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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल
02 नवंबर, 2010
हौंसलो की उड़ान
रोली
तुम कितनी ही कोशिश कर लो
तोड़ न पाओगे इस बार
मेरे हौंसलो की उड़ान
खोने न दूंगी खुद को
अपने काम को नया काम नया आयाम दूंगी
और दूंगी एक नई पहचान
अपनी आत्मा को जो
मुझसे शुरू होकर
ख़त्म होगी मुझी में
2 टिप्पणियां:
yamini
03 नवंबर, 2010 10:29
badhiya he.......
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Bahadur Patel
04 नवंबर, 2010 00:08
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badhiya he.......
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