शरद कोकास |
माँ मेरी ओर पीठ करके कभी नहीं सोई
बचपन
दरअसल सवालों का ही दूसरा नाम होता है । बचपन के सवालों में ऐसे अनेक सवाल होते हैं जिनके जवाब किसी के पास
नहीं होते । हम बड़े होकर भी उन सवालों के जवाब खोजते रहते हैं । न हमारे माँ बाप हमारे सवालों के जवाब दे पाते हैं, न
हम अपने बच्चोंको उनके सवालों के जवाब दे पाते हैं ।
वे
गणेशोत्सव के दिन थे । शहर में उत्सव का माहौल था ।जगह जगह गणेश प्रतिमाओं की
स्थापना, गाना
बजाना, सांस्कृतिक कार्यक्रम, शोर
शराबा । हम बच्चों के लिए तो यह उत्सव जैसे वरदान था ।
एक
जगह गणेश की प्रतिमा देखकर लौटते हुए मैंने माँ से पूछा मैंने " माँ, यह
गणेश जी हाथी के बच्चे हैं कि आदमी के ?"
मेरे
मासूम सवाल पर माँ को
हँसी आ गई ।" ऐसा सवाल तुम्हारे मन में कैसे आया क्यों ? वे न आदमी के बच्चे हैं
न हाथी के. वे तो देवता के बच्चे हैं ।" मैंने कहा " लेकिन दिखते तो आधे हाथी के हैं और आधे आधे आदमी
के ?"
माँ
ने कहा " देवता भी तो आदमी जैसे ही होते हैं । जैसे
मनुष्य वैसे उसके देवता । “ “ मतलब
हाथी के देवता हाथी जैसे होंगे ?” मैंने फिर सवाल किया । “दरअसल ऐसा नहीं है।“ मेरे सवाल पर माँ गंभीर हो गई
थी । इसके पीछे भी एक कहानी है । " माँ मुझे अक्सर खूब अच्छी अच्छी
कहानियाँ सुनाया करती थी , पुराण कथाएँ , महाभारत की कथा , रामायण की कथा । उनकी कथन शैली
इतनी अच्छी थी कि पूरी कहानी अच्छी तरह समझ में आ जाती थी महाराष्ट्र में वैसे भी
कविता पाठ की भांति सार्वजनिक कहानी पाठ की परंपरा है जिसे ‘ कथोपकथन’ कहते हैं ।
"एक बार क्या हुआ कि पार्वती जी स्नान करने जा
रही थी । सुबह का समय था । घर
मे कोई नही था । अब नहाने कैसे जाएँ तो उन्होंने किसी को दरवाजे पर बैठाना चाहा ताकि कोई भीतर
न आ पाये ।" माँ ने मेरे सवाल के जवाब में कथा कहना प्रारम्भ किया
"लेकिन माँ उनके भी बाथरूम में दरवाज़ा नही था
क्या ?" मैंने कहा । " उनके यहां अपने यहाँ के बाथरूम जैसा
जैसा परदा तो टंगा ही होगा ?
हम
लोग उस समय भंडारा के देशबंधु वार्ड में किराए के एक बहुत पुराने मकान में रहा
करते थे जिसमें बाथरूम नहीं था इसलिए पिछवाड़े आंगन में ही एक जगह घेरकर पर्दा
टांगकर बाथरूम बनाया गया था । लेट्रीन भी उन दिनों कच्ची हुआ करती थी ।
" तुम सवाल बहुत करते हो ।" मां ने हल्की
सी चपत लगाईं ।" हां हो सकता है, ऐसा ही कुछ रहा होगा । और फिर घर मे कोई नही
था ऐसे में कोई आ जाता तो ?
शंकर जी भी कहीं घूमने गये थे ।"
"ज़रूर मॉर्निंग वॉक पर गए होंगे ।" मैंने
कहा । माँ मुस्कुराई " हां वे तो रोज़ जाते ही थे, कैलाश पर्वत पर, अपने भक्त गणो की सुध लेने । उनके चेले चपाटे भी तो बहुत सारे थे । तो हुआ यह कि पार्वती जी को एक उपाय सूझा । उन्होंने अपने शरीर से मैल निकाला और उस मैल से एक बालक का शरीर बना दिया
और उसमें जान डालकर उसे दरवाजे पर पहरे के लिए बैठा दिया । "
"
एक मिनट मां” मेरे दिमाग में एक नया सवाल उमड़ घुमड़ रहा था । इसका
मतलब पार्वती जी कितने दिनों से नहीं नहाई थी जो उनके शरीर से इतना मैल निकला
जिससे एक बालक बन गया ?
माँ
हंसने लगी । उन्होंने कहा " हाँ इतना मैल तो नही होगा ..हो सकता है कुछ
मिट्टी विट्टी और मिलाई हो ।"
"अच्छा फिर क्या हुआ ?" उसमे जान कैसे डाली गई , उसके भीतर के अंग हार्ट लीवर
किडनी आदि कैसे बने जैसे तार्किक सवाल छोड़कर आगे का हाल
जानने की मेरी उत्सुकता बढ़ गई थी । "बस इसके बाद वे नहाने चली गई । थोड़ी देर
बाद शिवजी वापस आए । उन्होंने देखा कि उनके घर के दरवाजे पर एक बालक बैठा है । वे
भीतर जाने लगे तो उसने उन्हें रोका " मैं तुम्हें भीतर जाने नहीं दूंगा ।
शिव जी ने कहा "ऐसे कैसे नहीं जाने दोगे , यह
तो मेरा ही घर है । क्या नाम है तुम्हारा ? कौन
हो तुम ? तो
बालक ने कहा 'मेरा
नाम गणेश है । मेरी मां भीतर नहा रही है और उन्होंने कहा है कोई भी हो उसे भीतर नहीं आने
देना है ।
शिव
जी को लगा ज़रूर यह कोई मायावी है , अभी
मैं सुबह गया था तो यह नही था । उनको बहुत गुस्सा आया क्रोधी स्वभाव के तो वे थे
ही उन्होंने अपने त्रिशूल से झट उसकी गर्दन काट दी ।
"अरे बाप रे । "मैं चौंक गया ।"फिर
क्या हुआ?" मां ने कहा " बस इतनी देर में पार्वती
जी नहा कर आई । उन्होंने देखा कि उनके बेटे की गर्दन कटी हुई है । उन्होंने शिव जी
को असलियत बताई तो शिव जी बहुत पछताए । तो पार्वती जी ने कहा कोई बात नहीं प्रभु, अब
इसकी गर्दन वापस जोड़ दो । शिवजी ने कहा 'यह
गर्दन तो खराब हो गई है । चाहो तो इसकी जगह दूसरे किसी प्राणि की गर्दन जोड़ सकता हूँ ।' पार्वती
जी ने क्षण भर विचार किया और फिर कहा ..'जाओ तुम कहीं से भी इसके लिए गर्दन लेकर आओ
।"
"शिवजी ने अपने चेलों को आदेश दिया उनके सारे
गण किसी अन्य प्राणी की गर्दन लेने निकल गए । कुछ देर बाद एक गण समाचार लेकर आया .. प्रभु, एक जगह
एक हथिनी अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही है उसका ध्यान उसके बच्चे की ओर नहीं
है उसकी गर्दन काटी जा सकती है । बस शिवजी वहाँ पहुँचे और उन्होंने हथिनी के उस
बच्चे की गर्दन काट ली और उसे लाकर गणेशजी के धड़ से जोड़ दिया । तबसे गणेशजी धड़
आदमी का और सिर हाथी का हो गया ।"
गर्दन
काटे जाने की वीभत्स कल्पना से मेरा दिल दहल उठा लेकिन मैंने शीघ्र ही अपनी
भावनाओं पर नियंत्रण कर माँ से कहा "अच्छा
मां , इसीलिए
तुम कभी मेरी ओर पीठ करके नहीं सोती हो ना ।“
मेरे दिमाग की बत्ती तुरंत जल गई थी और मैं माँ कि ओर देख रहा था ।
"हाँ बेटा , यही कारण है । मां भावविव्हल हो गई उनकी
आँखों के आकाश में वात्सल्य के सितारे चमक उठे ... और “मेरा बच्चा” कहकर उन्होंने मुझे अपने सीने से चिपटा लिया ।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
बरसों
बीत गए इस बात को । आज भी मुझे याद आता है, बचपन में जब
तक मैं माँ के पास सोता रहा , मां
को कितनी भी तकलीफ हो मां पूरी पूरी रात एक ही करवट पर मेरी ओर मुँह करके ही सोती
थी।
पता
नहीं यह कहानी आपने सुनी है या नहीं लेकिन यह सब आपके साथ भी हुआ होगा। माँ की
ममता की बौछार में आप भी भीगे होंगे । आपको तो याद भी नहीं होगा जब आप बिस्तर गीला
कर देते थे , मां आपको सूखे हिस्से पर लिटाकर खुद गीले
हिस्से में लेट जाती थी । दुनिया की कोई भी मां कभी नहीं चाहती कि उसके बच्चे को
ज़रा सी भी तकलीफ हो ।
आज
सोचता हूँ क्या उस हथिनी मां के दुख को कभी कोई देवता समझ पाया होगा जिसके बच्चे
का शीश सिर्फ इसलिए काट लिया गया कि वह एक बार अपने बच्चे की ओर पीठ करके सो गई ? उसके बच्चे का शीश जिनके
धड़ पर लगा है आज वे देवताओं के देवता है लेकिन उस हथिनी माँ की किसीको याद है ?
पार्वती जी को अपने बच्चे की चिंता थी लेकिन वे खुद माँ होकर एक माँ
के दुःख को कैसे भूल गईं ? आज भी जाने कितनी माँओं के बेटे
युद्ध में मारे जाते हैं , दंगों में मारे जाते हैं या भीड़
द्वारा मार दिए जाते हैं उन माताओं की पीड़ा कोई समझ सकता है ? क्या जिन माताओं से उनके बच्चे छीन लिए जाते हैं उनके दुख को भी कोई समझ
पाता है ?
मैं
मां से यह बात भी कभी नहीं पूछ पाया आख़िर उस मां को ज़रा सी गलती की इतनी बड़ी सज़ा
क्यों मिली ? और यह भी कि क्या यह वाकई
गलती थी ?
कुछ
कुछ सवालों के जवाब जीवन भर नहीं मिलते ।
हृदयस्पर्शी और तार्किक भी
जवाब देंहटाएं❤️ सुंदर
जवाब देंहटाएं