निर्बंध:इक्कीस
हर बार जब हम झूठ बोलते हैं,सत्य पर हमारा कर्ज चढ़ जाता है
यादवेन्द्र
यादवेन्द्र |
26अप्रैल 1986 को तत्कालीन यूक्रेन के चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट में हुई भीषण जानलेवा दुर्घटना के जनता से छुपाए गए तथ्यों पर आधारित एचबीओ के अत्यंत चर्चित मिनी सीरियल 'चेर्नोबिल' को लेकर समाजविज्ञानियों के बीच आजकल गहरा विमर्श चल रहा है।दिलचस्प बात यह है कि ऐतिहासिक और वैज्ञानिक तथ्यों को लेकर कोई विवाद नहीं है बल्कि इसपर है कि सीरियल के दिखाए जाने के बाद दुर्घटना के इलाके(खास कर परित्यक्त और भुतहे प्रिप्यात शहर) में विकिरण की खतरनाक मात्रा के बावजूद बड़ी संख्या में सैलानी पहुँच रहे हैं - नैतिकता का सवाल यह उठाया जा रहा है कि वहाँ जाकर ये सैलानी जिस तरह की मौज मस्ती की और प्रसन्न मुद्रा में अधनंगी तस्वीरें खींच कर सोशल मीडिया में पोस्ट कर रहे हैं क्या वह विभीषिका से पीड़ित लोगों का अपमान नहीं है?आज की तारीख में दर्जनों ऐसी तस्वीरें सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं (कुछ तस्वीरें आलोचना के बाद हटा ली गईं)।
'चेर्नोबिल' के लेखक निर्माता क्रेग मजिन ने एक इंटरव्यू में सीरियल बनाने के उद्देश्यों के बारे में कहा:
"हर बार जब हम झूठ बोलते हैं,सत्य पर हमारा कर्ज चढ़ जाता है...आज नहीं तो कल यह कर्ज चुकाने ही पड़ता है....यह हमारे स्वभाव में निहित है - सच को देख कर भी नकार देने का भाव, प्रभावशाली गिरोह जैसे सोचता है सच या झूठ की परवाह किये बिना उसका अनुसरण।ऐसा नहीं है कि यह बात किसी खास पार्टी को लेकर कह रहा हूँ...हमारा इतिहास ऐसे जोड़ घटाव गुणा भाग से भरा पड़ा है।इनके पीछे एक ही जिद भरी सोच काम करती है और वह है कि हम जिस सत्य को देखना चाहते हैं अब वही एकमात्र सत्य है....जो सत्य हमें सुहाता नहीं अब वह सत्य रहा है नहीं,झूठ है।इस प्रवृत्ति ने पहले कभी हमारा भला किया न भविष्य में करेगा।"क्रेग मजिन स्पष्ट करते हैं कि 'चेर्नोबिल' विस्फ़ोट या दुर्घटना की फ़िल्म नहीं है बल्कि पूरी तरह से मानवीय स्थितियों की कथा है...यह लोगों की कथा है और उनके सच और झूठ की कथा कहती है।
बीबीसी के आर्ट एडिटर विल गोम्पर्ट्ज ने 'चेर्नोबिल' सीरियल के बारे में लिखा कि "यह न सिर्फ़ आपको सोचने के लिए मजबूर करता है बल्कि आपकी रातों की नींद हराम कर देता है...आप इसको देख कर चैन से सो नहीं सकते।तीसरा एपिसोड देखते देखते मेरा मन जिद करने लगा कि अब कुछ मनोरंजक हल्की चीज देखूँ....'टॉवरिंग इन्फर्नो' आगे देखना बर्दाश्त बाहर होता जा रहा था।
यह ऐसी दुनिया की कहानी बयां कर रहा था जहाँ लोगबाग मुस्कुराना भूल गए हैं।"जोहान रेंक के निर्देशन में बने सीरियल को वे 'रंगविहीन दुनिया' कहते हैं।क्रेग मजिन की सशक्त और संवेदनशील स्क्रिप्ट के बारे में वे कहते हैं कि उन्होंने मनोरंजन करने या उत्तेजना पैदा करने के लिए वैसी स्क्रिप्ट नहीं लिखी बल्कि दर्शकों को असलियत महसूस करवाने के उद्देश्य से लिखी। 'सोचिए उस समय क्या वास्तविक स्थितियाँ रही होंगी....सोचिए जब वे सरकारें जो आज न्यूक्लियर प्लांट्स चला रही हैं, रख रखाव के बजट में कटौती करते करते ऐसी दुर्घटना के मुहाने पर पहुँच जाएँ तब क्या होगा।'
खबरों में सैलानियों की उत्तेजक तस्वीरों के बारे में पढ़ कर क्रेग मजिन भी चुप न रह सके - वे सैलानियों के चेर्नोबिल घूमने जाने के विरोधी नहीं हैं और दुनियाभर के लोगों में चेर्नोबिल के बारे में दिलचस्पी बढ़ी है यह जानकर वे बहुत उत्साहित हैं...पर साथ साथ यह भी कहते हैं कि वहाँ घूमने जाने वालों को हादसे के पीड़ितों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार प्रदर्शित करना चाहिए....उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ साल पहले लाखों लोगों के लिए अभिशाप बन कर वहाँ एक भयानक हादसा घटा था...."आप वहाँ घूमते हुए पलभर को भी हादसे में अपने प्राणों की बलि चढ़ा देने वाले और आजीवन दुख भोगने वाले लोगों की पीड़ा को विस्मृत न करें।"
यह सब पढ़ते हुए और सोशल मीडिया पर मौजूद तस्वीरों को देखते हुए मुझे 2015 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाली स्वेतलाना एलेक्सिएविच की बहुचर्चित किताब 'वॉयसेज़ फ्रॉम चेर्नोबिल'
की याद आयी जिसमें हादसे का शिकार बने प्रिप्यात शहर के कुछ नागरिकों के संस्मरण संकलित हैं।
.वॉयसेज़ फ़्रॉम चेर्नोबिल" में एक मार्मिक अंश है जिसमें एक पिता न्यूक्लि यर हादसे का शिकार होकर अपनी बे टी की आसन्न मृत्यु का और एक पा रिवारिक परिपाटी निभाने के लिए खुद अपने घर के किवाड़ चुराने की घटना का बयान करता है।इस संस् मरण पर आयरलैंड की एक युवा फ़िल् मकार जुआनिता विल्सन ने "द डोर" शीर्षक से एक बहुचर्चित लघुफि ल्म बनायी - वे अपनी पहली फ़िल्म बनाने के लिए कोई उपयुक्त कहा नी ढूँढ़ रही थीं कि अचानक उनकी नज़र "द गार्डियन" के बुक रिव् यू पेज पर बेलारूस की पत्रकार ले खक स्वेतलाना एलेक्सिएविच की कि ताब "वॉयसेज़ फ़्रॉम चेर्नोबिल" की समीक्षा पर पड़ी जो 1986 के भी षण चेर्नोबिल न्यूक्लियर हादसे के पीड़ितों के संस्मरणों का सं कलन है। फ़ौरन उन्होंने किताब मं गायी और पढ़ते हुए उसके दो पन्ने के छोटे से हिस्से पर उनका मन ठहर गया ,बार बार उसको पढ़ते हु ए जुआनिता ने अपने करियर का आगा ज़ उस संस्मरण पर आधारित लघु फ़ि ल्म से करने का फ़ैसला किया। कि ताब में उस आठ सौ शब्दों के संस्मरण का शीर्षक था "मोनो लॉग अबाउट ए होल लाइफ़ रिटेन डा उन ऑन डोर्स" पर फ़िल्मकार ने संस्मरण के केन् द्रीय पात्र किवाड़ को देखते हुए फ़िल्म को "द डोर" शीर्षक दिया। संस्मरण के वास्तविक स्थल चेर् नोबिल के पास स्थित पूर्णतया परि त्यक्त प्रिप्यात शहर जाकर उसी घर में उन्होंने तीन घंटे में अपनी सत्रह मिनट की फ़िल्म शूट की ।इस त्रासदी की गहराई देखते हुए उन्हें महसूस हुआ कि शब्दों की बज़ाय किरदारों की आँखों और भाव भंगिमा की मार्फ़त दर्शकों तक प हुँचना ज्यादा मुफ़ीद होगा - पू री फ़िल्म में महज़ 25 संक्षिप्त संवाद हैं,निकोलाई(मुख्य पात्र ) तो मुश्किल से सौ शब्द बोलता है …… पर फ़िल्म देखने पर मालूम होता है कि अनकहा कहे शब्दों की तुलना में ज्यादा सशक्त वक्तव् य है। जुआनिता कहती हैं कि कहने को य ह एक किवाड़ की दास्तान है पर अं त में मालूम होता है कि यह निर् जीव किवाड़ की नहीं बल्कि मानवीय असहायता की ……और इंसानी सम्मान /गरिमा की पुनर्प्राप्ति की वि जय कथा है। आयरलैंड में तो इस ल घु फ़िल्म ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीते ही ,दुनिया के विभिन्न फ़ि ल्म समारोहों में भी अनेक पुरस् कार प्राप्त किये। ऑस्कर के लिए भी यह फ़िल्म नामित हुई थी।
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Y Pandey
Former Director (Actg )& Chief Scientist , CSIR-CBRI
Roorkee
Former Director (Actg )& Chief Scientist , CSIR-CBRI
Roorkee
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