16 दिसंबर, 2018

परख तीस

मेरे शब्द जिन्दा लोगों के लिये!

गणेश गनी

शब्द ज़िन्दा होते हैं, इनमें अदभुत ताकत होती है, इनमें प्राण होते हैं और एक आत्मा भी। हमारे बुज़ुर्ग हमेशा हमें अपशब्द कहने से रोकते थे। उन्हें शब्द सत्ता और शब्दों की ताक़त का भान था। वो आशीर्वाद और अभिशाप के लिए प्रयोग किये जाने वाले शब्दों की ताक़त को जानते थे।




अतुल अंशुमाली




दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित सोलोमन द्वीप एक देश है जो एक हज़ार द्वीपों को मिलाकर बना है। सोलोमन द्वीपसमूह के आदिवासी समाज में एक अदभुत प्रथा का प्रचलन है। आदिवासी अभिशाप जादू का अभ्यास पेड़ सुखाने के लिए करते हैं। यदि एक पेड़ इतना बड़ा है कि कुल्हाड़ी या आरी से  काटना असम्भव है और काटना भी ज़रूरी है, तो आदिवासी उस पेड़ को घेर लेते हैं और गालियां देते हैं। वे नकारात्मक रूप से शाप देते हुए पेड़ पर चिल्लाते हैं। यह नकारात्मक ऊर्जा पेड़ की जीवन शक्ति को नुकसान पहुंचाती है, जिसके परिणामस्वरूप पेड़ 30 दिनों में मरकर जमीन पर गिर जाता है!

युवा कवि अतुल अंशुमाली शब्दों के महत्व को समझते हैं, इसीलिए कहते हैं कि उनके शब्द ज़िन्दा लोगों के लिए हैं। कवि के लिए सपनों का बड़ा महत्व है और यह भी कि सपनें अपनी जगह ढूँढ लेते हैं-

सपनों का होना
बहुत जरूरी है

अपनी जगह खुद ढूँढ लेते हैं सपनें
और जहाँ जगह ढूंढते हैं
वहां लगता है कि
इसी जगह तो इनका होना जरूरी है

यह वो जगह है जो
खाली ही दिखाई देती है
यह सपनों की अपनी जगह है।

अतुल ने इस कविता में  एक पंक्ति लिखकर हृदय जीत लिया कि यह सपनों की अपनी जगह है। ये सपनें उन ज़िन्दा लोगों के लिए हैं जिन्हें मरने से डर नहीं लगता।
युवा कवि की सोच और शब्दों की ताकत का अंदाज़ा आगे इसी कविता की कुछ और पंक्तियों को पढ़ने से हो जाता है-

सपनों का अधूरा रह जाना
मरने के ही बराबर होता है

इसलिए ढूँढ रहा हूँ
हर सपने के लिये एक नई कविता
और सोच रहा हूँ
बंदूको की जगह
कलम लिख दूँ
नए सपनों की विरासत में

इन दिनों
इन्कलाब के सपने लिये फिरता हूँ
शायद मुझे भी कोई गोली निशाने पर रखती है
मैं मर भी जाऊं तो मेरे सपने जिन्दा रहें

लोग बस सपने देखना शुरू कर दें फिर से
और जीना सीख जायें
उन गोलियों के खिलाफ
जिसने सबके नाम मौत चुन रखी है

मेरे सपने
हर उन गोलियों के खिलाफ
जिसने सपने देखने पर लगा रखी हैं बन्दिशें
मेरे शब्द उन जिन्दा लोगों के लिये
जिन्हें डर नहीं इन गोलियों से मर जाने का।

अतुल अंशुमाली ने दुरुस्त कहा कि लोग बस सपनें देखना शुरू कर दें फिर से। दरअसल व्यक्ति का जिंदादिल होना ज़रूरी है, तभी वो कविता का मर्म समझ सकता है। सपनों को ज़िंदा रखने के लिए कविता लिखना ज़रूरी है, यह बात कमाल की कही है।
कवि की दृष्टि में युद्ध के कई रूप हैं। एक युवा कवि जब कहता है कि युद्ध बचा रहेगा, तो सोचना पड़ेगा कि हम विश्व शांति और सद्भाव का अर्थ क्या समझते हैं-

हम न जीतेंगे कभी
और न ही हारेंगे
एक युद्ध के बाद
एक युद्ध बचा रहेगा!

नफरत
वहशत
भोग
सत्ता
सियासत
हकूमत
कत्ल
खून के नाम दर्ज होता रहेगा हमारा इतिहास।

हमारे भविष्य के लिये बची
रहेगी कोई लड़ाई
और हम कल भी लड़ेंगे
अपनी यह लड़ाई !

सत्ता और खून
भोग और सकून
हमें सब मिलेगा
एक इतिहास के नाम पर।

हम पूर्वजों को लेकर चलेंगे
वंश में, नस्ल में, खून में
और यही सब बचाने के लिये
लड़ेगे औरों की तरह
अपने लिये भी एक युद्ध!

अतुल अंशुमाली ने प्रेम पर एक कविता अलग और नए अंदाज़ में लिखी है। इन दिनों प्रेम पर अधिकतर पुराना स्टाइल ही परोसा जा रहा है। कवि कांच के आरपार देखता है प्रेम में-

कितने कच्चे
हो जाते हैं
कान्च जैसे
लोग प्रेम में
और दुनिया, समाज, वक्त उतना ही पत्थर

हमें फिर भी कान्च सा
बने रहना है
देखना है देह के आरपार
प्रेम में यही दुनिया खूबसूरत है

जीवन एक ऐसा बीज है
जिसे हर मौसम की फसल के लिए
बोकर
अगले मौसम के लिए रखना पड़ता है

यह कान्च जैसा प्रेम
जिसमें हम दोनों को
एक दूसरे के पार देखकर
खूबसूरत बने रहना है
और बचे रहना है
यह बीज सा जीवन
जिसे हम दोनो को
एक दूसरे के लिए बचाये रखना है
हर अगले मौसम के लिए

सुनो साथी
मेरा यह विश्वास है
हालात कभी सामान्य नहीं होंगे
मेरा विश्वास रखना
मैं कभी साथ नहीं छोडूंगा

तुम बनाये रखना यह विश्वास
बस बचाये रखना यह विश्वास
हर अगले मौसम के लिए।

अतुल अंशुमाली जीवन के प्रति बेहद सकारात्मक सोच रखते हैं। कवि अपनी आंखों में एक आकाश सा विस्तार रखता है। कवि यह विश्वास रखता है कि उसे घर लौटना है क्योंकि अभी सफ़र और बाकी है। यह सारी बातें साहित्य में कुछ अच्छा अच्छा घटने की आश्वस्ति है-

लौटना है घर
और वापसी
को भर देना चाहता हूँ सपनों से

मैं घर से निकला था
एक आकाश लिये बस

और मुझे नहीं पता था
मेरा आकाश
इस ब्रह्मण्ड में कहीं खो जाएगा

एक ख्वाब
मेरी ही पलक पर कहीं अटक जाएगा

हालांकि मेरी पूर्ण वापसी नहीं होगी
बस एक छुट्टी लेकर आऊंगा
कुछ दिन बाद फिर
नया आकाश लेकर आखों में  चलना है
और फिर कुछ दिन जीने के लिए
कितने ही दिन और मरना है!

अभी तो हर शब्द एक कविता है
अभी कविता को जिया कहाँ है
अभी तो बस लिखा है
कि आग है आदमी
और जलना है
कि पानी है आदमी
और बहना है
कि हवा है आदमी
और बिखरना है
कि सफर है आदमी
और चलना है।
000

गणेश गनी




परख उन्नतीस नीचे लिंक पर पढ़िए
https://bizooka2009.blogspot.com/2018/12/blog-post_9.html?m=1

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुतखूब सर
    ढेरों सारी सुभकामनाएं जमीन से जुड़कर रचना के लिए ।
    धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छी कविताओं पर बढिया कमेंट्री गणेश भाई की।

    जवाब देंहटाएं
  3. शुक्रिया गनी सर बिजूका में मेरी रचनाएँ और उसपर आपकी बेहतरीन समीक्षा जिसने कविताओ को और निखार दिया है, इन सबके साथ लाने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी समीक्षा, कवि और समीक्षक दोनों को बधाई

    जवाब देंहटाएं