आज अनुवाद के दिन आप सभी साथियो के लिए प्रस्तुत है बेन ओकरी द्वारा लिखित कविता और जीवन पर लिखे कुछ विचार जिनका अनुवाद किया है गीत चतुर्वेदी जी ने ।
आइये पढ़ते है ये कुछ बातें
और साथ ही आप सभी की प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा ।
कविता और जीवन
1
ईश्वर जानता है कि किसी भी समय के मुकाबले हमें कविता की जरूरत आज कहीं ज्यादा है। हमें कविता से प्राप्त होने वाले दुष्कर सत्य की जरूरत है। हमें उस अप्रत्यक्ष आग्रह की जरूरत है, जो 'सुने जाने के जादू' के प्रति कविता करती है।
उस दुनिया में, जहाँ बंदूकों की होड़ लगी हुई है, बम-बारूदों की बहसें जारी हैं, और इस उन्माद को पोसता हुआ विश्वास फैला है कि सिर्फ हमारा पक्ष, हमारा धर्म, हमारी राजनीति ही सही है, दुनिया युद्ध की ओर एक घातक अंश पर झुकी हुई है - हमें उस आवाज की जरूरत है, जो हमारे भीतर के सर्वोच्च को संबोधित हो।
हमें उस आवाज की जरूरत है, जो हमारी खुशियों से बात कर सके, हमारे बचपन और निजी-राष्ट्रीय स्थितियों के बंधन से बात कर सके। वह आवाज जो हमारे संदेहों, हमारे भय से बात कर सके; और उन सभी अकल्पित आयामों से भी जो न केवल हमें मनुष्य बनाते हैं, बल्कि हमारा होना भी बनाते हैं - हमारा होना, जिस होने को सितारे अपनी फुसफुसाहटों से छुआ करते हैं।
2
राजनीति की अपेक्षा कविता हमारे कहीं करीब है। वह हमारे लिए उतनी ही स्वाभाविक है जितना चलना और खाना।
जब हम जन्म लेते हैं, तो दरअसल श्वास और कविता की स्थितियों में ही जन्म लेते हैं। जन्म लेना एक काव्यात्मक स्थिति है - आत्मा का देह में बदल जाना। मृत्यु भी एक काव्यात्मक स्थिति है - देह का आत्मा में बदल जाना। यह एक चक्र के पूरा हो जाने का चमत्कार है - यह जीवन की न सुनी गई मधुरता का एक अपरिमेय चुप्पी में लौट जाना है।
जीवन और मृत्यु के बीच जो भी कुछ हमारा दैनंदिन क्षण होता है, वह भी प्राथमिक तौर पर काव्यात्मक ही होता है : यानी भीतरी और बाहरी का संधि-स्थल, कालहीनता के आंतरिक बोध और क्षणभंगुरता के बाह्यबोध के बीच।
3
राजनेता राज्य के हालात के बारे में बात करते हैं, कवि जीवन की बुनियादी धुनों में गूँजते रहने में हमारी मदद करते हैं, चलने के छंद में, बोलने की वृत्ताकार रुबाइयों में, जीने के रहस्यमयी स्पंदनों में।
कविता हमारे भीतर एक अंतर्संवाद पैदा करती है। यह हमारे अपने सत्य के प्रति एक निजी यात्रा का प्रस्थान होती है।
हम पूरी दुनिया से कविता की आवाजों को एक साथ ले आएँ, और अपने हृदयों को एक उत्सव में तब्दील कर दें, एक ऐसी जगह जहाँ स्वप्न पलते हों। और हमारा दिमाग सितारों की छाँव में अनिवार्यताओं की अकादमी बन जाए।
4
कविता सिर्फ वही नहीं होती जो कवि लिख देते हैं। कविता आत्मा की फुसफुसाहटों से बनी वह महानदी भी है, जो मनुष्यता के भीतर बहती है। कवि सिर्फ इसके भूमिगत जल को क्षण-भर के लिए धरातल पर ले आता है, अपनी खास शैली में, अर्थों और ध्वनियों के प्रपात में झराता हुआ।
5
संभव है कि प्राचीन युगों के त्रिकालदर्शी मौन हों, और अब हम उन विभिन्न तरीकों में कदाचित विश्वास न करते हों, जिनसे ईश्वर हमसे या हमारे माध्यम से बोला करता था। लेकिन जिंदा रहने का अर्थ है कि हम कई सारे दबावों के केंद्र में उपस्थित हैं - समाज की माँग के दबाव, अपने होने के बिल्कुल अजीब ही दबाव, इच्छाओं के दबाव, अकथ मनःस्थितियों और स्वप्नों के दबाव और इस नश्वर जीवन के हर प्रवाह के बीच शक्तिशाली हो जाने की अनुभूतियों के दबाव।
6
हम अपने मतभेदों पर बहुत ज्यादा ध्यान देते हैं। कविता हमें, हमारे यकसाँपन के अचंभे की ओर ले आती है। यह हमारे भीतर विलीन हो चुके उस बोध को फिर से जगा देती है कि अंततः हम सब एक अनंत परिवार के ही हिस्से हैं और उन अनुभूतियों को एक-दूसरे से साझा कर रहे हैं, जो नितांत हमारे लिए अद्वितीय हैं, और उन अनुभूतियों को भी, जो सिर्फ हमारी नहीं, दरअसल हर किसी की हैं।
हमें राजनीति की अपेक्षा कविता की अधिक आवश्यकता है, लेकिन हमें कविता की संभावनाओं में वृद्धि भी करते रहना होगा। कविता अनिवार्यतः दुनिया को बदल नहीं देगी। (अत्याचारी भी कई बार कवि-रूप में जाने जाते हैं, कहना चाहिए कि बुरे कवि के रूप में।) जब तक कविता हमारी बुद्धि को सवालों के दायरे में भेजती रहेगी, हमारी मुलायम मनुष्यता को गहरे से छूती रहेगी, तब तक वह हमेशा सौंदर्य का तेज बनी रहेगी, भलाई का वेग बनी रहेगी, तमंचों और नफरतों के शोर को धीरे-धीरे शून्य करती हुई।
7
कविता की असाधारणता का कारण बहुत स्पष्ट है। कविता उस मूल शब्द का वंशज है, जिसे हमारे संतों ने सृष्टि की उत्पत्ति का कारक माना है।
कविता, अपने उच्चांक पर, सृष्टि की सर्जनात्मक शक्ति को अपने भीतर जीवित रखती है। वे सभी चीज़ें, जिनके पास आकार होता है, जो परिवर्तित होती हैं, जो अपना कायांतरण कर लेती हैं - कविता उन सभी चीजों का सशरीर अवतार है। शब्द भी कैसी मिथ्या है न! शब्द का वजन कौन माप सकता है, भले एक पलड़े में आप सत्य का हल्का पंख रख दें, दूसरे में शब्द - क्या वैसा संभव है? फिर भी हृदय के भीतर शब्दों का कितना वजन होता है, हमारी कल्पनाओं, स्वप्नों में, युगों-युगों से चली आ रही अनुगूँजों में, उतने ही टिकाऊ जितने कि पिरामिड। हवा से भी हल्के होते हैं शब्द, फिर भी उतने ही रहस्यमयी तरीके से चिरस्थायी, जितना कि जिया गया जीवन। कविता हमारे भीतर की देवतुल्य उपस्थितियों के प्रति एक संकेत है और हमें अस्तित्व के उच्चतम स्थानों तक ले जा एक गूँज में बदल जाने का कारण बनती है।
8
कवि आपसे कुछ नहीं चाहते, सिवाय इसके कि आप अपने आत्म की गहनतम ध्वनि को सुनें। वे राजनेताओं की तरह आपसे वोट नहीं माँगते।
सच्चे कवि सिर्फ यही चाहते हैं कि आप इस पूरी सृष्टि के साथ किए गए उस अनुबंध का सम्मान करें, जो आपने इसकी वायु के अदृश्य जादू से अपनी पहली साँस खींचते समय किया था ।
परिचय
जन्म : 15 मार्च 1959, नाइजेरिया
भाषा : अंग्रेजी
विधाएँ : उपन्यास, कहानी, कविता, निबंध
मुख्य कृतियाँ
उपन्यास : Flowers and Shadows, The Landscapes Within, The Famished Road, Songs of Enchantment, Astonishing the Gods, Dangerous Love, Infinite Riches, In Arcadia, Starbook
कहानी संग्रह : Incidents at the Shrine, Stars of the New Curfew, Tales of Freedom
कविता संग्रह : An African Elegy, Mental Fight, Wild
निबंध संग्रह : Birds of Heaven, A Way of Being Free, A Time for New Dreams
सम्मान
मैन बुकर पुरस्कार, कॉमनवेल्थ राइटर पुरस्कार, अगा खान पुरस्कार, गार्जियन फिक्सन पुरस्कार, क्रिस्टल सम्मान (वर्ल्ड इकनोमिक फोरम द्वारा) तथा अन्य
गीत चतुर्वेदी
परिचय
जन्म : 27 नवंबर 1977, मुंबई, भारत
भाषा : हिंदी
विधाएँ : कविता, कहानी
मुख्य कृतियाँ
कविता संग्रह : आलाप में गिरह
कहानी संग्रह : सावंत आंटी की लड़कियाँ, पिंक स्लिप डैडी
अनुवाद : चिली के जंगलों से (पाब्लो नेरुदा का गद्य), चार्ली चैपलिन (आत्मकथा) सहित दुनिया भर के अनेक शीर्ष कवियों की कविताओं का हिंदी अनुवाद
सम्मान
भारत भूषण अग्रवाल सम्मान
प्रस्तुति -
-तितिक्षा-
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टिप्पणियाँ:-
मनचन्दा पानी:-
कविता और जीवन,
कविता सिर्फ वही नहीं होती
और कविता की असाधारणता अति प्रिय लेख लगे। पढ़वाने ले किये धन्यवाद।
किसलय पांचोली:-
अति सुन्दर व्याख्या।
कविता_मनुष्यता के भीतर बहतीआत्मा की नदी!
जन्म और मृत्यु _जीवन की दो काव्यात्मक स्थितियाँ !
हमारी सांसों के प्रकृति से अनुबन्ध के प्रति सम्मान करना सिखाती है कविता।
शिशु पाल सिंह:-
कविता की सार्थकता और भविष्य के खतरों से अगाह करती हुई ये कविताएँ जीवन का दार्शनिक पहलू भी प्रस्तुत करती हैं।उच्च कोटि की कविताओं से परिचय कराने के लिए धन्यवाद।
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