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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

30 सितंबर, 2018

धर्मनिरपेक्षता बनाम हिन्दुज्म - एक संघर्ष
उदय चे

उदय चे

भारत के संविधान की प्रस्तावना कहती है कि-
       "हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए,
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा
इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"


           प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता

            ये शब्द सिर्फ शब्द नही है। इन शब्दों का बहुत व्यापक अर्थ है। इन शब्दों को संविधान में शामिल करने के लिए बहुत संघर्ष हुआ है। संघर्ष की एक तरफ जहां इन शब्दों को सविधान में शामिल करने के लिए मजदूर, किसान, महिला, अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी, प्रगतिशील बुद्विजीवी, कलाकार, लेखक खड़े थे वही दूसरी तरफ इनके खिलाफ, सामन्तवादी, राजशाही के समर्थक, फासीवादी, हिंदुत्वादी, जातिवादी खड़े थे।
जीत धर्मनिरपेक्ष मेहनतकश आवाम की हुई क्योंकि इस आवाम ने ही गुलामी की जंजीरे तोड़ने के लिए कुर्बानियां दी थी। देश के इस आवाम का आजादी का सपना सिर्फ अंग्रेजो से आजादी ही नही था, सामन्तवाद औऱ राजशाही जिनका आधार ही जातीय औऱ धार्मिक शोषण पर टिका था, से भी आजादी का सपना था। उसी सपने औऱ संघर्ष की कुछ झलक संविधान में इन शब्दों में निहित है।

लेकिन क्या जमीनी स्तर पर भारत का संविधान काम कर रहा है?
क्या देश इतने सालों बाद भी लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्ष राज्य बन पाया है? क्या संविधान में निहित विचार, अभिव्यक्ति, धर्म की उपासना को लागू कर पाया है?
भारत के संविधान को लागू करवाने वाली शक्तियां भारत के सविधान को लागू करने में जानबूझकर फैल हुई। क्यों?
संविधान के लागू होने से अब तक जितनी भी सरकारे सत्ता पर काबिज रही उन सभी ने संविधान के खिलाफ गैरजिम्मेदाराना व्यवहार अपनाया। इन सभी सरकारों ने हिन्दुज्म के नाम पर साम्प्रदायिक राजनीति करने वालो औऱ उनके संघठनो के आगे घुटने टेके है। इन सभी ने समय-समय पर अल्पसंख्यको के खिलाफ साम्प्रदायिक दंगे करवाये।
2014 में हिन्दुज्म के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टी जब से सत्ता में आई है तब से ही पूरे देश मे मुस्लिमो, दलितों, आदिवासियों, बुद्विजीवियों, कलाकारों, लेखकों पर हमलों की बाढ़ सी आ गयी है। इनके खिलाफ सत्ता द्वारा प्रायोजित युद्ध चल रहा है। गाय के नाम पर मुस्लिमो की हत्या, छात्रों, पत्रकारो, लेखकों व लेखिका गौरी लंकेश की हत्या, स्वामी अग्निवेश पर जानलेवा हमला करने के बाद,
 ताजा घटना हरियाणा के टिटौली गांव की है, जो रोहतक जिले में है। गांव पंचायत द्वारा मुस्लिम धर्म को मानने वालों के खिलाफ जो 4 दिन पहले फरमान सुनाया गया है को देखकर तो नही लगता कि भारत का सविधान काम कर रहा है।
भारत के मुख्य न्यूज पेपर पंचायत के इस फरमान को अपने पेपर के पहले पन्ने पर जगह देते है। लेकिन भारत के सविधान के खिलाफ फरमान सुनाने वाली इस पंचायत के खिलाफ भारत की कार्य पालिका चुप है, न्याय पालिका चुप है,  हरियाणा और केंद्र की सरकार जो संघी विचार से चलती है चुप है। इससे पहले भी गाय के नाम पर भीड़ द्वारा की गई हत्याओं पर ये सब चुप रहे है।
संघ सर संचालक जो 4 दिन पहले ही हिंदुइज्म की व्याख्या करते हुए बोल रहे थे कि हिंदुइज्म में मुस्लिम न हो तो वो हिंदुइज्म ही नही है।
"इनके हिन्दुज्म में मुश्लिम तो होंगे लेकिन वो मुस्लिम नही रहेंगे।"
उनका हिन्दुज्म ये ही है कि मुस्लिम अगर भारत मे रहे तो उनको अपने धर्म के रीति रिवाज, उपासना छोड़ कर हिन्दू रीति-रिवाज औऱ उपासना माननी पड़ेगी।
सर संचालक ने अपने सम्बोधन में डॉ अंबेडकर और भारत के सविधान की बहुत सराहना की है। लेकिन जमीनी सच्चाई क्या है ये टिटौली गांव की घटना से साफ दिख रही है।
"हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और"
      हरियाणा के टिटौली गांव में 22 अगस्त को बकरीद के दिन एक गाय ने बच्ची को टक्कर मार दी, बच्ची के चाचा यामीन ने गाय को डंडे से मारा। डंडे लगने से गाय की मौत हो गयी। मरी हुई गाय को जब बच्ची का चाचा व परिवार के लोग गांव के बाहर दफनाने जा रहे थे तो गांव के शरारती तत्वों ने गांव में अफवाह फैला दी कि ईद के दिन गांव के मुस्लिम गाय काटने के लिए गाय को मार कर गांव की बणी में ले गए है।
पूरे मामले की सच्चाई जाने बिना गांव में भीड़ इकट्ठा हो गयी और इस भीड़ ने मुस्लिम परिवारों के घर मे तोड़फोड़ व मारपीट की, गाय मारने के आरोपित व्यक्तियों को पोलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद भी भीड़ का तांडव नही रुका, भीड़ ने गाय को जबरदस्ती मुस्लिमो के कब्रिस्तान में दफनाया।
बहुत से परिवार डर के मारे गांव से पलायन कर गए। उसके बाद से ही गांव में गऊ रक्षा के नाम पर तांडव करने वाले गुंडा टोल जो पूरे देश मे सक्रिय है, जिनको संघी सरकारों व विपक्ष का खुला समर्थन है। जो बहुत जगह भीड़ का सहारा लेकर मुस्लिमो को मार चुके है ये सब टिटौली गांव में भी सक्रिय हो गए। इनके प्रयासों से ही गांव में एक पँचायत का आयोजन होता है। पंचायत ये फरमान सुनाती है कि
आरोपित व्यक्ति को गांव से आजीवन बाहर किया जाता है।
गांव के मुस्लिम नमाज नही पढ़ेगे औऱ न ही बाहर से कोई मुल्ला गांव में इनके धार्मिक रीति-रिवाज में नमाज पढ़ने आएगा।
गांव के मुस्लिम अपने बच्चों के नाम अरबी या उर्दू भाषा के नाम नही रखेंगे।
मुस्लिमो के कब्रिस्तान की जगह को बदल कर गांव से बाहर कोई अन्य जगह दी जाएगी।
कोई भी मुस्लिम दाढ़ी व टोपी नही रखेगा।
क्या ये फरमान भारत के सविधान की मूल प्रस्तावना -
   "भारत का सविधान हर व्यक्ति को अपने पसन्द के किसी भी धर्म का उपासना, पालन और प्रचार का अधिकार है। सभी नागरिकों, चाहे उनकी धार्मिक मान्यता कुछ भी हो कानून की नजर में बराबर होते हैं।" के खिलाफ नही है?
लेकिन संविधान की कसम खाने वाले विधायक, सांसद, जज, कर्मचारी इस फरमान के खिलाफ चुप है। क्यों?
"हम भारत के लोग" वाक्य से शुरू होने वाले सविधान के हम भारत के लोग चुप है। क्यों?
इसका सीधा और सरल उत्तर है कि कार्यपालिका, न्याय पालिका औऱ भारत की सत्ता पर बैठे ये सभी बहुसंख्यक हिन्दू है ये अपनी लूट को जारी रखने के लिए, असमानता पर आधारित धर्म के नियम-कायदों से देश को चलाना चाहते है। ये मनुस्मृति से देश को चलाना चाहते है।
इनके हिन्दुज्म में दलित, मुस्लिम, आदिवासी, महिला, मजदूर, किसान दोयम दर्जे का नागरिक होगा। इन सबको कोई सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक अधिकार नही होंगे।

देश का मेहनतकश अपने जनाधिकारों के लिए न लड़े, अपने क्रांतिकारी पूर्वजो द्वारा जोड़ी गयी सार्वजनिक सम्पति को लुटेरे पूंजीपति से बचाने के लिए न लड़े, जल-जंगल-जमीन के लिए न लड़े, अपने बच्चों के भविष्य के लिए आवाज न उठाये, जिनको पूंजीपति गुलामी की बेड़िया पहनाना चाहता है। इन लड़ाई से आपका ध्यान भटकाने के लिए आपको धर्म-जात-गोत्र-इलाका के नाम पर बांट कर खूनी भीड़ का हिस्सा बनाया जा रहा है।



आज जो हमको इन धार्मिक आतंकवादियों द्वारा धर्म का नशा करवाकर, धर्म का चश्मा पहनाकर जो कातिलों की भीड़ में शामिल किया जा रहा है।
आप आज जो मुस्लिमो का कत्लेआम कर रहे हो या भीड़ के कृत्यों पर खामोश हो। भीड़ का हिस्सा बन जो आप हुंआ-हुंआ कर खुशी का उन्माद कर रहे हो।  ये मानवता के खात्मे की तरफ बढ़ रहे हो।
आने वाले दिनों में ऐसी ही भीड़ आपके व आपके बच्चों के खिलाफ खड़ी मिलेगी आपका खून पीने के लिए, जब आप खड़े होंगे, मजदूर-किसान, दलित, आदिवासी के रूप में अपने अधिकारों के लिए।
उस समय तक सायद ही ये सविधान के मानवतावादी शब्द भी आपके लिए न बचे। इसलिए आप सबको फैसला करना है कि आपके पूर्वजो की लाखों कुर्बानियों के बाद बने धर्मनिरपेक्ष संविधान को बचाना औऱ उसको लागू करवाने के लिए भीड़ का हिस्सा बनने की बजाए ऐसी भीड़ का विरोध करोगे या फिर हिन्दुज्म के जाल में फंस कर दोबारा गुलामी की बेड़ियों में खुद जकड़ जाओगे।
००

उदय चे का एक और लेख नीचे पढ़िए
https://bizooka2009.blogspot.com/2018/03/23-24-3-18.html?m=1


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