयासों ने आंदोलनकारी भूमिका निभायी. उन्होंने मुस्लिम लड़कियों के लिए पहला स्कूल स्थापित किया, जो आज भी चल रहा है.
उनकी  कहानी 'सुल्ताना'ज़ ड्रीम' को पहला स्त्रीवादी यूटोपिया कहा जाता है. इस कहानी में उन्होंने एक ऐसे देश की फैंटेसी रची है, जहाँ स्त्रियों का शासन चलता है और सब पुरुष उसी तरह 'मर्दाने' में रहते हैं, जिस तरह हम स्त्रियों को 'जनाने' में रहते देखने के आदी हैं.

इसीलिए इस कहानी का अनुवाद करते हुए मुझे पाओलो फ्रेरे का एक कथन बार-बार याद आता रहा. अपनी पुस्तक 'उत्पीड़ितों का शिक्षाशास्त्र' में उन्होंने लिखा था : "संघर्ष की प्रारंभिक अवस्था के दौरान प्रायः हमेशा ही उत्पीड़ितों में मुक्ति का प्रयास करने के बजाय स्वयं उत्पीड़क अथवा 'उप-उत्पीड़क' बनने की प्रवृत्ति दिखाई देती है. ठोस अस्तित्वगत स्थिति से उत्पन्न अंतर्विरोधों ने उनकी सोच के ढाँचे को ही इस तरह अनुकूलित कर रखा होता है. आदर्श उनका मनुष्य बनना ही होता है, लेकिन वे 'मर्द' बनना चाहते हैं, जिसका मतलब है उत्पीड़क बनना...इस स्थिति में उत्पीड़ित लोग 'नये मनुष्य' को इस रूप में नहीं देख पाते कि वह उत्पीड़न से मुक्त होने की प्रक्रिया में इस अंतर्विरोध का समाधान करने से पैदा होगा."
000 संज्ञा उपाध्याय, अनुवादक
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सुल्ताना का सपना

एक शाम मैं अपने शयनकक्ष में एक आरामकुर्सी पर पड़ी थी और सुस्ताते हुए भारतीय स्त्री की दशा के बारे में सोच रही थी। मैं यकीन के साथ नहीं कह सकती कि मेरी आँख लग गयी थी या नहीं। लेकिन जहाँ तक मुझे याद है, मैं भरपूर जागी हुई थी। मैंने साफ देखा कि चाँदनी में नहाया आसमान हीरों जैसे हजारों तारों से जगमगा रहा था।

अचानक मैंने देखा, एक भद्र महिला मेरे सामने खड़ी थी। मैं नहीं जानती कि वह अंदर कैसे आयी। मैंने उसे अपनी मित्र सारा बहन समझ लिया।

‘‘सुप्रभात।’’ सारा बहन ने कहा। मैं मन ही मन हँसी, क्योंकि मैं जानती थी कि यह सुबह नहीं, बल्कि तारों भरी रात है। फिर भी, मैंने उन्हें जवाब दिया और पूछा, ‘‘आप कैसी हैं?’’

‘‘मैं ठीक हूँ, शुक्रिया! क्या तुम बाहर आओगी और हमारा उद्यान देखोगी?’’

मैंने खुली हुई खिड़की से एक बार फिर चाँद को देखा और सोचा कि इस समय बाहर जाने में कोई हर्ज नहीं है। नौकर-चाकर उस वक्त बाहर गहरी नींद सो रहे थे और मैं सारा बहन के साथ एक सुहानी सैर को जा सकती थी।
जब हम दार्जिलिंग में थे, मैं सारा बहन के साथ सैर को जाया करती थी। बहुत बार हम वहाँ के वनस्पति-उद्यानों में हाथ में हाथ डाले हल्की-फुल्की बातें करते टहलते थे। मैंने सोचा, शायद सारा बहन मुझे वैसे ही किसी उद्यान में ले जाने आयी हैं और मैंने सहर्ष उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उनके साथ बाहर निकल गयी।

चलते हुए मैंने आश्चर्यजनक रूप से पाया कि यह एक बढि़या सुबह थी। नगर पूरी तरह जाग चुका था और सड़कें हलचल भरी भीड़ से गुलजार थीं। मुझे यह सोचकर बड़ा संकोच हो रहा था कि मैं दिन के ऐसे खुले उजाले में सड़क पर चल रही हूँ। लेकिन वहाँ एक भी पुरुष दिखायी नहीं दे रहा था।

पास से गुजरते कुछ लोगों ने मेरा परिहास किया। हालाँकि मैं उनकी भाषा तो नहीं समझ पायी, लेकिन मैंने महसूस किया कि वे निश्चित ही मेरा मजाक उड़ा रहे हैं। मैंने अपनी मित्र से पूछा, ‘‘ये लोग क्या कह रहे हैं?’’

‘‘इन स्त्रियों का कहना है कि तुम बड़ी मर्दाना लगती हो।’’

‘‘मर्दाना?’’ मैंने कहा, ‘‘इससे उनका क्या तात्पर्य है?’’

‘‘उनका मतलब है कि तुम पुरुषों की तरह शर्मीली और संकोची हो।’’

‘‘पुरुषों की तरह शर्मीली और संकोची?’’ यह तो वाकई मजाक था। मैं यह देखकर बेहद घबरा गयी कि मेरी संगिनी सारा बहन नहीं, बल्कि कोई अजनबी स्त्री है। ओह, मैं कितनी मूर्ख थी, जो इसे अपनी पुरानी मित्र सारा बहन समझने की भूल कर बैठी!

चूँकि हम एक-दूसरे का हाथ थामे चल रहे थे, इसलिए उसने अपने हाथ में मेरी उँगलियों का काँपना महसूस कर लिया।

‘‘क्या बात है, प्रिय?’’ उसने बहुत स्नेह के साथ पूछा।

‘‘मुझे कुछ अजीब-सा लग रहा है।’’ मैंने खेदसूचक स्वर में कहा, ‘‘एक परदानशीं स्त्री होने के नाते मैं इस तरह अनावृत घूमने की आदी नहीं हूँ।’’

‘‘तुम्हें किसी पुरुष से सामना हो जाने का भय करने की जरूरत नहीं है। यह स्त्री-देश है, पाप और बुराई से मुक्त। पवित्रता यहाँ स्वयं विराजती है।’’

कुछ देर बाद मैं दृश्यावली का आनंद ले रही थी। वह सब वास्तव में बेहद भव्य था। हरी घास के एक टुकड़े को मैंने गलती से मखमल का गद्दा समझ लिया। ऐसा लग रहा था, मानो मैं एक नर्म कालीन पर चल रही हूँ। मैंने नीचे देखा और पाया कि रास्ता घास और फूलों से ढँका हुआ है।

‘‘कितना अच्छा है यह।’’ मैंने कहा।

‘‘तुम्हें पसंद आया?’’ सारा बहन ने पूछा। (मैंने उसे ‘सारा बहन’ कहना जारी रखा और वह मुझे मेरे नाम से संबोधित करती रही।)

‘‘हाँ, बहुत, लेकिन इन नाजुक और सुंदर फूलों को कुचलना मुझे अच्छा नहीं लग रहा।’’

‘‘चिंता न करो, प्रिय सुल्ताना। तुम्हारे चलने से इन्हें कुछ नुकसान नहीं होगा। ये सड़क के फूल हैं।’’

‘‘समूची जगह ही एक उद्यान जैसी लग रही है।’’ मैंने प्रशंसा के भाव से कहा, ‘‘हर पौधे को आप लोगों ने बड़ी कुशलता से व्यवस्थित किया है।’’

‘‘तुम्हारा कलकत्ता इससे भी सुंदर उद्यान बन सकता था, यदि तुम्हारे देश के लोग उसे ऐसा बनाना चाहते।’’

‘‘वे तो यह सोचते कि जब करने को इतने और काम पड़े हैं, तो बागवानी पर इतना ध्यान देना व्यर्थ है।’’

‘‘इससे बेहतर बहाना उन्हें न सूझता।’’ उन्होंने मुस्कराते हुए कहा।

मैं यह जानने को बेहद उत्सुक हो उठी कि आखिर पुरुष हैं कहाँ। वहाँ चलते हुए मुझे सौ से अधिक स्त्रियाँ मिल चुकी थीं, लेकिन पुरुष एक भी नहीं।

‘‘पुरुष कहाँ हैं?’’ मैंने उनसे पूछा।

‘‘अपनी सही जगह पर, जहाँ उन्हें होना चाहिए।’’

‘‘कृपया मुझे बताइए, ‘अपनी सही जगह’ से आपका क्या तात्पर्य है?’’

‘‘ओह, गलती मेरी है। तुम पहले यहाँ कभी नहीं आयीं, इसलिए तुम्हें हमारे तौर-तरीके कैसे मालूम होंगे। हम अपने पुरुषों को घर में बंद रखते हैं।’’

‘‘जिस तरह हमें जनाने में रखा जाता है?’’

‘‘हाँ, ठीक उसी तरह।’’

‘‘क्या मजेदार बात है।’’ मैं ठठाकर हँस पड़ी। सारा बहन भी हँसीं।

‘‘लेकिन, प्रिय सुल्ताना, किसी को हानि न पहुँचाने वाली स्त्रियों को बंद करके रखना और पुरुषों को खुला छोड़ देना कितना अन्यायपूर्ण है।’’

‘‘क्यों? हमारे लिए जनाने से बाहर निकलना सुरक्षित नहीं है, क्योंकि हम तो स्वाभाविक रूप से कमजोर हैं।’’

‘‘हाँ, जब तक पुरुष जहाँ-तहाँ सड़कों पर हों, तब बाहर निकलना सुरक्षित नहीं और न ही तब, जब भरे बाजार में कोई जंगली जानवर घुस आये।’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है।’’

‘‘मान लो, कुछ पागल पागलखाने से भाग निकलें और लोगों को, घोड़ों को तथा अन्य प्राणियों को तमाम तरह से तंग करने लगें, तो ऐसी स्थिति में तुम्हारे देश के लोग क्या करेंगे?’’

‘‘वे उन्हें पकड़ने और फिर से पागलखाने में बंद कर देने का प्रयास करेंगे।’’

‘‘दुरुस्त! और तुम यह भी नहीं मानती न कि समझदारों को कैद करना और पागलों को छुट्टा छोड़ देना बुद्धिमानी का काम है?’’

‘‘बिलकुल नहीं।’’ मैंने हल्के से हँसते हुए कहा।

‘‘तो बात दरअसल यह है कि तुम्हारे देश में ठीक यही किया जा रहा है! पुरुषों को, जो दुष्टता करते हैं या दुष्टता की किसी भी हद तक जा सकते हैं, उन्हें तो छुट्टा छोड़ दिया गया है और भोली-भाली निरीह स्त्रियों को जनाने में कैद कर दिया गया है। बाहर खुले छोड़ दिये गये उन अप्रशिक्षित पुरुषों पर कैसे भरोसा किया जा सकता है?’’

‘‘हमारे यहाँ के सामाजिक मसलों में न हम हस्तक्षेप कर सकती हैं और न कुछ कह सकती हैं। भारत में पुरुष ही देवता और स्वामी है। उसने सारी सत्ता और समस्त अधिकार स्वयं हथिया लिये हैं और स्त्रियों को जनाने में बंद कर दिया है।’’

‘‘तुम लोग स्वयं को बंद होने क्यों देती हो?’’

‘‘क्या करें, वे स्त्रियों से शक्तिशाली जो हैं।’’

‘‘शेर मनुष्य से अधिक शक्तिशाली है, लेकिन इससे वह समूची मनुष्य जाति पर आधिपत्य जमाने में समर्थ नहीं हो जाता। तुम्हारा अपने प्रति जो कर्तव्य है, उसकी तुमने उपेक्षा की है और अपने हितों की ओर से आँखें मूँदकर अपने स्वाभाविक अधिकारों को खो दिया है।’’

‘‘लेकिन, मेरी प्यारी सारा बहन, यदि सब कुछ हम ही स्वयं करेंगी, तो पुरुष क्या करेंगे?’’

‘‘क्षमा चाहती हूँ, लेकिन उन्हें तो कुछ करना ही नहीं चाहिए। वे किसी लायक नहीं हैं। उन्हें तो बस, पकड़ो और जनाने में डाल दो।’’

‘‘लेकिन क्या उन्हें पकड़कर चारदीवारी में डाल देना इतना आसान है?’’ मैंने कहा, ‘‘और यदि ऐसा कर भी लिया जाये, तो उनके तमाम राजनीतिक और व्यावसायिक काम भी क्या उनके साथ जनाने में चले जायेंगे?’’

सारा बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया। वे बस प्यार से मुस्करायीं। शायद उन्होंने सोचा कि मुझ जैसी कूपमंडूक से बहस करना व्यर्थ है।

तब तक हम सारा बहन के घर पहुँच गये। उनका मकान एक सुंदर, हृदयाकार बगीचे में स्थित था। वह नालीदार टीन की छत वाला एक बंगला था। हमारी किसी भी आलीशान इमारत की अपेक्षा वह कहीं अधिक ठंडा और सुंदर था। मैं बयान नहीं कर सकती कि वह कितना साफ-सुथरा और बढि़या साज-सामान से लैस था और कितने सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा-सँवरा था।

हम अगल-बगल बैठ गये। वे वहीं अपना कढ़ाई का काम ले आयीं और एक नया आकार काढ़ने लगीं।

‘‘तुम सिलाई-बुनाई जानती हो?’’

‘‘हाँ, जनाने में हमारे पास करने को और होता ही क्या है।’’

‘‘लेकिन हम अपने जनाने के सदस्यों पर उन्हें कढ़ाई का काम सौंपने तक का भरोसा नहीं करते!’’ उन्होंने हँसते हुए कहा, ‘‘क्योंकि पुरुष के भीतर सुई में धागा पिरोने तक का धैर्य नहीं होता।’’

‘‘यह सब आपने स्वयं किया है?’’ मैंने तिपाइयों पर सजे विविध प्रकार के कढ़ाईदार कपड़ों की ओर संकेत करते हुए पूछा।

‘‘हाँ।’’

‘‘आपको यह सब करने का वक्त मिल जाता है? आपको तो अपने दफ्तर का काम भी करना होता होगा, नहीं?

‘‘हाँ, लेकिन मैं सारे दिन प्रयोगशाला में ही नहीं लगी रहती। मैं दो घंटे में अपना काम पूरा कर लेती हूँ।’’

‘‘दो घंटे में! ऐसा कैसे कर लेती हैं आप? हमारे यहाँ तो अफसर, जैसे कि न्यायाधीश, रोज सात घंटे काम करते हैं।’’

‘‘मैंने उनमें से कुछ को काम करते देखा है। क्या तुम्हें लगता है कि वे पूरे सात घंटे काम करते हैं?’’

‘‘यकीनन करते हैं।’’

‘‘नहीं, प्यारी सुल्ताना, नहीं करते। वे अपना वक्त धूम्रपान में गँवाते हैं। कुछ लोग दफ्तर के समय में दो या तीन चुरुट पीते हैं। वे काम के बारे में बातें ज्यादा बनाते हैं, करते बहुत कम हैं। मान लो, एक चुरुट आधे घंटे चलती है और एक पुरुष रोज बारह चुरुट पीता है; तो देखो, सिर्फ धुआँ उड़ाने में ही वह प्रति दिन छह घंटे बर्बाद कर देता है।’’

हमने बहुत-से विषयों पर बातचीत की और मैंने जाना कि वहाँ किसी प्रकार की महामारी नहीं थी और न ही वे हमारी तरह मच्छरों के काटने से पीडि़त थे। मुझे यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि स्त्री-देश में विरले घट जाने वाली दुर्घटनाओं में मर जाने के अलावा कोई भी युवावस्था में नहीं मरता।

‘‘क्या तुम हमारा रसोईघर देखना चाहोगी?’’ उन्होंने पूछा।

‘‘बड़ी खुशी से।’’ मैंने कहा और हम रसोईघर देखने गये। जब मैं वहाँ जा रही थी, पुरुषों को वहाँ से हट जाने के लिए कह दिया गया था। रसोईघर सब्जियों के एक सुंदर बगीचे में था। प्रत्येक बेल, टमाटर का प्रत्येक पौधा अपने में एक आभूषण की तरह था। मुझे रसोईघर में न धुआँ नजर आया और न कोई चिमनी। वह साफ-सुथरा और चमचमाता हुआ था। खिड़कियों को फूलमालाओं से सजाया गया था। वहाँ कोयले या आग का कोई चिह्न नहीं था।

‘‘आप लोग भोजन कैसे पकाते हैं?’’ मैंने पूछा।

‘‘सूर्य के ताप से।’’ वे बोलीं और साथ ही मुझे वे पाइप दिखाये, जिनके जरिये संकेंद्रित किया गया सूर्य का प्रकाश और ताप लाया जाता था। और मुझे सारी प्रक्रिया दिखाने के लिए उन्होंने उसी समय वहीं कुछ पकाया।

‘‘आपने सौर ऊर्जा संचय करने और उसका भंडारण करने की व्यवस्था कैसे की?’’ मैंने चकित होते हुए पूछा।

‘‘उसके लिए मुझे तुम्हें अपना थोड़ा-सा इतिहास बताना पड़ेगा। हमारी रानी ने तीस वर्ष पूर्व, जब वे तेरह वर्ष की थीं, उत्तराधिकार के रूप में गद्दी सँभाली। वे सिर्फ नाम की रानी थीं। वास्तव में प्रधानमंत्री देश पर शासन कर रहे थे।

‘‘हमारी भली रानी की विज्ञान में बहुत रुचि थी। उन्होंने आदेश जारी किया कि उनके देश की हर स्त्री को शिक्षित होना चाहिए। आदेश के अनुसार बहुत-से विद्यालय लड़कियों के लिए खोले गये और उन्हें सरकारी सहयोग दिया गया। स्त्रियों में शिक्षा का खूब प्रसार हुआ। बाल विवाह पर भी रोक लगा दी गयी। इक्कीस वर्ष की आयु से पूर्व किसी लड़की को विवाह करने की आज्ञा नहीं थी। तुम्हें बता दूँ कि इस परिवर्तन से पहले हमें सख्त परदे में रखा जाता था।’’

‘‘कैसी बाजी पलटी है!’’ मैंने हँसते हुए बीच में टोका।

‘‘लेकिन विभाजन अब भी वही है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘कुछ वर्षों में ही हमारे अलग विश्वविद्यालय बन गये, जिनमें किसी पुरुष को प्रवेश नहीं मिलता था।

‘‘हमारी राजधानी में, जहाँ हमारी रानी रहती हैं, दो विश्वविद्यालय हैं। इनमें से एक ने एक अद्भुत गुब्बारे का आविष्कार किया, जिसमें ढेर सारे पाइप जोड़े गये। नीचे से बँधे इस गुब्बारे को उन्होंने ऊपर आकाश में बादल-प्रदेश में तैरते रहने की व्यवस्था की और इसके जरिये वे वायुमंडल से जितना चाहे, उतना पानी खींच सकते थे। चूँकि विश्वविद्यालय के लोगों द्वारा पानी निरंतर खींचा जाता रहता था, इसलिए बादल घिर नहीं पाते थे। इस तरह योग्य महिला प्राचार्य ने वर्षा और तूफानों को पूरी तरह रोक दिया।’’

‘‘वाकई! अब मेरी समझ में आया कि यहाँ जरा भी कीचड़ क्यों नहीं है!’’ मैंने कहा। लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आया कि पाइपों में पानी जमा करके रखना कैसे संभव है। उन्होंने मुझे समझाया कि यह कैसे किया जाता है, लेकिन विज्ञान का मेरा ज्ञान इतना कम था कि मैं उनकी बात समझने में असमर्थ थी। फिर भी, वे बताती गयीं:

‘‘जब दूसरे विश्वविद्यालय को इसकी जानकारी मिली, तो वहाँ की स्त्रियाँ बेहद ईष्र्यालु हो उठीं और उन्होंने इससे भी बढ़कर कुछ असाधारण करने का प्रयास किया। उन्होंने एक ऐसे यंत्र का आविष्कार किया, जिसके जरिये वे जितनी चाहें, उतनी सौर ऊर्जा जमा कर सकती थीं। उन्होंने इस ऊर्जा का भंडारण करके रखा, ताकि औरों की जरूरत के मुताबिक इसे वितरित किया जा सके।

‘‘जिस समय स्त्रियाँ वैज्ञानिक शोध में लगी थीं, इस देश के पुरुष उस समय अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने में व्यस्त थे। जब उन्हें पता चला कि महिला विश्वविद्यालयों ने वायुमंडल से पानी खींचने और सूर्य से ताप संग्रह करने का सामर्थ्य पा लिया है, तो वे विश्वविद्यालयों की स्त्रियों पर खूब हँसे और इसका उन्होंने ‘भावुकतापूर्ण दुःस्वप्न’ कहकर मजाक उड़ाया!’’

‘‘निश्चय ही आप लोगों की उपलब्धियाँ असाधारण हैं! लेकिन मुझे यह बताइए कि आपने अपने देश के पुरुषों को जनानखाने में कैसे डाला? पहले आप लोगों ने उन्हें पकड़ा?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘यह तो संभव नहीं कि उन्होंने स्वेच्छा से अपनी स्वतंत्रता को त्याग दिया होगा और स्वयं को जनाने की चारदीवारियों में कैद कर लिया होगा! उन्हें निश्चित ही ताकत के बल पर परास्त करना पड़ा होगा।’’

‘‘हाँ, उन्हें परास्त किया गया।’’

‘‘किसने किया? महिला योद्धाओं ने?’’

‘‘नहीं, हथियारों के बल पर नहीं।’’

‘‘हाँ, यह तो हो नहीं सकता। पुरुषों के हथियार तो स्त्रियों के हथियारों से अधिक मजबूत होते हैं। तब फिर?’’

‘‘बुद्धि के बल पर।’’

‘‘उनका दिमाग भी तो स्त्रियों के दिमाग से अधिक विशाल और वजनी होता है। है न?’’

‘‘हाँ, लेकिन उससे क्या होता है? हाथी का दिमाग भी तो मनुष्य के दिमाग से बड़ा और वजनी होता है; फिर भी मनुष्य हाथी को जंजीरों में जकड़कर अपने हुक्म का गुलाम बना सकता है।’’

‘‘खूब कहा! लेकिन कृपया यह बताइए कि यह सब वास्तव में हुआ कैसे? मैं जानने को बेचैन हूँ!’’

‘‘स्त्रियों का दिमाग पुरुषों के दिमाग से कहीं अधिक तेज चलता है। दस वर्ष पूर्व, जब सैन्य अधिकारियों ने हमारे वैज्ञानिक आविष्कारों को ‘भावुकतापूर्ण दुःस्वप्न’ कहा था, कुछ युवा महिलाएँ उस टिप्पणी के जवाब में कुछ कहना चाहती थीं। लेकिन दोनों महिला प्राचार्यों ने उन्हें रोका और कहा कि उन्हें बोलकर नहीं, बल्कि अवसर मिलने पर कुछ करके इसका जवाब देना चाहिए। और उन्हें उस अवसर के लिए अधिक देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी।’’

‘‘बहुत खूब!’’ मैंने खुशी से ताली बजायी।

‘‘और अब वे अहंकारी पुरुष स्वयं भावुकतापूर्ण स्वप्न देख रहे हैं।

‘‘कुछ समय बाद ही पड़ोस के एक देश के कुछ विशेष लोगों ने हमारे यहाँ आकर शरण ली। किसी राजनीतिक अपराध के चलते वे संकट में थे। उनके राजा ने, जिसे शासन अच्छा चलाने के बजाय अपनी सत्ता की अधिक चिंता थी, हमारी दयालु रानी से कहा कि वे उन लोगों को उसके अधिकारियों को सौंप दें। रानी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, क्योंकि शरणार्थियों को लौटा देना उनके सिद्धांत के विरुद्ध था। इस इनकार के कारण राजा ने हमारे देश के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

‘‘हमारी सेनाएँ तुरंत उठ खड़ी हुईं और शत्रु से भिड़ने चल दीं।

‘‘लेकिन शत्रु उनके मुकाबले कहीं अधिक शक्तिशाली था। निस्संदेह, हमारे सैनिक बहादुरी से लड़े, लेकिन उनकी तमाम बहादुरी के बावजूद विदेशी सेना कदम-दर- कदम हमारे देश पर आक्रमण करने बढ़ी चली आ रही थी।

‘‘लगभग सभी पुरुष युद्ध पर चले गये थे; यहाँ तक कि सोलह वर्ष के एक भी लड़के को पीछे नहीं छोड़ गया था। हमारे अधिकतर योद्धा मारे गये, बाकियों को वापस खदेड़ दिया गया और शत्रु राजधानी में पच्चीस मील भीतर तक घुस आया।

‘‘देश को बचाने के लिए क्या किया जाये, इस पर सलाह करने के लिए बहुत-सी बुद्धिमान स्त्रियों की बैठक रानी के महल में बुलायी गयी।

‘‘कुछ ने सुझाया कि सैनिकों की भाँति लड़ा जाये; दूसरों ने इस पर आपत्ति करते हुए कहा कि स्त्रियों को तलवारों तथा बंदूकों से लड़ने का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है और न ही वे किसी अन्य हथियार से लड़ना जानती हैं। एक तीसरे समूह ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि स्त्रियाँ शारीरिक रूप से एकदम कमजोर हैं।

‘‘तब रानी ने कहा कि यदि आप लोग शारीरिक ताकत के अभाव में अपने देश को नहीं बचा सकतीं, तो बौद्धिक ताकत से यह काम कीजिए।

‘‘कुछ क्षण के लिए मृत्यु की-सी खामोशी छा गयी। महामहिम रानी ने फिर कहा, ‘‘यदि मेरी इज्जत और मेरा देश न रहा, तो मैं निश्चित ही आत्महत्या कर लूँगी!’’

‘‘तब दूसरे विश्वविद्यालय (जिसने सूर्य के ताप का संग्रह किया था) की प्राचार्या, जो मंत्रणा के दौरान खामोशी से कुछ सोच रही थीं, बोलीं कि हम लगभग हार चुके हैं और हमारे लिए बहुत थोड़ी ही उम्मीद बची है। लेकिन एक योजना है, जिसे वे आजमाना चाहती हैं और यह उनकी पहली तथा आखिरी कोशिश होगी। यदि वे असफल हो जाती हैं, तो सबके लिए आत्महत्या के सिवा कोई रास्ता बाकी नहीं रहेगा। सभी ने एक स्वर से प्रण किया कि चाहे कुछ भी हो जाये, हम स्वयं को गुलाम नहीं होने देंगे।

‘‘रानी ने सभी का हृदय से आभार व्यक्त किया और प्राचार्या से उनकी योजना आजमाने के लिए कहा।
‘‘प्राचार्या एक बार फिर खड़ी हुईं और बोलीं, ‘हम बाहर जायें, इससे पहले जरूरी है कि पुरुषों को जनाने में भेज दिया जाये। मैं परदे का खयाल करके ही यह प्रार्थना कर रही हूँ।’ ‘हाँ, निश्चय ही।’ महामहिम रानी ने कहा।

‘‘अगले दिन रानी ने सभी पुरुषों को बुलाकर उन्हें सम्मान तथा स्वतंत्रता की खातिर जनाने में चले जाने को कहा।

‘‘जिस कदर वे घायल और थके हुए थे, उन्हें रानी का यह आदेश वरदान की तरह लगा! उन्होंने नीचे तक झुककर प्रणाम किया और विरोध का एक भी शब्द कहे बिना जनाने में प्रवेश कर गये। उन्हें पक्का यकीन था कि अब इस देश के बचने की कोई उम्मीद नहीं।

‘‘तब प्राचार्या ने अपनी दो हजार शिष्याओं के साथ युद्ध के मैदान की ओर कूच किया। वहाँ पहुँचकर उन्होंने सूर्य के संकेंद्रित प्रकाश और ताप की किरणें शत्रुओं की ओर फेंकीं।

‘‘इतने अधिक ताप और प्रकाश को वे सह नहीं पाये। वे सब संत्रस्त होकर भागे। बदहवासी में उन्हें सूझ नहीं रहा था कि जला डालने वाले इस भीषण ताप को कैसे प्रभावहीन किया जाये। जब वे अपनी बंदूकें और गोला-बारूद छोड़कर भाग गये, तो उस सबको उसी सूर्य-ताप से जला दिया गया।

‘‘तब से किसी ने हमारे देश पर आक्रमण करने का प्रयास नहीं किया।’’

‘‘और तभी से आपके देश के पुरुषों ने जनाने से बाहर आने का कभी प्रयास नहीं किया?’’

‘‘नहीं, वे स्वतंत्र होना चाहते थे। कुछ पुलिस आयुक्तों और जिलाधीशों ने इस आशय के संदेश रानी के पास भेजे कि सैन्य अधिकारी अपनी असफलता के लिए निश्चय ही कैद में डाले जाने लायक हैं; लेकिन उन्होंने तो कभी अपने कर्तव्य की अनदेखी नहीं की, अतः उन्हें सजा नहीं दी जानी चाहिए। और उन्होंने उनके पद पुनः सौंप दिये जाने की प्रार्थना की।

‘‘महामहिम रानी साहिबा ने उन्हें एक परिपत्र भेजकर सूचित किया कि यदि उनकी सेवाओं की कभी आवश्यकता पड़ी, तो उन्हें बुला भेजा जायेगा, और यह कि तब तक वे वहीं रहें, जहाँ वे हैं।

‘‘अब जबकि वे परदा व्यवस्था के अभ्यस्त हो गये हैं और उन्होंने खुद को अलगाये जाने की शिकायत करना बंद कर दिया है, हम इस व्यवस्था को जनाना के बजाय मर्दाना कहने लगे हैं।’’

‘‘लेकिन चोरी या हत्या के मामले आप बिना पुलिस या न्यायाधीशों के कैसे निपटाते हैं?’’ मैंने सारा बहन से पूछा।

‘‘जब से मर्दाना प्रथा स्थापित हुई है, तब से अपराध और पाप यहाँ रहे ही नहीं। अतः हमें अपराधी को ढूँढ निकालने के लिए पुलिस और आपराधिक मुकदमा निपटाने के लिए न्यायाधीश की जरूरत नहीं है।’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है। यदि कोई बेईमानी करता भी होगा, तो आप लोग उसे खुद ही आसानी से सजा दे देती होंगी। आखिर जब आपने एक बूँद रक्त बहाये बिना एक निर्णायक विजय प्राप्त कर ली, तो अपराध तथा अपराधी से निपटने में आपको कोई खास कठिनाई नहीं होती होगी।’’

‘‘प्रिय सुल्ताना, अब तुम यहाँ बैठोगी या मेरी बैठक देखने चलोगी?’’

‘‘आपका रसोईघर ही किसी रानी की निजी बैठक से कम नहीं है!’’ मैंने खुशी से मुस्कराते हुए उत्तर दिया, ‘‘लेकिन अब हमें यहाँ से चलना चाहिए। पुरुष मुझे कोस रहे होंगे कि इतनी देर से मैंने उन्हें रसोई के कामकाज से दूर रखा हुआ है।’’ हम दोनों खूब हँसीं।

‘‘मेरे मित्र कितने खुश और चकित होंगे, जब मैं लौटकर उन्हें बताऊँगी कि सुदूर स्त्री-देश में स्त्रियाँ देश पर राज करती हैं और सभी सामाजिक मसलों को नियंत्रित करती हैं, जबकि पुरुषों को बच्चों की देखभाल करने, भोजन पकाने और सभी तरह का घरेलू काम करने के लिए मर्दाने में रखा जाता है; और यह कि खाना पकाना कितना आसान है कि पकाने में आनंद आता है।’’

‘‘हाँ, यहाँ तुम जो भी देख रही हो, उन्हें सब बताना।’’

‘‘कृपया मुझे यह बताइए कि आप लोग खेती कैसे करती हैं? खेत में हल कैसे चलाती हैं और कठिन शारीरिक श्रम वाले काम कैसे करती हैं?’’

‘‘हमारे खेत बिजली के साधनों द्वारा जोते जाते हैं। बिजली ही हमारे अन्य श्रमसाध्य कार्यों की भी चालक शक्ति है। अपने हवाई वाहनों को भी हम बिजली से ही चलाते हैं। हमारे यहाँ न रेलमार्ग है और न ही खडंजेदार सड़कें।’’
‘‘तभी यहाँ न सड़क दुर्घटनाएँ होती हैं और न रेल दुर्घटनाएँ।’’ मैंने कहा और पूछा, ‘‘क्या आप लोगों को कभी बारिश की कमी नहीं महसूस होती?’’

‘‘नहीं, जब से ‘पानी का गुब्बारा’ लगाया है, तब से कमी नहीं महसूस होती। तुमने वह बड़ा गुब्बारा और उससे जुड़े पाइप देखे ही हैं। उनकी सहायता से हम अपनी जरूरत के मुताबिक जितना चाहें, उतना बरसात का पानी खींच सकते हैं। और हमें बाढ़, मूसलाधार बारिश या तूफानों का सामना भी नहीं करना पड़ता। प्रकृति हमें जितना दे सकती है, हम वह सब प्राप्त करने में बेहद व्यस्त हैं। हम कभी बेकार नहीं बैठते, इसलिए हमें एक-दूसरे से झगड़ने का वक्त ही नहीं मिलता। हमारी महान रानी को वनस्पति विज्ञान से बेहद लगाव है। उनकी इच्छा है कि समूचे देश को एक भव्य उद्यान में बदल दिया जाये।’’

‘‘बहुत बढि़या विचार है। आप लोगों का मुख्य भोजन क्या है?’’

‘‘फल।’’

‘‘गर्मियों के मौसम में आप अपने यहाँ ठंडक के लिए क्या करती हैं? हमारे यहाँ तो गर्मियों में बरसात को स्वर्ग का वरदान मानते हैं।’’

‘‘जब गर्मी असह्य हो जाती है, तो हम जमीन पर कृत्रिम फव्वारों के जरिये ढेर सारे पानी का छिड़काव करते हैं। सर्दियों में हम कमरों को सूर्य के ताप से गर्म रखते हैं।’’

उन्होंने मुझे अपना स्नानघर दिखाया, जिसकी छत हटायी जा सकने वाली थी। वे जब चाहें, तब स्नान का आनंद ले सकती थीं। इसके लिए बस छत को (जो किसी डिब्बे के ढक्कन के समान थी) हटा देना होता था और फव्वारे के पाइप का नल घुमा देना होता था।

‘‘आप लोग कितने भाग्यशाली हैं!’’ मैं बोल उठी, ‘‘अभाव क्या होता है, आप जानते ही नहीं। क्या मैं पूछ सकती हूँ कि आप लोगों का धर्म क्या है?’’

‘‘हमारा धर्म प्रेम और सच्चाई पर आधारित है। हर किसी से प्रेम करना और पूरी तरह सच्चे रहना हमारा धार्मिक कर्तव्य है। यदि कोई स्त्री या पुरुष झूठ बोलता है, तो उसे...’’

‘‘मृत्युदंड दिया जाता है?’’

‘‘नहीं, मृत्युदंड नहीं। ईश्वर के बनाये प्राणी--विशेष रूप से मनुष्य--की हत्या में हमें कोई आनंद नहीं मिलता। झूठ बोलने वाले को सदा के लिए देश छोड़कर चले जाने और फिर कभी न लौटने को कहा जाता है।’’

‘‘क्या किसी अपराधी को कभी क्षमा नहीं मिलती?’’

‘‘हाँ, यदि वह सच्चे हृदय से पश्चात्ताप करे।’’

‘‘क्या आपको अपने संबंधियों के अतिरिक्त अन्य किसी पुरुष से मिलने की अनुमति नहीं है?’’

‘‘पवित्र संबंधों के अतिरिक्त किसी से नहीं।’’

‘‘हमारा पवित्र संबंधों का दायरा बड़ा सीमित है। यहाँ तक कि सगे ममेरे-चचेरे भाई-बहन के संबंध भी पवित्र नहीं हैं।’’

‘‘लेकिन हमारा दायरा बहुत विस्तृत है। बेहद दूर के रिश्ते का भाई भी भाई ही होता है।’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा है। आपके देश में पवित्रता का राज है। मैं आपकी भली रानी से मिलना चाहूँगी, जो इतनी दूरदर्शी हैं और जिन्होंने ये नियम बनाये हैं।’’

‘‘ठीक है।’’ सारा बहन ने कहा।

उन्होंने एक चैकोर तख्ते पर दो आसन कसे। तख्त में उन्होंने दो चिकने और चमकदार गोले जोड़े। मैंने पूछा कि ये गोले किसलिए हैं, तो उन्होंने बताया कि ये हाइड्रोजन के गोले हैं, जिनका उपयोग गुरुत्वाकर्षण बल से पार पाने के लिए किया जाता है। ये गोले अलग-अलग क्षमताओं वाले होते हैं। अलग-अलग वजन उठाने के हिसाब से इन गोलों का उपयोग किया जाता है। फिर उन्होंने हवाई कार में पंखनुमा दो पत्तियाँ कसीं। उन्होंने बताया कि ये बिजली से काम करती हैं। जब हम आराम से बैठ गये, तो उन्होंने एक घुंडी दबायी और पंखनुमा पत्तियाँ घूमने लगीं। हर क्षण उनकी गति तीव्र से तीव्रतर होती गयी। पहले हम धरती से छह-सात फुट ऊपर उठे और फिर उड़ चले। और जब तक मैं महसूस करती कि हमने उड़ना शुरू किया है, हम रानी के बाग में पहुँच चुके थे।
मेरी मित्र ने यंत्र की प्रक्रिया उलटकर हवाई कार को नीचे उतारा और जैसे ही कार ने जमीन को छुआ, यंत्र बंद हो गया और हम कार से उतर गये।

मैंने हवाई कार से देख लिया था कि रानी बाग में बने पथ पर अपनी चार वर्ष की नन्ही बिटिया और महल की दासियों के साथ टहल रही थीं।

‘‘अरे! तुम यहाँ!’’ रानी ने सारा बहन से कहा।

मेरा रानी से परिचय कराया गया और उन्होंने बिना किसी दिखावे के हार्दिकता के साथ मेरा स्वागत किया।

मैं बेहद आनंदित थी कि मेरी जान-पहचान रानी के साथ हो रही है। बातचीत के दौरान उन्होंने मुझे बताया कि अन्य देशों के साथ व्यापार करने की अनुमति अपने लोगों को देने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। ‘‘लेकिन,’’ उन्होंने जोड़ा, ‘‘उन देशों के साथ कोई व्यापार संभव ही नहीं, जहाँ औरतों को जनाने में रखा जाता है, जिसके चलते वे हमसे व्यापार करने नहीं आ सकतीं। और हमने पाया है कि पुरुष नैतिक रूप से कमतर होते हैं, इसलिए हम उनसे किसी प्रकार का लेन-देन पसंद नहीं करते। हम दूसरों की जमीन नहीं हथियाते, न हम हीरे के एक टुकड़े के लिए झगड़ते हैं, भले ही वह कोहिनूर से हजार गुना अधिक चमकदार क्यों न हो, और न ही हम किसी राजा से उसके मयूर सिंहासन के लिए ईष्र्या करते हैं। हम तो ज्ञान के समुद्र में गहरे गोते लगाते हैं और वे कीमती हीरे खोजने का प्रयास करते हैं, जो प्रकृति ने हमारे लिए रख छोड़े हैं। हम तो प्रकृति के उपहारों का यथासंभव आनंद उठाते हैं।’’

रानी से विदा लेकर मैंने दोनों प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों का दौरा किया। वहाँ उन्होंने मुझे अपने कुछ कारखाने, कुछ प्रयोगशालाएँ और पर्यवेक्षणशालाएँ दिखायीं।

इन दिलचस्प जगहों को देखने के बाद हम पुनः हवाई कार में सवार हो गये, लेकिन ज्यों ही वह चलनी शुरू हुई, मैं किसी तरह नीचे फिसल पड़ी और गिरने से चैंककर मैं अपने स्वप्न से बाहर आ गयी। और आँखें खोलने पर मैंने स्वयं को अपने शयनकक्ष में पाया, आरामकुर्सी में ही पड़े हुए!
०००रुकैया सखावत हुसैन
अंग्रेजी से अनुवाद: संज्ञा उपाध्याय
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टिप्पणियाँ:-

ध्वनि:-
ये संसार जो यहां लेखिका ने उकेरा है बहुत ही अदभुत है।
इसत्रियो के देश जो संकल्पना यहां उकेरी है बेहद अदभुत है।
सपने जैसी दिखती है।
पर मैं यहां कहना चाहुंगा कि आदमी और औरत दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।
सिर्फ पुरुषों का संसार कुरुप होगा।
सिर्फ सत्रियो का संसार भी नीरस होगा।
प्रकृति ने दोनों के एक दूसरे के लिए बनाया है
यहा लेखिका के कलपित देश में पुरुष मरदाने में ले चुके हैं।
वैसे लेखिका की कलपना बहुत बारिकी से उकेरी गयी है।

अलकनंदा साने:-
जिस तरह स्त्रियों को दबाकर रखना उचित नहीं , वैसे ही पुरुषों को भी नहीं . ये स्वप्न कथा भी है तब भी .....उसमें मनोरंजन का पुट भी नहीं है . यदि उसे सराहा जा सकता  है तो इसलिए कि पिछली शताब्दी में एक मुस्लिम महिला ने लिखा।

प्रज्ञा :-
वोक्स्टनक्राफ्ट सिमोन स्टुअर्ट मिल को पढ़ने के बाद और इन दिनों कृष्ण कुमार की चूड़ी बाज़ार में लड़की पढ़ते हुए अचानक यह कहानी किसी उपहार से कम नहीं। जो विचार के भीतर आवाजाही का पूरा मौका देती है। काफी पहले कथन में पढ़ी थी तब भी और आज भी उतनी ही सशक्त लगी। फैंटेसी दरअसल यथार्थ की अनन्त सम्भावनाओं की मौजूदगी का अयथार्थवादी शिल्प है।
कविता जी शुक्रिया।
छोटी बहन संज्ञा उपाध्याय के अनुवाद की लय कहानी को अनुवाद नहीं मूल सा ही प्रस्तुत करती है।

अशोक जैन:-
सुल्ताना का सपना
रुकैया सखावत हुसैन की बेहतरीन सपनों की दुनिया की अंग्रेज़ी कहानी का उतना ही बेहतरीन अनुवाद संज्ञा उपाध्याय द्वारा।

बहुत लम्बी कहानी पर उत्तम कहानी। साझा करने के लिए आभार।

नारी की दबी अभिलाषा कि वे पुरुषों पर राज्य करें। शायद यह पूरी होती नहीं दिखती और आज भी दिवा स्वप्न जैसी ही है। कम से कम बराबरी का दर्जा तो अवश्य मिले।

कल्पना की उड़ान और सपने ही नये आविष्कार की जननी होती है। कहानी में बहुत सारे आविष्कारों की कल्पना की है। बहुत सी कल्पनायें किसी न किसी रुप में विज्ञान के आविष्कार के रुप में सत्य साबित हुई हैं और बाकि के क्षेत्र में निश्चित काम चल रहा होगा।
कहानी में एक स्वर्गिक वातावरण की स्वर्णिम कल्पना की है और बहुत मन को भाई। पुन: आभार।

गरिमा श्रीवास्तव:-
अच्छी प्रस्तुति और अनुवाद भी।मैंने मूल बंगला पढ़ा था जिसका हिंदी अनुवाद  कोलकाता की प्रोफेसर ,जो राज्यसभा की 2बार सदस्य भी रहीं *डा चन्द्रकला पाण्डेय ने किया था।बृहत्तर पाठकीय समुदाय को रुकैया के बारे में बताने के लिए आभार।

मनीषा जैन :-
पहली बार रूकैया से रू ब रू होने का मौका मिला। जबरदस्त फैंटसी है। रोमांच है। सोलर ताप की कल्पना उन्होंने अपने समय में ही कर ली थी जिसका आज काफी प्रचार है। प्रज्ञा व संज्ञा जी तक आभार पहुँचे।

नयना (आरती) :-
बहुत उत्साहवर्धक कहानी,जहाँ स्त्री समुदाय अपनी पहचान के लिए आज भी संघर्षशील हैं,तब नारी की दबी अभिलाषा को शानदार और खासकर संतुलित  फैंटेसी के साथ शब्दों मे पिरोया जाना एक लेखक वर्ग के लिये प्रेरणा हैं,वरना एक दुसरे पर छींटा-कशी के अलावा कुछ हाथ नही आता."सुल्ताना का सपना"रुकैया सखावत हुसैन को पहली बार पढा. संज्ञा उपाध्याय जी द्वारा किया अनुवाद भी लयात्मक है.बधाई संज्ञाजी एंव बिजूका एडमीन को.

रूपा सिंह :-
जबरदस्त परिकल्पना ।रोहिणी अग्रवाल जी ने एक पर्चे में इसका जिक्र किया था तब पढ़ा खोज के।खूब बहसें करवाई थी जब मैं आर्ट्स फैकल्टी,डी.यू में पढ़ा रही थी।एक और सम्बंधित बात सामने आई थी जिसका जिक्र जरुरी लग रहा कि' लेफ्ट हैण्ड ऑफ़ डार्कनेस'नामक फिल की चर्चा भी तब हुई और सारगर्भित ये लगा कि उसमे ऐसे  ठन्डे प्रदेश की कथा है जहा उभयलिंगी रहते।सिर्फ प्रजनन के समेकोई एक साथी स्त्री कामना का वरण,भाव विशेष के साथ साथी को छुनेसे धीरे धीरे उसका लिंग परिवर्तन हो जाता है।बच्चे के दूध पीने की समाप्ति से उसकी लिंग में उसकी वापसी हो जाती है।बारी बारी से यह चक्र चलता है।

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