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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

06 जनवरी, 2019

ख़लील जिब्रान की तीन कहानी और एक  कविता

अनुवाद: रंजना मिश्र



एक


किसी दार्शनिक ने सड़क झाड़ने वाले से कहा - " मुझे तुमपर दया आती है, तुम्हारा काम मुश्किल और गंदा है". सड़क झाड़ने वाले ने कहा - "धन्यवाद, महाशय. आप क्या करते हैं?"
दार्शनिक ने जवाब दिया - "मैं मनुष्य का मन, उसके कर्म और उसकी इच्छाएँ पढ़ता हूँ"
सड़क झाड़ने वाले ने मुस्कुराते हुए कहा - "मुझे भी आपसे हमदर्दी है" और अपना काम जारी रखा.







दो


पतझड़ के मौसम में मैने अपने सारे दुख समेटकर अपने बाग़ीचे में दफ़ना दिए ..
अप्रैल में जब वसंत धरती को ब्याहने आया तो मेरा बागीचा सुंदर फूलों से भर गया..
और मेरे पड़ोसियों ने मुझसे कहा - " अगली बार जब वसंत आएगा तो क्या तुम हमें अपने बाग़ीचे के इन फूलों के बीज नहीं दोगे जिसे हम अपने बाग़ीचे में उगा सकें?"






तीन


बिजूके

एक बार मैने किसी बिजूके से कहा - "अकेले खेत में खड़े खड़े तुम थक नहीं जाते?"
उसने जवाब दिया - "डराने की खुशी बड़ी गहरी और स्थाई होती है, और मैं इससे कभी थकता नहीं"
एक क्षण सोचने के बाद मैने कहा - "हाँ, मैं यह खुशी जानता हूँ"
उसने कहा - " सिर्फ़ वही लोग ये खुशी जान सकते हैं जिनमें भूसा भरा हो".
मैं उसे छोड़ आया, बिना जाने कि उसने मुझे जलील किया या मेरी तारीफ की.
एक बरस बीत गया. इस बीच बिजूका दार्शनिक हो गया.
दोबारा जब मैं उसके करीब से गुज़रा, मैने देखा दो कौवे उसकी टोपी तले अपना घोसला बना रहे थे.
ख़लील गिब्रान की कहानी 'स्केयरक्रो' का अनुवाद.
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कविता 

'डिफीट' 

पराजय, ओ मेरे पराजय
मेरे एकांत, मेरे अलगाव
तुम मुझे प्रिय हो,
हज़ारों जीत की खुशियों से
पराजय, ओ मेरे पराजय
मेरे आत्म ज्ञान, मेरे विद्रोह
तुम मुझे अहसास दिलाते हो
कि मैं अब भी ज़िंदा हूँ
कि मेरे पैर अब भी चपल हैं
और हम बंदी नहीं है
कुम्हलाते जीत की
तुमुल ध्वनियों के
तुममें पाया है मैने एकांत
नकारे जाने का उल्लास
और तिरस्कृत किए जाने का आह्लाद
पराजय, ओ मेरे पराजय
मेरी चमकती तलवार और मेरे कवच
तुम्हारी आँखों में
मैने पढ़ा है
विजयी होना गुलाम होना है
और समझे जाना
सीमाओं में बंधना
एक पके फल की तरह
डाली से टूट
संभावनाओ से विलग हो जाना है
पराजय, ओ मेरे निडर पराजय
तुमने मेरा गीत सुना है
मेरे आँसू और मेरी चुप्पी देखी है
तुम, सिर्फ़ तुम मुझे
पंखों पे लगी चोट की कहानी कहते हो
हहराते समुद्र की, काली रात
और जलते हुए पहाड़ों की
और सिर्फ़ तुम्हारी वजह से
मैं अपनी आत्मा की
ऊँची और पथरीली सीढ़ियाँ चढ़ता हूँ
पराजय, ओ मेरे पराजय
मेरे शाश्वत साहस
मैं और तुम अट्टहास करेंगे
झंझावतों के साथ
और साथ साथ ही हम
कब्र खोदेंगे उनकी
जो हमारे साथ और हमारे भीतर ही
मृत्यु को प्राप्त होगा
और सूरज के साथ खड़े होकर
अपराजेय हो जाएँगे.
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रंजना मिश्र


रंजना मिश्र की कविताएं नीचे लिंक पर पढ़िए

https://bizooka2009.blogspot.com/2018/05/blog-post_64.html?m=1


रंजना मिश्र की कहानी

ऐसे ही
https://bizooka2009.blogspot.com/2018/06/ssss-sssss.html?m=1



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